Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवान की.
जै!
प्रिये भक्तों,
सिशिव महा पुरान के रुद्र सहीता
तृतिय पारवती खंड की अगली कथा है.
तारका सुर के सताये हुए देवताओं का
ब्रह्मा जी को अपनी कश्ट कथा सुनाना.
ब्रह्मा जी का उन्हें पारवती के साथ शिव
के विभा के लिए उध्योक करने का आदेश देना.
ब्रह्मा जी के सम्जाने से तारका सुर का स्वर्ग को छोड़ना
और देवताओं का वहां रहकर लक्ष सिध्धी के लिए यत्नशील होना.
तो आईये भक्तो आरंब करते हैं इक अधाई और चोहद्वा,
पंदर्वा और सोल्वा अध्याई.
सूच जी कहते हैं,
तद अंतर नारच जी के पूचने पर पारवती के विभा के विश्ट्रित
प्रसंग को उपस्थित करते हुए ब्रह्मा जी ने तारका सुर की उतपत्ती,
उसके उग्रतब,
मनोवान्छित वरप्राप्ती तथा देवता और असुर सब को जीत कर स्वैम �
भ्रह्मा जी ने कहा,
तारका सुर तीनों लोकों को अपने वश्व में करके जब स्वैम
इंद्र हो गया तब उसके समान दूसरा कोई शासक नहीं रह गया
तो ये जीतेंद्री असुर तिरभुवन का एक मात्र स्वामी होकर
अदबुद ढंग से राज्य का संचालन करने लगा
उसने समस्त देवताओं को निकाल कर उनकी जगहें दैत्यों को इस्थापित कर दिया
और विध्याधर आदी देवयोनियों को स्वैम अपने कर्म में लगाया
उनकी देवयों को प्रजापती को प्रणाम करके बड़ी भक्ती से
मिरा इस्तवन किया और अपने दारुन दुख की बातें बता कर कहा
हे प्रभो आप ही हमारी गती हैं,
आप ही हमें कर्तव का उपदेश देने वाले
हैं और आप ही हमारे दाता एवं उध्धारक हैं
हम सब देवता तारकासुर नामक अगनी में जल कर अत्यंत व्याकुल हो रहे हैं
जैसे सन्नी पात रोग में प्रवल ओश्धे भी निर्बल हो जाती हैं उसी
प्रकार उस असुर ने हमारे सभी क्रूर उपायों को बलहीन बना दिया हैं
भगवान विश्णू के सुदर्शन चक्र पर ही हमारी विजए की आशा
अवलंबित रहती है
परन्तु वेह भी उसके कंठ पर कुंठित हो गया है
उसके गले में पढ़कर वेह ऐसा प्रतीत होने लगा था
मानो उस असुर को फूल की माला पहनाई गई हो
देवताओं,
मेरे ही वर्दान से देवत्यतारखासो इतना बढ़ गया है
अते मेरे हातों ही उसका वदध होना उचित नहीं
जो जिससे पलकर बड़ा हो उसका उसी के द्वारा वद होना योग कार्य नहीं है
विश्के व्रक्ष को भी यदी स्वैम सीचकर बड़ा किया
गया हो तो उसे स्वैम काटना अनुचित माना गया है
तुम लोगों का सारा कार्य करने के योग भगवान शंकर हैं
किन्टु वे तुम्हारे कहने पर भी स्वैम उस असुर का सामना नहीं कर सकते
यहाँ मैं सत्य कहता हूँ
देवताओ यदी शिवजी के वीरिय से कोई पुत्र उत्पन हो
तो वही तारख दैत्य का वद कर सकता है दूसरा नहीं
सुर्श्रेष्ट गण इसके लिए जो उपाय मैं बताता हूँ उसे करो
बहादेव जी की किरपा से वे उपाय अवश्य सिद्ध होगा
पूर्वकाल में जिस दक्ष कन्या सती ने
दक्ष के यग में अपने शरीर को त्याग दिया था
वही इस समय हिमाल्य पत्नी मेनिका के गर्व से उत्पन्य हुई है
यह बात तुमें भी विदित ही है
बहादेव जी की उस कन्या का पानी गरहन अवश्य करेंगे
तथापी देवताओं तुम स्वेम भी इसके लिए प्रत्न करो
तुम अपने यत्न से ऐसा उध्योग करो जिस से मेनिका कुमारी
पारवती में भगवान शंकर अपने वीरिय का आधान कर सकें
भगवान शंकर उर्ध रेता है उनका वीरिय उपर की ओर उठा रहता है
उनके वीरिय को प्रस्खिलित करने में केवल पारवती ही समर्थ हैं
दूसरी कोई अबला अपनी शक्ती से ऐसा नहीं कर सकती
गिरीराज की पुत्री वे पारवती इस समय युवावस्था में प्रवेश कर चुकी हैं
और हिमाल्य पर तपश्चा में लगे हुए
महादेव जी की प्रिति दिन सेवा करती हैं
तीनों लोकों में सबसे अधिक सुन्दर पारवती
शिव के सामने रहकर प्रिति दिन उनकी पुजा करती है
परवती की ओर देखने का विचार भी मन में नहीं लाते
देवताओं चंदरशेकर शिव जिस प्रकार काली
को अपनी भारिया बनाने की चेष्टा करें
वैसी चेष्टा तुम लोग शिगर ही प्यतन पूर्वक करो
इसमें अन्यथा विचार करने की आवशक्ता नहीं है
उस असुर को समझने के बाद मैं शिवा और शिव
का इसमन्द करके वहां से अद्रिश्य हो गया
तारकासुर भी स्वर्ग को छोड़ कर पृत्थि पर आ
गया और शौनितपुर में रह कर वे राज्ज करने लगा
फिर सब देवता भी मेरी बात सुनकर मुझे प्रणाम करके इंद्र के
साथ परसंदनता पूर्वक बड़ी सावधानी के साथ इंद्र लोक में गये
वहां जाकर परस्पर मिलकर आपस में सलभा करके
वे सब देवता इंद्र से प्रेम पूर्वक बोले
भगवन शिव की शिवा में जैसे भी काम मूलक रुची हो
वैसा ब्रह्मा जी का बताया हुआ सारा प्रेतन आपको करना चाहिए
इस प्रकार देवराज इंद्र से संपून वृतान्त निवेदन करके वे
देवता परसंणता पूर्वक सब और अपने अपने इस्थान पर चले गए
बोलिये शिव शंकर भगवान की जैये
प्रिया भक्तो इस प्रकार यहां पर शिव शिव महा पुरान के रुद्र सहीता
तृतिय पार्वती खंड की यह कथा
और चोहद्वा,
पंद्रवा और सोल्वा अध्याय यहां पर समाप्त होता है
बोलिये शिव शंकर भगवान की जैये
ओम् नमहाँ शिवाय