Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवाने की जै!
प्रिय भक्तों!
सिर शिव महा पुरान के कोटी रुद्र सहिता की
अगली कथा है
रामिश्वर नामक जोतर लिंग के
आविरभाव तथा महात्म का वर्णन
तो आईये भक्तों!
आरंब करते हैं
इस कधा के साथ एक अतिस्वा अध्या है
सूच जी कहते हैं
हे रिशियो!
अब मैं यह बता रहा हूँ कि रामिश्वर नामक
जोतर लिंग पहले किस परकार प्रकट हुआ?
इस प्रसंग को तुम आदर पूर्वक सुनो
भगवान विश्णों के रामवतार में जब रावन सीता जी को हर कर लंका में ले गया
तब सुग्रीव के साथ अठारहे पद्म वानर सेना ले कर श्रीराम समंद तट पर आए
वहां वे विचार करने लगे कि कैसे हम समंदर को
पार करेंगे और किस प्रकार रावन को जीतेंगे?
इतने में ही श्रीराम को प्यास लगी
उन्होंने जल माँगा और वानर मीठा जल ले
आए श्रीराम ने प्रसंद होकर वै जल ले लिया
जब तक उन्हें इसमर्ण हो आया कि मैंने अपने
स्वामी भगवान शंकर का दर्शन तो किया ही नहीं
फिर यह जल कैसे ग्रहन कर सकता हूं?
ऐसा कहकर उन्होंने उस जल को नहीं पिया
जल रक देने के पश्चात रघुननदन ने पार्थ्य पूजन किया
आवाहन आदी सोहलय उपचारों को प्रस्तुत करके विधी
पूर्वक बड़े प्रेम से शंकर जी की अर्चना की
प्रणाम तथा दिव्यस्त्रोतो द्वारा यतन पूर्वक शंकर जी को
संतुष्ट करके श्रीराम ने भक्ती भाव से उनसे प्रार्थना की
श्रीराम बोले उत्तम वर्त का पालन करने वाले मेरे स्वामी देव महिश्वर
आपको मेरी सहइधा करनी चाहिए
आपकी सहयोग के बिना मेरे कारे की सिध्धी अठ्यंत कठिन है
रावन भी आपका ही भखत है वे सबके लिए सर्वता दुर्जय है
परन्तु आपके दिएओँए वर्दान से वे सदा दर्प में भरा रहता है
वे त्रिवुहन विजएई महावीर है इधर मैं भी आपका दा
सूच जी कहते हैं इस प्रकार प्रार्थना और बारंबार नमसकार करके उनोंने उच्छ
स्वर्थ से जैशंकर जैशिव इत्यादी का उदगोश करते हुए शिव का इस्तवन किया
फिर उनके मंत्र के जप और ध्यान में तत्पर हो गए
तत्पश्चाद पुने पूजन करके वे स्वामी के आगे नाचने लगे
उस समय उनका हिर्दय प्रेम से द्रवित हुरा था
फिर उनोंने शिव के संतोष के लिए गाल बजाकर
अव्यक्त शब्द किया
उस समय भगवान शंकर उस पर बहुत प्रसन होए और वे जोतिरमे महेश्वर
वामांग भूता पारवती तथा पार्शद गणों के साथ शास्त्रोक्त
निर्मल रूप धारन करके तत्काल वहां प्रगट हो गए
श्रीराम की भक्ती से संतुष्ट चित्धोकर महेश्वर ने उनसे कहा
श्रीराम तुम्हारा कल्यान हो
वर मांगो
उस समय उनका रूप देखकर वहां उपस्तिद हुए सब लोग पवित्र हो गए
शिव धरम परायन श्रीराम जी ने स्वेम उनका पूजन किया
फिर भाती भाती की स्तुती एवं प्रणाम करके उनोंने भगवान शिव से
लंका में रावन के साथ होने वाले युद्ध में अपने लिए विजए की प्रात्ना की
श्रीराम भकती से प्रसन हुए महिश्वने कहा
महराज तुम्हारी जैवो
भगवान शिव के दिये हुए विजए सूचक वर
एवं युद्ध की आग्या को पाकर श्रीराम ने नतमस्तक हो हाथ जोड़कर
उनसे पुने प्रार्थना की
श्रीराम बोले मेरे स्वामी शंक
यहां सदा निवास करें
तब से इस भूतर पर रामिश्वर की अद्भूत महिमा का पुरसार हुआ
बगवान रामिश्वर सदा भोग और मोक्ष देने वाले
तथा भक्तों की इच्छा पूंट करने वाले हैं
जो दिव्य गंगा जल से रामिश्वर शिव को भक्ति
पूरो की स्नान कराता है वह जीवन मुक्त ही है
इस संसार में देव दुरलब समस्त भोगों का उपभोग करके
अंत में उत्तम ज्ञान पाकर वह निष्चय
ही कैवल्य मोक्ष को प्राप्त कर लेता है
इस परकार मैंने तुम लोगों से भगवान शिव के
रामिश्वर नामक दिव्य जूतरलिंग का वर्णन किया
जो अपनी महिमा सुनने वालों के समस्त पापों का
अपरहन करने वाला है
बोले शिव शंकर भगवान की जैये
प्रिय भक्तो
इस परकार
शिव शिव महा पुरान के कोटी रुद्र सहीता की ये कथा
और 31 मा अद्ध्याय हाँपर समाप्त होता है
तो स्नहे के साथ बोलिए
बोले शिव शंकर भगवान की जैये
और आनंद के साथ
ओम नमः शिवाय
ओम नमः शिवाय
ओम्नमः शिवाय्