Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवाने की
जए!
प्रिया भगतों
शिशिव महा पुरान के कैलास सहीता की अगली कता है
यती के द्वादशाह कृत्त का वर्णन
स्कंद और पामदेव का कैलास परवत पर जाना
तता सूच जी के द्वारा इस सहीता का उपसंघार
तो आईए भगतों इस कथा के साथ आरम्ब करते हैं 23 स्माध्याय
स्कंद जी कहते हैं
पर प्रवाद्धान पर गुरू के लिए होते हैं
और बारे ब्राह्मनों की केशाव आधी नामों से पूजा होती है
परन्तु इस पुरान में दिये गए वर्णन की अनसार
बारे ब्राह्मनों को निमंठित करना अवश्चक है
पर बारे ब्राह्मनों को बुलाकर भक्ती भाव से विधी
पूर्वक भाती भाती के स्वाधिष्ट अन्य भोजन कराएं
फिर परमिश्वर के निकट पैठाकर पंचावरन पद्धती से उनका पूजन करें
तत्पश्यात मौन भाव से प्राणायम करके दीशकाल आदी के कीर्थन
पूर्वक महान संकल्ब की प्राणाली के नसार संकल्ब करते हुए
अस्मद गुरोरी है पूजाम करिश्य ए
मैं अपने गुरू की यहां
पूजा करूँगा ऐसा कहकर कुशों का इसपर्श करें
फिर ब्राह्मनों की पैर दोकर आच्मन करके शाद करता
मौन रहें और भस्म से विभुशित उन ब्राह्मनों को पूर्वा
भिमुक आसन पर बिठाएं वहां सदाशिव आदी के क्रम स
का ब्राह्मनों का अभी चार गुरूँ के रूप में चिन्तन करें
उमा सहीत महीश्वर की भावणा करते वे चिन्तन करें
अवाह्यामी नमः बोलकर आवाहन करें।
यथा
इस परकार।
इस परकार आवाहन करके
अर्गोतक अर्गे में रखेवे जल से पाध,
आच्मन और अर्ग निवेदन करें।
फिर वस्त्र, गंध और अक्षत देकर
ओम गुरुवेह नमः इत्यादी रूप से गुरुवों को तथा।
इत्यादी रूप से आठ नामों के उच्छारन
पूर्वक आठ अन्य ब्राह्मनों को सुघंधित
फूलों से अलंक्रित करें।
तत्पश्यात धूप दीप देकर,
की गई यह सारी आराधना पून रूप से सफल हो। ऐसा कहकर खड़ा हो,
नमस्कार करें।
इसके बाद,
केले के पत्तों को पात्र रूप में बिचाकर,
जल से शुद्ध करके उन पर शुद्ध अन्य,
खीर,
पूवा,
दाल और साग आधी वेंजन परोजकर,
केले के पल,
नारियल और गुड़ भी रखें। पात्रों को रखने के लिए आसन भी अलग-अलग दें। �
वेश्णों हव्यमिदं दक्षस्व
हे वेश्णों,
इस अविश्च को आप सुरक्षित रखें।
फिर उठकर उन ब्राह्मनों को पीने के लिए जल देकर,
उनसे इस परकार प्रार्थना करें।
सदाशिवादयो में पीता वर्दा भावन्तु
सदाशिवादयो मुझे पर प्रसन हों,
अविश्च वर्देने वाले हों।
इसके बाद
ये देवा
आधी मंत्र का उच्छारन करके अक्षट सही
इस अन्य का त्याग करें।
फिर दमसकार करके उठें और
सर्वकृता क्रितमस्तु
ऐसा कहकर ब्राह्मनों को संतुष्ट करके गणानाम्त्वाः। इस मंत्र
का पहले पाठ करके चारो वेदों के आधी मंत्रों का रुद्र अध्यायका,
चमकाध्यायका,
रुद्र सुक्त का तथा सधो जाता अधि पा
यद नमभव मंत्र बोलें और अक्शत छोडें,
फिर आच्चमन आधी जल दें,
हाथ पैर और मुँ धोने के लिए भी जल अरपित करें
आच्चमन के इस पश्चात
सब ब्राह्मनों को सुख पूर्वक आसनों पर बिठाकर,
शुद्ध जल देने के अनंतर,
मुक्षुध्धी के लिए यथो चितकपूर आधी से युक्त तांबूल अरपित करें
पुनह
पढाम करके गुरू के परती अविचल भक्ती के लिए प्रार्थ्मा करें
तत्पश्यात विसर्जन की भावना से कहें
सदाशेवादी संतुष्ठ हों, सुखपूर्वक यहां से पढारें
इस प्रकार विदा करके दर्वाजे तक उनके पीछे पीछे जाएं
फिर उनके रोकने पर आगे ने जाकर लोट जाएं
लोटकर द्वार पर बैठे होगे ब्राह्मणों,
बंधुजनों,
दीनों और अनाथों के साथ स्वयम भी भूजन करके सुखपूर्वक रहें
ऐसा करने से उनमें कहीं भी विक्रत्ती नहीं हो सकती
यह सब सत्य है, सत्य है और बारंबार सत्य है
यह साक्षाद भगवान शिव का कहाऊँहा उठम रहिस्से है
जो वेदान्त के सिध्धान से निश्चित किया गया है
तुमने मुझसे ज़ग कुछ सुना है
उसे विद्वान पुरुष्ट तुमारा ही मत कहेंगे
अतः
यति इसी मार्ग से चल कर शिवोहमसमि
मैं शिव हूँ
इस रूप में आत्मसरूप शिव की भावना करता हुआ शिव रूप हो जाता है
सूज्जी कहते हैं
इस प्रकार मुनिश्वर वामदेव को उपदेश देकर
दिव्यज्ञान दाता गुरुदेविश्वर
कार्ति के पिता माता के सूर्य देव वंधित
चरणार विंदों का चिंधन करते हुए
अनेक शिक्रों से आव्रत
शोभाशाली एवं परम आश्चरिय में कैलास शिकर को चले गए
शेष्ट शिश्वों सहित वामदेव भीमयूर वाहन कार्ति के को परणाम करके
शीगर ही परम अदभुत कैलास शिकर पर जा
पहुँचे और महादेव जी के निकट चा उन्होंने
भूमा सहित महेश्वर के मयानाशक मोक्षि रायक चर्णों का दर्शन किया
फिर भक्ति भाव से अपना सारा अंग भगवान शिव को समर्पित करके
वे शरीर की सुधी भुलाकर उनके निकट दंड की भाती पढ़ गये
भारम बार उठवट करने लगे तत पशात उन्होंने भाती भाती के
इस त्रोतों द्वारा जो वेदों और आगमों के रस से पूर्ण
थे जगदंबा और पुत्र सहित परमिश्वर शिव का इस्तवन किया
इसके बाद देवी पार्वती और महादेव जी के चरणार विंदो को अपने मस्तक पर
रख कर उनका पुर्ण अनुग्रह प्राप्त करके वे वहीं सुख पूर्वक रहने लगे
तुम सभी रिशी भी इसी प्रकार पढ़नाव के अर्थभूत
महिश्वर का तथा वेदों के गोपनी रहस वेद सरवस्वा और
मोक्षदायक तारक मंत्र ओमकार का ज्ञान प्राप्त करके
यहीं सुख से रहो
बोलिये शिवशंकर भगवाने की
जए
प्रियबगतों इस प्रकार यहां पर शीशिव महापुरान के खैलाज सहिता
न वो समाप्त न हूच।
आणे की जए और प्रेम भाव से बोले
ओम नमः शिवाय
ओम नमः शिवाय ओम नमः शिवाय