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Shiv Mahapuran Koti Rudra Sanhita Adhyay-22

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Kailash Pandit

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Bài hát shiv mahapuran koti rudra sanhita adhyay-22 do ca sĩ Kailash Pandit thuộc thể loại The Loai Khac. Tìm loi bai hat shiv mahapuran koti rudra sanhita adhyay-22 - Kailash Pandit ngay trên Nhaccuatui. Nghe bài hát Shiv Mahapuran Koti Rudra Sanhita Adhyay-22 chất lượng cao 320 kbps lossless miễn phí.
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Lời bài hát: Shiv Mahapuran Koti Rudra Sanhita Adhyay-22

Nhạc sĩ: Traditional

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

बोलिये शिवशंकर भगवाने की जै!
प्रिय भक्तों,
शिश्यु महा पुरान के कोटी रुद्र सहीता की अगली कता है
विश्विश्वर जोतिर लिंग और उनकी महिमा के प्रसंग में
पंच क्रोशी की महित्तता का प्रतिबादन
तो आईये भगतों,
आरंब करते हैं इस कथा के साथ बाईसमा अध्याय
सूज्जी कहते हैं,
हे मुनिवरोग,
अब मैं काशी के विश्विश्वर नामक जोतिर लिंग का महात्म बताऊंगा
जो महा पातकों का भी नाश करने वाला है
तुम लोग सुनो इस भूतल पर जो कोई भी वस्तु द्रश्ठी कोचर
होती है वह सच्चदानन्द स्वरूप निर्विकार सनातन ब्रह्मरूप है
सह दुत्यमे चथ्य हुँ
वे शिव ही पुरुष और इस्त्री दो रूपों में प्रगट हो गए
उन में जो पुरुष था उसका शिव नाम हुआ
और जो इस्त्री हुई उसे शक्ती कहते हैं
उन चदानन्द स्वरूप शिव और शक्ती ने स्वहेम में द्रिश्ठ रहकर
तो वो प्रग़ान प्रवाद प्रवाद प्रवाद प्रवाद प्रवाद प्रवाद
प्रवाद प्रवाद प्रवाद प्रवाद प्रवाद प्रवाद प्रवाद प्रवाद प्रवाद
प्रवाद प्रवाद प्रवाद प्रवाद प्रवाद प्रवाद प्रवाद प्रवा
वे प्रकर्ती और पुरुष बोले
हे प्रभू,
हे शिव,
तपस्या के लिए तो कोई इस्थान है ही नहीं,
फिर हम दोनों इस समय कहां इस्थित होकर आपकी आज्या के अनुसार
तप करें।
तब निर्गुन शिव ने तेज के सार भूत,
पाँच कोस लंबे चोड़े शुब एवं सुन्दर नगर का निर्मान किया,
जो उनका अपना ही स्वरूप था,
वे सभी आवश्यक उपकर्णों से युक्त था,
उस नगर का निर्मान करके उन्होंने उसे उन दोनों के लिए भेजा,
वे नगर आकाश में पुरुष के समी
दामना से शिव का ध्यान करते हुए बहुत वर्षों तक तप किया,
उस समय परिश्रम के कारण उनके शरीर से
इस श्वीत जल की अनीक धाराएं प्रगट हुई,
जिनसे सारा शुन्ने आकाश व्याप्त हो गया,
वहां दूसरा कुछ भी दिखाई नहीं देता था,
उसे दे
जब पुर्वोक्त जलराशी में वह सारी पंच क्रोशी दूबने और बहने लगी,
तब निर्गुन शिव ने शीगर ही उसे अपने तिरशूल के द्वारा धारण कर लिया,
तिर भगवान विश्णु
अपनी पत्नी
प्रिकृती के साथ वही सोय,
तब उनकी नाभी से एक कमल प्रकट हुआ,
और उस कमल से ब्रह्मा उत्पन्न हुए,
उनकी उत्पत्ती में भी शंकर का आदेश ही कारण था,
अधिका अधन्तर उन्होंने शिव की आज्या पाकर अद्भुत सिश्टी आरम्ब की,
ब्रह्मा जीने ब्रह्मान्ड में चुहदे भुवन बनाए,
ब्रह्मान्ड का अविस्तार महरश्योंने पचास करोड योजन का वताया है,
जिवने शिवने यह सोचा कि ब्रह्मान्ड के भीतर कर्म पास्च
से बंधे हुए प्राणी मुझे कैसे प्राप्त कर सकेंगे,
यह सोचकर उन्होने मुक्तदाईनी
पंचक्रोशी को इस चकत में छोड़ दिया,
अतेह मुझे परमप्रिय है,
यहां स्वेम परमात्माने अविमुक्त लिंग की स्थापना की है,
काशी पुरी को स्वेम अपने तिर्शूल से उठार कर
मिठ्ति लोक के जगत में छोड़ दिया,
यहां पुरी परमात्माने परमात्माने परमात्माने परमात्माने
परमात्माने परमात्माने परमात्माने परमात्माने परमात्माने
परमात्माने परमात्माने परमात्माने परमात्माने परमात्माने
परमात्माने परमात्माने परमात्माने परमात्माने परमात्माने �
इसमें संशे नहीं है
साम्ब महादेव
मुझ आत्मज़ पर कृपा कीजिए
जगत्पते
लोखित की कामना से आपको
सदा यहीं रहना चाहिए
जगनात
मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ
आप यहां रहकर
जीवों का उध्धार करें
सूज्जी कहते हैं
तद अंतर मन और इंद्रियों को वश्मे रखने वाले
अविमुक्त ने भी शंकर से भारमबार प्रात्ना करके नित्रों
से आँसु भाथे हुए ही परसन्नता पूर्वकुन से कहा
अविमुक्त बोले
काल रूपी रोग के सुन्दर ओशद देवादी देव महादेव
आप वास्तम में तीनों लोकों के स्वामी
तथा ब्रह्मा और विश्णू आदी के द्वारा भी सेवनी हैं
हे देव काशी पुरी को आप अपनी राजधानी स्विकार करें
मैं अचिन्त सुख की प्राप्ती के लिए यहां सदा
सदा आपका ध्यान लगाए इस थिर भाव में बैठा रहूंगा
साथ ही मुक्ति देने वाले तत्व संपून कामनाओं के पूरक हैं दूसरा कोई नहीं
सुज जी कहते हैं जब विश्वनात ने भगवान शंकर से इस परकार प्रातना की
तव सरविश्वशिव
समस्त लोकों का उपकार करने के लिए वहां विराज्मान हो गए
जिस दिन से भगवान शिव काशी में आ गए
उसी दिन से काशी सर्वशिष्ठ पुरी हो गई
बोलिये शिवशंकर भगवान की जैये
प्रिय भक्तु,
इस प्रकार यहाँ पर शिवशिव महपुरान के कोटी रुद्ध
सहिता की ये कथा और 22 अध्याय समाप्त होता है
तो सनही से बोलिये
बोलिये शिवशंकर भगवान की जैये
ओम्नमहः शिवाय

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