Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवान की
जैये
प्रिय भक्तो
श्री शिव महा पुरान के
कोटी रुद्र सहिता की अगली कथा है
रिशी कापर भगवान शिव की कृपा
एक असुर से
उसके धर्म की रक्षा करके
उसके आश्रम में
नन्दी केश
नाम से निवास करना
और वर्ष में एक दिन गंगा का भी वहां आना
बहुत आनंदायक प्रसंग है भगतो तो हैये
आरंब करते हैं इस कथा के साथ पाँच्वा,
छटा और साथ्वा अध्याय
तद अंतर शी सूत जी ने जब बहुत से शिवलिंगों के कथा प्रसंग सुना दिये
तव रिश्यों ने पूछा
हे महामते सूत जी
वैशाख शुक्ल सप्तमी के दिन
गंगा जी नरवदा में कैसे आई
इसका विशेश रूप से वर्णन कीजिये
एक ब्राह्मनी थी
जिसका नाम रिशी का था
वै किसी ब्राह्मन की पुत्री थी और एक
ब्राह्मन को ही विधी पूर्वक ब्याही गई थी
तफापी अपने पूर्व जन्म के किसी अशुब कर्म
के प्रभाव से बाल वैधव्य को प्राप्त हो गई
तव वै ब्राह्मन पत्नी
ब्रह्मचरिय व्रत की पालनमी तत्पर हो
पार्थिव पूजन पूर्वक अठ्यंद कठोर तपस्या करने लगी
उस समय अवसर पाकर मूढ नाम से प्रिशिद एक तुष्ट और बल्वान असुर
जो बड़ा मायावी था
काम बान से पीडित होकर वहां गया
उस अठ्यंद सुन्द्री कामनी को तपस्या करते हुए देख
वै असुरोंने नाना प्रकार के लोब दिखाता हुआ
उसके साथ सम्भोक की आश्ना करने लगा
हे मुनिश्वरो
परंतु उत्तम व्रत का पालन करने
तथा शिव के ध्यान में तप्पर रहने वाली वै साद्वी नारी
काम भाव से उस पर द्रिश्टी न डाल सके
तपस्या में लगी हुई उस प्राहमनी ने उस असुर कात सम्मान नहीं किया
क्योंकि वै अध्यंद तपोनिष्ट और शिव ध्यान परायना थी
उस किशांगी यूती से त्रिस्कित हो उस दैतिराज मूर्ध ने
उसके ऊपर क्रोध प्रगट किया और फिर अपना विकट रूप उसे दिखाया
इसके बाद उस दुष्टात्मा ने भै दायक दुरवचन कहा और
उस प्राहमन पत्नी को बारंबार त्रास्त हीना आरमव किया
उस समय वै उसके भै से थर्रा उठी और अनेक
बार सनही पूर्वक शिव शिव की पुकार करने लगी
उस तन्वंगी दुजपत्नी ने भगवान शिव का पूर्वतया आश्रे लिरखा था
शिव का नाम जपने वाली वे नारी अत्यंत विहवल हो अपने
धर्म की रक्षा के लिए भगवान शम्भू की ही शरण में गई
तब शरणागत की रक्षा सदाचार की प्रतिष्ठा
तथा उस ब्राह्मनी को आनन्द प्रदान करने
के लिए भगवान शिव वहां प्रगत हो गए
भगत वच्छल परमिश्वशंकर ने
उस कामविहल तैत्यराजमूढ को ततकाल भस्म कर
दिया और ब्राह्मनी की ओर कृपा दश्टी से देख कर
भगत की रक्षा के लिए दत्व चित्त हो कहा
बर मांगो
बहिश्वर का है वचन सुनकर उस साधवी ब्राह्मनी पत्नी
ने उनके उस आनन्द जनक मंगल में रूप का दर्शन किया
फिर सबको सुख देने वाले परमिश्वर शम्भू
को परनाम करके शुद्ध अंतह करन वाली
उस साधवी ने हाथ जोड मस्तक जुका कर उनकी इसतुती की
रिशी का बोली
हे देव हे देव हे महादेव
शर्णागत वच्छल
आप दीन बंधु हैं भक्तों की रक्षा करने वाले इश्वर हैं
आपने मोड नामक असुर से मेरी धर्म की रक्षा की हैं
क्योंकि आपके द्वारा ये दुष्ट असुर मारा गया
हैसा करके आपने संपून जगत की रक्षा की हैं
हब आप मुझे अपने चर्णों में परम मुत्तम एवं अनन्य भक्ती परदान कीजिए
हे नात यही मेरे लिए वर है इससे अधिक और क्या हो सकता है
हे प्रभू
हे महेश्वर
मेरी दूसरी प्रातना भी सुनिये
यहां सदा इस्थित रहिए
महादेव जी ने कहा
रिशी के तुम सदाचार्णी और विशेस्थ मुझ में भक्ती रखने वाली हो
तुम में मुझ से जो जो वर मांगे हैं
वे सब मैंने तुम्हें दे दिये
हे प्राह्मणों
इसी बीच में श्री विश्णू और ब्रह्मा अधी देवता
वहां भगवान शिव का आविरभाव हुआ जान हर्ष से भरे हुए आये
और अत्यंत प्रेम पूर्वक शिव को प्रणाम
करके उन सब ने उनका भली भाती पूजन किया
फिर शुद्ध हिर्दय से हाथ जोड मस्तक जुका कर उनकी स्तूती की
इसी समय साद्वी देव नदी गंगा
उस रिशी का
से उसके भाग्य की सरहाना करती हुई पसन्य चित्त हो बोली
गंगा ने कहा
हे रिशी के
वैशाख मास में एक दिन यहां रहने के लिए मुझे भी तुम्हें वचन देना चाहिए
उस दिन मैं भी इस तीरत में निवास करना चाहती हूँ
यह देख सब देवता आनंधित हो शिव तथा रिशी का की
प्रशंसा करने लगे और अपने अपने धाम को चले गए
उस दिन से नर्मदा का वैशाख मास तीरत ऐसा उठ्तम और पावन हो गया
तथा संपून पापों का नाश करने वाले शिव
वहाँ अनंधिकेश के नाम से विख्यात हुए
गंगा भी प्रती वर्ष वैशाख मास की सप्तमी के दिन शुभ की च्छा से अपने
उस पाप को धोने के लिए वहाँ जाती है जो मनिश्यों से वे ग्रहन करती हैं
बोलिये शिवशंकर भगवाने की जेए
प्रिये भक्तों
इस प्रकार यहाँ पर
शिव शिव महा पुरान के कोटी रुद्र सहीता की यह कथा
और पाँच्वा ज्छटा तथा साथ्वा अध्याय यहाँ पर समाप्त होते हैं
तो सनही से बोलिये भक्तों बोलिये शिवशंकर भगवाने की जेए
ओम नमः शिवाय
ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय