Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शीवशंगर भगवाञे की जै!
प्रिये भक्तोँ!
शिश्व महपवाण के कोटी रुद्ध संहिता के अगली कथा है
महाकाल配प ़िला के महात्बन के पसंग में
प्रश्ण्द्र सेन तथा गोप बालक श्रीकर की कथा
बोलिये शिवशंकर भगवाने की जै
तो आईये भक्तों आरंब करते हैं
इस कथा के साथ में सत्रम आध्याय
सूच जी कहते हैं
हे ब्राह्मणों भक्तों की रक्षा करने वाले महाकाल नामक
जोतिर लिंका महात्में भक्ती भाव को बढ़ाने वाला हैं
उसे आधर पूर्वक सुनो
उज्ञैनी में चंडरसेन नामक एक महान राजा
थे जो सम्पून शास्त्रों के तत्वग्य,
शिवभक्त और जित्धेंद्रिय थे
शिव के पार्शदों में प्रधान तथा सर्वलोक वंदित
मनी भदर जी राजा चंडरसेन के सखा हो गय थे
एक समय उनोंने राजा पर प्रसन होकर उने
चिन्ता मनी नामक महा मनी प्रधान की
जो कोस्तुब मनी तथा सूर्य के समान दैधिप्यमान थी
वह देखने,
सुनने अथवा ध्यान करने पर भी मनुष्यों को निश्य ही मंगल प्रधान करती थी
भगवान शिव के आश्चित रहने वाले राजा चंडरसेन
उस चिन्ता मनी को कंठ में धारन करके जब सिंगहासन पर बैठते
तब देवधाओं में सूर्य नारायन की भाती उनकी शोभा होती थे
निव्शिष्ठ
चंडरसेन के कंठ में चिन्ता मनी शोभा देती है
यह सुनकर समस्त राजाओं के मन में उस मनी के परती
लोब की मात्रा बढ़ गई और वे क्षुब्द रहने लगे
तदन्तर वे सब राजा चत्रंगनी सेना के साथ आकर
युध में चंडरसेन को जीतने के लिए उधधत हो गई
वे सब परस्पर मिल गए थे और उसके साथ बहुत से सेनिक थे
उन्होंने आपस में संकेत और सलहा करके आकरमन
किया और उज्ञैनी के चारों द्वारों को घेर लिया
अपनी पुरी को संपूर्ण राजाओं द्वारा घरीव ही देख
राजा चंडरसेन उनी भगवान महाकालिश्वर की शर्ण में गए
और मन को संदेर हित करके द्रिशनिश्चे के साथ वास
पूर्वक दिन रात अनन्य भाव से महाकाल की आराधना करने लगे
उनी दिनों शेष्ट नगर में कोई ग्वालिन रहती थी उसके एक मात्र पुत्र था
मैं विद्वाती और उज्जैनी में बहुत दिनों से रहती थी
मैं अपने पांच वर्ष के बालक को लिये हुए महाकाल के मंदिर में गई
और उसने राजा चंडरसेन द्वारा की ओई
महाकाल की पूजा का आतर पूर्वक दर्शन किया
राजा के शिव पूजन का यह आश्चरे में उच्छव देखकर उसने भगवान
को प्रणाम किया और फिर वह अपने निवास इस्थान पर लोट आई
गौलिन के उस पालक ने भिवे सारी पूजा देखी थी
अते घराने पर उसने कोत्व अलवश शिव जी की पूजा करने का विचार किया
एक सुन्दर पथ्थर लाकर
उसे अपने शिवर से थोड़ी ही दूरी पर दूसरे शिवर के
एकानत इस्थान में रख दिया और उसी को शिव लिंग माना
फिर उसने भक्ति पूर्व कृतिम गंध, अलंकार,
वस्त्र धूप, दीप, रक्षत आदी द्रव्य जुटा कर
उसके द्वारा पूजन करके मनह कल्पित दिव्वने वेद भी अरपित किया
इसी समय ग्वालिनने भग्वान शिव में आसक्त चित्त हुए
अपने पुत्र को बड़े प्यार से भूजन के लिए बुलाया
पन्त उसका मन तो भगवान शिव की पूजा में लगा हुआ था
तो तो पर बारंबार बुलाने पर भी वे उस
बालक को भूजन करने के लिए चा नहीं हुई
तब उसकी मा स्रेहम उसके पास गई और उसे शिव के आगे
हांख बंद करके ध्यान लगाए बैठा देख उसका हाथ पगड़कर खीचने लगी
इतने पर भी जब वे न उठा
तब उसने क्रोध में आकर उसे खूब पीटा
खीचते और मारने पीटने पर भी जब उसका पुत्र नहीं आया
तब उसने वे शिवलिंग उठाकर दूर फेंग दिया और
उसपर चड़ाई हुई सारी पूजा सामग्री नष्ट कर दी
यह देख बालक हाय हाय कर रोने लगा
रोष से भरी हुई ग्वालिन अपने बेटे को
डांट फटकार कर पुनहें घर में चली गई
बगवान शिव की पूजा को माता के द्वारा नष्ट की गई देख
वह बालक देव देव वहाँ देव
की पुकार करते हुए सहसा मूच्छित होकर गिरपड़ा
उसके नित्रों से आश्मु की धारा प्रभाइत होने लगी
दो घड़ी बाद ज़ा उसे चेत हुआ
तो उसने आखे खोली
आखे खुलने पर उस शिशु ने देखा
उसका वही शिवर भगवान शिव की अनुग्रह से
ततकाल महाकाल का सुन्दर मंदिर बन गया
मनीयों के चमकीले खम्बे उसकी शोभाव अढा रहे थे
वहाँ की भूमी स्पटिक मनी से जर दी गई थी
नील मनी
तता हीरे के बने हुए चबूतरे शोभा दे रहे थे
वही अपनी ही चड़ाई हुई पूजन सामगरी सुसजजित है
यह सब देख वह बालक सहसा उठकर खड़ा हो गया
उसे मन ही मन बढ़ा श्रेव हुआ और वह
पर्माननद के समुदर में निमगन सा हो गया
तब अंतर भगवान शिव की स्तुती करके उसने
बारंबार उनके चड़नों में मस्तक जुकाया
और सुर्यास्त होने के पश्चात वह गोप बालक शिवाले से बाहर निकला
बाहर आकर उसने अपनी शिविर को देखा
वह इंद्र भवन के समान शोभा पा रहा था
अगर वह वहाँ परम उज्ञाल वैभाव से प्रकाशित होने लगा
तो वह उस भवन के भीतर गया
जो सब प्रकार की शोभाव से संपन्य था
उस भवन में सरवत्र
मनी रत्न और स्वण ही जड़े हे गये थे
प्रदोश काल में इस आनन्द भीतर प्रवेश करके बालक ने देखा उसकी
मा दिव लक्षनों से लक्षित हो एक सुन्दर पलंग पर सो रही है
रत्म में अलंकारों से उसके सभी अंग्व दिप्त हो रहे
हैं और वे साक्षात देवांगना के समान दिखाई देती है
पुत्र के मुक्से विहवल हुए उस बालक ने अपनी माता को बड़े वेक से उठाया
वे भगवान शिव की किरपा पात्र हो चुकी थी
गौलिन ने उठकर देखा सब कुछ अपूर भाव हो गया है
जो भावान आनन्द में निमगन हो अपने बेटे को च्छाती से लगा लिया
पुत्र के मुक्से गिर्जा पती के किरपा परसाद का
वे सारा वृतान्त सुनकर गौलिन ने राजा को सुचना दी
जो निरंतर भगवान शिव के भजन में लगे रहते थे
भगवान अपना नियम पूरा करके रात में सेहसा
वहाँ आये और गौलिन के पुत्र का वे प्रभाव
जो शंकर जी को संतुष्ट करने वाला था देखा
मंत्रीयों और प्रोहितों सहित राजा चंद्र सेन वे सब कुछ
देख पर्माननद की समुंद्र में डूब गए और नित्रों से प्रेम
की आशु बहाते हुए तथा प्रसन्नता पूर्वक शिव के नाम का
कीर्तन करते हुए उन्होंने उस बालक को हिदै से लगा लिया
ए ब्रामणों
उस समय वहां बड़ा भारी उच्छव हुने लगा
सब लोग आननद विभोर होकर महेश्वर के नाम और यश का कीर्तन करने लगे इस
प्रकार शिव का यह अद्भुत महात्म देखने से पुरवासियों को बड़ा हर्ष हुआ
और इसी की चर्चा में वे सारी
आते काल अपने गुप्तचरों के मुक से वे सारा अद्भुत चरित सुना
उसे सुनकर सब आश्य से चकित हो गए और भाँ आयोए सब नरेश एकत्र
हो आपस में इस प्रकार बोले वे राजा चंडर सेन बड़े भारी शिव भगत
हैं अतेव इन पर विजए पाना कठीन है
वे राजा चंडर सेन तो महान शिव भगत हैं ही
उनके साथ विरोध करने से निच्चे ही भगवान शिव क्रोध
करेंगे और उनके क्रोध से हम सब लोग नश्ट हो जाएंगे
अतेव इन नरेश के साथ हमें मेल मिलाप ही कर लेना
चाहिए ऐसा होने पर महिश्वर हम पर बड़ी करपा करेंगे
सुज्जी कहते हैं
ए ब्राह्मणो
ऐसा निच्चे करके शुद्ध हिर्दे वाले उन सब भूपालोंने
हतियार डाल दिये
उनके मन में वैर भाव निकल गया
वे सभी राजा अत्यंत प्रसन्न हो चंदर सेन की अनूमती
ले महाकाल की उस रमणिये नगरी के भीतर गये वहां
भाग्य की भूरी भूरी प्रसंचा करते हुए
उनकी घर पर गये वहां राजा चंदर सेन ने आगे बढ़कर उनका स्वागत सतकार किया
वे बहुमुल्य आसनों पर बैठे और आश्य चकित एवं आनंदित हुए
गोप बालक के उपर कृपा करने के लिए स्वत्य प्रग�
भगवान शिव की कृपा प्राप्त करने के लिए उस गोप शिशु को
बहुत सी वस्तुमें प्रसंचा पूर्वक भेट की
सम्पून जनपदों में जो बहु संख्य गोप रहते थे
उन सब का राजा उन्होंने उसी बालक को बना दिया
उसी समय समस्त देवताओं से पूजित परम
तेजश्री बानर राज हन्मान जी वहाँ प्रगत हुए
उनके आते ही सब राजा बड़े वेग से उठकर खड़े हो गए
उन सबने भक्ती भाव से विनम्र होकर उनने मस्तक जुकाया
राजाओं से पूजित हो बानर राज हन्मान जी उन सब के बीच में बैठे
और उसको बालक को हिरदय से लगाकर उन नरिशों की ओर देखते वे बोले
हे राजाओं तुम सब लोग तथा दूसरे देहधारी भी मेरी बात सुनो
इस से तुम लोगों का भला होगा
भगवान शिव के सिवाई
देहधारी यों के लिए दूसरी कोई गती नहीं है
यह बड़े सो भाग्य की बात है कि इस गोप बालक ने
शिव की पूज़ाक का दर्शन करके उससे प्रेर्णा ली और
बिना मंत्र के भी शिव का पूजन करके उन्हें पालीया
गोप वंश की कीरती बढ़ाने वाला है बालक भगवान शंकर का शिष्ट भक्त है
इस लोक में संपून भोगों का उपभोग करके अंत में है मोक्ष प्राप्त करलेगा
इसकी वंश परमपरा के अंतरगत आठवी पीड़ी में बहायशश्वी नन्द उत्पन्न होंगे
जिनके यहां साक्षात भगवान नारायन उनके पुत्र रूप
में प्रगत हों श्री कृष्ण नाम से प्रसिद्ध होंगे
आज से यहगोप कुमार
इस चगत में श्रीकर के नाम से विशेष क्याती प्राप्त करेगा
सूज जी कहते हैं हे ब्रामणों ऐसा कहकर अञ्जनी नन्दन
शिव स्वरूप वानर राज हन्मान जी ने समस्त राजाओं
तथा महराज चंद्र सेन को भी कृपा त्रिश्टी से देखा
तध अंतर उन्होंने उस दिव्यमान गोप भालक श्रीकर को
बड़ी प्रसनता के साथ शिव उपासना के उस आचार व्यवहार
का उपदेश दिया जो भगवान शिव को बहुत प्रिय है
इसके बाद परम प्रसन हुए हन्वान जी चंद्र सेन और श्रीकर से
विदा ले उन सब राजाओं के देखते देखते वहीं अंतर ध्यान हो गए
वे सब राजा हर्ष में भरकर सम्मानित हो महराज
चंद्र सेन की आग्या ले जैसे आये थे वैसे ही लोट गए
तीति है
दुष्ट पुर्षों का सर्वता हनन करने वाले हैं
यह परम पवित्र रहिस्से में आख्यान कहा गया है
जो सब परकार का सुख देने वाले हैं
यह शिव भक्ती को बढ़ाने तता स्वर्ग की प्राप्ती कराने वाला है
बोलिये शिवशंकर भगवाने की जैए
प्रीय भक्तों इस परकार यहां पर शिवशिव महा पुरान के कोटी
रुद्र सहीता की यह कथा और सत्रमा अध्याय समाप्त होता है
तो भक्तों समहे के साथ बोलिये
बोलिये शिवशंकर भगवाने की जैए
हिरदय से बोली
ओम नमः शिवाय