Nhạc sĩ: Traditional
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बोली शिव संकर भगवान की
ज автом जपंत
स्रिभुरान पूर्ष्यूत्तम
माई नमः
सक्तूस
स्रीगनिशाardeş नमः
स्रिफस्यखतं
षिव संकर भगवान की
ज
परियभकतो
यहां से हम आरंब करने जा रहे हैं
श्री शिव महापर्वां के विध्विश्वर सहीता को
तो आइये भक्तोँ आरंब करते हैं
श्री शिव महापर्वां के विध्विश्वर सहीता की पहλαी कता
और ये कता है
प्रियाग में सूत जी से मुनियों का तुरंत
पाप नाश करने वाले साधन के विशय में प्रश्न
तो आईये भक्तों आरंब करते हैं इस कथा से पहला अध्याय
आधन्त मंगलं जात समान भाव मार्य तमीस मजरामर मात्म देवं
जो आधी और अंत में
तथा मध्य में भी नित्य मंगल में हैं
जिनकी समानता अथ्वा तुलना कहीं भी नहीं है
जो आत्मा के स्वरूप को प्रकाशित करने वाले देवता अर्थात परमात्मा हैं
जिनके पांच मुख हैं और जो खेल ही खेल में अनायास जगत की रचना,
पालन,
संघार तथा अनुग्रह एवं
तिरो भाव रूप पांच प्रबल कर्म करते रहते हैं
उन सर्वशेष्ट अजर अमरीश्वर
अम्भिकापती भगवान शंकर का मैं मन ही मन चिंतन करता हूं
व्यास जी कहते हैं जो धर्म का महान ख्षेत्र
है और जहां गंगा जमना का संगम हुआ है
उस परम पुन्य में प्रियाग में
जो ब्रह्म लोक का मार्ग है सत्य वरत में तत्पर रहने
वाले महा तेजस्वी महाभाग महात्मा मुनीयों ने एक विशाल
ज्यान यग्य का आयोजन किया
उस ज्यान यग्य का समाचार सुनकर
पुरानिक शिरोमनी व्यास शिष्ष महा मुनी सूत
जी वहां मुनीयों का दर्शन करने के लिए आये
सूत जी को आते देख
वे सब मुनी उस समय हर्ष से खिल उठे
और अत्यंत प्रसन्य चित हो उन्होंने
उनका विधीवत स्वागत सतकार किया
तत्पस्चात
उन प्रसन्य महात्माओंने
उनकी विधीवत इस्तूती करके विनय पूर्वक हात जोड कर
उनसे इसप्रकार कहा
सरवग्य विद्वान रोम हर्षन जी
आपका भाग्य बड़ा भारी है
इसी से आपने व्याज जी के मुक्से अपनी प्रसन्यता
के लिए ही सम्पून पुरान विध्या प्राप्त की
इसलिए आप अश्चरे स्वरूप कथाओं के भंड्यार हैं
ठीक उसी तर हैं
जैसे रतना कर समुंद्र बड़े बड़े सार भूत रतनों का आगार है
तीनों लोकों में भूत,
वर्तमान और भविश्य तथा और भी जो कोई वस्तू है
वे आपसे अग्यात नहीं है
आप हमारे सोभाग्य से इस यग्य का दर्शन करने के लिए यहां
पधारे हैं और इसी व्याज से हमारा कुछ कल्यान करने वाले हैं
क्योंकि आपका आग्वन निरर्थक नहीं हो सकता
हमने पहले भी आपसे शुभा शुभ तत्व का पूरा पूरा वर्णन सुना है
किन्टो उससे त्रत्ती नहीं होती
हमें उसे सुनने की बारंबार इच्छा होती है
उत्तम बुद्धी वाले सूत जी इस समय हमें एक ही बात सुननी है यदी
आपका अनुग्रह हो तो गोपनिये होने पर भी आप उस विशे का वर्णन
अवश्य करें
घोर कल्युग आने पर मनुश्य पुन्य कर्म से दूर रहेंगे दुराचार
में फस जाएंगे और सबके सब सत्य भाशन से मुँ फेर लेंगे
दूसरों की निनदा में तत्पर होंगे पराय धन को हडप रेने की च्छा करेंगे
उनका मन पराय इस्त्रियों में आसक्त होगा
तथा वे दूसरे प्राणियों की
हिंसा किया करेंगे
अपने शरीर को ही आत्मा समझेंगे मूढ,
नास्तिक और पशु बुध्धी रखने वाले होंगे माता पिता से द्वेश रखेंगे
ब्राह्मन लोभ रूपी ग्राह के ग्रास बन जाएंगे
वेद बेज कर जीविका चलाएंगे धन का उपारजन करने के लिए ही
विध्या क
दूसरों को ठगेंगे तीनों काल की संध्या उपासना
से दूर रहेंगे और ब्रह्म ज्ञान से शुन्य होंगे
समस्त ख्षत्रिय भी स्वय धर्म का त्याग करने वाले होंगे
कुसंगी पापी और व्यविचारी होंगे
उनमें शोर्य का भाव होगा
वे कुछित चोर ये कर्म से जीविका चलाएंगे
शुद्रों का सा बरताव करेंगे और उनका चित काम का किंकर बना रहेगा
वैश्च संसकार धिष्ठ
स्वय धर्म त्यागी
कुमारगी
धनो पारजन पारायन
तथा नाप तोल में अपनी कुछित व्यविच्च का परिचे देने वाले होंगे इसी
तरहें शुद्र ब्राह्मनों के आचार से तत्पर होंगे उनकी आकृति उज्जवल होगी
अरधात वे अपना कर्म धर्म छोड़कर उज्जवल वैश भूशा से विवुशित हो व्य
वे कुटिल और द्विज निनदक होंगे यदी धनी हुए तो कुकर्म में लग जाएंगे
विद्वान हुए तो वाद विवाद करने वाले होंगे अपनों को कुलीन
मानकर चारो वर्णों के साथ वैवाहिक सम्मंद इस्थापित करेंगे
वे लोग अपनी अधिकार सीमा के बाहर जाकर द्विज
ओच्छत सत्कर्मों का अनुश्थान करने वाले होंगे
कल्यूग की इस्त्रियां प्राय सदाचार से
ब्रश्ट और पती का अपमान करने वाली होंगी
साथ ससुर से द्रोह करेंगी किसी से भै नहीं मानेंगी
मलिन भोजन करेंगी,
कुछ सिथ हाव भाव में तत्पर होंगी,
उनका शील सवभाव बहुत बुरा होगा और उन
अपने पती की सेवा से सदा ही विमूख रहेंगी.
सोच जी,
इस तरहें जिनकी बुद्धी नश्ठ हो गई है,
जिनोंने अपने धर्म का त्याग कर दिया है,
ऐसे लोगों को इहलोक और परलोक में उत्तम गती कैसे प्राप्त होगी?
इसी चिन्ता से हमारा मन सदा व्याकुल रहता है,
पर उपकार के समान दूसरा कोई धर्म नहीं है,
अतर जिस छोटे से उपायस से इन सब के पापों का ततकाल नाश हो जाये,
उसे इस समय कृपा पूर्वक बतलाईये,
क्योंकि आप समस्त सिध्धान्तों के ग्याता हैं.
व्यास जी कहते हैं,
उन भावितात्मा मुनियों की यह बात सुनकर सूज्जी मन
ही मन भगवान शंकर का इसमन करके उनसे इस प्रकार बोले.
बोले शिवशंकर भगवान की जेय!
जब आप अगर मुझे लेंका भर्त गए काम बोले,
जेयह ओसाल दे हैं.
Om Namah Shivay
Om Namah Shivay