Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवाने की जै!
प्रिय भक्तों,
शिष्यु महपुरान के
कोटी रुद्र सहिता की अगली कता है
घुष्मा की शिवभक्ती से
उसके मरे हुए पुत्र का जिवित होना
घुष्मेश्वर शिव का प्रादुरभाव तथा उनकी महिमा का वर्णन
तो आईये भक्तों,
आरम्ब करते हैं इस कथा के साथ
बत्तिस और तेतिसमा अध्याय
सूज्जी कहते हैं,
अब मैं घुष्मेश नामक जोतिर लिंग के प्रादुरभाव का
हे मुनीवरू
ध्यान दे कर सुनो
जब वो प्रादुरभाव नामक जोतिर लिंग के प्रादुरभाव का है,
इससे ब्राह्मन को तो दुख नहीं होता था,
परन्त उनकी पत्नी बहुत दुखी रहती थी,
पडोसी और दूसे लोग भी उसे ताना मारा करते थे,
वह पत्नी से बार-बार पुत्र के लिए प्रार्थना करती थी,
पती उसको ज्यान उपदेश दे कर समझाते थे,
परन्त उसका मन नहीं मानता था,
अन्त तो गत्वा ब्राह्मन ने कुछ उपाय भी किया,
परन्त वे सफल नहीं हुआ,
तब ब्राह्मनी ने अठ्यंट दुखी हो,
बहुत हट करके अपनी बहिन गुश्मा से पती का दूसरा विभा करा दिया,
विभा से पहले सुधर्मा ने उसको समझाया,
कि इस समय तो तुम बहिन से प्यार कर रही हूँ,
परन्त उजब इसके पुत्र हो जायेगा,
तब इससे स्प्रधा करने लगोगी,
उसने वचन दिया कि मैं बहिन से कभी डाँ नहीं करूँगी,
विभा हो जाने पर गुष्मा दासी की भाती बड़ी बहिन की सेवा करने लगी,
सुधेहा भी उसे बहुत प्यार करती थी,
गुष्मा अपनी शिव भगता बहिन की आज्या से नित 101 पार्थिव शिवलिंग बना कर
विधी पूजा करने लगी,
पूजा करके वै निकट वर्ती तालाब में उसका विसर्जन कर देती थी,
खेंकर जी के किरपा से उसके एक सुन्दर
सोभाग्यवान और सदगुण समपन्य पुत्र हुआ,
गुष्मा का कुछ मान बढ़ा,
इससे सुधेहा के मन में डाह पैदा हो गई,
तव समय पर उस पुत्र का विफा हुआ,
पुत्र वदू घर में आ गई,
अफ तो वै और भी जलने लगी.
उसकी बुद्धी ब्रह्ष्ट हो गई,
और एक दिन उसने रात में सोते हुए पुत्र को छुरे
से उसके चरीर के टुकड़े टुकड़े करके मार डाला,
खटे हुए अंगों को उसी तालाब में ले जाकर डाल दिया,
जहां गुश्मा प्रति दिन पार्थ्ये लिंगों का विसर्चन करती थी,
पुत्र के अंगों को उस तालाब में फैंक कर वे लोट आई,
और घर में सुक्फूर्वक सो गई.
गुश्मा समेरे उठकर प्रति दिन का पूजनादी करम करने लगी,
स्रेष्ट ब्रामन सुधर्मा स्वेम भी नित्य करम में लग गई.
इसी समय उनकी जेश्ट पत्नी सुधेहा भी उठी
और बड़े आननद से घर के काम काज करने लगी,
क्योंकि उसके हिर्दे में पहले जो ईर्शा की आग जलती थी,
वो अब बुज्च चुकी थी.
अधिकाल जब बहुने उठकर पती की शिज़िया को
देखा तो वै भुन से भीगी दिखाई थी
और उसपर शरीर के कुछ टुकडे दश्टी गोचर हुए इस सिस उसको बड़ा तुख हुआ.
उसने सास खुष्मा की पास जाकर निवेदन किया,
उत्तम वृत का पालन करने
जब वृत का पालन बेटे को देखने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं हुआ.
उसके पती की भी ऐसी अवस्ता थी.
जब तक नित्यनियम पूरा नहीं हुआ,
तब तक उन्हें दूसरी किसी बात की चिंता नहीं हुई.
पूरा नहीं हुआ,
तक तक उन्हें दूसरी किसी बात की चिंता नहीं हुई.
तथापे उसने मन में
किंचिन मांत्र भी दुख नहीं माना,
वैं सोचने लगी,
जिनोंने ये बेटा दिया था,
वैं ही इसकी रक्षा करेंगे.
वे भक्त प्रिया कहलाते हैं,
काल के भी काल हैं और सत्वपुर्शों के आश्रे हैं.
एक मात्र वे प्रभु सरविश्वर शम्भू ही हमारे रक्षक हैं.
वे माला गूतने वाले पुरुष की भाती जिनको जोडते हैं,
उनको अलग भी करते हैं.
अतेहां मेरे चिंता करने से क्या होगा?
इस तत्व का विचार करके उसने शिव के भरोसे धैरिय
धारन किया और उस समय तुख का आनूभव नहीं किया.
वह पूर्वत पार्थिव शिवलिंग को लेकर
स्वस्त चित से शिव के नामों का उचारण करती हुँ.
उस तालाब के किनारे गई उन पार्थिव लिंगों को तालाब में डाल कर
जब ये लोटने लगी तो उसे अपना पुत्र
उसी तालाब के किनारे खड़ा दिखाई दिया.
सुज जी कहते हैं,
एव ब्रामणों,
उस समय वहाँ अपने पुत्र को जीवि देखकर उसकी
माता घुष्मा को न तो हर्ष हुआ और न विशाद,
वे पूर्वत स्वस्त बनी रही.
इसी समय उसपर संतुष्ट हुए जोति स्वरूप
महिश्वर शिव शीगर उसके सामने प्रगत हो गई.
शिव बोले,
हे सुमुखी,
मैं तुम पर प्रसन हुँ,
वर मांगो,
तेरी दुष्टा सोत ने
इस पच्चे को मार डाला है,
अते मैं उसे तिर्शूल से मारूंगा.
सूच जी कहते हैं, तब घुष्मा ने शिव को प्रणाम करके
उससमय यह वर मांगा,
हे नाथ,
यह सुधेहा मेरी बड़ी बहिन है,
अते आपको इसकी रख्षा करनी चाही है.
शिव बोले,
उसने तो बड़ा भारी अपकार किया है,
तुम उसपर उपकार क्यों करना चाहती हो,
दुष्ट कर्म करने वाली सुधेहा तो मार डालने के ही योग्य है.
गुष्मा ने कहा,
हे देव,
आपके दर्शन मात्र से पातक नहीं ठैरता,
इस समय आपका दर्शन करके उसका पाप भस्म हो जाये,
जो अपकार करने वालों पर भी उपकार करता है,
उसकी दर्शन मात्र से पाप बहुत दूर भाग जाता है.
हे प्रभू,
यह अद्भूत
भगवत भाक्य मैंने सुन रखा है,
इसलिए हे सदाशेव,
जिसने ऐसा कुकर्म किया है,
वही करे,
मैं ऐसा क्यों करूं,
मुझे तो बुरा करने वाले का भिभला ही करना है,
सूज्जी कहते हैं,
गुश्मा के ऐसा कहने पर दया सिंधु भगत वच्चल महिश्वर
और भी प्रसन हुए,
तता इसप्रकार बोले,
हे गुश्मे,
तुम कोई और भी वर मांगो,
मैं तुम्हारे लिए हित कर वर अवश्य दूंगा,
क्योंकि तुम्हारे इस भक्ती से और विकार
शुन्य स्वभाव से मैं बहुत प्रसन हुँ,
भगवान शिव की बात सुनकर गुश्मा बोली,
हे प्रभु,
यदि आप वर देना चाहते हैं,
तो लोगों की रक्षा के लिए सदा
यहां निवास कीजिए,
और मेरे नाम से ही आपकी ख्याती हुँ।
तब महिश्वर शिव ने अठ्यंत प्रसन होकर कहा,
मैं तुमारे ही नाम से गुश्मेश्वर कहलाता हुआ सदा
यहां निवास करूंगा और सब के लिए सुखदायग होँगा,
मेरा शुब जोतिर लिंग गुश्मेश् नाम से प्रसिद्ध हो,
यहां सरोवर शिव लिंगों का आले हो जाये और इसी लिए
इसकी तीनों लोकों में शिवाले नाम से प्रसिद्धी हो।
यहां सरोवर सदा दर्शन मात्र से सम्पूर्ण अभिष्टों का देने वाला हो।
हे सुरते
तुम्हारे वंच में होने वाली एक सो एक पीड़ियों तक
ऐसे ही श्रेष्ट पुत्र उत्पन्य होंगे,
इसमें संचे नहीं है।
वे सबके सब सुन्दरी स्त्री उत्तम धन और पूर्ण
आयु से संपन्य होंगे। चतुर और विद्वान होंगे,
उधार तथा भोग और मोक्ष रूपी फल पाने के अधिकारी होंगे।
एकसो एक पीडियों तक सभी पुत्र गुणों में बड़े चड़े होंगे। तुम्हारे
वन्श का ऐसा विस्तार बढ़ा शोभादायक होगा। ऐसा कहकर वगवान शिव वहां
जोतिर्लिंग के रूप में स्थित हो गई। उनकी घुष्मेश नाम से प्रसिध्धी हुई
तीनोंने आकर तदकाल ही उस शिवलिंग की 101 दक्षणा वर्थ परिक्रमा की।
पूजा करके परस्पर मिलकर मन का मैल दूर करके
वे सब वहां बड़े सुख का अनुभव करने लगे।
पुत्र को जीवि देख संदेहा बहुत लच्चित हुई।
और पती तथा गुश्मा से ख्षमा प्रार्थना करके
उसने अपने पाप के निवारन के लिए प्राश्चित किया।
हे मुनिश्वरो इस प्रकार वे गुश्मिश्वर लिंग प्रगट हुआ।
उसका दर्शन और पूजन करने से सदा सुख की ब्रध्यी होती है।
हे ब्राह्मणों,
इस तरह मैंने तुम से बाहर रहे जोतिर लिंगों की महिमा बताई।
यह सभी लिंग संपून कामणाओं के पूरक तथा भोग और मोक्ष देने वाले हैं।
जो इन जोतिर लिंगों की कथा को पढ़ता और सुनता है,
वे सब पापों से मुक्त हो जाता है तथा भोग और मोक्ष पाता है।
बोलिये शिवशंकर भगवाने की जैये।
प्रिये भक्तों,
इस प्रकार यहां पर शिशिव महापुरान के कोटी रुद्ध सहीता की यह कथा
उन पत्तिस तथा तेतीसमा अध्याय समाप्त होता है।
बोलिये शिवशंकर भगवाने की जैये।
ओम नमः शिवाय। ओम नमः शिवाय। ओम नमः शिवाय।