ĐĂNG NHẬP BẰNG MÃ QR Sử dụng ứng dụng NCT để quét mã QR Hướng dẫn quét mã
HOẶC Đăng nhập bằng mật khẩu
Vui lòng chọn “Xác nhận” trên ứng dụng NCT của bạn để hoàn thành việc đăng nhập
  • 1. Mở ứng dụng NCT
  • 2. Đăng nhập tài khoản NCT
  • 3. Chọn biểu tượng mã QR ở phía trên góc phải
  • 4. Tiến hành quét mã QR
Tiếp tục đăng nhập bằng mã QR
*Bạn đang ở web phiên bản desktop. Quay lại phiên bản dành cho mobilex

Shiv Mahapuran Vighneshwar Sanhita Adhyay-21, 22

-

Kailash Pandit

Tự động chuyển bài
Vui lòng đăng nhập trước khi thêm vào playlist!
Thêm bài hát vào playlist thành công

Thêm bài hát này vào danh sách Playlist

Bài hát shiv mahapuran vighneshwar sanhita adhyay-21, 22 do ca sĩ Kailash Pandit thuộc thể loại The Loai Khac. Tìm loi bai hat shiv mahapuran vighneshwar sanhita adhyay-21, 22 - Kailash Pandit ngay trên Nhaccuatui. Nghe bài hát Shiv Mahapuran Vighneshwar Sanhita Adhyay-21, 22 chất lượng cao 320 kbps lossless miễn phí.
Ca khúc Shiv Mahapuran Vighneshwar Sanhita Adhyay-21, 22 do ca sĩ Kailash Pandit thể hiện, thuộc thể loại Thể Loại Khác. Các bạn có thể nghe, download (tải nhạc) bài hát shiv mahapuran vighneshwar sanhita adhyay-21, 22 mp3, playlist/album, MV/Video shiv mahapuran vighneshwar sanhita adhyay-21, 22 miễn phí tại NhacCuaTui.com.

Lời bài hát: Shiv Mahapuran Vighneshwar Sanhita Adhyay-21, 22

Nhạc sĩ: Traditional

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

बोल ये शिवशंकर भगवान की जै!
प्रिये भगतों,
श्रीशिव महा पुरान के विध्धिश्वर सहीता की अगली कता है
पार्थिव पूजा की महिमा,
शिवनेवेद भक्षन के विशेमे निर्णे तथा बिल्व का महात्म।
तो आईए भगतों,
आरम्ब करते हैं इस कथा के साथ इकीस्वा तथा बाईस्वा अध्याय।
तदंतर रिशियों के पूचने पर
किस कामणा की पूर्थी के लिए कितने पार्थिव लिंगों की पूजा करनी चाहिए।
इस विशे का वण्णन करके
सूच जी बोले।
हे महरशियों,
पार्थिव लिंगों की पूजा कोटी-कोटी यज्ञों का फल देने वाली है।
कल्युग में लोगों के लिए शिव लिंग पूजन जैसा शेष्ट दिखाई देता है,
वैसा दूसरा कोई साधन नहीं है।
इस समस्त शास्त्रों का निश्चित सिध्धान्त है,
शिव लिंग भोग और मोक्ष देने वाला है।
लिंग तीन प्रकार के कहे गए हैं- उत्तम,
मध्यम और अधम।
जो चार अंगुल उंचा और देखने में सुन्दर हो तथा वेदी से युक्त हो,
अपने शिव लिंग को शास्त्रग्य महरशियों ने उत्तम कहा है।
उससे आधा मध्यम और उससे आधा अधम माना गया है।
युक्त पर प्रकार के शिव लिंग कहे गए हैं- जो उत्तर,
उत्तर शेष्ठ हैं- ब्राह्मन,
शत्रिय,
वैश्च,
शुद्र अथवा विलोम्ण,
संकर
कोई भी क्यों ना हो,
वहे अपने अधिकारों के अनुसार वैदिक अथवा
तांत्रिक मंत्र से सदा आधर पूर्व�
शिव लिंग का पूजन करने में इस्त्रियों
का तथा अन्य सब लोगों का भी अधिकार हैं
ब्राह्मन,
शत्रिय,
वैश्च,
शुद्र आथवा विलोम्ण,
पूजयेत सततं दिंगं तत्तं मंत्रेन सार्दं,
किम्बहुक्तेन मुनयह इस्त्रीनामपी तथा न्यतः,
बोलिये शिवशंकर भगवान की जै!
द्वीजों के लिए वैधिक पद्धति से ही शिव लिंग की पूजा करनी शेष्ट है,
परन्तु अन्ने लोगों के लिए वैधिक मार्ग से पूजा करने की सम्मती नहीं है,
वेदग्य द्वीजों को वैधिक मार्ग से ही पूजन करना चाहिए,
अन्ने मार्ग से नहीं,
यह भगवान शिव का कथन है,
दधीची और गोतम आदी के शाप से
जिनका चित दग्ध हो गया है,
उन द्वीजों की वैधिक कर्म में शद्धा नहीं होती,
जो मनुष्य वेदों तथा इसमृतियों में कहे हुए सतकर्मों की अभेलना करके
दूसरे कर्म को करने लगता है,
उसका मनोरत कभी सफल नहीं होता।
योवेदिक मनावरति
तर्म इसमार्थ मधापिवा,
इसप्रकार विधी पूर्वक भगवान शंकर का नयवेधान्त पूजन करके,
उनकी तुर्भुनमै आठ मूर्तियों का भी वहीं पूजन करे,
पृत्वी,
जल,
अगनी,
वायू,
आकाश,
सूर्य, चंद्रमा तथा यजमान,
ये भगवान शंकर की आठ मूर्तियां कही गई हैं।
इन मूर्तियों के साथ-साथ,
शर्व,
भव,
रुद्र,
ओग्र, भीम, ईश्वर, महादेव तथा पशुपति,
इन नामों के भी अरचना करें।
तद अंतर चंदन, अक्षत, और बिल्व पत्र ले करें,
वहां ईशान आदी के क्रम से,
भगवान शिव के परिवार का उठ्तम भक्ती भाव से पूजन करें।
ईशान, नन्दी,
चंड,
महाकाल,
ब्रिंगी,
व्रश,
इसकंद,
कपरदिश्वर,
सोम तथा शुक्र,
ये दस शिव के परिवार हैं,
जो करमश है,
ईशान आदी दसों दिशाओं में पूजनिय हैं।
तत्पश्याद, भगवान शिव के समक्ष वीर भद्र का
और पीछे कीरती मुख का पूजन करके विधी
पूर्वक ग्याहरे रुद्धों की पूजा करें।
इसके बाद पंचाकशर मंत्रका जब करके शत्रुद्रीय सत्रोत का,
नाना परकार की स्तुत्यों का,
तथा शिव्पशांग का पाठ करें।
तत्पश्याद,
परिक्रमा वो नमसकार करके शिव लिग का विसर्जन करें।
इसप्रकार मैंने शिवपूजन की संपूण विधी का आधर पूरवक बर्णन किया।
रात्री में देवकारीों को सदā उत्राभिमुक होकर ही करना चाहिये।
वही उचित है,
जहां शिवलिंग इस्थापित हो,
उससे पूर्वदिशा का आश्रे लेकर नहीं बैटना या खड़ा नहीं होना चाहिए,
क्योंकि वै दिशा भगवान शिव के आगे या सामने पड़ती है.
ईश्ट देव का सामना रोकना ठीक नहीं,
शिवलिंग से उत्तर दिशा में भी न बैठें,
क्योंकि उदर भगवान शिव का वामांग है,
इसमें शक्ति स्वरौपा देवी
उमा विराजमान है.
पूज़को शिवलिंग से पश्चम दिशा में भी नहीं बैठना चाहिए,
क्योंकि वै आराध्य देव का प्रिश्ट भाग है.
पीछे की ओर से पूजा करना उचित नहीं है,
अतय है.
अवशिष्ट दक्षन दिशा ही
ग्राहिय है,
उसी का अश्चे लेना चाहिए.
तात्पर यह यहहै कि शिवलिंग से दक्षन दिशा में उत्रा भिमुख होकर बैठें
और पूजा करें.
विद्वान पुरुष को चाहिए वे भस्म का त्रिपुंड लगाकर,
रुद्राक्ष की माला लेकर
तत्था बिल्व पत्र का संग्रह करके ही भगवान शंकर की पूजा करें.
इनके बिना नहीं.
हे मुनीवरो,
शिव पूजन आराम्ब करते समय यदी भस्म ना मिले तो
मिट्टी से भी ललाट में त्रिपुंड अवश्च कर लेना चाहिए।
रिशी बोले,
हे मुने,
हमने पहले से यह बात सुन रखी है कि भगवान
शिव का नवेद्ध नहीं गरहन करना चाहिए,
इस विशे में शास्त्र का निर्णे क्या है,
यह बतलाईए,
साथ ही बिल्व का महात्म भी प्रगत कीजिये।
सूज्जी महराज ने कहा,
हे मुनियो,
आप शिव सम्मंधी व्रत का पालन करने बाले हैं,
अते आप सबको
सत शेह धन्यवाद है,
मैं प्रसन्नता पूर्वक सब कुछ बताता हूं,
आप सावधान होकर सुनें।
जो भगवान शिव का भक्त है,
बाहार भीतर से पवित्र और शुद्ध है,
उत्तम व्रत का पालन करने वाला
तथा द्रिध निष्चे से युक्त है,
वह शिव नयवेद्ध का अवश्य भक्षन करें।
भगवान शिव का नयवेद्ध
अग्राह है,
इस भावना को मन से निकाल दें। शिव के नयवेद्ध को
देख लेने मातर से भी सारे पाप दूर भाग जाते हैं। उसको
खा लेने पर तो करोडो पुन्य अपने भीतर आ जाते हैं।
आये होई शिव नयवेद्ध को
शिर जुकाकर परशन्नता के साथ ग्रहन करें
और प्यात्न करके शिव इसमर्ण पूर्वक उसका भख्षन करें।
यह शिव का नेवेद्ध अवश्य भख्षनिय है।
ऐसा कहा जाता है।
शिव की दीक्षा से युक्त शिव भख्त पुरुष के लिए
सभी शिवलिंगों का नेवेद्ध शुब एवं महा परसाद है।
अतह
वे इसका भख्षन अवश्य करें।
परन्तु जो अन्य देवताओं की दीक्षा से युक्त
हैं और शिव भख्ती में भी मन को लगाय हुए हैं,
उनके लिए शिव नेवेद्ध भख्षन के विशय में क्या निर्णे हैं,
इसे आप लोग प्रेम पूर्वक सुने।
यह ब्राह्मणों,
जहां से शाले ग्राम शिला की उत्पत्ती होती है,
वहीं से उत्पन्न लिंग में,
रस लिंग अर्थात पारद लिंग में,
पाशान,
रजत तथा स्वण से निर्मित लिंग में,
देवताओं तथा सिध्धों द्वारा प्रतिष्ठित लिंग में,
केसर �
तथा समस्त जोतिर लिंगों में विराजमान भगवान शिव के नेवध्य का भखशन
चांद्रायन व्रत के समान पुन्य जनक है।
ब्रह्म हत्या करने वाला पुरुष्वी यदी पवित्र होकर शिव
निर्माल्य का भखशन करके
उसे सिर पर धारन करे,
उसे साधारन मनिष्य को नहीं काना चाहिए।
जहां चन्ड का अधिकार नहीं है,
वहां के शिव निर्माल्य का सभी को भकति पूर्वक भोजन करना चाहिए।
बान-लिंग
अरथा नर्मदेश्वर,
लोहो निर्मित,
अर्थात स्वर्णारिधातु में
लिंग
सिद्ध लिंग
जिन लिंगों की उपासना से किसी ने सिद्धी प्राप्त की है
अत्वा जो सिद्धों द्वारा इस्ठापित हैं वे लिँग
स्वेहम भूलिँग
इन सब लिंगों में तत्था
शिव की प्रितिमाओं,
मूर्तियों में चंड का अधिकार नहीं है।
जो मनिश्य शिवलिंग को विधी पूर्वक इसनान कराकर
उस इसनान के जल का तीन बार आच्मन करता है,
उसके काईक,
वाचिक और मानसिक तीनों प्रकार के पाप यहां शीगर नश्ठ हो जाते हैं।
जो शिव नेवेद्ध, पत्र, पुष्प, फल और जल अग्राह है,
वे सब भी शाले ग्रामशिला के सपर्ष से पवित्र ग्रहन के योग्य हो जाता है।
हे मुनिश्वरो,
शिव लिंग के ऊपर चड़ा हुआ जो द्रव्य हैं,
वे हैं अग्राह हैं।
जो वस्तु लिंग सपर्ष से रहित है,
अर्थात
जिस वस्तु को अलग रखकर
शिव जी को निवेदित किया जाता है,
लिंग के ऊपर चड़ाया नहीं जाता,
उसे अत्यंत पवित्र जानना चाहिए।
हे मुनीवरो,
इसप्रकार निवेद्ध के विशे में शास्त्र का निर्णे बताया गया है।
अब तुम लोग सावधान हो आधर पूर्वग बिल्व का महात्म सुनो।
यह बिल्व वृक्ष महादेव का ही रूप है।
देवताओं ने भी इसकी इस्तुति की है।
यह जिसकिसी तरहें से इसकी महिमा
कैसे जानी जा सकती है।
तेनो लोकों में जितने पुन्य तीर्थ पुछिद हैं,
वे संपूर्ण तीर्थ
बिल्व के मूल भाग में निवास करते हैं।
जो पुण्यात्मा मनुष बिल्व के मूल में लिंग
स्वरूप अभिनाशी महादेव जी का पूजन करता है,
वे निश्चे ही शिव पद को प्राप्त होता है।
जो बिल्व की जड के पास जल से अपने मस्तक को सीचता है,
वे संपूर्ण तीर्थों में इसनान का फल पा लेता है
और वही इस भूतल पर पावन माना जाता है।
इस बिल्व की जड के परम उत्तम थाले को जल से भरावा
देखकर महादेव जी पूर्ण तयाँ संतुष्ट होते हैं।
जो मनुष्य गंध,
पुष्प,
आदी से बिल्व के मूल भाग का पूजन करता है,
वह शिवलोक को पाता है।
और इस लोक में भी उसकी सुक संपत्ती,
संतती बढ़ती है।
जो बिल्व की जड के समीप आदर पूर्वक दीपावली जला कर रखता है,
वह साब पापोंसे मुक्त हो जाता है, वक्तों।
पुछा पुण्य प्राप्त होता है,
जो बिल्व की जड के पास शिव भक्त को खीर और ग्रत से युक्त अन्ने देता है,
वैं कभी दरिद्र नहीं होता ब्राह्मणों।
हे विप्रो,
इस प्रकार मैंने सांगो पांग शिवलिंग पूजन का वर्णन किया।
यह प्रवत्ति मार्गि tathaa निव्रत्ती मार्गी
पूजगों के भेध से दोप्रकार का होता हैय।
निवरत्ती मारगी लोगों के लिए पीठ पूजा इस भूतल
पर सम्पून अभिष्ट वस्तुओं को देने वाली होती है।
प्रवित्त पुरुष सुपात्र गुरु आदी के द्वारा ही सारी पूजा संपन्य करें
और अभिषेक के अंत में अगहनी के चावल से बना हुआ नयवध्य निवेधन करें।
पूजा के अंत में शिवलिंग को शुद्ध संपुट में
विराजमान करके घर के भीतर कहीं अलग रखतें।
निवर्ति मार्गी उपासकों के लिए हाथ पर ही शिव पूजन का विधान है।
उन्हें भिक्षा आदी से प्राप्त हुए अपने भोजन
को ही नयवेध रूप में निवेधित कर देना चाहिए।
निवर्त्य पुर्शों के लिए सूक्ष्म लिंग ही शेष्ट बतया जाता है।
वे भिभूती से पूजन करें और भिभूती को ही नयवेध रूप से निवेधित भी करें।
पूजा करके उस लिंग को सदा अपने मस्तक पर धारन करें।
बोलिये शिवशंकर भगवान की जैने एक
आनंद के साथ बोलिये।
ओम नमः शिवाय
ओम नमः शिवाय
ओम नमः शिवाय

Đang tải...
Đang tải...
Đang tải...
Đang tải...