Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवाने की जै!
प्रीय भगतों,
शिशिव महापुरान के कोटी रुद्र सहिता की अगली कथा है
मल्लिका अर्जुन और महाकाल नामक जोतर
लिंगों के आविर्भाव की कथा तथा उनकी महिमा.
तो आईए भगतों, आरम्ब करते हैं इस कथा के साथ
पंधरमा और सोलमा अध्याय.
सूज्जी कहते हैं,
एह महरश्यों,
अम मैं मल्लिका अर्जुन के प्रादुरभाव का प्रसंग सुनाता हूं,
जिसे सुनकर बुद्धिमान पुरुष सब पापों से मुक्त हो जाता हैं.
वे
दोनों पुत्र सनहे से आत्र हो,
पार्व के दिन अपने पुत्र कुमार को देखने के लिए उनके पास जाया करते हैं.
अमावस्या के दिन भगवान शंकर्त स्वेम वहाँ जाते हैं,
और पौर्णमासी के दिन पार्वती जी निश्चे ही वहाँ पदारपन करती हैं.
उसी दिन से लेकर भगवान शिव का
मल्लिका आर्जुन नामक एक लिंग तीनों लोकों में प्रिसिद्ध हुआ.
उसमें पार्वती और शिव दोनों की जोतियां प्रतिश्ठित हैं.
मल्लिका का आर्थ पार्वती है,
और अर्जुन शब्द शिव का वाचक है.
उस लिंग का जो दर्शन करता है,
वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है और
सम्पून अभीश्ट को प्राप्त कर लेता है.
इसमें संचे नहीं है.
इसप्रकार मल्लिका आर्जुन नामक जोतियां जोतिर्लिंग का वर्णन किया गया,
जो दर्शन मात्र से लोगों के लिए सब
प्रकार का सुख देने वाला बताया गया है.
रिश्यों ने कहा,
हे प्रभो,
अब आप विशेष कृपा करके तीसरे जोतिर्लिंग का वर्णन कीजिये.
सुज्जी ने कहा,
हे ब्राह्मणों,
मैं धन्य हूँ,
कृतकृत्य हूँ,
जो आप श्रीमानों का संग मुझे प्राप्त हुआ.
साधु पुर्शों का संग निश्य ही धन्य है,
अतेह मैं अपना सोभाग्य समझकर पाप नाशनी,
परमपावनी दिव्य कता का वर्णन करता हूँ.
तुम लोग आदर पूर्वक सुनो,
अवन्ती नाम से प्रसिद्ध एक रमणीय नगरी है,
जो समस्त देहधारियों को मोक्ष प्रदान करने वाली है,
वै भगवान शिव को बहुत ही पुरिय,
परमपुण्यमै और लोकपावनी है,
उस पुरी में एक शेष्ट ब्राह्मण �
वे घर में अगनी की स्थापना करके प्रति डिन अगनी होत्र करते
और शिव की पूजा में सदा तत्पर रहते थे,
वे ब्राह्मण देवता प्रति डिन पार्ठव शिवलिण
बना कर उसकी पूजा खिया करते थे,
वेद प्रिय नामक वे ब्राह्मन,
देवता,
सम्यक ज्ञानारजन में लगे रहते थे।
इसलिए उन्होंने संपून कर्मों का फल पाकर
वे सद्गती प्राप्त कर ली जो संतों को भी सुलभ नहीं होती।
उनके शिव पूजा परायन चार तेजस्य पुत्र थे
जो पिता माता से सदगुणों में कम नहीं थे। उनके नाम थे देवप्रिय,
प्रियमेधा,
सुक्रित और सुवरत।
उनके सुक्ष्दाय गुण वहां सदा बढ़ने
लगे। उनके कारण अवन्ति नगरी ब्रह्म ते�
धर्मद्वेशी असुर ने ब्रह्मा जी से वर पाकर वेद,
धर्म त्रथा,
धर्मात्माओं पर आक्रमन किया।
अन्त में उसने सेना लेकर अवन्ति उज्जैन
के ब्राह्मनों पर ही चड़ाई कर दी।
उसकी आज्या से चार भयानक देथ्य चारों
दिशाओं में प्रले आगनी के समान प्रगट हो गए।
परन्तु वे शिव,
विश्वासी,
ब्राह्मन,
बंधु उनसे डरे नहीं।
जब नगर के ब्राह्मन बहुत गवरा गए,
तब उनोंने उनको आश्वसन देतेवे कहा,
आप लोग भक्त वच्चल भगवान शंकर पर भरोसा रखे।
यों कह शिवलिंग का पूजन करके वे भगवान शिव का ध्यान करने लगे।
इतने में ही सेना सहीत दूशन ने आकर उन ब्राह्मनों को देखा और कहा,
इने मार डालो,
बांध लो।
वेद प्रिय के पुत्र उन ब्राह्मनों ने उस
समय उस दैति की कही हुई बात नहीं सुनी,
क्योंकि वे भगवान शंभु के ध्यान मारग में स्थित थे।
उस दुरात्मा दैति ने जो ही उन ब्राह्मनों को मारने की च्छा की,
तो ही उनके द्वारा पूजित पार्थिव श्रीलिंग के इस्थान
में बड़ी भारी आवाज के साथ एक गढ़ा प्रगट हो
गया। उस गढ़े से तदकाल विकट रूप धारी भगवान शिव प्
जैसे दुष्टों के लिए महाकाल प्रगट हुआ हुँ। तुम इन
ब्राह्मनों के निकट से दूर भाग जाओ। एसा कहकर महाकाल
शंकर ने सेहना सही दूशन को अपनी हुंकार मात्र से
तदकाल भस्म कर दिया। कुछ सेहना उनके द्वारा मारी गई और कुछ भाग ख
उसी प्रकार भगवान शिव को देखकर उसकी सारी सेहना द्रिश हो गई।
देवताओं की दुंदवियां बज़ुठी
और आकाज से फूलों की वर्षा होने लगी।
उन ब्राह्मनों को आश्वासन दे,
सुपरसन हुए स्वेम महाकाल महिश्वर शिव ने उनसे कहा,
तुम लोग वर मांगो। उनकी है बात सुनकर वे सब ब्राह्मन हात
जोड भक्ती भाव से भली भाती पढाम करके नतमस्तक होकर बोले।
दुजों ने कहा,
हे महाकाल,
हे महादेव,
दुष्टों को दंड देने वाले प्रभो,
हे शंभो,
आप हमें संसार सागर से मोक्ष प्रदान करें।
हे शिव,
आप जन साधण की रक्षा के लिए सदा यही रहें।
हे प्रभो, हे शंभो,
अपना दर्शन करने वाले
मनुश्यों का आप सदायी उद्धार करें।
सूज जी कहते हैं,
हे महरशियों,
उनकी ऐसा कहने पर उन्हें सद्गती दे,
भगवान शिव अपने भक्तों की रक्षा के लिए
उस परम्सुंदर गढ्डे में स्थित हो गए।
वे ब्राह्मन मोक्ष पा गए और वहां चारो और की एक
एकोस भुमी लिंग रूपी भगवान शिव का इस थल बन गए।
वे शिव भूतल पर महाकालिश्वर के नाम से प्रसिद्ध होए।
हे ब्राह्मनों,
उनका दर्शन करने से स्वप्न में भी कोई दुख नहीं होता।
जस जस कामना को लेकर कोई इस लिंग की वपास्ना करता है,
उसे वे अपना मौनुरत प्राप्त हो जाता है।
तथा परलोक में मोक्ष भी मिल जाती है।
बोले शिवशंकर भगवान ने की जैये।
इस परकार यहां पर शिशिव महा पुरान के
ओटी रुद्ध सहिता की यह कथा,
और पंद्रवा तथा सोल्मा अध्या यहां पर समाप्त होता है।
वोलो
शिवशंकर भगवान ने की जैये।
और सनइ के साथ, आत्मा के साथ पोलिये।
ओम नमह शिवाई।