Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवाने की
ज़ैये
प्रिये भक्तो
शिश्यु महा पुरान के कैलास सहिता की अगली कथा है
प्रणाव के वाच्यार्थ रूप
सदाशिव के स्वरूप का ध्यान
वर्णाश्रम धर्म के पालन का महत्व
ज्यान्मै पूजा
सन्यास के पूर्वांग भूत नान्धी श्राध एवं ब्रह्म यग्य आधी का वर्णन
तो आईये भक्तो आरम्ब करते हैं इस कथा के साथ बार्मा अध्याय
श्री स्कंद ने कहा
हे महा भाग मुनिश्वर वामदेव
तुम्हे साद्वुआध है
क्योंकि तुम भगवान शिव के अरण्य भक्त हो
और शिव तत्व के ग्याताओं में सबसे शिष्ठ हो
तीनो लोकों में कहीं कोई ऐसी वस्तु नहीं है
जो तुम्हे ग्यात नहो
तत्थापी तुम लोक पर अनुग्रह करने वाले हो
इसलिए तुम्हारे समक्ष इस विशे का वर्णन करूँगा
इस लोक में जितने जीव हैं वे सब नाना परकार के शास्त्रों से मोहित हैं
परमिश्वर की अतिविचित्र माया ने उन्हें परमार्थ से वंजित कर दिया है
अतथ
प्रणव के वाच्चार्थ भूत साक्षात महिश्वर को
वे नहीं जानते हैं
वे महिश्वर ही सगुन,
निर्गुन तथा तृदेवों के जनक परब्रम्म परमात्मा हैं
मैं अपना दाहीना हाथ उठाकर
तुमसे शपत पूर्व कहता हूं
कि ये सत्य है,
सत्य है,
सत्य है
मैं बारंबार इस सत्य को दोहराता हूं कि प्रणव के अर्थ साक्षात शिव ही है
शुतियों,
इस्मृति,
शास्त्रों,
पुराणों तथा आगमों में प्रधानतया उन
ही को प्रणव का वाच्चार्थ बताया गया है
जहां से मन सहित वानी उस परमिश्वर को नपा कर लोड आती है
जिसके आनन्द का अनूभव करने वाला पुरुष किसी से डरता नहीं
ब्रह्मा,
विश्णू तथा इंद्र सहित यह सम्पून जगत भूतों और
इंद्रिय समुधाय के साथ सरवपर्थम जिससे प्रकट होता है
वह परब्रह्म परमात्मा संपून इश्वरे से
संपन्य होने के कारण स्वेम ही सरविश्वर,
शिव,
नाम धारन करता है
ने संप्रसूयतेयो वेकुतश्चन कदाचन यस्मिन्न
भासते विध्धुन चैसूरियो ने चंद्रमा
हिर्दे आकाश के भीतर विराज्मान जो भगवान शंभु
मुमुक्ष्व पुर्शों के धे हैं जो सर्ववापी
प्रकाशात्मा भास स्वरूप एवं चिन्मे हैं
जिन परम्पुरुष की पराशक्ती शिवा भकती भाव से सुलभ मनोहरा
निर्गुन अपने गुणों से ही निगूड और निशकल हैं
उन परमिश्वर के तीन रूप हैं
इस थूल,
सूक्ष्म और इन दोनों से परे
हे मुने मुमुक्ष्व योगियों को नित्त क्रमश
हैं उनके इन स्वरूपों का ध्यान करना चाहिए
वे शम्भू निशकल
सम्पून देवताओं के सनातन अधिदेव घ्यान
क्रिया स्वभाव एवं परमात्मा कहे जाते हैं
उन देवाधिदेव की साक्षात मूर्ति सदाश्यों हैं
हीशानाधी पांच मंत्र उनके शरीर हैं
वे महादेव जी
पंच कला रूप हैं
उनकी अंग्कांती शुद्ध स्वधिक के समान उज्जवल हैं
वे सदा
प्रसन्य रहने वाले तता शीतल आबासे युक्त हैं
उन प्रभू के पांच मुख दस भुजाए और पंद्रहे नेत्र हैं
हीशान मंत्र उनका मुकुट मंडित मस्तक है
तत्पुरिश मंत्र उन पुरातन प्रभू का मुक है अघोर मंत्र हिर्दै है
वामदेव मंत्र गूह्य प्रदेश है तथा सधो जात मंत्र उनके पैर हैं
इस प्रकार वे पंच मंत्र रूप हैं
वे ही साक्षात साकार
और निराकार परमात्मा हैं
सर्व ग्याता आदि छे शक्तियां उनके शरीर के छे अंग हैं
वे शदाबदी
शक्तियों से इसफुरित हिर्दै कमल के द्वारा सुशोबित हैं
वाम भाग में मनोनमनी नामक अपनी शक्ति से विभुशित हैं
अब मैं मंत्र आदि छे प्रकार की अर्थों को प्रकट करने के लिए
जो अर्थोपन्यास की पद्धती है उसके द्वारा प्रनाव के
समश्टी और व्यश्टी सम्मंदी भवार्त का वर्णन करूँगा
परन्तु पहले उपदेश का क्रम बताना उचित है इसलिए उसी को सुनो
हे मुने इस मानव लोक में चार वर्ण प्रसिद्ध हैं
उनमें से जो ब्राह्मन,
ख्षत्रिय और वैश्च ये तीन वर्ण हैं उनहीं का वैधिक आचार से सम्मंद हैं
त्रैवर्णिकों की सेवा ही जिनके लिए सार्भूत धर्म है उन शुद्रों का
वेदाध्यन में अधिकार नहीं है
शुद्रों का वेदाध्यन में अधिकार नहीं है
और आश्रम धर्म के पालंजनित पुण्य से परमिश्वर का पूजन करके
बहुत से शेष्ट मुनी उनके सायुज्य को प्राप्त हो गए हैं
ब्रह्मचर्य के पालंजन से रिश्यों की यज्य कर्मों के अनुष्ठान से देवताओं
की तता संतानुत पादन से पित्रों की त्रप्ती होती है ऐसा शुती ने कहा है
इसप्रकार रिशीरिन,
देवरिन तथा पित्रिन इन तीनों से मुग्त हो वान
प्रस्थाश्षम में प्रविष्ट होकर मनुष्च शीत,
उश्ण तथा सुख,
दुखादी द्वन्दों को सहिन करते हुए जितेंद्रिय,
तपस्वी और मिताहारी हो यम,
नियम आदी योग
प्रविष्ट हुआ पुरुष्च,
सम्पून कर्मों का सन्यास कर दे,
समस्त कर्मों का सन्यास करने के पस्चात ज्यान के समाधर में तत्पर रहे,
ज्यान के समाधर को ही ज्यान में पूजा कहते हैं,
वे पूजा जीव की साक्षात शिव के साथ एक्ता का बोध कराकर जीव
के कारण लोकानुग्रह की कामना से मैं उस पूजा की विधी बता रहा हूं,
सावधान होकर सनो.
साधक को चाहिए कि वे समपोन शास्त्रों के तत्वार्थ के ग्याता
वेदान्त ज्यान के पारंगत तथा बुध्धी
मानों वे शेष्ट आचारी की शरण में जाए,
उठम बुध्धी से युक्त औँ चतुर साधक आचारी
की समीख जाकर विधी पूर्वक दंड पणाम �
तद अंतर शुक्ल पक्ष की चतुर्थी या दश्मी को प्राते काल
विधीवत स्नान कर शुद्ध चित्व हुआ विध्वान साधक निथ्यकर्म करके
गुरू को बुलाकर शास्त्रोक्त विधी से नान्धी श्राद करें
नान्धी शाद में विश्व देवों की संग्या सत्य और वसु बताई गई है
पर्थम देव शाद में नान्धी मुख देवता ब्रह्मा,
विश्णू और महेश कहे गए हैं
दूसरे शाद में
उन्हें ब्रह्म शी, देव शी तथा राज शी कहा गया हैं
तीसरे दिव शाद में उनकी वसु,
रुद्र और आधिर्थ्य संग्या बताई गई हैं
चोथे मनुश्य शाद में सनक,
सन्नंदन, सनातन और सनत कुमार
आधि चार मुनिश्वर ही नान्धी मुख देवता हैं
पाँच्वे भूत शाद में पाँच महाभूत,
नेत्र आधि ग्यारे, इंद्रिय समूह तथा
जरायुज आधि चत्रुविद प्राणी समुधाई नान्धी मुख माने गए हैं
छटे पित्र शाद में पिता पितामह
और प्रपितामह ये तीन नान्धी मुख देवता हैं
साथवे मात्रि शाद में माता पितामही और प्रपितामही
इन तीनों को नान्धी मुख देवता बतया गया है
तात्मा पिता पितामह और प्रपितामह
ये चार नानधी मुख देवता कहे गये हैं
प्रमाता में ये तीन नांधी मुख देवता सेपत्रनीक बताएगई हैं।
प्रतेक श्राध में दो दो ब्राह्मन करके जितने
ब्राह्मन आवश्यक हों उनको आमन्तरित करें,
और स्वयम यतन पूर्वक आच्छमन करके पवित्र हो उन ब्राह्मनों के पैर दोएं।
उस समय इस प्रकार कहें।
जो समस्त संपत्ती की प्राप्ती में कारण आयिओई आपत्ती
के समूह को नष्ट करने के लिए धूमकेतु अगनी रूप।
अत्थापार संसार सागर से पार लगाने के लिए सेतु के समान है।
वे ब्राह्मनों की चरंण धूलीयां मुझे पवित्र करें।
जो आपत्ती रूपी घने अंधकार को दूर करने के लिए सूर्य हैं।
प्रिश्ट अर्थ को देने के लिए काम देनु
तथा समस्त तीवतों के जल से पवित्र मूर्तिया हैं
वे ब्राह्मनों की चरण धूलियां मेरी रक्षा करें।
समस्त संपत संवाप्ति हे तवः
समुत्त थीतापत कुल धूम के तवः
अपार संसार समुत्त्र सेतवः पुनन्तुमाम ब्राह्मन पाधरेनवः
आपध नध्वान्त सहस्त्रभानवः समितार्थ अरपण काम धेनवः
ऐसा कह प्रत्वी पर दन्ड की भाती पढ़कर
साश्ठांग परणाम करें।
तत्पशात पूर्वा भिमुख बैठकर भगवान शंकर
के युगल चरणार विन्नों का चिंतन करते हुए
द्रधापूर्व कासन ग्रहन करें।
हात्मे पवित्रीले
शुद्ध हो। नूथन यग्यो पवित्धारण कर
तीन बार प्रनायाम करें। तदन्तर तिति
आदि का स्मन करके इस तरह संकल्प करें।
मेरे सन्यास का हंग भूत
जो पहले विश्वे देव का पूजन,
फिर देवादी अश्टविधी शाद तथा अंतमे माता मैं शाद हैं।
उसे आप लोगों की आज्या लेकर मैं पारवन की विधी से संपन्य करूँगा।
ऐसा संकल्प करके आसन के लिए दक्षिन दिशा से
आरंभ करके पूर्वत्तर कुशों का त्याग करें।
तथपश्चात आच्वन करके खड़ा हो वर्ण क्रम का आरंभ करें।
अपने हात में पवित्री धारण करके दो ब्राह्मणों
के हातों का इसपर्श करते हुए इसप्रकार कहें।
विश्वेदेवार्थं भावन्तोऽवर्णे भावदभायाम् नान्धीशाद्धेक्षणः प्रसादनियः।
अर्थात हम विश्वेदेव शाद के लिए आप दोनों का वर्ण करते हैं।
आप दोनों नान्धीशाद में अपना समय देने की कृपा करें।
इतना सभी शादों के ब्राह्मणों के लिए कहें।
ब्राह्मन वरन की विधी का यही क्रम है।
इस प्रकार वरन का कारिय पूरा करके,
दस मंडलों का निर्मान करें।
उत्तर से आरंब करके,
दसों मंडलों का आक्षत से पूजन करके,
उनमें क्रमश है, ब्राह्मनों को इस्थापित करें।
फिर उनके चर्णों पर भी आक्षत आधी चड़ाएं। तदंतर संभोधन
पूर्वक विश्वे देव आधी नामों का उच्छारण करें। और कुष्पुष्प
आक्षत एवं जल से इदम्वः पादम कहकर पाध निवेद करें।
ओम् सत्यवसुसंग्यकाम् विश्वेदेवाम् नान्धिमुकाम्
ओम् ब्रह्म विश्वेदेवाम् नान्धिमुकाम्
भूर्वभूवः स्वाह इदम्वः पाधम पाधावने जनंपाध प्रक्षालनं वृध्ये।
इसप्रकार अन्यशाधों के लिए वाक्य की ऊहा कर लेनी चाहिए।
इसप्रकार पाध देकर स्वेम भी अपना पैर धोलें
और उत्राभिमुको आच्मन करके एक-एक शाध के लिए जो दो-दो
ब्राह्मन कल्पित हुए हैं उन सबको आसनों पर बैठाएं तथा यह कहें।
विश्वेदेव स्वरूप ब्राह्मन के लिए यह आसन समर्पित है।
यह कह कुशासन दे स्वेम भी हात में कुश लेकर आसन परिस्थित हो जाएं।
इसके बाद कहें।
इस नान्दि मुक्षाद में विश्वेदेव के लिए आप दोनों खशन समय प्रदान करें।
तद अंतर आप दोनों ग्रहन करें ऐसा कहें। फिर
वे दोनों शेष्ट ब्राह्मन इस प्रकार उत्तर दें।
हम दोनों ग्रहन करेंगे।
इसके बाद यज्मान उन शेष्ट ब्राह्मनों से प्रार्तना करें।
मेरे मनुरत की पूर्ती हो,
संकल्प की सिध्धी हो, इसके लिए आप अनुग्रह करें।
तद पशाद पद्धती के अनुसार अर्गे दें।
पुजन कर शुद्ध केले के पत्ते आधी धोय हुए पात्त्रों में,
परिपक्व अन्यादी भोज्य पदार्थों को परोस कर,
पृतक पृतक कुष्च पिछा कर,
और स्वेम वहां जल चड़क कर,
पृतेक पात्र पर आधर पूर्वक दोनों हात लगा।
यह पूरा मंत्र है,
इत्यादी मंत्र का पाठ करें,
वहां इस्तित हुए देवता आधी का चतुर्थ्यंत
उच्छारन करके अक्षत सहित जल लें,
स्वाहा बोलकर उनके लिए अन्य अर्पित करें,
और अंत में नामम इस वाक्य का उच्छारन करें।
वाक्य का प्रियोग इस प्रकार है,
ओम् सत्यवसू संग्यकेब्यो विश्वेब्यो
देवेब्यो नान्धिमुखेब्यो स्वाहा नाममा।
अन्य अर्पित्यादी,
सर्वत्रमाता आदी के लिए भी अन्य अर्पन की यही
विधी है। अन्त में इस प्रकार प्रार्थना करें।
यत्पाद पदस्मरणाद यस्य नाम जपादपि
न्यूनम कर्मभवेत
पूर्णम्तम् वन्दे सांब मीश्वरम्।
यही चरणार विंदों के चिंतन एवं नाम जप से न्यूनता
पूर्ण अथ्वा अधूरा कर्म भी पूरा हो जाता है उन
सांब सदाशिव उमा महिश्वर की मैं वन्दना करता हूं।
आप पाठ करके कहें,
हे ब्राह्मणों,
मेरे द्वारा किया हुआ यह नांदे मुक्षाद यतोक्त रूप से परिपून हो,
यह आप कहें।
प्रार्थना के साथ उन स्रेष्ट ब्राह्मणों को प्रसन्य करके,
उनका अशिवात लें और अपने हाथ में लिया हुआ जल छोड़ दें।
फिर प्रत्वी पर दन्य की भाती गिर कर
प्रनाम करें और उठ कर ब्राह्मणों से कहें,
यह अन्य अम्रित रूप हो।
शिरुदार चेता साधक,
हाथ चोड अत्यंत प्रसन्यता पूर्वक प्रार्थना करें,
श्री रुद्र सुप्त का चमकाध्याय सहित पाठ करें,
पुर्श्य शुप्त की भी विधिवत आवर्ती करें,
मन में भगवान सदाशिव का ध्यान करते हुए,
ईशान सर्वविध्
तब रुद्र सुप्त का पाठ समाप्त कर,
ख्षमा प्रार्थना पूर्वक उन ब्राह्मनों को पुनहें,
अम्रतापिधानमसी स्वाहा,
यह मंत्र पढ़कर उत्रा पोशन के लिए चल दे,
अधन्तर हाथ पेर धो आच्मन करके पिंड़दान के स्थान पर जाएं,
वहाँ पूर्वाभी मुक बैठकर मोन भाव से तीन बार प्राणायाम करें,
उसके बाद मैं नान्दी मुक शाद का अंग भूत पिंड़दान करूँगा,
पिंड़दान करके दक्षिन से लेकर उत्तर की ओर
नो रेखाएं खीचें और उन रेखाओं पर क्रमश हैं,
बार है बार है पूर्वाग्र कुष्च बिचाएं,
फिर दक्षिन की ओर से देवता आदी के पांच,
देवरिशी, दिव्यमनुश्य और भूत,
इनके पांच इस्थान समझने चाहिए,
इस्थानों पर चुपचाप अक्षत और जल छोड़ें,
पित्रवर्ग के तीनों,
पिता आदी, माता आदी,
तथा आत्मा आदी,
पर इससे नानधी नानधी मकह सुन्धन्ताम विश्णुनानधी मुखाह,
सुन्धन्ताम महेश्वरानानधी मुखाह,
पुखाह इस प्रकार रेखा पर मारजन करते समय कहें।
इस प्रकार अन्य रेखाओं पर भी कहता चलें।
तत पस्चात अत्रपित्रो माधयद्धम।
कहकर देवादि के पाचो इस्थानों पर क्रम से अक्षत जल चोडें।
पिंडदान वाक इस प्रकार है ।
प्रताइस देवताओं के लिए चोवन पिंड होंगे।
इसी तरहें शेष इस्थानों पर भी करें।
अपने ग्रह सूत्र में बताई हुई पद्धती के
अनुसार सभी पिंड पृठक-पृठक देने चाहिए।
फिर पित्रों के साद गुणने के लिए जल अक्षत
अरपित करें।
तथ पस्चात अपने हिरदे कमल में सदा शिवदेव का ध्यान करें।
और पुर्वोकत
यतपाद पद स्मरनात इत्यादी शलोक का
पुने पाठ करके ब्राह्मनों को नमसकार पूर्वक यताशक्ती दक्षना दें।
फिर तुरुटीयों के लिए ख्षमा प्रार्थना
करके देवता पित्रों का विशरजन करें।
पिन्नों का उत्सर्ग करके उन्हें गौं को खाने के लिए देदें अथ्वा जल
में डाल दें। तत्पश्यात पुन्याह वाचन करके स्वय जनों के साथ भूजन करें।
उसरे दिन प्रातेह काल उठकर शुद्ध बुध्धी
वाला साधक उपवास पूर्वक व्रत रखे।
कांच और उपस्त के बालों को छोड़कर
शीश सभी बाल मुढवा दें।
परन्तु शिखा के साथ आठ बाल अवश्य बचा ले।
तब पर दिर इसनान करके दुले हुए वस्त्र पहिन कर शुद्ध हो,
दो बार आच्चमन करके मौन हो विधिवत भस्म धारन करें।
अन्याह वाचन करके उससे अपने आपका प्रोक्षन कर,
बाहर भीतर से शुद्ध हो,
होम,
द्रव्य और आचारे की दक्षणा के द्रव्य को छोड़कर,
शेष सभी द्रव्य महिश्वरारपण बुधी से ब्राह्मनों
और विशेस्तथे शिव भक्तों को बांट दें।
तदन्तर गुरूरूप धारी शिव के लिए वस्त्र आधी की दक्षणा दें।
पर्थ्यू पर दंडवत पणाम करके डोरा,
कोपीन,
वस्त्र तथा दंड आधी जो धोकर पवित्र किये गये हों धारन करें।
तदन्तर होम,
द्रव्य और समिधा आधी लेकर समुद्र या नदी के तथ पर,
पर्वद पर,
शिवाले में,
वन में अथवा गोशाला में किसी उठ्तम इस्थान का विचार करके वहां बैठ
जाएं। और आच्छमन करके पहले मानसिक जब करें। फिर ओम नमों ब्रह्मने
इस मंत्र का पाठ करके इसके बाद
अथ महाव्रतं अगनेर्वे देवानां एतस्यसमामनायं
ओम इशेत वोर्जेत्वां भायवस्त अगन्यवायाहि वीतये
तथा शम्नो देवीरभिष्टये
इत्यादी का पाठ करें। तत्पस्चात्
मायारासाता जाभ नालागः
पंचसंवत्सर्मयं समामनाय समामनात
इन सब का पाठ करें।
तद अंतर यथा संभव वेद,
पुराण आधी का स्वाध्याय करें।
इसके बाद।
इत्यादी रूप से ब्रह्मा आधी शब्दों के आधी में ओम
और अंत में नमः लगाकर उनके चतुठ्यंत रूप का जब करें।
इसके बाद तीन मुठ्थी सत्तू लेकर प्रनव के उच्छारण पूर्वक तीन
बार खाय और प्रनव से ही दो बार आच्मन करके नाभी का स्पर्श करें।
उस समय आगे बताये जाने वाले शब्दों के आधी में प्रनव और अंत में नमः
स्वाहा
जोड़कर उनका उच्छारण करें।
यत्हा इस प्रकार।
यत्हा इस प्रकार।
तद अंतर प्रथक प्रथक
परणो मंत्र से धर्म सिंधुकार ने इसके लिए तीन मंत्र लिखे हैं।
प्रथम बार चाट कर कहें।
त्रीव्विदसी दुत्यबार
प्रवीदसी
और
तृत्यबार वीवृदसी।
ही दूध, दही,
मिले हुए घी को
अथ्वा केवल जल को तीन बार चाट कर पुनें दो बार आच्मन करें।
इसके बाद मन को स्थिर करके सुईस्थिर आसन पर पूर्वा भे
मुक पैठ कर शास्त्रोक्त विधी से तीन बार प्राणायाम करें।
बोलिये शिवशंकर भगवाने की जैये।
भकतो आनन्द वाला परसंग था और इस परकार इस परसंग के साथ शिशिव महापुरान
के कैलास सही ताकवी ये कथा और बारमा अध्याय यहां पर समाप्त होता है।
तो प्रसन्निचित मन से बोलिये।
बोलिये शिवशंकर भगवाने की जैये। ओम नमः
शिवाय। ओम नमः शिवाय। ओम नमः शिवाय।