Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवाने की जए!
प्रिया भगतों,
शिष्यु महापुरान के
कोटी रुद्र सहीता की अगली कथा है
मुक्ति और भगती के स्वरूप का विवेचन.
तो आये भगतों, आरम्ब करते हैं इस कथा के साथ
इक्तालीष्मा अध्याय.
रिश्यों ने पूछा,
हे सूज़ जी,
आपने बारंबार मुक्ति का नाम लिया है,
यहां मुक्ति मिलने पर क्या होता है,
मुक्ति में जीव की कैसी अवस्था होती है,
यह हमें बताईए.
सूज़ जी ने कहा,
हे महरशियों,
सुनु,
मैं तुमसे संसार कलेश का निवारन तथा परमाननद
का दान करने वाली मुक्ति का स्वरूप बताता हूं.
मुक्ति चार प्रकार की कही गई है,
सारूपया,
सालोक्या,
सानिध्या तथा चोथी सायुज्या,
इस शिवरात्री व्रत से सब प्रकार की मुक्ति सुलव हो जाती है.
जो ज्यान रूप अविनाशी,
साक्षी,
ज्यान गम्य और द्वैत रहित साक्षात शिव हैं,
वे ही यहां कैवल्य मोक्ष के तथा धर्म,
अर्थ और काम रूप त्री वर्ग के भी दाता हैं.
हे मुनीवरो,
मैं उसका लक्षन बताता हूं.
वही शिव का रूप हैं.
मुनीवरो,
वेदो में शिव के दो रूप बताये गए हैं.
सकल और निशकल,
शिव तत्व,
सत्य,
ज्यान,
अनन्त एवं सच्चिदा अनन्द नाम से प्रसिद्ध है.
निर्गुन, उपाधी रहित, अविनाशी,
शुद्ध एवं निरंजन निर्मल हैं.
वहे ने लाल है,
न पीला,
न सफेद है, न नीला,
न छूटा है, न बड़ा,
और न मोटा है, न महीन.
जैसे आकाश सर्वत्रव्यापक है,
उसी प्रकार
यह शिवत्व भी सर्वव्यापी है.
यह माया से परे,
सम्पून द्वन्धों से रहित,
तत्था मत्शर्ता शुन्य परमात्मा है.
जहां शिवघ्याण का उदिया होने से,
निश्चेहि उसकी प्राप्ती होती है।
अथ्िवा द्विजो,
सोोक्ष्म बुद्धि के द्वारा,
शिवका ही भजन meditation का खाल से,
सत्पूर्शो और सिव का प्राप्ती होती है।
सत्यम् ज्यानमनंतम्च सच्चिदानन्दसंगीतम
निर्गुणो निरुपाधिष्च चाव्ययं शुद्धो निरंजणः
नरक्तो नेवपीतश्च नश्वेतो नीलेवच नह्रस्वो नचदीरखश्च
नैस्थूल सोक्ष्मेवच
यतो वाचो निवर्तंते एप्राप्ये मनसासः
तदेव परम्बं प्रोक्तं ब्रह्मोवशिवशंग्यकं
आकाशं व्यापकं यद्वत् तदेव व्यापकं त्वीदं
मायातीतं परात्मानं द्वन्दातीतं विमच्छरं
संसार में ज्ञान की प्राप्ती अठ्यंत कठिन है,
परण्तु भगवान का भजन अठ्यंत सुकर माना गया है,
इसलिए संत शिरोमनी पुरुष मुक्ती के लिए भी शिव का भजन ही करते हैं।
ज्ञान स्वरूप मोक्षदाता परमात्मा
शिव भजन के ही अधीन है,
भगती से ही भवत से पुरुष
सिध्धी लाब करके प्रसन्यता पूरुवक परम मोक्ष पा गए हैं।
भगवान शंभू की भगती ज्ञान की जननी मानी गई है,
जो सदा भोग और मोक्ष देने वाली है।
यह साद्व महापुर्शों के कृपा प्रसाद से सुलब होती है,
उत्तम प्रेम का अंकोर ही उसका लक्षन है।
हे द्विजो,
वह भगती भी सगुन और निर्गुन के भेध से दो प्रकार की जाननी चाहिए।
इनके शिवा
Name ofResource ने श्थकी खड़ी आनेश्थकीकें
भेध के भक्ति के दो परकार और बतये गये है।
विद्वानोंने उसके अनेक प्रकार माने हैं।
उनके बहुत से भेद होने के कारण यहां विस्तित वर्णन नहीं किया जा सकता।
इन दोनों प्रकार की भक्तियों के श्रवण आधी भेद से नो अंग जानने चाहिए।
भगवान की कृपा के बिना
इन भक्तों का संपाधन होना कठीन है और उनकी
कृपा से सुगंता पूर्वक उनका साधन होता है।
हे द्विजो,
भक्ति और घ्यान को शंबु ने एक दूसरे से भिन नहीं
बताया है। इसलिए उनमें भेद नहीं करना चाहिए। घ्यान
और भक्ति दोनों के ही साधक को सदा सुख मिलता है।
ब्राह्मनों,
जो भक्ति का विरोधी है उसे घ्यान की प्राप्ती नहीं होती। बग्वान शिव
की भक्ती करने वालों को ही शिगरता पूर्वक घ्यान प्राप्त होता है।
अत्या मुनिश्वरो महिश्वर की भक्ती का साधन करना आवश्चक
है उसी से सब की सिद्धी होगी इसमें संचे नहीं है
महरशीयो तुमने जो कुछ पूचा था उसी का मैंने वर्णन किया है इस
प्रसंग को सुनकर मनुष्य सब पापों से निसंदेह मुक्त हो जाता है
शिवशंकर भगमाहाने की जैए