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Shiv Mahapuran Koti Rudra Sanhita Adhyay-19, 20, 21

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Kailash Pandit

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Bài hát shiv mahapuran koti rudra sanhita adhyay-19, 20, 21 do ca sĩ Kailash Pandit thuộc thể loại The Loai Khac. Tìm loi bai hat shiv mahapuran koti rudra sanhita adhyay-19, 20, 21 - Kailash Pandit ngay trên Nhaccuatui. Nghe bài hát Shiv Mahapuran Koti Rudra Sanhita Adhyay-19, 20, 21 chất lượng cao 320 kbps lossless miễn phí.
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Lời bài hát: Shiv Mahapuran Koti Rudra Sanhita Adhyay-19, 20, 21

Nhạc sĩ: Traditional

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

बोलिये शुवशंकर भगवाने की जै!
प्रीय भक्तों,
शिश्यु महा पुरान के कोटी रुद्र सहिता की अगली कथा है
केदारिश्वर तथा भीमशंकर नामक
जोतिर लिंगों के आफिरभाव की कथा
तथा उनके महात्मे का वर्णन
तो आईए भक्तों, आरम्ब करते हैं
इस कथा के साथ 19, 20, 21 आध्याय
सूज्जी कहते हैं ब्राहमणों,
भगवान विश्णु के जो नर, नारायन नामक दो अवतार हैं
और भारत वर्ष के बद्रिक आर्श्रम तीर्थ में तपस्या करते हैं
उन दोनोंने पार्थिव शिवलिंग बनाखर उसमें इस्थित हो
पूज़ा क्रहिन करने के लिए भगवान शम्भु से प्रार्थ्ना की
शिवजी भक्तों के अधीन होने के कारण प्रती दिन उनके बनाये
हुए पार्थिव लिंग में पूजित होने के लिए आया करते थे।
जब उन दोनों के पार्थिव पूजन करते बहुत दिन बीद गए,
तब एक समय परमिश्वर शिव ने प्रसन्न होकर कहा,
मैं तुम्हारी आराधना से बहुत
संतुष्ट हूं,
तुम दोनों मुझसे वर मांगो। उस समय उनके ऐसा कहने
पर नर और नारायन ने लोगों के हित की कामना से कहा,
हे देविश्वर,
यदि आप प्रसन्न हैं और
यदि मुझे वर दिना चाहते हैं,
तो अपने स्वरूप से
पूजा ग्रहन करने के लिए यही इस्थित हो जाईए।
उन दोनों बंद्धों के इसपरकार अन्रोध करने पर कल्यानकारी महिश्वर
हिमाले के उस केदार तीर्थ में स्वयम जोतिलिंग के रूप में इस्थित हो गए।
उन दोनों से पूजित होकर सम्पून दुख और भैका नाश करने वाले शम्भो,
लोगों का उपकार करने और भक्तों को दर्शन देडने
के लिए स्वयम केदारिश्वर के नाम से प्रसिद्ध हो
वहां रहते हैं।
विदर्शन और पूजन करने वाले भक्तों को सदा अभीश्ट वस्तु प्रदान करते
हैं। उसी दिन से लेकर जिसने भी भक्ती भाव से केदारिश्वर का पूजन किया,
उसके लिए स्वप्न में भी दुख दुर्लभ हो गया।
जो भगवान शिव का प्रिये भक्त वहां शिवलिंग के निकट
शिव की रूप से अंकित वले कंकन या कडाप चढ़ाता है,
वे उस वले युक्त स्वरूप का दर्शन करके समस्त पापों से
मुक्त हो जाता है। साथ ही जीवन मुक्त भी हो जाता है।
इसमें संशे नहीं है।
केदारेशस्य भगताये
मार्ग इस्थास्तस्य वैंरता
केदार तीर्थ में पहुँचकर
वहां प्रेम पूर्वक
केदारेशवर की पूजा करके
वहां का जल पी लेने के पश्याद
वनुश्य का फिर जन नहीं हुता।
ये ब्राह्मणों,
इस भारत वर्ष में संपून जीवों को भकती भाओ से भगवान
नर नारायन की तथा केदारेशवर शंभु की पूजा करनी चाहिए।
हम मैं भीम शंकर नामक जोतिर्लिंग का महात्म कहता हूं।
काम रूप देश में लोग हित की कामना से सागशात
भगवान शंकर जोतिर्लिंग के रूप में अवतीर्न हुए थे।
उनका वे स्वरूप कल्यान और सुक्ख का आश्रे है।
ब्राह्मणों,
पूर्व काल में एक महा प्रतापी राक्ष्यस हुआ था,
जिसका नाम भीम था।
वे सदा धर्म का विद्भंश करता और समस्त प्राणीयों को दुख देता था।
यह महा बली राक्ष्यस कुम्ब करन के वीरिय
और करकटी के गर्व से उत्पन्य हुआ था,
तथा अपनी माता के साथ सेह परवत पर निवास करता था।
एक दिन समस्त लोकों को दुख देने वाले भयानक पराकरमी दुश्ट भीम ने
अपनी माता से पूछा,
हे मा,
मेरे पिताजी कहा है,
तुम अकेली क्यों रहती हो,
मैं यह सब जानना चाहता हूँ,
अतेय यधार्थ बात बताओ।
करकती बोली,
बेता,
रावन के चोटे भाई कुम्बकरण तेरे पिता थे,
भाई सहित उस महा बली वीर को श्रीराम ने मार डाला,
मेरे पिता का राम करकत और माता का नाम प्ष्कशी था।
विराध मेरे पती थे जिनने पूर्व काल में राम ने माडला।
अपने प्रिय स्वामी के मारे जाने पर मैं अपने माता पिता के पास रहती थी।
एक दिन मेरे माता पिता अगस्त्य मुनी के शिष
सुतीक्षन को अपना आहार बनाने के लिए गए।
वे बड़े तपस्वी और महत्मा थे। उन्होंने
कुपित होकर मेरे माता पिता को भस्म कर डाला।
वे दोनों मर गए। तपसे में अकेली होकर
बड़े दुख के साथ इस परवत पर रहने लगी।
मेरा कोई अवलंब नहीं रह गया। मैं ऐसा हाय
और दुख से आतुर होकर यहाँ निवास करती थी।
इसी समय महान बल पराकरम से संपन्य राक्षस कुम्ब करन।
जो रावन के छोटे भाई थे यहाँ आये
उन्होंने बलात मेरे साथ समागम किया। फिर वे मुझे छोड़ कर लंका
चले गए। तत पश्चात तुम्हारा जन्म हुआ। तुम भी पिता के समानी महान
बलवान और पराकरमी हो। अम मैं तुम्हारा ही साहरा लेकर यहाँ क
भावत में कोश्ची खला रहे joe thu
एक हजार वर्षव तक महन तप किया।
तपस्चा के साथ सात्व है मन ही मन ईश्ट देव का ध्यान किया करता था।
तब लोग पितामें ब्रह्मा उसे वर देने के लिए गए और इस परकार बोले।
ब्रह्मा जी ने कहा,
भीम मैं तुम पर प्रसन हूँ।
तुम्हारी जो इच्छा हो उसके अनुसार वर मांगो। भीम बोला,
हे देविश्वर,
हे कमलासन,
यदि आप प्रसन हैं और मुझे वर देना चाहते हैं,
तो आज मुझे ऐसा बल दीजिये जिसकी कहीं तुलना ना हो। सूज जी कहते हैं,
ऐसा कहकर उस राक्षस ने ब्रह्म
जी से अत्यंत बल पाकर राक्षस अपने घर आया और माता
को प्रणाम करके शीकरता पूरुवक बड़े कर्व से बोला,
माँ अब तुम मेरा बल देखो,
मैं इंद्र अधी देवताओं तत्था इनकी सहायता
करने वाले श्री हरी का महान संघार कर डालूंगा।
ऐसा कहकर
भयानक पराकरमी भीम ने
पहले इंद्र अधी देवताओं को जीता
और उन सबको अपने अपने स्थान से निकाल बार किया।
तदंतर देवताओं की प्रार्थना से उनका पक्ष
लेने वाले शी हरी को भी उसने यद्ध में हराया।
फिर प्रसनता पूर्वक पर्थी को जीतना प्रारंब किया।
सबसे पहले वे काम रूप देश के राजा सुदक्षन को
जीतने के लिए गया। वहां राजा के साथ उनका भहंकर युद्ध
हुआ। दुश्ट असुर भीम ने ब्रह्मा जी के दिये हुए वर के प्रभाव स
शंगा जी के स्तोती की और मानसिक के स्नार आदी करके
पार्थिव पूजन की विधी से शंकर जी की पूजा संपन्द की विधी
पूर्वक भगवान शिव का ध्यान करके वे प्रणव्युक्त पंचाक्षर
ओम नमः शिवाय का चप करने लगे। अब उन्हें दूसरा कोई
प्रेम पूर्वक पार्थिव पूजन किया करती थी। वे
दंपत्ती अनन्य भाव से भगतों का कल्यान करने वाले
भगवान शंकर का भजन करते और प्रति दिन उनहीं की आरातना में तत्पर
रहते थे। इदर वे राक्षस वर के अभिमान से मोहित हो यग्य कर्म आदी स�
पहुद बड़ी सेना साथ ले उसने सारी पृत्वी को अपने वश्च में कर लिया।
वेह वेदों,
शास्त्रों,
स्मृतियों और पुराणों में बताय हुए धर्म का लोप करके
शक्ती शाली होने के कारण सबका स्वेम ही उपभोग करने लगा।
तब सब देवता तथा रिशी अनंत पीडित हो,
महाकोशी के तट पढ़ गए और शिव का आराधन तथा इस्तवन करने लगे।
उनके इसप्रकार इस्तुती करने पर भगवान
शिव अत्यंत प्रसन्न हो देवताओं से बोले।
देवगण तथा महरशियो
मैं प्रसन्न हूँ
वर मांगो
तुम्हारा कौन सा कारिय सिद्ध करो।
देवता बोले।
हे देविश्वर
आप अंतरयामी हैं अत्याई सबके मन की सारी
बाते जानते हैं आपसे कुछ भी अग्यात नहीं हैं।
काम रोप देश के राजा सुदक्षन मेरे शेष्ट
भक्त हैं। उनसे मेरा एक संदेश कह दो
फिर तुम्हारा सारा कारिय शिगर ही पूरा हो जाएगा।
उनसे कहना
काम रोप देश के अधिपती महराज सुदक्षन प्रभो तुम मेरे विशेष भक्त हो
अतयः प्रेम पूर्वक मेरा भजन करो।
उस्तराक्षस भीम ब्रह्मा जी का वर पाकर
प्रभल हो गया है। इसलिए उसने तुम्हारा त्रिसकार किया है। परन्तु अब
मैं उस दुष्ट को मार डालूँगा। इसमें संदेह नहीं है।
सूत जी कहते हैं,
एब्रह्मणों तब उन सब देवताओं ने प्रसन्यता पूर्वक वहां
जाकर उन महराज से शम्भु की कही हुई सारी बात के सुनाई।
उनसे वे संदेश कहकर देवताओं और महरशियों को बड़ा आनन्द प्राप्त
हुआ। और वे सब के सब शीगर ही अपने अपने आश्यम को चल पड़े।
इधर भगवान शिव भी अपने गणों के साथ लोग हित की कामना
से अपने भक्त की रक्षा करने के लिए साधर उसके निकट गए
और गुपतरूच से वही ठैर गए।
इसी समय काम रूप नरेश ने पार्थिव शिव
के सामने गाड ध्यान लगाना आरमभ किया।
इतने में ही किसी ने राक्षस से जाकर कह दिया कि
राजा तुम्हारे नाश के लिए कोई पुरश्चरण कर रहे हैं।
यह समाचार सुनते ही वै राक्षस कुपित हो उठा और इसको मार
डालने की च्छा से नंगी तलवार हात में लिये राजा के पास गया।
वहां पार्थिवादी जो सामग्री स्थिप थी उसे देख कर तत्हा उसके प्रियोजन और
स्वरूप को समझ कर राक्षस ने यही माना कि राजा मेरे लिए कुछ कर रहा है।
अतेहे
सब सामग्रीयों सहित इस नरेश को मैं बल पूरोक अभी नष्ट कर देता हूँ।
हैसा विचार कर उस महा क्रोधी राक्षस ने
राजा को बहुत डाटा और पूचा क्या कर रहे हूँ।
राजा ने भगवान शंकर पर रक्षा का भारसम परक्षा था।
मैं चराचर जगत के स्वामी भगवान शिव का पूजन करता हूँ।
तब राक्षस भीम ने भगवान शंकर के परती बहुत तृसकार युप्त तुर्वचन कहे कर
राजा को दंखाया।
और भगवान शंकर के पार्थियो लिंग पर तलवार चराई।
वह तलवार उस पार्थियो लिंग का इसपर्श भी नहीं करने पाई थी।
उससे साक्षाद भगवान हर मां प्रगट हो गए।
और बोले, देखो,
मैं भीमेश्वर हूँ
और अपने भक्त की रक्षा के लिए प्रगट हुआ हूँ।
मेरा पहले से ही यवरत है कि मैं सदा अपने भक्त की रक्षा करूँ।
इसलिए भक्तों को सुख देने वाले मेरे बल की और दुश्टी पात करू।
ऐसा कहकर भगवान शिवने पिनाक से उसकी तलवार के दो टुकडे कर दिये। तब उस
राक्षस ने फिर अपना तिरशूल चलाया। पंतु शम्भूने उस दुश्ट के तिरशूल के
भी सैक्डो टुकडे कर डाले। तद अंतर शंकर जी के साथ उसका गोर युद्ध ह�
लोगों को ब्रह्म में डालने वाले महिश्वर
मेरे नाथ आप ख्षमा करें ख्षमा करें
तिन्को को काटने के लिए कुलाड़ा चलाने की क्या आउशक्ता है
शिगर ही इसका संघार कर डाले।
आरज्जी के इसपरकार प्रार्थना करने पर भगवान शंबु ने
हुंकार मात्र से उससमें समस्त राक्षसों को भस्म कर डाला।
हे मुने सब देवताओं के देखते देखते शिवजी
ने उन सारे राक्षसों को दखद कर गिया।
अधन्तर भगवान शंकर की किरपा से हिंद्र
आदी समस्त देवताओं और मुनिश्वरों को
शांती मिली और सम्पून जगत स्वस्त हुआ।
उस समय देवताओं और विशेस्त हमुनियों ने भगवान शंकर से प्रात्णा
की की हे प्रभो आप यहां लोगों को सुक देने के लिए सदा निवास करें।
यह देश निन्दित माना गया है,
यहां आने वाले लोगों को प्राहे तुख ही प्राप्त होता है,
परन्तु आपका दर्शन करने से यहां सबका कल्यान होगा। आप भीमशंकर के नाम
से विख्यात होगे और सबके सम्पून मनौर्थों की सिध्धी करेंगे। आपका यह
अधिनारामणों,
उनके इसप्रकार प्रार्थना करने पर लोग हितकारी एवं
भक्तवच्छल परंस्वतन्तरशिव प्रसन्नता पूर्वक वही स्थित
होगए। बोलिये शिवशंकर भगवाने की जए। तब प्रिये भक्तों,
इसप्रकार यहांपर शिशिव महपुरा
हूम नमः शिवाय
हूम नमः शिवाय
हूमनमहःषिवाय

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