Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवाने की जै!
प्रीय भगतों,
शीशिव महापराण के कोटी रुद्र सहीता की अगली कथा है
भगवान विश्णू द्वारा पठित शिव सहस्त्र नाम स्त्रोत
आहाहाहा, भगतों आनन्द आने वाला है
भगवान शिव के एक हजार नामों का शवण आपलो करने वाले हैं
तो आईये भगतों आरंब करते हैं इस कथा के साथ 3536 मु आध्याय
बोलिये शिवशंकर भगवाने की जै!
सूज्जी कहते हैं
सुज्जी पोले
मुनीवरों
सुनो
जिससे महिश्व सन्तुष्ट होते हैं
वहे शिव सहस्त्र नाम स्त्रोत
आज तुम सबको सुना रहा हूं
विश्णूर वाच्च
शिवो हरो म्रडो रुद्रः पुष्च करः पुष्च लोचनः
अर्थी गम्यः सदाचारः शर्वेशं भूर्व महिश्वरः
बगवान विश्णू ने कहा
एक शिव
कल्यान सरूप
दो हर
भगतों के पाप ताप हर लेने वाले
तीन म्रद्ध
सुख दाता
चोथे रुद्र
दुख दूर करने वाले
पुष्च करः
आकाश स्वरूप
पुष्च लोचनः
पुष्च के समान खिले हुए नेत्र वाले
अर्थी गम्यः पार्थियों को प्राप्त होने
वाले सदाचारः स्विष्ट आच्छन करने वाले
शर्वः संघारकारी शम्बुः कल्यान निकेतन और घ्यार्वा महिश्वरः महान ईश्वर
चंद्रापीड अश्चंद्रह मोलिर विश्वं विशंभरेश्वरा
वेदान्त सार संधोह कपाली नील लोहिता
बर्वा नाम् चंद्रापीड़घर्य चंद्रमाyy रोपमें अपने द्रबार्वाजा्यफज्ञ do
पंद्रवा विशंभरेश्वरः विश्व का भरन
पोशन करने वाले श्री विश्णु के भी ईश्वर
सोलवा वेदान्त सार संदोह वेदान्त के सार
तत्व सच्चिदानन्दमे ब्रह्म की साकार मूर्ति
सत्रवा कपाली
हात में कपाल धारन करने वाले अठारे नील लोहित
गले में नील और शेश अंगों में लोहित वर्ण वाले
ध्यानाधारो परिश्चेदो
गोरिभरता गनेश्वरह अश्टमूर्ती रवीश्वमूर्ती इस्त्रिवार्ग स्वर्ग साधना
उन्निस्वा ध्यानाधारः ध्यान के आधार बीस अपरिश्चेदः देश,
काल और वस्तु की सीमा से अविभाज्ज
इकिस गोरी भरता गोरी अर्थाद पारवती जी के पती बाईस गनेश्वरह
प्रमत गनों के स्वामी तेइस अश्टमूर्ती है जल,
अगनी,
वायु,
आकाश,
सूर्य,
चंद्रमा,
पृत्वी ओर यजमान इन आठ रूपों वाले चोबिस विश्वमूर्ती है अखिल ब्रम
श्वर्ग साधन धर्म,
अर्थ,
काम तथा श्वर्ग की प्राप्ती कराने वाले
ज्यान गम्यों द्रड़ प्रग्यों देवधेव श्त्री लोचनः
वामदेवो महादेवः पतुः परिव्रधो द्रड़
ग्यान गम्यों
ज्यान से ही अनुभव में आने के योग्यों सत्ताइस
द्रड़ प्रग्यों सुष्ठिर बुद्धी वाले अठाइस देवधेवः
देवताओं के भी आराध्य उन्तिस विलोचनः सूरिय,
चंद्रमा,
अगनी रूप तीन नित्रों वाले
तीस वामदेव �
बहान देवता ब्रह्मा दिकों के भी पूजनी 32 पटूह
सब कुछ करने में समर्त एवं कुशल 33 परीवरढः स्वामी
34 द्रड़ कभी विच्रित न होने वाले
विश्वरूपो विरूपाक्षो
वागीशः सुचि सत्तमहान सर्वप्रमान सम्वाधी विशांको वरशवाहन
35 विश्वरूप जगत सरूप 36 विरूपाक्षः
विकटनेत्रवाले 37 वागीशः बानीं की अधिपती
38 सुचि सत्तम पवित्र पुर्शों में भी सबसे शेष्ट
39 सर्वप्रमान सम्वाधी संपून प्रमानों में
सामंजस्यप् स्थापित करने वाले 40 विशांक
अपनी ध्वजा में विशब का चिन्न धारन करने वाले
41 वरशवाहन विशब या धर्म को वाहन बनाने वाले
42 ईशः अर्थात् स्वामी आशासक 43 पिनाकी पिनाक नामक धनुश धारन करते हैं
42 ईशः
अर्थात् स्वामी आशासक
43 पिनाकी पिनाक नामक धनुश धारन करने वाले
44 खटवांगी खाट के पाय की आकरती का एक आयुद्ध धारन करने वाले
45 चित्रवेश विचित्रवेश धारी
46 चिरंतन पुरान अनाधी पुर्श्वत्तम
47 तमोहर
अज्ञानान्धकार को धूर करने वाले
48 महा योगी महान योग से संपन 49 गोपता
अरथात रक्षक 50 ब्रह्मा सश्टी करता 51 धूर जटी
जटा के भार से युक्त
काल कालः क्रत्तिवासाः सुबगः प्रनवात्मकः
उन्नद्ध्रः पुरिशो जुप्षो न्धूरवासाः पुर्शासनः
52 काल कालः अरथात काल के भी काल
तरिपण क्रत्तिवासाः गजासुर के चर्म को वस्त्र के रूप में धरन करने वाले
सुबगः सुभाग्यशाली प्रनवात्मकः
ओमकार सुरूप अथ्वा प्रनव के वाच्यार्थ
56 उन्नद्र
बंधन रहित
57 पुर्शः
अंतरयामी आत्मा
58 जुष्षः
सेवन करने योग
69 दुर्वासाः दुर्वासाः नामक मुनी के रूप में अवतिहिन
60 पुर्शासन तीन माया में असुरपुरों का दमन करने वाले
दिव्य युधः सकंद गुरूः परमेश्ठी परात्परः
अनाधि मध्यनिधनो घिरिशो घिरजाधवः
61 दिव्या युधः
पाशपत आधी दिव्य अस्त धारन करने वाले 62 सकंद गुरूः कार्तिके जी के पिता
63 परमेश्ठी अपनी तुकिष्ट महिमा में स्थिर
रहने वाले 64 परात्परः कारण के भी कारण
65 अनाधि मध्यनिधन आधी मध्य और अंत से रहित
66 गिरिशः केलाश के अधिपती
67 गिरजाधवा
पारवती के पती कुबेर बंधूः श्रीकंठो लोक वर्ण
उत्तमों अम्रदूः समाधि वेदखो धंडी नील कंठ परश्वधी
68 कुबेर बंधूः अरथात कुबेर कु अपना बंधूः मित्र मानने वाले
69 श्रीकंठ शाम सुष्मा से सुशोबित कंठ वाले
70 लोक वर्ण उत्तम समस्त लोकों और वर्णों से शेष्ट
72 समाधि वेदखो समाधि अथुआ चित्त वर्त्यों के निरोध से
अनुभव में आने योग्य 73 कोदंडी
धनुरधर 74 नील कंठ कंठ में हला हल विश्का नील चिन्न धारन करने वाले
पजित्तर परश्वधी परश्वधारी
विशालाक्षो म्रगव्याद्ध सुरेश सूर्यतापनः
धर्मधामें ख्षमाक्षेत्रः भगवान भगनेत्रभितः
श्वादाच्छित्तर
विशालाक्ष बड़े बड़े नित्रों वाले 77 म्रगव्याद्ध वन में व्याद
या किराद के रूप में प्रकट हो शूकर के ऊपर बान चनाने वाले
78 सुरेश देवताओं के स्वामी
89 सूर्यतापनः सूर्य को भी धन्ड देने वाले 80 धर्मधा
81 ख्षमाक्षित्रम् ख्षमाके उत्पत्ती स्थान भगवान् संपून
एश्वरिये धर्म यश्ष्री ज्ञान तथा वैराज्य के आश्रे
83 भगनेत्रभितः
भगदेवता के नेत्र का भेदन करने वाले
84 उग्र संहार काल में भयंकर रूप धारन करने वाले
85 पशुपती माया रूप में बंधे हुए पाश वध पशुपती है
86
दाता दानी नभे
दया कर
दया निधान अत्वा कृपा करने वाले
87 दक्ष कुशल
बान में कपरदी
जटा जूडधारी
तिरान में काम शासन काम देव का दमन करने वाले
चोरान में शमशान निलः
अरथात शमशान वासी
पिछान में सूक्ष्म इंद्रियाती तेवं सर्वव्यापी
पिछान में शमशानस्थ शमशान भूमी में विश्षाम करने वाले
87 वहिश्वरह
महान इश्वर या परमेश्वर
अठान में लोक करता जगत की सच्ची करने वाले
निन्यान में मिर्गपती मरग के पालक या पशुपती
तो महा करता विराड ब्रह्मान्ड की सच्ची
करने के समय महान कर्तव्य से संपन्य
101 महोशधी भावरोग का निवारण करने के लिए महान ओशधी रूप
उत्तरो गोपतीर गोपता ज्ञान गम्य है पुरात नहा
102 उत्तरह
अरथात संसार सागर से पार उतारने वाले
103 गोपती अरथात स्वर्ग प्रत्वी पशु वानी किरन इंद्रिय और जल के स्वामी
104 गोपता रक्षक 105 ज्ञान गम्य तत्व ज्ञान
के द्वारा ज्ञान स्वरूप से ही जानने योग
106 पुरातन सबसे पुराने
107 नीति
न्याय स्वरूप 108 सुनीति उत्तम नीति वाले 109 शुधात्मा
विशुध आत्म स्वरूप 110 सोम है उमा सहित 111 सोमरत चंद्रमा
पर प्रेम रखने वाले 112 सुखी आत्मा अनन्द से परिपून
113 सोम पान करने वाले अथवा सोमनात रूप से चंद्रमा के पालक
115 अम्रित्प समाधी के द्वारा
स्वरूप भूत अम्रित का आस्वादन करने वाले 115
सोम्य भगतों के लिए सोम्य रूप धारी 116 महा तेजह
महान तेज से संपन्य
महा धुति
परमकांती मान
118 तेजो में प्रकाश स्वरूप 119 अम्रित में
अम्रित सरूप
120 अन्य में अन्य रूप
121 सुधापति अम्रित के पालक
अजात शत्रु रालोकः संभाव्यो हव्यवाहन लोक करो वेद करः सूत्र कारे सनातनः
122 अजात शत्रु अर्थात
जिनके मन में कभी किसी के परती शत्रु भाव नहीं पैदा हुआ ऐसे संधर्शी
अम्रित सरूप 122 अलोक
प्रकाश स्वरूप 124 संभाव्य संभाननिय
125 हव्यवाहन अगनी स्वरूप 126 लोक कर
जगत के इस्तरिष्टा
वेद कर वेदों के प्रगट करने वाले
महरशी कपीलाचार्यो विश्वधीपती स्त्रिलोचनः
130 महरशी कपीलाचार्ये अर्थात शांख
शास्त्र के प्रनेता भगवान कपीलाचार्ये
131 विश्वधीपती
अपनी प्रभासे सब को प्रकाशित करने वाले 132 त्रिलोचन
तीनों लोकों के द्रिष्टा
133 पिनाक पानी हात में पिनाक नामक धनुश धारन करने वाले
134 भुदेव पिर्थ्वी के देवता ब्रहमन अथवा पार्थिव लिंग रूप
135 स्वस्तिदः अर्थात कल्यान दाता
136 स्वस्तिकृत कल्यान कारी
137 सुधी विश्वध बुद्धीवाले
138 धात्रिधामा
विश्व का धारन पोशन करने में समर्थ
139 धामकर तेज की स्रिष्टी करने वाले 140 सर्वग सर्वव्यापी 141
सर्वगोचर सब में व्याप्त 142 ब्रह्मश्रिक ब्रह्माजी के उत्पादक
143 विश्वश्रिक
जगत के स्थिष्टा सर्गः स्रिष्टी सुरूप
कर्णिकार प्रिये कनेर के फूल को पसंद करने व
146 कविह तिरकालदर्शी
शाको विशाको गोशाकः शिवो भिशगन उत्तमहः
गंगाप्रलवोद को भवः पुशकलः अस्थापति इस्तिरे
147 शाक अरथात कार्तिके के छोटे भाई शाक स्वरूप
148 विशाक इसकंद के छोटे भाई विशाक स्वरूप अत्वा विशाक नामक रिशी
149 गोशाक वेदवानि की शाकाओं का अविस्तार करने वाले
150 शिव मंगल में 151 भिशगन उत्तम भावरोग का
निवारन करने वाले वैधों ज्यानीयों में सरवस्थेश्ट
152 गंगा पलवोद कह गंगा के प्रभारूप जल को सिर्प धारन करने वाले
153 भव्य कल्यान स्वरूप
154 पुशकल
पून्टम अत्वा व्यापक
155 इस्थापति
ब्रह्मान रूपी भवन के निर्माता थवई
156 इस्थिर अचंचल अत्वा इस्थानू रूप
157 विजीतात्मा अर्थात् मन को वश्मे रखने वाले
158 विधे आत्मा शरीर,
मन और इंद्रियों से अपनी इच्छा के अनुसार काम लेने वाले
169 भूत वाहन सार्थी,
पांच भोतिक रत शरीर का संचालन करने वाले बुद्धी रूप सार्थी
160 संगण प्रमत गणों के साथ रहने वाले
161 गणकाय,
गण सरू,
162 सुकीर्ती,
उत्तम कीर्ती वाले
163 छिन संशे,
संशे को काट देने वाले
164 काम देव, अर्थात मनुश्यों द्वारा अभीलशित
समस्त कामनाओं के अधिष्ठाता परमदेव
165 काम पाल,
सकाम भक्तों की कामनाओं को पून करने वाले
166 भस्मोद धूलित विग्ग्रह,
अपने श्री अंगों में भस्म रमाने वाले
167 भस्म प्रिय,
भस्म के प्रेमी,
168 भस्म शाही, भस्म पर शैन करने वाले
169 कामी, अपने प्रिय भक्तों को चाहने वाले
170 कांतः,
परम कमनीय प्रान बल्लवर,
रूप,
171 कृतागमः,
समस्त तंत्र शास्त्रों के रचियता
समावर्तो वनीवृतान्तात्मा धर्म पुञ्जै सदाशिव
172 समावर्त,
संसार चक्र को भली भाती घुमाने वाले 173 अनीवृतात्मा,
सर्वत्र विद्धुमान होने के कारण जिनका आत्मा कहीं से भी हटा नहीं है ऐसे
174 धर्म पुञ्ज,
धर्म या पुण्य की राशी 175 सदाशिव,
निर्यंतर कल्यानकारी 176 अकलमश,
पाप रहित 177 चत्रबाहो,
चार भुजाधारी
178 दुरावास,
जिने योगी जन भी बड़ी कठनाई से अपने हिर्दे मंदिर में बसा पाते हैं ऐसे
189 दुरासद, परम दुरजय,
दुरलबो दुरलमो दुर्ग सर्वायुद्ध विशारदा
अध्यात्म योग निलयः सुतन्तु इस्तन्तु वर्धनाः
180 दुरलब,
अर्थाद भकती हीन पुर्शों को
कठिन्ता से प्राप्त होने वादे
181 दुरगम,
अर्थाद जिनके निकट पहुँचना किसी के लिए भी कठिन हैं ऐसे
182 दुरग,
पाप ताप से रक्षा करने के लिए दुरग रूप अथ्वा दुरगेय
183 सर्वा युध विशारद,
संपून अस्त्रों के प्रियोग की कलामे कुशल
184 अध्यात्म योग निलह,
अध्यात्म योग में इस्थित
185 सुतंतु, सुन्दर विष्ठ जगत रूप तंतु वाले
186 तंतु वर्धन,
जगत रूप तंतु को बढ़ाने वाले
187 शुभांग,
सुन्दर रंगो वाले
188 लोक सारंग,
लोक सार ग्राही
189 जगत के स्वामी,
190 जनारदन,
भकत जनों की आशिना के आलम्बन
191 भस्म शुधी कर,
भस्म से शुधी का संपादन करने वाले
192 मेरू,
सुमेरू परवत के सवान केंदर रूप,
193 ओजस्वी,
तेज और बल्स से संपन्य
194 शुध विग्रह, निर्मल शरीर वाला,
असाध्य सादु साधश्य,
ब्रत्ते मरकट रूप धिक,
हिरन्यरेताह पुरानों,
रिपु जीव हरो बली
195 असाध्य,
साधन भजन से दूर रहने वाले लोगों के लिए अलब्य,
196 साधु साध्य,
साधन भजन परायन सत्पुर्शों के लिए सुलब,
197 भित्य मरकट रूप धिक,
श्रीराम के सेवक वानर हन्वान का रूप धारन करने वाले,
198 हिरन्यरेताह,
अगनी सवरूप अथवा स्वण में वीरिय वाले,
199 पुरान,
पुरानों द्वारा प्रतिपादित,
200
रिपु जीव हर,
शत्रुं के प्रान हर लेने वाले,
201 बली, बल्शाली,
महा हिरदो महा गर्त,
सिद्ध विद्धार वंधित,
व्याग्र चर्मां बरो व्याली, महा भूतो महा निधी,
202 महा हिरद,
अर्थात परमाननद के महान सरोवर,
203 महा गर्त,
अर्थात महान आकाश रू,
204 शिद्ध विद्धार वंधितह,
205 व्याग्र चर्मां बर,
व्याग्र चर्म को वस्त्र के समान धारन करने वाले,
206 व्याली,
अभी नष्ट नहोने वाले महा भूत सरूप
208. महानिधी
सबके महान निवास थान
अम्रिताशो अम्रित्वपूह। पांच जन्य प्रभञ्जनः
पंच विन्शती ततत्वस्थाः पारि जाते है परावरः
209. अम्रिताशे
पर्थात जिनकी आशा कभी विफल नहो ऐसे अमोग संकल्प
210. अम्रित्वपू जिनका कलेवर कभी नष्ट नहो ऐसे नित्य विग्रहे
211. पांच जन्य पांच जन्य नामग शंख सरूप
212. प्रभञ्जन वायु सरूप
अथ्वा संघार कारी
213. पंच विश्चती ततत्वस्था
प्रकर्ती महत्तत्व बुध्धी एहंकार चक्षु
श्रोत गान रसना त्वक वाग पानी पायु
पाद उपस्त
मन शब्द सपर्श रूप रस गंध प्रत्वी जल तेज
वायु और आकाश इन चोबीस जड ततत्वों सहेत पचीसवे
ततत्व पुरुष में प्याप्त
दो सो चोहदे पारी जात याजकों की च्छा पून करने में कल्प रक्ष रूप
दो सो पंद्रः
परावरः
कारण कारे रूप
दो सो सोले हैं
सुलब
अर्थात
नित्य निरंतर
चिंतन करने वाले
एक निष्ट शद्धालू भगत को
सुगमता से प्राप्त होने वाले
दो सो सत्रा
सूरत उत्तम व्रतधारी
दो सो अठारा
शूर्ह
शोरिय संपन्य दो सो निस ब्रह्म वेद निधी ब्रह्मा
और वेद के प्रादुरभाव के स्थान दो सो बीस निधी
जगत रूपी रत्न के उत्पक्ती स्थान दो सो इकिस वर्णाश्रम गुरू वर्णों औ
वर्णी
ब्रह्मचारी दो सो तेइस शत्रु जित
अंधकार सुर आधी शत्रूं को जीतने वाले
दो सो चोबिस शत्रुतापन शत्रूं को संताप देने वाले
दो सो पच्चिस आश्रम अर्थात सब के विश्षाम इस्थान
ग्यानी अचलेश्वर,
परवतों अथोवा इसथावर पदार्थों के स्वामी
230. प्रमान भूत नित्य सिद्ध प्रमान रूप
231. दुर्गेय
कठिन्ता से जानने योग्य
232. सुपर्ण
वेद में सुन्दर पंख वाले गरुड रूप
233. वायुवाहन
अपने भैसे वायु को प्रवाहित करने वाले
234. धनुर्धर अर्थात पिनाक धारी 235. धनुर्वेद अर्थात धनुर्वेद के ग्याता
236. गुण राशी अनन्त कल्यान में गुणों की राशी 237. गुणाकर
सद गुणों की खानी 238. सत्य सत्य स्वरूप
249. सत्य पर
सत्य पर आयन
240. अधीन दीनता से रहित उधार
241. धर्मांग धर्म में विग्ग्रह वाले
242. धर्म साधन धर्म का अनुष्थान करने वाले
243. अनन्त द्रिश्टी रानन्दो धन्डो दम्यिता दमहा 244. अनन्त
द्रिश्टी अर्थात असिमित द्रिश्टी वाले 245. आनन्द परमानन्द में
246. महा माय मायावियों को भी मौहूनेवाले महा मायावि
विश्व कर्म विशारद संसार की स्चष्टी करने में कुशल।
वीत रागो विनीतात्मा तपस्वे भूत भावन
ओन्मत्तवेशः प्रचन्नो जितकामो अजीत प्रिय।
वीत राग
पून त्या विरक्त।
दो सो भावन विनीतात्मा अर्थात मन से
विनेशील अथ्वा मन को वश्मे रखने वाले।
दो सो तरेपण तपस्वी तपस्या परायन।
दो सो चोवन भूत भावन
संपून भूतों के उत्पादक एवं रख्षक।
दो सो पच्पन उन्मत वेश पागलों के समान वेश धारन करने वाले।
दो सो चपपन
प्रचन्न
माया के परदे में छिपे हुए।
दो सो सतावन जितकाम
काम विजएई।
दो सो अथ्वामन अजीत प्रिय भगवान विश्णू के प्रेमी।
दो सो उन्सट्व
कल्यान प्रिकृति अर्थात कल्यान कारी स्वभाव वाले।
दो सो तरेशट तारक उधार्ख
दो सो चोंसट धीमान
विशुद्ध बुध्धी से युप्त दो सो पैँसट प्रधान सबसे श्रीश्ट
दो सो चासट प्रभू
सर्वसमर्त दो सो सर्शत अव्यव्या अविनाशी
लोक पालो अन्तरहितात्मा कलपादी कमुलेक्षणा
वेद शास्त्रार्थ तत्व ग्यो नियमो नियताश्या
दो सो अड्शट्ष लोक पाल अर्थात समस्त लोकों की रख्षा करने वाले
दो सो नियत्तर अंतरहितात्मा
अंतरयामी आत्मा अथ्वा द्रिश्य स्वरूप वाले
दो सो सत्तर
कलपादी कलप के आदी कारण दो सो इकित्तर कमुलेक्षण कमल के समान नेत्र वाले
डो सो चोहुट्तर नियताश्रह सब के सुनिश्चित आश्यस्थान
विवश्य परब्रम्म म्रग बानार पनो अनघ
275 चंद्र,
अर्थाथ चंद्रमा रूप से आलाधकारी
276 सूर्य है, सबकी उतपत्ती के हेतु भूत सूर्य है
277 शनी है,
शैनिष्चर रूप
278 केतु, केतु नामक
ग्रह स्वरूप
289 वरांग, सुन्दर शरीर वाले
280 विद्ध्रोमच्छवी,
मूँगे कीसी लालकांती वाले
281 भक्ती वश्य,
भक्ती के द्वारा भक्त के वश्य में होने वाले
282 परब्रम्म,
परमात्मा
283 म्रग बानार पन,
म्रग रूप धारी यग्य पर बान चलाने वाले 284 अनगः,
पाप रहितू
अध्रीर द्रायाल,
कांते परमात्मा जगत गुरूह
285 अध्री,
कैलास आधी परवत स्वरू,
286 अध्राल्य, अर्थात कैलास और
मंदर आधी परवतों पर निवास करने वाले
287 कांत,
सबके प्रियतम,
288 परमात्मा, परब्रम्म परमिश्वर,
289 जगत गुरू,
समस्त संसार के गुरू,
290 सर्व कर्माल्य,
संपून कर्मों के आश्य स्थाल,
291 तुष्ट,
सदा प्रसंद,
292 मंगल्य,
मंगलकारी,
293 मंगलावृति,
मंगलकारणी शक्ती से संयुक्त,
महा तपा धीर्ग तपाः,
इस्था विष्ठा इस्था विरोध्रूः,
हैहं संवत सरो व्याप्ति,
प्रमानं परम्तपाः,
294 महा तपाः अर्थात महान तपस्वी,
295 धीर्ग तपाः अर्थात धीर्ग काल तक तप करने वाले,
296
इस्था विष्ठा
अत्यंति स्थूल, 297 इस्थि विरोध्रूः,
अती प्राचीन एवं अत्यंति स्थिर,
298
एहं संवत सर,
दिन एवं संवत सर आधी काल रूप से इस्थित
अंश काल स्वरूप,
299 व्यापति व्यापक्ता स्वरूप,
300 प्रमानम
प्रतिक्षादी
प्रमान स्वरूप,
301
परम तप,
उद्कृष्ट तपस्या स्वरूप,
संवत सर करो मंत्र प्रत्यत्याह सर्वधर्शनाह,
अजह सरविश्वरह सिधो महारेता महाबलाह,
302
संवत सर कर,
अर्थात संवत सर आधी काल विभागों के उत्पादक,
303 मंत्र प्रत्य,
वेद आधी मंत्रों से प्रतीत प्रत्यक्ष होने वाले,
304 सरवधर्शन,
सब के साक्षी, 305 अज,
अजन्मा,
306 सरविश्वर,
सब के साशक,
307 सिध, सिध्धियों के आश्रे, 308 महारेता,
सेश्ट, वीर्यवाले,
309 महाबल,
प्रमत्गणों की महती सेना से संपन्य।
योगि योग्यो महातेजाह,
सिध्धि सर्वाधेरग्रह,
310 योगि योग्य, अर्थात सुयोग्य योगि,
311 महातेजा, अर्थात महान तेज से संपन्य।
312 सिध्धि,
समस्त साधनों के फल,
सर्वाधि,
सव भूतों के आधी कारण,
अग्रह,
इंद्रियों की ग्रहिन शक्ती के अविशेह,
वसु,
सव भूतों के वास इस्थान,
वसुमना,
उदार मनवाले,
सत्य,
सत्य स्वरूप,
सर्वपाप हरो हरा,
समस्त पापों का अपरहन करने के कारण,
हर नाम से प्रसिद्ध।
सुकीरती शोभना श्रीमान वेदांगो वेद विनमुनी,
ब्राजीश्नोर भोजनं भोकता,
लोकनाथो दुराधराः।
सुकीरती शोभन,
उत्तम कीरती से सुशोभित होने वाले,
320 श्रीमान,
अर्थात,
विभूती स्वरूपा ऊमा से संपन्य,
321 वेदांग,
वेद रूप अंगो वाले,
322 वेद विनमुनी,
वेदों का विचार करने वाले, मनन्शील मुनी,
323 भ्राजीश्न,
एक रस प्रकाश स्वरूप,
324 भोजनम,
ज्यानीयों द्वारा भोगने योग्य अम्रित स्वरूप,
325 भोगता,
पुरुष रूप से उपभोग करने वाले,
326 लोकनात,
भगवान विश्वनात,
327 दुराधर,
अजितेंद्रिय,
पुरुषों द्वारा जिनकी आराधना अत्यंत कठिन है,
एसे,
328 अम्रित शाश्वत,
अर्थाद सनातन अम्रित स्वरूप,
329 शान्त,
अर्थाद शान्ती में,
330 बान हस्त पुर्तापवान,
हाथ में बान धरन करने वाले पुर्तापी वीर,
331 कमंडलूधर,
कमंडलूधरन करने वाले,
332 धनवी, पिनागधारी,
333
अवांग्यमन सगोचर,
मन और वानी के अविशे,
334 अतिन्द्रियो महामाय,
अर्थाद इंद्रियातीत एवं महामायवी,
335 सर्वावास,
सब के वासिस्थान,
336 चतुश्पत,
चारो पुर्शार्थों की सिध्धी के एक मात्र मार्ग,
337 काल योगी,
प्रले के समय सब को काल से संयुक्त करने वाले,
338 महानाद,
गंबीर शब्द करने वाले अथवा अनाहत नाद रूप,
349 महुत्सा हो महाबल,
महानुत्साः और बल से संपन्य,
340 महा बुद्धी अरथात शेष्ट बुद्धी वाले,
341 महा वीरिय,
अनंत पराक्रमी,
342 भूतचारी, भूत गणों के साथ विचरने वाले,
343 पुरंदर,
तिरपुर संघारक,
344 निशाचर, रात्री में विच्चरन करने वाले,
345 प्रेतचारी, पेतों के साथ भ्रहन करने वाले,
346 महा शक्तिर, महा धूती,
अनंत शक्ती एवं शेष्ट कान्ती से संपन्य,
347 अनिर्देश्यवपू, अर्थात
अनिर्वर्चनीय स्वरूप वाले,
348 श्रीमान ईश्वर्यवान,
350 सर्वाचार्ये मनोगती,
सब के लिए एविचार्ये मनोगती वाले,
350 बहुश्रत,
बहुज्य अथवा सर्वज्य,
351
अमहा माय,
बडी से बडी माया भी जिन पर प्रभाव नहीं डाल सकती ऐसे,
352 नियतात्मा,
मन को वश्मे रखने वाले,
353 ध्रूवो अध्रूवः,
ध्रू नित्यकारण और अध्रूव अनित्यकार्ये रूप,
354 ओजस्तेजो धूती धरः,
अर्थात् ओज,
प्रान और बल,
तेज, शोरी आदी गुन,
तथा ज्यान की दीपती को धरन करने वाले,
355 जनक,
सबके उतपादक,
356 सर्वशासन, सबके शासक,
357 नित्यप्रिय,
नित्यके प्रेमी,
358 नित्य,
नित्य,
प्रति दिन तांडव नित्य करने वाले,
369 प्रकाशात्म,
प्रकाश स्वरू, 360 प्रकाशक,
सूर्य आदी को भी प्रकाश देने वाले,
इसपष्टाक्षरो बुध्धो मंत्रह समान सारसंपल्लव,
युगाधिकरिधू गार्वतो गंभीरो व्रशवाहना,
361 इसपष्टाक्षर
अर्थात ओमकार रूप इसपष्ट अक्षर वाले,
362 बुध्ध ज्ञानवान,
363 मंत्र,
रिक,
साम और यजुरवेद के मंत्र स्वरूप,
364 समान,
सब के परती समान भाव रखने वाले, 365 सारसंपल्लव,
संसार सागर से पार होने के लिए नो का रूप,
366 युगादी क्रिधू गावर्त,
युगादी का आरंब करने वाले तथा चारो युगों को चक्र की तरहें घुमाने वाले,
367 गंभीर,
गंभीरय से युक्त,
368 वरश वाहन, नन्धी नामक वरश पर सवार होने वाले,
369 ईश्ट,
परमानन्द स्वरूप होने से सर्वप्रिय,
370 अवशिष्ट,
संपून विश्वशग्यों से रहित,
371 शिष्टेष्ट,
शिष्ट पुरुष्णों के इश्ट देव,
372 सुलब,
अनन्य चित्त से निरंतर स्मर्ण करने वाले
भखतों के लिए सुगमता से प्राप्त होने योग,
373 सार्शोधन,
सार्थत्त्व की खोज करने वाले, 374 तीर्थरूप,
तीर्थ स्वरूप,
375 तीर्थनाम,
तीर्थनामधारी अथवा जिनका नाम भवसागर से पार लगाने वाला है ऐसे,
377 तीर्थद्रिश,
तीर्थ सेवन से अपने स्वरूप का दर्शन करने
वाले अथवा गुरू क्रपा से प्रतिक्ष होने वाले,
377 तीर्थद,
चर्णों दक स्वरूप तीर्थ को देने वाले,
378 अपान निधी,
जल के निधान समुंदरूप,
389 अधिष्ठानम,
उपादान कारण रूप से सब भूतों के आश्रे अथवा जगत रूप प्रपंच के अधिष्ठान,
380 दुर्ज,
जिनको जीतना कठिन है ऐसे,
381 जैकालवित,
विजए के अवसर को समझने वाले,
382 प्रतिष्ठित,
अपनी महिमा में इस्थित,
383 प्रमानग्य,
प्रमानों के ग्याता,
384 हिरन कवच,
स्वान में कवच धारन करने वाले,
385 हरिय,
श्री हरी रूप,
विमोचन शुर्गन,
विधेशो विन्दु संश्रय,
बाल रूपो हबलो नमतो,
अविकरता गेहनो गुह,
386 विमोचन,
संसार बंधन से सदा के लिए छुडा देने वाले,
387 सुर्गन,
देव समुधाय रूप,
388 विधेश, संपून विध्याओं के स्वामी,
389 विंधु संश्रय,
विंधु रूप पणाओं के आश्य,
390 बाल रूप, बालक का रूप धारन करने वाले,
391 अब लोनमत,
बल से उनमत नहीं होने वाले,
392 अवीकर्टा,
विकार रहित, 393 गहन,
दुरबोध सरूप या अगम्य,
394 गुह,
माया से अपने स्वार्थ सरूप को छिपाए रखने वाले,
करनम कारनम करता सर्वबंद विमोचनः,
व्यवसायो व्यवस्थानः, इस्थान दो जगदा दिजः,
395 करनम, संसार की उत्पत्ती के सबसे बड़े साधन,
396 कारनम, जगत के उपादान और निमित कारन,
397 करता सब के रचियता,
398 सर्वबंधन विमोचन,
संपून बंधनों से छुडाने वाले,
399 व्यवसाय,
निश्यात्मक ज्ञान स्वरूप,
400 व्यवस्थान,
संपून जगत की व्यवस्था करने वाले,
401 इस्थानद,
ध्रूव आधी भगतों को एविचल इस्तिती प्रधान कर देने वाले,
402 जगदा दिज,
हिरन्य गर्भ रूप से जगत के आधी में प्रघट होने वाले,
गुरुदो ललितो हभेदो भावात्मात्मनी संसिथा,
वीरेश्वरो वीरभद्रो वीरासन विधिर विराटः,
403 गुरुदः,
सेश्ट वस्तु प्रधान करने वाले अथवा जिग्याशुओं को
गुरु की प्राप्ती कराने वाले,
404 ललित,
सुन्दर स्वरूप वाले, 405 अभेद, बेद रहित,
406 भावात्मात्मनी संस्थितै,
सतस्वरूप आत्मा में प्रतिष्ठित,
407 विरिश्वर,
वीरशिरोमनी,
408 वीरभद्र, वीरभद्र नामक गणाध्यक्ष,
409 वीरासन विधी, वीरासन से बैठने वाले,
410 विराट,
अकिल ब्रमाण्ड सरूप,
वीर चूडा मनिर्वेत्ता,
चिदानन्दो नदी धरह,
411 वीर चूडा मनी,
वीरोमे स्विष्ट,
412 वेद्धा, विध्वान, 413 चिदानन्द,
विज्ञानन्द सरूप,
414 नदी धर, मस्तक पर गंगा जी को धरन करने वाले,
415 आज्या धार,
आज्या का पालन करने वाले,
416 तृशूली,
तृशूल धारी,
417 सिपी विष्ट,
तेजो मयी, किरनों से व्याप्त,
418 शिवाले,
भगवति शिवा के आश्रे,
बाले खिल्यो महा चापस्ति,
ग्यामान्शूर्बधिर्खगः,
अभीरामहा सुरण्यः,
सुब्रहान्यः सुधापति,
419 बाल खिल्य,
बाल खिल्य रिशी रूप,
420 महा चाप, महान धनुधर,
421 तिग्वान्शु, सूर्य रूप,
422 बधिर,
लोकिक विष्यों की चर्चा ने करने वाले,
423 खग, आकाश्चारी,
424 अभीराम, परम सुन्दर,
425 सुशर्ण,
सबके लिए सुन्दर आश्य रूप,
426 सुब्रहान्य,
ब्रह्मनों के परम हितेशी,
427 सुधापति, अमरित कलश के रक्षक,
मघवान्य कोशिको,
गोमान विरामाह सर्व साधन,
ललाटाक्षो विश्वधेह सारे संसार चक्र ब्रती,
428 मघवान कोशिक,
कोशिक वंशिय इंद्र स्वरूप,
429 गोमान प्रकाश किर्णों से युक्त,
430 विराम,
समस्त प्राणियों के लै के स्थान,
431 सर्व साधन,
समस्त कामनाओं को सिद्ध करने वाले,
432 ललाटाक्ष,
ललाट में तीसरा नित्र धारन करने वाले,
433 विश्वधेह,
जगत स्वरूप, 434 सार,
सार ततत्व रूप,
435 संसार चक्र ब्रत,
संसार चक्र को धारन करने वाले,
436 अमोग दंड,
जिनका दंड कभी विर्त नहीं जाता, ऐसे,
437 मध्यस्त, उधासीन,
438 हिरन्य,
स्वर्ण अथ्वा तेज्वरूप,
449 ब्रह्म वर्च्षी,
ब्रह्म तेज्च से संपन्य,
440 परमार्थ,
मोक्ष रूप,
उत्कृष्ट अर्थ की प्राप्ति करने वाले,
रुचिल विरंचिह स्वर्व, बंधुर वाचस पतिल हरपती,
444 रुचि,
दीपती रूप,
445 विरंचि,
ब्रह्म स्वरूप, 446 स्वर्वंधु,
स्वरलोक में बंधु के समान सुखद,
447 वाचस पति,
वाणी के अधिपती, 448 अहरपती,
दिन के स्वामी सूर्य रूप,
449 रवी,
समस्त रसों का शोशन करने वाले,
450 विरोचन,
विविद प्रकार से प्रकाश फैलाने वाले,
451 इसकंध,
स्वामी कार्थि के रूप,
452 शास्ता विवश्वतो,
यम,
सब पर शासन करने वाले, सूर्य कुमार यम,
युगतीरुन अत्तकीरतिष्च सानुरागः परंजय,
केलासाधिपतीकांतः सवितारविलोचनः,
453 युगतीरुन अत्तकीरति,
अश्टांग योग सवरूप तथा उर्ध लोक में फैली हुई कीरती से युगत,
454 सानुराग,
भक्त जनों पर प्रेम रखने वाले, 445 परंजय,
दूसरों पर विजय पाने वाले,
456 केलासाधिपती,
केलास के स्वामी,
457 कांतः,
कमनी अथुआ कांतिमान,
और 458 सवितार,
समस्त जगत को उत्पन्य करने वाले,
460 विद्वत्पम,
विद्वानों में सरशेष्ट, परंविद्वान,
461 वीत भय,
सब प्रकार के भय से रहित,
462 विश्व भरता,
जगत का भरन पोशन करने वाले,
463 अनिवारित,
जिनहें कोई रोक नहीं सकता ऐसे,
464 नित्य,
सत्यसुरूप, 465 नियत कल्यान,
सुनिश्चित रूप से कल्यान कारी,
466 पुण्य शवन कीरतन,
जिनके नाम,
गुन,
महिमा और रूप के शवन तथा कीरतन परंपावन हैं ऐसे,
466 दूर श्रवा,
सर्वव्यापी होने के कारण दूर की बात भी सुन लेने वाले,
468 विश्वसह, भक्त जनों के सब अपराधों को
कृपा पूरुवक सेह लेने वाले,
469 धेव, ध्यान करने योग, 472 स्वपन,
नाशन,
चिंतन करने मातर से बुरे स्वपनों का नाश करने वाले,
471 उत्तारण,
संसार सागर से पार उतारने वाले, 472 दुशकृतिह,
पापों का नाश करने वाले,
473 विघ्जे,
जानने के योग, 474 दुस्सह,
जिनके वेग को सेहन करना दूसरों के लिए अठ्यंत कठिन हैं,
ऐसे,
476 अनादि,
जिनका कोई आदि नहीं हैं,
ऐसे सब के कारण सरूब, 477 भूर भू लक्ष्मी,
भूर लोक और भूवर लोक की शोभा,
478 किरीठ,
मुकुडधारी, 489 तिरिद शाधिप,
देवताओं के स्वामी,
480 विश्व गोपता,
जगत के रक्षक,
482 विश्व करता,
संसार की सच्चि करने वाले,
482 सुवीर,
स्वेष्ट वीर,
483 रुचिरांगद,
सुन्दर वाजिव बंद धारन करने वाले,
484 जनन,
तानी मात्र को जनन देने वाले,
485 जन जनमादी,
जन्म लेने वालों के जन्म के मूल कारण,
486 प्रीति मान, अर्थाद प्रसन,
487 नीति मान, सदा नीति परायन, 488 धवः,
सब के स्वामी,
489 वशिष्ठ,
मन और इंद्रियों को अत्यंत वश्ष में रखने वाले अथ्वा वशिष्ठ रिशी रूप,
490 कश्षप,
द्रिष्टा अथ्वा कश्षप मुनी रूप,
491 भानु,
प्रकाश्मान अथ्वा सूर्य रूप,
492 भीम, दुष्टों को भै देने वाले,
493 भीम पराक्रम,
अतिशे भै दायक पराक्रम से युप्त,
494 प्रणव,
अर्थात ओमकार स्वरूप,
495 सत्पताचार,
अर्थात सत्पुर्शों के मार्ग पर चलने वाले,
496 बहाकोश,
अन्नमयादिक पाँचो कोशों को अपने भीतर धारन करने के कारण महाकोश रूप,
497 महाधन,
अपरमित,
एश्वर्यवाले अथुआ कुबेर को भी धन देने के कारण महाधनवान,
498 जनमाधिप,
जन्म, उत्पाधन रूपी कारियों के अध्यक्ष ब्रह्मा,
499 महाधेव,
सर्वतक्रिष्ट देवता,
500 सकलागमपारग,
समस्त शास्त्रों के पारंगत विद्वान,
ततत्वं ततत्वविदेकात्मः,
विभूर्विश्वविभूशनः,
रिशेर्ब्राह्मणईश्वर्यः, जन्मम्रत्योजरातिगः,
501 ततत्वं अर्थात् यथार्थ ततत्वरूप, 502
ततत्वित् अर्थात् यथार्थ ततत्व को पून तया जानने वाले,
503 इकात्म,
अधित्य आत्मरूप,
504 विभू,
सर्वत्रव्यापक,
505 विश्वभूशन,
संपून जगत को उत्तम गुणों से विभूशित करने वाले,
506 रिशी, मंत्रदिष्टा,
507 ब्रह्मन,
ब्रह्मवेत्ता, 508 एश्वरिय जन्म मृत्यू जरातिग,
अर्थात् एश्वरिय जन्म मृत्यू और जरासे अतीत,
509
पंच यज्य समुत्पत्ति,
अर्थात् पंच महा यज्यों की उत्पत्ति के हेतु,
510 विश्वेश,
अर्थात् विश्वनात,
511 विमलोदे,
विमल अद्भुदे की प्राप्ती करने वाले धर्मरूप,
512 आत्मयोणी,
स्वैंभू,
513 अनाधंत,
आधी अंत से रहित,
512 वच्चल,
भक्तों के परती वाच्चल,
सिनहे से युग्द,
515 भक्त लोक ध्रिक,
भक्त जनों के आश्रे,
गायत्त्री वल्लभ,
प्राण्चु विश्वावासः प्रभाकरः,
शिशुर्गिरीरतः सम्राथ,
सुशेना सुर्शत्तुः,
516 गायत्त्री वल्लभ,
अरथाथ गायत्त्री मंत्र के प्रेमी,
517 प्राण्चु, अरथाथ उंचे शरीर वाले,
518 विश्वावास,
सम्पून जगत के आवास इस्थान,
519 प्रभाकर, सूर्यरूप, 520 शिशु, बालकरूप,
521 गिरीरत,
केलाश परवत पर रमन करने वाले,
522 सम्राथ,
देविश्वनों के विश्वार,
523 सुशेन,
सुर्शत्तुः हा,
प्रमत्ः गणों की सुन्दर सेना से युक्त
तथा देवशत्रों का संघार करने वाले,
524 अमोग,
अरिश्टनेमी,
अरथात अमोग संकल्प करने वाले महरशी कश्चवरूप,
525 कुमुद,
अरथात भूतल को आलहाद परदान करने वाले चंद्रमारूप,
526 विगत ज्वर,
अरथात चुन्ता रहित,
527 सुयम जोतिस, तनो जोति,
अपने ही प्रकास से प्रकाशित होने वाले सूख्षम जोति स्वरूप,
528 आत्म जोति,
अपने स्वरूप भूत ज्ञान की प्रभासे प्रकाशित,
529 अचंचल,
चंचलता से रहित।
पिंगलः कपिल्ष्मश्रूर् भालनेत्रस्त्रईतनों
ज्ञानिस्कंधो महानीतिर्विश्वोत्पत्तेरुपल्लवः,
530 पिंगल, अर्थाथ पिंगलः वर्ण वाले,
531 कपिल्ष्मश्रूर्व,
अर्थाथ कपिलः वर्ण की दाढी मूच रखने
वाले दुरुआसा मुनी के रूप में अवतीर्ण,
532 भालनेत्र,
ललाथ में तृत्यनेत्र धारन करने वाले,
533 त्रैतनु,
तीनो लोक या तीनो वेद जिनके सरूप
हैं ऐसे,
534 ज्ञानिस्कंधो महानीत,
ज्ञान प्रद और शेष्ट नीती वाले,
535 विश्वोत्तपत्ती,
जगत के उतपादक,
536 उपल्लव,
संघारकारी,
537 भगो विवस्वानादित्य,
अर्थात अदीती नन्न,
भग एवं विवस्वान,
538 योगपार, अर्थात योग विध्धा में पारंगत,
549 दिवस्पती,
स्वर्ग लोक के स्वामी,
540 कल्यान गुण नामा,
कल्यान कारी गुण और नाम वाले,
441 पापः,
पाप नाशक,
442 पुण्य दर्शन,
पुण्य जनक दर्शन वाले,
अथवा पुण्य से ही जिनका दर्शन होता है, ऐसे,
उदार कीर्ती रुधोगी, सधोगी सधसनमयह,
नक्षत्र बाली लोकेशह, स्वाधिष्ठान पदाश्रह,
543 उदार कीर्ती,
अरथाथ उठ्तम कीर्ती वाले,
544 उधोगी,
अरथाथ उध्योगशील,
545 सधोगी, शेष्ठ योगी,
546 सधसनमय,
सधसत्सरूप,
547 नक्षत्र माली,
नक्षत्रों की माला से अलंकृत आकाशरू,
548 नाकेश,
स्वर्ग के स्वामी,
549 स्वाधिष्ठान पदाश्रह,
स्वाधिष्ठान चक्र के आश्र,
पवित्रह पाप हारीच,
मनी पूरो न भोगतिह,
यत्यपुंडरी कमासीन, शक्रशांतो व्रशाकपिह,
पवित्रह
पाप हारी, अर्थात नित्य शुद्ध एवं पाप नाशक,
551 मनी पूर,
अर्थात मनी पूर नामक चक्र स्वरू,
552 न भोगतिह, आकाशचारी, 553 यत्यपुंडरी कमासीन,
हिर्दे कमल में इस्थित,
554 शक्र,
इंद्ररूप,
555 शांत,
शांत स्वरूप,
556 वृशाकपिह, हरी हर,
557 ऊश्ण,
अर्थात हलाहल विशकी गर्मी से ऊश्णता युग,
558 ग्रहपती,
अर्थात समस्त ब्रह्मान रूपी ग्रह के स्वामी,
569 कृष्ण, सच्चदानन्द स्वरूप, 560 समर्थ,
सामर्थ शाली, 561 अनर्थ नाशन,
अनर्थ का नाश करने वाले,
562 अधर्म शत्रु,
अधर्म नाशक,
563 अग्गेय,
बुद्धी की पहुंच से परे अथ्वा जानने में ने आने वाले,
564 पुरूखुत, पुरूशुत,
बहुत से नामों द्वारा पुकारे और सुने जाने वाले,
ब्रह्म गर्भो व्रहध गर्भो धर्म धेनोर धनागमाः,
जगत्वी तैशी सुगतः कुमार कुशलागमाः,
565 ब्रह्म गर्भ अरथात ब्रह्मा जिनके गर्भस्त शिशु के समान हैं,
ऐसे,
566 व्रध गर्भ
विश्व ब्रह्मान्ड प्रलेकाल में जिनके गर्भ में रहता है,
ऐसे,
568 धर्म धेनु,
धर्म रूपी विशब को उत्पन्य करने के लिए धेनु स्वरूप,
568 धनागम,
धन की प्राप्ती कराने वाले,
572 जगत द्वितयशी,
समस्त संसार का हिद चाहने वाले,
570 सुगत,
उत्तम ज्ञान से संपन्य अथ्वा बुद्ध स्वरूप,
571 कुमार, कार्थि के रूप,
572 कुषलागम,
कल्यान दाता,
573
हिरन्य वर्गो,
जोतिश्मान,
अर्थात,
स्वर्ण के समान गोर वर्ण वाले,
तथा तेजश्वी,
574 नाना भूत रत,
अर्थात,
नाना परकार के भूतों के साथ कीड़ा करने वाले,
575 ध्वनी,
नाज्वरूप,
576 अराग,
आसक्ति शुन्य,
577 नेनाध्यक्ष,
नेत्रों में
द्रश्टा रूप से विध्वान,
578 विश्वामित्र,
संपून जगत के परती मेठ्री भावना रखने वाले मुनी स्वरूप,
589 धनिश्वर,
धन के स्वामी,
कुबेर,
580 ब्रह्म जोति, अरथात जोति स्वरूप ब्रह्म,
581 वसूधामा,
अरथात स्वर्ण और रत्नों के तेज से प्रकाशी तथ्वा वसूधा स्वरूप,
582 बहा जोतिर्णुत्तम,
सूर्य आधी जोतियों के प्रकाशक सर्वुत्तम महा जोति स्वरूप,
583 माता मह,
मात्रिकाओं के जन्मदाता होने के कारण माता मह,
584 माता रिश्वा नबस्वान,
आकाश्ट में विचरने वाले वायुदेव,
585 नाग हार ध्रिक,
सर्प में हार धारन करने वाले,
पुलस्तः पुल हो अगस्त्यो जातू करनः पराशरः,
586 पुलस्त,
अरथात पुलस्त नामक मुनी,
587 पुलह,
अरथात पुलह नामक रिशी,
588 अगस्त,
कुम्ब जन्मा अगस्त रिशी,
589 जातू करन्य,
इसी नाम से प्रसिद्ध मुनी,
590 पराशर,
शक्ती के पुत्र तथा
व्यास जी के पिता, मुनीवर पराशर,
591 निरावरन, निर्वार,
आवरन शुन्य तथा अवरोध रहित,
592 वेरंच,
ब्रह्मा जी के पुत्र नील लोहित रुद्र,
593 विश्टरश्रवा,
विश्ट्रित यश्वाले विश्णू स्वरूप,
594 आत्मभूः,
अर्थात् स्वेंभूः ब्रह्मा,
595 अनिरुध,
अर्थात् अकुंठित गतिवाले,
596 अत्री,
अत्री नामक रिशी अथुआ तिर्गुणातीत,
597 घ्यान मूर्ती, घ्यान स्वरूप,
598 महायशा, महायशश्री, 599 लोक वीराग्गरणी,
विश्व विख्यात वीरों में अगरगण्य,
600 वीर शूर्वीर,
601 चंड प्रले के समय अत्यंत क्रोध करने वाले,
602 सत्य प्राकरम, सच्चे प्राकरमी,
व्याला कल्प महा कल्पः,
कल्प व्रक्ष कलाधरः,
603 व्याला कल्प,
अर्थाद सर्पों के आभूशन से शंगार करने वाले,
604 महा कल्प,
महा कल्प संग्यक,
काल स्रूप वाले,
605 कल्प व्यक्ष,
शर्णागतों की इच्छा पूर्ण करने के लिए कल्प व्यक्ष के समान उदार,
606 कलाधर,
चंद्र कलाधारी, 607 अलंकरिशनु,
अलंकार धारन करने या कराने वाले,
608 अचल,
विचलित नहीं होने वाले,
609 रोचिषनु, प्रकाश्मान,
610 विक्रमुन्नत, प्राक्रम में बढ़े चड़े,
आयूह शब्द पतिरवेगी,
पल्लवनहाँ शिखे सारती,
असंशिष्टो अथीथी,
शक्रप्रमाथी पादपासनहा,
611 आयूँ शब्द पति,
अर्थाद आयू तथा वानी के स्वामी, 612 वेगी पल्लव,
अर्थाद वेगशाली तथा कूदने या तैरने वाले,
613 शिखी सारती, अगनी रूप साहयक वाले,
614 असंशिष्ट,
निरलेप,
615 अतीथी,
प्रेमी भक्तों के घर पर अतीथी की भाती
उपस्तित हो उनका सतकार ग्रहन करने वाले,
616 शक्रप्रमाथी,
इंद्र का मान मरदन करने वाले,
617 पादपासन,
व्रक्षों के नीचे आसन लगाने वाले,
वसूश्रवाहव्यवाह प्रतप्तो विश्वभोजनः,
जप्यो जरा दिश्मनो लोहितात्मा तनूनपात्,
618 वसुश्रवाह,
अर्थात यश्रूपी धन से संपन्य,
619 हव्यवाह, अर्थात अगनी स्वरूप,
620 प्रतप्तो,
सूर्य रूप से प्रचंड ताप देने वाले,
621 विश्वभोजन,
प्रलेकाल में विश्वब्रह्मान्ड को अपना ग्रास बना लेने वाले,
622 जप्पे,
जपने योगनाम वाले,
623 जरादि शमन,
बुढ़ापा आधी दोशों का निवारन करने वाले,
624 लोहित आत्मा,
तनून्पात्,
लोहित वर्ण वाले, अगनी रूप,
625 वरदश्व,
अर्थात विशाल अश्व वाले,
626 नभो योणी,
अर्थात आकाश की उत्पत्ती के स्थान,
627 सुपर्तीक,
सुन्दर शरीर वाले,
628 तमिस्त्रह,
अज्ञानन्द कार नाशक,
629 निदागहस्तपन,
तपने वाले ग्रीश्म रूप, 630 मेग,
बातलों से अपलक्षित वर्शा रूप,
631 स्वक्षह, सुन्दर नेत्रों वाले,
632 परपुरंज,
तिरपुर रूप, शत्रुनगरी पर विजए पाने वाले,
सुखानिलह सुन्निष्पन्नह,
सुर्भीशिशिरात्मकः,
वसंतो माधवो ग्रीश्मो,
नबस्यो बीजवाहन,
633 सुखानिल,
अर्थाद सुखदायक वायु को प्रगट करने वाले,
शरतकाल रूप,
634 सुन्निष्पन्न,
अर्थाद जिसमें अन्य का सुन्दर रूप से परिपाक हुता है,
वै हेमन्तकाल रूप,
635 सुर्भीशिशिरात्मकः,
सुगंधित मलियानिल से युक्त शिशिर रितु रूप,
636 वसंतो माधवा,
चैत्र वैसाख,
इन दो मासों से युक्त वसंत रूप,
637 ग्रीश्म,
ग्रीश्म रितु रूप,
638 नवस्य,
भाद्र पद्र मास रूप,
649 बीजवाहन,
धान आधी के बीजों की प्राप्ती कराने वाले शरतकाल,
अंगिरा गुरूरात्रेयो विमलो विश्ववाहन,
पावनासुमतिरेविद्वान,
इस्त्रेविद्वपरवाहन,
640 अंगिरा गुरूरात्रेयो विश्ववाहन,
अर्थात अंगिरा नामक रिशी तथा उनके पुत्र देव गुरूरात्रेयो ब्रहस्पती,
641 आत्रेय, अर्थात आत्री कुमार तुर्वासा,
642 विमल,
निर्मल,
643 विश्ववाहन,
संपून जगत का निर्वाह करने वाले,
648 मनो बुध्धीर अहंकार,
अर्थात मन बुध्धी और एहंकार स्वरूप,
649 छेत्रग्य,
अर्थात आत्मा,
650 छेत्रपालक,
शरीरूपीक शेत्र का पालन करने वाले परमात्मा,
651 जमदगनी,
जमदगनी नामक रिशी रूप,
652 बलनिधी,
अनन्त बलके सागर,
653 विगाल,
अपनी जटा से गंगाजी के जल को तपकाने वाले,
654 विश्व गालव,
विश्व विख्यात गालव मनी अथवा परले काल में
कालागनी सरूप से जगत को निगल जाने वाले,
अधरो अनुत्तरो यज्यः,
शेष्ठो निहश्रेयस्प्रदः,
शैलो गगन कुन्दाभो दानवारी रहिंदमः,
655
अगोर अरथात सोम्मे रूप वाले,
656 अनुत्तर
अरथात सरवश्रेष्ट,
657 यज्यश्रेष्ट,
श्रेष्ट यज्य रूप,
658 निहश्रेयस्पदः कल्यान दाता,
669 शैल,
शिला में लिंग रूप,
660 गगन कुन्दाभ,
आकाश कुन्द,
चंद्रमा के समान गोरकांती वाले, 661 दानवारी,
दानवशत्रु,
662 अरिंदम,
शत्रुवों का दमन करने वाले,
मुरजनी जनकश्य चारूर्नीह,
शल्यो लोक शल्यध्रिकः,
चतुर वेदाश्य चतुर भावाश्य चतुर अश्य चतुर प्रिय,
663 रजनी जनकश्य चारूर्नीह,
अरिंदम,
चंद्र,
निशाकर रूर्नीह,
664 निह शल्य,
अरिंदम,
निशकंटक,
665 लोक शल्यध्रिकः,
शर्ना अगत जनों के शोक शल्य को निकाल कर स्वें धारन करने वाले,
666 चतुर वेद,
चारो वेदों के द्वारा जानने योग,
666 चतुर भाव,
चारो
पुर्शार्थों की प्राप्ती करने वाले,
668
चतुरश्य चतुर प्रिय,
चतुर एवं चतुर पुर्शों के प्रिय,
आमनायोऽथ समामनायस्तीर्थ देवशिवाल्यः,
बहूरूपो महारूपः सर्वरूपश्चराचरः,
669 आमनाय अरथात वेद स्वरूप,
670 समामनाय अरथात अक्षर समान्न नाय शिव सूतरूप,
671 तीर्थ देवशिवाल्य,
तीर्थों के देवता और शिवाल्यरूप,
672 बहूरूप, अनेक रूपवाले,
673 महारूप,
विराट रूपधारी,
674 सर्वरूपश्चराचर,
चर और अचर संपून रूपवाले,
न्याय निर्माय को न्याय,
न्याय गम्यो निरंजनः,
सहेस्त्र मूर्धा देविंद्रः,
सार्वशास्त्र प्रभंजनः,
675 न्याय निर्माय को न्यायी,
अरथात न्याय करता तथा न्याय शील,
676 न्याय गम्य,
अरथात न्юयूक्त आच्रंसे प्राप्तו�Jaाने योग,
677 निरंजन, निर्मल,
678 सहेस्त्र मूर्धा, सेहस्त्र सिरवाले,
श्यसो उनासी देविंद्र देवुताओं के स्वामी
श्यसो असी सर्वश्यस्त्र प्रभजन
विपक्षी युध्धाओं के संपून श्यस्त्रों को नष्ट कर देने वाले
मुंडो विरूपो विक्रान्तो
धन्दी दान्तो गुनो उत्तमाहा
गिंगलाक्षो जनाद्यकशो नीले ग्रिवो निरामय छ
681 मुंड,
अरथात
मुंडए हुए सिर्वाले सन्यासी
682 विरूप,
अरथात विविद्रूप वाले
683 विक्रान्त, विक्रंशील
684 दंडी धारी
685 दांत मन और इंद्रियों का दमन करने वाले
686 गुनोत्तम, गुनों में सबसे शेष्ट
687 पिंगलाक्ष, पिंगल नित्र वाले
688 जनाद्यक्ष,
जीव मातके साक्शी
689 नील ग्रीव, नील कंठ
श्यसो नभए निरामे निरोग
सहस्त्रभाहु सर्वेशः
शरन्यः सर्वलोक धिक
पदमासनः परम्जोतिः
पारंपरियः फल्प्रदाः
श्यस्व इक्यानमे शहस्त्रभाहु
अर्थात शहस्त्रो भुजाओं से युक्त
एकशनु शुदिखी,
खुळ कुम, हम
पद्मगर्भो महागर्भो विश्वगर्भो विचक्षणः
परावरग्यो वर्दो वरिण्यस्चे महास्वनः
पद्मगर्भ अपनी नाभी से कमल को प्रकट करने वाले विश्णू रूप
महागर्भ विराट ब्राह्मन को गर्भ में धारन करने के कारण महान गर्भ वाले
विश्वगर्भ संपून जगत को अपने उदर में धारन करने वाले
देवासुर गुरूर देवो
706. देवासुर गुरूर देवः
अर्थात देवताओं तथा असुरों के गुरूर देव एवं आराध्य
707. देवासुर नमस्करत
देवताओं तथा असुरों से वनदित
708. देवासुर महा मि�estर धेवता तथा असुर दोनों के बड़े मित्र
709. देवासुर महेश्वरह Devatasur Maheshwarah
देवताओं और असुरों के महान ईश्वर
देवा सुरेश्वरो दिव्यो देवा सुर महाश्रयः
देव देव मयो होन्चिन्तयो देव देवात्मसंभवः
710. देवा सुरेश्वर
अर्थात देवताओं और असुरों के शासक
711. दिव्य अर्थात अलोकिक स्वरूप वाले 712. देवा सुर महाश्रयः
देवताओं और असुरों के महान आश्रय 713. देव देव
में देवताओं के लिए भी देवतारूप 714. अचिन्त्य
चित्त की सीमा से परे विध्धमान
715. देव देवात्म संभवा
देवाधि देव ब्रह्माजी से रुद्र रूप में उत्पन
सधो निर्सुरव्याग्रो
देव सिंग्वो दिवाकरः विभुधाग्रह चर्शेष्टः सर्वधेव उत्तम उत्तमः
716. सधोनी अर्थात
सत्पदार्थों की उत्पत्ती के हेतु 717. असुर व्याग्र
अर्थात असुरों का विनाश करने के लिए व्याग्र रूप 718. देव
सिंग्वो देवताओं में शेष्ट 719. दिवाकर
सूर्य रूप 720. विभुधाग्रह चर्शेष्ट
देवताओं के नायकों में सर्वशेष्ट 721. सर्वधेवत्तम उत्तमः
सम्पून शेष्ट देवताओं के भी शिरोमणी
शिव ज्ञान रतः श्रीमान शिखी श्री परवत प्रिय वज्ञः हस्तः
722. शिव ज्ञान रतः अर्थात कल्यान में शिव ततत्व के विचार में तत्पर
723. श्रीमान अर्थात अनीमा अधी विभुध्यों से संपन्य
724. शिखी श्री परवत प्रिय कुमार कार्ति के के
निवाज भूत श्री शैल नामक परवत से प्रेम करने वाले
725. वज्ञान हस्तः वज्ञान धारी इंदरूप 726. सिद्ध खडग शत्रों
को मार गिनाने में जिनकी तलवार कभी असपल नहीं होती ऐसे
727. नरसिंग निपातन
शर्भ रूप से नरसिंग को धराशाही करने वाले
ब्रह्मचारी लोकचारी धर्मचारी धनाधिपः
नन्धी नन्धीश्वर अनन्तो नग्नवरत धरः शुची
728 ब्रह्मचारी अर्थात भगवती उमा के प्रेम की
परिक्षा लेने के लिए ब्रह्मचारी रूप से प्रकट
729 लोकचारी अर्थात समस्त लोकों में विचरने वाले
730 धर्मचारी धर्म का आच्रन करने वाले
731 धनाधिपः धन के अधिपती कुबेर
732 नन्धी नन्धी नाम गन 733 नन्धीश्वर
इसी नाम के प्रिसिद्ध वर्षब 734 अनन्त
अन्तर रहित 735 नगन व्रत धर
दिगंबर रहने का व्रत धारन करने वाले 736 शुची
नित्य शुद्ध
737 लिंग अध्यक्ष आर्थाति लिंग देह के
द्रिष्चा 738 लिंग अध्यक्ष अर्थाति देव Dharma,
celebrations बदे के अर्थाति वर्षब
अर्थात लिंग देह के द्रिष्टा
738 सुराध्यक्ष अर्थात देवताओं के अधिपती
749 योगाध्यक्ष योगेश्वर
740 युगाव युग के निर्वाहक
741 स्वैधर्मा आत्मविचार रूप धर्म में इस्थित अत्वा स्वैधर्म परायन
742 स्वर्गत्ह स्वर्गलोक में इस्थित 743 स्वर्गस्वरह
स्वर्गलोक में जिनके यश्व का गान किया जाता है ऐसे
744 स्वर्व में स्वणः
साथ परकार के स्वरों से युक्त धनिवाले
745 बानाध्यक्ष अर्थाद बानासुर के स्वामी अत्वा
बानलिंग नर्वदेश्वरग में अधिदेवता रूप से इस्थित
746 बीज करता बीज के उत्पादक 747 धर्मक्रिद्धर्मसंभाव
धर्म के पालक और उत्पादक
748 तंब माया में रूपधारी
749 अलोब लोब रहित 750 अर्थ विच्छंभू सब
के प्रियोजन को जानने वाले कल्यानिकेतन शिव
751 सर्वभूतमहिश्वरः सम्पून प्राणियों के परमिश्वर
शम्शान निलिय स्त्रक्ष सेतूर प्रतिमाकति
लोकोत्तर स्फुता लोकस्त्रयंब को नाग भूशन
752 शम्शान निलेः अर्थाथ शम्शान वासी
753 त्रियक्ष अर्थाथ त्रिनेत्रधारी
754 सेतू धर्ममर्यादा के पालक 755 ए प्रतिमाकति अनुपम रूप वाले
756 लोकोत्तर स्फुताक लोक अलोकिक एवं सुष्पश्ट प्रकाश से युक्त
757 त्रियंबक त्रिनेत्रधारी अथुआ त्रियंबक नामक जोतिरलिंग
758 नाग भूशन नाग हार से विभूशित
अन्धकारीर मक्ख द्वेशी विश्णू कंधर पातनः
हीन दोशो अक्षेह गुणों दक्षारी ही पूशदं तभित
769 अन्धकारी अर्थात अंधकासूर का व्वद करने वाले
760 मक्ख द्वेशी अर्थात दक्ष के यग्य का विध्वन्श करने वाले
761 विश्णू कंधर पातन
यग्य में विश्णू का गला काटने वाले
धूर्जटीही खंडपर्शुहु सकलो निष्कलोलनग्या
766
धूर्जटी अर्थात जटा के भार से विभूशित
766 खंडपर्शु अर्थात खंडितपर्शुवाले
768 सकलो निष्कल साकार एवं निराकार परमात्मा 779 अनग
पाप के सपर्श से शून 770 अकाल काल के प्रभाव से रहित
771 सकलाधार सब के आधार 772 पांडुराब श्वेत कान्तिवाले
763 म्रदो नट सुखदायक एवं तांडव नित्यकारी
775 पूर्यिता अर्थात भगतों की अभिलाशा पूर्ण
करने वाले 776 पूर्यिता पूर्ण करने वाले
अर्थात सर्वव्यापी परब्रम्परमार्तमा
775 पूर्यिता
अर्थात भगतों की अभिलाशा पूर्ण करने वाले
776 पुण्यह परमपवित्र 777 सुकुमार सुन्दर कुमार
हैं जिनके ऐसे 778 सुलोचन सुन्दर नेत्रवाले
789 साम गे प्रिय साम गान के प्रेमी 780 अक्रूर
क्रूर्ता रहित 781 पुण्य कीर्ती पवित्र
कीर्ती वाले 782 अनामय रोग शोक से रहित
783 मनोजव
मन के समान वेगशाली
784 तीर्थकर अरथात तीर्थों के निर्माता
785 जटिल जटाधारी 786 जीवितेश्वर सबके प्रानेश्वर
787 विनितांत कर
प्रलेकाल में सबके जीवन का अंत करने वाले
788 नित्य सनातन 789 वसुरेता
स्वान में वीरिय वाले
790 वसुप्रद धन्दाता
791 सद्गती अरथात सत्वपुर्शों के आश्रे
792 सत्कृती अरथात शुब कर्म करने वाले 793 सिद्धी सिद्ध
स्वरूप 794 सज्जाती सत्पुर्शों के जन्मदाता 795 खलकंटक
दुष्टों के लिए कंटक रूप
796 कलाधार कलाधारी
797 महाकाल भूत महाकाल नामक जोतिर लिंग स्वरूप अथवा काल
के भी काल हुने से महाकाल 798 सत्य परायन सत्य निष्ट
799 लोक लावन्य करता सब लोगों को सोंद्रिय परदान करने वाले
800 लोक उत्तर सुखाले
लोक उत्तर सुख के आश्रे 801 चंद्र संजीवन शास्ता सोमनात
रूप से चंद्रमा को जीवन परदान करने वाले सर्वशासक्स शिव
802 लोक गुड समस्त संसार में अव्यक्त रूप से व्यापक 803 महादिप महिश्वर
लोक बंधोर लोक नाथः कृतग्यः कीर्ति भूशनः
अन्पायो अक्षरः कान्तः सर्वशास्त्र भृताम्वराः
804 लोक बंधोर लोक
नाथः
अर्थात् सम्पून लोकों के बंधु एमं रक्षक
805 कृतग्यः उपकार को मानने वाले
806 कीर्ति भूशन उत्तम यश्च से विभूशित
807
अन्पायो अक्षरः विनाश रहित अविनाशी
808 कान्तः प्रजापति दक्ष का अन्त करने वाले 809 सर्वशास्त्र भृताम्वराः
सम्पून शस्त धारियों में स्रेष्ट
तेजो मयो धूती धरो
लोका नाम ग्रहेनी रनू सुची स्मिताः प्रसन्नात्मा दुर्जेयो दूर्ती क्रमः
810 तेजो मयो धूती धर
अर्थात तेजस्वि और कांति मान
811 लोक नाम ग्रही
अर्थात संपून जगत के लिए अगर गण्य देवता अथ्वा जगत को आगे बढ़ाने वाले
812 अनू अत्यंत शूक्ष्म 813 सुची स्मिताः पवित्र मुस्कान वाले
814 प्रसन्नात्मा हर्ष बरे हिर्देवाले
815 दुर्जेयो जिन पर विजय पाना अत्यंत
कथिन है ऐसे 816 दुर्वती क्रम दुर्लग्य
817 जोतिरमै,
तेजोमै 818 जगनात,
अर्धात विश्वनात
819 निराकार,
आकार रहित परमात्मा 820 जलिश्वर,
जल के स्वामी 821 तुम्ब वीन,
तुम्बी की वीना बजाने वाले
822 महाकोप,
संघार के समय महान क्रोध करने वाले 823 विशोक,
शोक रहित 824 शोक नाशन,
शोक का नाश करने वाले
825 त्री लोकप,
तीनों लोकों का पालन करने वाले
826 त्री लोकेश, अर्थात तिरभुहन के स्वामी
827 सर्वशुधी,
सबके शुधी करने वाले
828 अधोक शज,
इंद्रियों और उनके विश्यों से अतीत 829 अव्यक्त लक्षनों देव,
अव्यक्त लक्षन वाले देवता
830 व्यक्ता व्यक्त,
इस थूल सुक्ष्मरूप 831 विशामपति,
प्रजाओं के पालक
वरशीलो वरगुनह, सारो मान धनो मय,
ब्रह्मा विश्णो प्रजापालो, हन्सो हन्स गतिरवय
832 वरशील,
अर्थात शेष्ट स्वभाव वाले,
833 वरगुन, उत्तम गुणों वाले, 834 सार, सार तत्व,
835 मान धन, स्वाभी मान के धनी,
836 मै,
सुक्ष्मरूप,
837 ब्रह्मा,
सिश्टी करता ब्रह्मा,
838 विश्णो प्रजापाल,
प्रजापालक विश्णो,
839 हंस,
सुर्य स्वरूप,
840 हंस गति,
हंस के समान चालवाले,
841 वै,
गरुड पक्षी,
वेधा विधाता धाता चे,
इस त्रश्टाहलता चतुरमुख,
केलास शिखरावासी,
सरवावासी सदागती,
842 वेधा विधाता धाता
अर्थात ब्रह्मा धाता और विधाता नामक देवता स्वरूप,
843 इस त्रश्टा अर्थात स्वरूप,
844 हर्ता संघारकारी,
845 चतुरमुख,
चार मुखो वाले ब्रह्मा,
846 केलास शिखरावासी,
केलास के शिखर पर निवास करने वाले,
847 सरवावासी,
सर्वव्यापी,
848 सदागती,
निरंतरगती शील वायुदेवता,
849 हिरन्यगर्भ अर्थात ब्रह्मा,
850 द्रोहिन अर्थात ब्रह्मा,
851 भूतपाल,
प्राणियों का पालन करने वाले,
852 भूपती,
पृत्वी के स्वामी,
853 सदोगी, शेष्ट योगी,
854 योग विधोगी,
योग विध्या के ग्याता योगी,
855 वरद,
वरदेने वाले,
886 ब्रह्मन प्रिये, ब्रह्मनों के प्रेमी,
857 देवप्रियो देवनात,
अर्थात देवताओं के प्रिये तथा रख्षक,
863 निर्मम,
अर्थात मम्ता रहित,
864 निर्हंकार,
अर्थात एहंकार शुन,
865 निर्मोह, मोहो शुन,
866 निरुपद्ध्रव,
उपद्ध्रव या उत्पात से दूर,
866 दर्पहा, दर्पद,
दर्प का हनन और खन्णन करने वाले,
868 दृप्त, स्वाभी मानी,
879 सर्वर्तुर परिवर्तक,
समस्त रित्वों को बदलते रहने वाले,
सहस्त्र जितह सहस्त्रारचीह सिनिग्ध प्रिक्रती दक्षिनह,
भूत भव्य भवन्नाथः प्रभवो भूतिनाशनः,
870 सहस्त्र जितह, सहस्त्रों पर विजए पाने वाले,
771 सहस्त्रारची,
सहस्त्रों किर्णों से प्रकाश्मान सूर्य रूप,
872
सिनिग्ध प्रिकृती दक्षिन,
स्नेह युक्त सभावाले तथा उदार,
873 भूत भव्य भवन्नाथ,
भूत भविश्य और वर्तमान के स्वामी,
874 प्रभवो सब की उत्पत्ती के कारण,
875 भूतिनाशन दुष्टों के एश्वर्य का नाश करने वाले,
876 अर्थ,
अर्थाथ परमपुर्शार्थ रूप,
877 अनर्थ,
अर्थाथ प्रियोजन रहित,
878 महाकोश, अनन्त धनराशी के स्वामी,
889 परकार्यक, पंडित,
पराय कारिय को सिद्ध करने की कला के एक मात्र विद्वान,
880 निशकंटक,
कंटक रहित,
881 कृतानन्द,
निथ्यसिद्ध आनन्दवसरू,
882 निर्व्याजो,
व्याजमर्दन,
स्वैं कपट रहित होकर दूसरे के कपट को नश्ट करने वाले,
883 सत्वान, अरथात सत्व गुण से युक्त,
884 सात्विक,
अरथात सत्व निश्ट,
885 सत्यकीर्ति,
सत्यकीर्ति वाले,
886 स्नेहिक कृतागम,
जीवों के परती स्नेहिक कारण विभिन आगमों को प्रकाश में लाने वाले,
888 अकमपित,
सुईस्थिर, 888 गुण ग्राही,
गुणों का आधर करने वाले,
889 नेकात्मा,
नेक कर्म कृते,
अनेक रूप होकर अनेक प्रकार के कर्म करने वाले,
सुप्रीतह सुमुखः सुक्षम,
सुक्रोधक्षिनानिलह,
890 सुप्रीत,
अरथात अत्यंत प्रसन,
891 सुमुख, अरथात सुंदर मुखवाले, 892 सुक्षम,
इस थूल भाव से रहित, 893 सुकर,
सुंदर हात्वाले,
894 दक्षणानिल,
माल्यानिल के समान सुखध,
895 नन्धी स्कंधधर,
नन्धी की पीठ पर सवार होने वाले,
896 धुरिय,
उत्तर दाइत्यों का भार वहेन करने में समर्थ,
897 प्रकट,
भक्तों के सामने प्रकट होने वाले अथ्वा ज्यानीयों के सामने नित्य प्रकट,
898 प्रीति वर्धन,
प्रेम बढ़ाने वाले,
अपराजितह सर्वसत्वो गोविन्दह सत्ववाहन,
अध्रितः स्वेध्रितः सिध्धि पूत्यमूर्तीर्यशोधन,
अपराजित,
अर्थात किसी से पराजित नहीं होने वाले,
900 सर्वसत्व,
अर्थात सम्पून सत्य गुन के आश्य तथा
समस्त प्राणियों की उत्पत्ती के हेतु,
901 गोविन्द,
गोकुल की प्राप्ती करने वाले,
902 सत्ववाहन,
सत्वसुरूप धर्म में वृशब के वाहन का काम लेने वाले,
903 अध्रित,
आधार रहित, 904 स्वेध्रित,
अपने आप में ही इस्थित,
905 सिध्ध, नित्य सिध्ध, 906 पूत्मूर्ती,
पवित्र शरीर वाले,
907 यशोधन,
सुयश के धनी,
908 वराहरशिंग, ध्रिक्षिंगी,
अर्थात वराह को
मार कर
उसके दाड रूपी
शिंगो को धारन करने के कारण शिंगी नाम से प्रसिद्ध,
909 बल्वान, अर्थात शक्ती शाली,
9010 एक नायक,
अध्वित्य नेता,
9011 शुति प्रकाश, वेदों को प्रकाशित करने वाले,
9012 शुति मान, वेद ज्ञान से संपन्य,
9013 एक बंधु, सबके एक मात्र सहायक,
9014 अनेक कृत,
अनेक प्रकार के पदार्थों के स्विश्टी करने वाले,
9015 शुति वच्च, वेदों को प्रकाशित करने वाले,
9016 शान्त भद्र,
अर्थाद शान्त एवं मंगल रूप, 9017 सम,
सरवत्र समभाव रखने वाले, 9018 यश,
यश स्वरूप, 9019 भूशह,
पृत्थी पर शैन करने वाले,
9020 भूशन,
सबको विभूशित करने वाले,
9021 भूति, कल्यान स्वरूप, 9022 भित, किरित,
प्राणियों की सच्ची करने वाले,
9023 भूत भावन,
भूतों के उत्पादक,
अकम्पो भक्ति कायस्तु,
कालहा नील लोहित,
सत्य व्रत्महा त्यागि, नित्य शान्ति पराइन,
9024 अकम्प,
अर्थाद कम्पित नै होने वाले,
9025 भक्ति काय, अर्थाद भक्ति स्वरूप,
9026 कालहा, काल नाशक,
9027 नील लोहित, नील और लोहित वरन वाले,
9028 सत्य व्रत्महा त्यागि,
सत्य व्रत्धारी अवं महान त्यागि,
9029 नित्य शान्ति पराइन,
निरंतर शान्त,
परार्थ विद्धीर वर्दो विरक्तूस्तू विशारदह,
शुबदः शुबकरताचे, शुबनामा शुभस्वयाम,
930 परार्थ विद्धीर वरद,
अर्थात परूपकार विड्धी एवं अभीश्ट वरदाता,
931 विरक्त वैराज्यवान,
932 विशारद विज्ञानवान, 933 शुबदः शुबकरताचे,
शुबदेने और करने वाले,
934 शुबनामा शुभस्वयाम,
स्वयाम शुबस्वरूप होने के कारण शुबनामधारी,
अनर्थितो गुणह साक्षि,
हिये करता कनक प्रभ,
स्वेभाव बद्ध्रो मध्यस्थः,
शत्रुग्नो विग्ननाशन,
935 अनर्थित अर्थाद याचना रहित,
936 अगुन अर्थाद निर्गुन,
937 साक्षी अकरता, द्रिष्टा एवं कर्तव्य रहित,
938 कनक प्रभ,
स्वण के समान कांती मान,
949 स्वभाव बद्ध्र,
स्वभाव तय हे कल्यान कारी,
940 मध्यस्थ उदासीन,
941 शत्रुघन,
शत्रु नाशक,
942 विग्ननाशन,
विग्नों का निवारन करने वाले,
शिखन्डी कवची शूली,
जटी मुंडी चैकुंडली,
अम्रित्यू सार्वध्रिक सिंगस्ते,
जोराशेर महामनी,
943 शिखन्डी कवची शूली,
अर्थात मोर पंख कवच और तिर्शूल धारन करने वाले,
944 जटी मुंडी चैकुंडली,
अर्थात जटा मुंडमाला और कवच धारन करने वाले,
945 अम्रित्यू मृत्यू रहित,
946 सर्वध्रिक सिंग
सर्वज्यों में शेष्ट,
947 तेजोराशेर महामनी,
तेजपुञ्ज महामनी कोस्तुभाधी रूप,
असंखेयो अप्रमे आत्मा, वीर्यवान वीर्यकोविदः,
948 असंखेयो अप्रमे आत्मा,
अर्थात असंखे नाम,
रूप और गुनों से युक्त होने के कारण
किसी के द्वारा मापे न जा सकने वाले,
949 वीर्यवान वीर्यकोविद,
अर्थात पराकरमी एवं पराकरम के ग्याता,
950 वेद जानने योग,
951 वीयोग आत्मा,
दीर्ग काल तक सती के वीयोग में अथवा विशिष्ट
योग की साधना में सल्लगन हुए मन वाले,
952
परावर मुनिश्वर,
भूत और भविष्च के ग्याता मुनिश्वर रूप,
अनुत्तमों दुराधर्शो मधुरप्रिये धर्शनह,
सुरेशहे शर्णम सर्वह,
शब्दब्रह्म सतां गतिही,
953 अनुत्तमों दुराधर्शह
अर्थात सर्वुत्तम एवं दुर्ज,
954 मधुरप्रिये धर्शन
अर्थात जिनका धर्शन मनोहर एवं प्रिये लगता है ऐसे,
955 सुरेश, देवताओं के इश्वर,
956 शर्णम आश्रेदाता,
957 सर्वह, सर्वसरूप,
958 शब्दब्रह्म संतागतिह,
प्रणवरूप तथा सत्पुर्शों के आश्रे,
969 कालपक्ष, अर्थात काल जिनका साहयक है ऐसे,
960 कालकाल,
अर्थात काल के भी काल,
961 कंकनी किरत वासुकी,
वासुकी नाग को अपने हाथ में कंगन के समान धरन करने वाले,
962 मही श्वास, महा धनूर धर,
963 मही भर्ता, पर्थुई पालक,
964 निशकलंक,
कलंक शून,
965 वीश्रिखल,
बंधन रहित,
966
धोमनी इस्तरनी,
अर्थात आकाश में मनी के समान,
प्रकाश्मान तथा भक्तों को भवसागर से तारने के लिए नोका रूप सूर्य,
967 धन्य,
कृत कृत्य,
968 सिधिद्ध,
सिधी साधन,
सिधी दाता और सिधी के साधक,
969 विश्वत, सम्वृत,
सब ओर से माया द्वारा आवृत,
970 इस्तुत्य,
इस्तुती के योग, 971 व्यूधोरस्क,
चोडी छाती वाले,
972 महाभुज,
बड़ी बाहों वाले,
सर्वयो नेर निरान्तको नर नारायन पिय,
973 सर्वयोनी,
अर्थात सब की उत्पत्ती के स्थान,
974 निरातंग,
अर्थात निर्भय,
975 नर नारायन करिय,
नर नारायन के प्रेमी अथ्वा प्रियतम,
976 निरलेपो निश्प्रपंचात्मा,
दोश संपर्क से रहित था जगत प्रपंच से अतीत सुरूप वाले,
977 निरव्यंग,
विशिष्ट अंग वाले प्राणियों के प्राकट्य में हेतु,
978 व्यंग नाशन,
यज्ञादी कर्मों में होने वाले अंग वैगुण्य का नाश करने वाले,
इस्तव्यह इस्तवप्रियह,
इस्तोताव्यास मूर्तिर निरंकुषः,
989 इस्तव्य,
अर्थात इस्तुति के योग,
980 इस्तव्प्रिय,
अर्थात इस्तुति के प्रेमी,
981 इस्तोता,
इस्तुति करने वाले,
982 व्यास मूर्ति, व्यास स्वरूप, 983 निरंकुष,
अंकुष रहित स्वतंत्र,
984 निर्वध्धमयोपाय,
मोक्ष प्राप्ती के निर्दोश उपाय रूप,
985 विध्याराशी, विध्याओं के सागर,
986 रस्प्रिय,
ब्रह्मानन्द रस्के प्रेमी,
987
प्रशांत बुध्धी, अर्थाथ शांत बुध्धी वाले,
988 अक्षोन,
अर्थाथ शोब या नाश से रहित,
989 संग्रही,
भक्तों का संग्रह करने वाले,
990 नित्यसुंदर,
सतत्मनोहर,
991 व्याग्र धुर्य,
व्याग्र चरमधारी,
992 धात्रीश,
ब्रह्माजी के स्वामी,
993 शाकल्य,
शाकल्य रिशी रूप,
994 शर्वरी पती,
रात्री के स्वामी चंद्रमा रूप,
955 परमार्थ गुरूर्दत्त,
सूरी,
अर्थात,
परमार्थ तत्व का उपदेश देने वाले ज्ञानी गुरू,
दत्तात्रे रूप,
996 आशित वच्छल,
शर्णा गतो पर दया करने वाले,
997 सोम,
उमा सहित, 998 रसज्य,
भक्ती रस के ग्याता,
999 रसद,
प्रेम रस प्रदान करने वाले,
और भगवान सदाशिव का
एक सहस्त्रवा, एक हजारवा नाम है,
सर्व सत्वावलंबन,
अर्थात, समस्त प्राणियों को सहारा देने वाले,
बोलिये शिवशंकर भगवान की जै,
जै, जै,
इस्परकार श्री हडि प्रती दिन सेहस्त्र नामों द्मारा
भगवान शीव की स्तुती,
सेहस्त्र कमलों द्मारा उनका पूजन एवम प्रार्थना कीया करते थे,
एक दिन भगवान शिव की लीला से एक कमल कम हो जाने पर
भगवान विश्णू ने अपना कमलोपम नेत्र ही चड़ा दिया।
इस तरहें उनसे पूजित एवं प्रसन्न हो शिव ने उन्हें चक्र दिया।
सुधर्शन चक्र
और इस प्रकार कहा,
हे हरे सब प्रकार के अनर्थों की शान्ती के
लिए तुम्हें मेरे स्वरूप का ध्यान करना चाहिए।
अनेक आनेक दुखों का अनाश करने के लिए इस सहस्त नाम का
पाठ करते रहना चाहिए। तथा समस्त मनवर्थों की सिध्धी के
लिए सदा मेरे इस चक्र को प्यतन पूर्वक धारन करना चाहिए।
यह सभी चक्रों में उत्तम है।
दूसरे भी जो लोग प्रति दिन इस सहस्त नाम का पाठ करेंगे या कराएंगे,
उन्हें स्वप्न में भी कोई दुख नहीं प्राप्त होगा।
राजाओं की ओर से संकट प्राप्त होने पर यदी मनुष्य
सांगोपांग विधी पूर्वक इस सहस्त नाम स्त्रोत
का सो बार पाठ करेंगे,
तो निश्य ही कल्यान का भागी हुता है।
यह उठ्तम् स्त्रोत
रोक का नाशक विध्या और धन देने वाला है। संपूर्ण अभिष्ट की
प्राप्ती कराने वाला पुण्य जन तथा सदाही शिव भक्ती देने वाला है।
जिस फल के उद्धेश्य से मनुष्य यहाँ इस स्थ्रोत का पाठ करेंगे,
उसे निसंदेह प्राप्त कर लेंगे।
जो प्रति दिन सवेरे उठकर मेरी पूजा के
पश्यात मेरे सामने इसका पाठ करता है,
सिध्धी उससे दूर नहीं रहती।
उसे इस लोक में संपून अभीश्ट को देने वाली सिध्धी पून तया प्राप्त होती
है। और अंत में वहया युज्ज मोक्ष का भागी होता है। इसमें संशे नहीं है।
सूज्जी कहते हैं, हे मुनिश्वरो,
ऐसा कहकर सर्वदेविश्वर भगवान रुद्र श्री हरी के अंग का
इसपर्ष किये और उनके देखते देखते वहीं अंतर ध्यान हो गये।
भगवान विश्णो भी शंकर जी के वचन से तत्हाओस शुब
चक्र को पा जाने से मन ही मन बड़े परसन हुए।
फिर वे प्रती दिन शंभु के ध्यान पूरवक इस स्त्रोत का पाठ
करने लगे। उन्होंने अपने भक्तों को भी इसका उधेश दिया।
तुम्हारे प्रश्न की अनुसार मैंने यह प्रसंग सुनाया
है जो शुरूताओं के पाप को हर लेने वाला है। अब और
क्या सुनना चाहते हो। बोलिये शिवशंकर भगवान की जैए।
प्रिय भगतू,
शिवशिव महा पुरान के कोटी रुद्र सहीता की यह कथा और 35 तथा 36 मा
अध्या यहां पर समाप्त होता है। तो स्नहे के साथ बोलिये। बोलिये शिवशंकर
भगवान की जैए। आनंद से बोलिये। ओम नमः शिवाय। ओम नमः शिवाय। ओम नमः