Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवान की.
ज़ै!
प्रिये भक्तों,
शिशिव महा पुरान के रुद्ध सहीता..
..तृत्ये पार्वती खंड की अगली कता है.
रुद्धर की नित्रागनी से काम का भस्म होना..
..रती का विलाप,
देवताओं की प्रार्थना से..
..शिव का काम को द्वापर में प्रधुम्न रूप से..
..नूतन शरीर की प्राप्ती के लिए वर देना..
..और रती का शंबर नगर में जाना.
तो आईये भक्तों, आरम्ब करते हैं ये कता..
..और अठार्वा तथा उन्निस्वा अध्याय.
ब्रह्मा जी कहते हैं..
हे मुने,
काम अपने साथी वसंत आदी को लेकर वहाँ पहुचा.
उसने भगवान शिव पर अपने बान चलाए..
..तब शंकर जी के मन में पारवती के प्रती आक्रिशन
होने लगा..
..और उनका धैरिय छूटने लगा.
अपने धैरिय का हरास होता देख..
..महा योगी महेश्वर अत्यंत विश्मित हो..
..मन ही मन इस प्रकार चिंतन करने लगे.
शिव बोले..
मैं तो उत्तम तपस्या कर रहा हूँ..
..उसमें विगन कैसे आ गए?
किस कुकरमी ने यहां मेरे चित में विकार पैदा कर दिया?
इस प्रकार
विचार करके सत्व पुर्शों के आश्रेदाता महा योगी महेश्वर..
..परमिश्वर शिव शंका युक्त हो..
..संपून दिशाओं की ओर देखने लगे.
उसी समय वाम भाग में बान खीचे..
..खड़े हुए काम पर उनकी दिश्टी पड़ी.
वै मूड चित्त मदन अपनी शक्ती के घहमन्ड में आकर..
..पुनहें अपना बान छोड़ना ही चाहता था.
हे नारद,
इस अवस्था में काम पर दिश्टी पड़ते ही..
..परमात्मा गिरीश को
ततकाल रोष चढ़ाया.
हे मुने उदर आकाश में बान सहीद धनुश लिये..
..खड़े हुए काम ने भगवान शंकर पर अपने..
..अमोग अस्तर छोड़ दिया,
जिसका निवारन करना..
..बहुती कठिन था.
परन्तु परमात्मा शिव पर..
..वै अमोग अस्तर भी मोग व्यर्त हो गया.
कुपित हुए परमेश्वर के पास जाते ही..
..शांत हो गया.
भगवान शिव पर अपने अस्तर के व्यर्त हो जाने पर..
..मनमत काम को बड़ा भै हुआ.
भगवान मृत्युन जय को सामने देख कर वै काम उठा..
..और इंद्र आदी समस्त देवताओं का..
हे मुनिश्रेष्ट,
अपना प्रियास निश्वल हो जाने पर..
..काम भै से व्याकुल हो उठा था.
मुनिश्वर,
काम देव के स्मर्ण करने पर..
..वे इंद्र आदी सब देवता वहाँ आ पहुँचे..
..और शंभू को परणाम करके उनकी स्तुति करने लगे.
देवता इस्तुति कर ही रहे थे..
..कि कुपित हुए भगवान हर के ललाट के मद्यभाग में इस्तित..
..तृत्य नित्र से बड़ी भारी आग ततकाल प्रगट हो का निकली.
उसकी जौलायं ऊपर की ओर उठ रही थी.
वहाँ आग धूधू करके जलने लगी.
उसकी प्रभा प्रैलागनी के समान जान परती थी.
वहाँ आग तुरंट ही आकाश में उचली और पृत्यू पर गिर पड़ी.
फिर अपने चारो और चक्र काटती हुई धराशाईनी हो गई.
साधो,
साधो,
भगवन,
भगवन,
ख्षमा कीजिये,
ख्षमा कीजिये.
यह है बात जब तक देवताओं के मुक्स से निकले,
तब तक ही उस आग ने कामदेव को जला कर भस्म कर दिया.
उस वीर कामदेव के मारे जाने पर देवताओं को बड़ा दुख हुआ.
वे व्याकुल हो,
हाई ये क्या हुआ,
हाई ये क्या हुआ ऐसा कह कह कर जोर जोर
से चीतकार करते हुए रोने बिलकने लगे.
उस समय विक्रित चित हुए,
पारवती का सारा शरीर सफेद पढ़ गया.
काटो तो खून नहीं,
वे सक्हियों को साथ ले अपने भवन को चली गई.
कामदेव के जल जाने पर
रती वहाँ एक शण तक अचेत पढ़ी रही,
पती की मिर्त्यु के दुख से वे इस तरह पढ़ी थी मानों मर गई हो.
थोड़ी देर में जब होश आया तब अच्यंट व्याकूल हो,
रती उस समय तरहें तरहें की बातें कहें कर विलाप करने लगी.
रती बोली,
है,
है मैं क्या करूँ, कहाँ जाऊं,
देवताओं ने ये क्या किया,
मेरे उद्दंड स्वामी को बुलाकर नष्ट करा दिया,
है, है, है नात,
स्मर्ष्वामिन,
प्रान प्रिये,
हा मुझे सुख देने वाले प्रियतम,
हा प्रान नात,
ये यहां क्या हो गया?
ब्रह्मा जी कहते हैं,
हे नारद,
इस प्रकार रोती,
बिलक्ती और अनेक प्रकार की बाते करती हुई रती,
हाथ पेर पटकने और अपने सिर के बालों को नोचने लगी,
उस समय उसका विलाप सुनकर वहां रहने वाले समस्त वनवासी,
जीव तथा व्रक्ष आधी इस्थावर प्राने भी बहुत दुखी हो गए,
इसी बीच में इंद्र आदी सम्पून देवता महादेव जी का
इसमन करते हुए रती को आश्वासन दे इस प्रकार बोले,
देवताओं ने कहा,
तुम काम के शरीर का थोड़ा सा भस्म लेकर
उसे यत्न पूर्वक रखो और भै छोड़ो,
हम सबके स्वामी महादेव जी काम देव को पुनहें जीवित कर
देंगे और तुम फिर अपने प्रियतम को प्राप्त कर लोगी,
कोई किसी को ने तो सुख देने वाला है और न कोई दुख ही देने वाला है,
सब लोग अपनी अपनी करनी का फल भोगते हैं,
तुम देवताओं को दोश देकर व्यर्त ही शोक करती हो।
इसप्रकार रती को आश्वासन दे,
सब देवता भगवान शिव के पास आये और
उन्हें भकती भाव से प्रसन करके यों बोले।
देवताओं ने कहा,
भगवन शर्णागत वच्छल महेश्वर,
आप कृपा करके हमारे इस शुबवचन को सुनिये।
हे शंकर,
आप काम देव की कर्तूत पर भली भाती प्रसननता पूर्वक विचार कीजिए।
हे महेश्वर,
काम ने जो है कारिय किया है,
इसमें उसका कोई स्वार्थ नहीं था।
दुश्ट तार का सुर से पीड़ित हुए हम सब
देवताओं ने मिलकर उससे है काम कराया है नाथ।
हे शंकर,
इसे आप अन्यथा न समझें,
सब कुछ देने वाले देव,
हे गिरीश,
सती साध्वी रती अकेली अती दुखी होकर विलाप कर रही है,
आप उसे सांत्वना प्रदान करें।
हे शंकर,
यदि इस क्रोध के द्वारा आपने काम देव को मार डाला,
तो हम यही समझेंगे कि आप देवताओं सहित समस्त
प्राणियों का अभी संघार कर डालना चाहते हैं।
रती का दुख देख कर देवता नष्ट प्राय हो रहे हैं,
इसलिए आपको रती का शोक दूर कर देना चाहिए।
ब्रह्मा जी कहते हैं,
हे नारद,
सम्पूर्ण देवताओं का यह वचन सुनकर भगवान
शिव प्रसन हो उनसे इस प्रकार बोले।
शिव ने कहा,
देवताओं
और रिशीयों,
तुम सब आदर पूर्वक मेरी बात सुनो,
मेरे क्रोध से जो कुछ हो गया है,
वेह तो अन्यथा नहीं हो सकता,
तथापि रती का शक्ति शाली पती कामदेव अभी तक अनंग शरीर रहित रहेगा,
तब वे रुकमणी के गर्व से काम को भी जन्म देंगे,
उस काम का ही नाम उस समय प्रधूमन होगा,
इस में संशे नहीं है,
उस पुत्र के जन्म लेते ही शंबरासूर उसे हर लेगा,
हरन के पश्यात
दानव शिरोमनी शंबर उस शिशु को समुद्र में डाल देगा,
फिर वे है मूढ उसे मरा हुआ समझकर अपने नगर को लोड जाएगा,
हे रते उस समय तक तुम्हें शंबरासूर के
नगर में सुख पूर्वक निवास करना चाहिए,
वही तुम्हें अपने पती प्रधूमन की प्राप्ती होगी,
वहां तुम से मिलकर काम युद्ध में शंबरासूर का वद करेगा और सुखी होगा,
देवताओं
प्रधूमन नामधारी काम अपनी कामनी रती को तथा
शंबरासूर के धन को लेकर
उसके साथ पुने नगर में जाएगा,
मेरा यह कथन सर्वता सत्य होगा।
ब्रह्मा जी कहते हैं,
हे नारद,
भगवान शिव की यह बात सुनकर देवताओं के चित में कुछ उल्लास हुआ
और वे उन्हें प्रणाम करके दोनों हाथ जोड विनीत भाव से बोले,
देवताओं ने कहा,
देव, देव,
हे महादेव,
हे करुणासागर,
हे प्रभू,
आप काम देव को शिगर जीवन दान दे तथा रती के प्राणों की रक्षा करें।
देवताओं की यह बात सुनकर सब के स्वामी
करुणासागर परमिश्वर शिव पुनहें प्रसन होकर बोले,
देवताओं,
मैं बहुत प्रसन हूँ,
मैं काम को सब के हिरदे में जीवित करदूंगा,
वे सदा मेरा गन होकर विहार करेगा,
अब अपने स्थानों को जाओ,
मैं तुम्हारे दुख का सर्वता नाश करूंगा।
ऐसा कहका रुद्रदेव,
उस समय स्तुति करने वाले देवताओं के देखते देखते अन्तरध्यान हो गए,
देवताओं का विश्मएद दूर हो गया
और वे सब के सब प्रसन हो गए।
हे मुने,
तरंतर रुद्र की बात पर भरोसा करके इस्ठिर रहने
वाले देवता रती को उनका कथन सुनाकर आश्वासन दे,
अपने अपने स्थान को चले गए।
हे मुनिश्वर,
काम पत्नी रती शिव के बताय हुए शंबर नगर को चली गई तथा
रुद्र देव ने जो समय बताय था उसकी प्रतीक्षा करने लगी।
भोल ये शिवशंकर भगवान की जैये।
प्रिय भक्तों,
इस प्रकार यहां पर श्रीशिव महा पुरान के रुद्र सहीता तिर्तिय पार्वती
खंड की ये कथा और अठार्मा तथा उनिस्मा अध्याय समाप्त होते हैं।
भोल ये शिवशंकर भगवान की जैये।
भोल ये शिवशंकर भगवान की जैये।