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Shiv Mahapuran Kailash Sanhita Adhyay-14

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Kailash Pandit

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Bài hát shiv mahapuran kailash sanhita adhyay-14 do ca sĩ Kailash Pandit thuộc thể loại The Loai Khac. Tìm loi bai hat shiv mahapuran kailash sanhita adhyay-14 - Kailash Pandit ngay trên Nhaccuatui. Nghe bài hát Shiv Mahapuran Kailash Sanhita Adhyay-14 chất lượng cao 320 kbps lossless miễn phí.
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Lời bài hát: Shiv Mahapuran Kailash Sanhita Adhyay-14

Nhạc sĩ: Traditional

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

बोलिये शिवशंकर भगवाने की ज़ये
प्रिये भगतों
शिश्यु महा पुरान के कैलास सहिता की अगली कथा है
प्रणाव के अर्थों का विवेचन
तो आईये भगतों आरंब करते हैं इस कथा के साथ
चोधमा ध्याय
वामदेव जी बोले
भगवान शडानन संपून विज्ञान में अमरित के सागर
समस्त देवताओं के स्वामी महिश्वर के पुत्र प्रणतार्ती के भंजनकार्ती के
आपने कहा है कि प्रणाव के छ्ये प्रकार के अर्थों
का परिज्ञान अभिष्ठ वस्तु को देने वाला है
हे पार्वती नन्न मेंने जो जो बाते पूछी
हैं उन सब का सम्यक रूप से वर्णन कीजिए
जो कुछ पूछा है उसे आदर पूर्वक सुनो
समश्टी और
व्यश्टी भाव से महिश्वर का परिज्ञान ही प्रानवार्थ का परिज्ञान है
मैं इस विशे को विस्तार के साथ कहता हूं
उत्तम व्रत का पालन करने वाले मुनिश्वर मेरे प्रवचन से
उन छै प्रकार के अर्थों की एकता का भी बोध होगा
पहला मंत रूप अर्थ है दूसरा यंत्र भावित अर्थ है
तीसरा देवता बोधख अर्थ है चोथा प्रपंच रूप अर्थ है
पाँच्वा अर्थ गुरू के रूप को दिखाने वाला है ओ
छटा अर्थ शिष्ष के स्वरूप का परीछे देने वाला है
इस प्रकार ये छे अर्थ बताए गए हैं
ये मुणि श्रेष्ट उन छेहों अर्थों में जो
मंत्र रूप अर्थ है उसको तुम्हें बताता हूं
उसका ज्ञान होने मात्र से मनुश्य महा ज्ञानी हो जाता है
प्रनाव में वेदों ने पाँच अक्षर बताए हैं
अधिश्वर आ दूसरा पाँच्वा स्वर उ तीसरा पंचम वर्ग
पाँच वर्ग का अंतिम अक्षर म उसके बाद चोथा अक्षर बिंदू
और पाँच्वा अक्षर नाध इनके सिवा दूसरे वर्ण नहीं हैं
यह समश्टी रूप वेदादी प्रनाव कहा गया है
नाध सब अक्षरों की समश्टी रूप हैं
बिंदू युक्त जो चार अक्षर हैं
वे विष्टी रूप से शिव वाचक प्रनाव में प्रतिश्ठित हैं
सबसे नीचे पीठ अरगा लिखे उसके उपर पहला अक्षर अकार लिखे उसके उपर
उकार अंकित करें और उसके भी उपर प वर्ग का अन्तिम अकश्र मकार लिखें
पवर्ग का अन्तिमक्षर मकार लिखें।
मकार के उपर अन्स्वार और उसके भी उपर अर्ध चंद्राकार नाद अंकित करें।
इस तरहें यंत्र के पूर्ण हो जाने पर साधक का
सम्पूर्ण मनौरत सिद्ध होता है।
इस परकार यंत्र लिख कर उसे परनाव से ही वेश्ठित करें। उस
परनाव से ही परकट होने वाले नाद के द्वारा नाद का अवसान समझें।
हे मुने,
अम मैं देवतारूप तीसरे अर्ध को बतलाऊंगा। जो सर्वत्र गूड है।
हे वाम देव,
तुम्हारे स्नहेवश बगवान शंकर के द्वारा
प्रतिपादित उस अर्ध का मैं तुमसे वर्णन करता हूं।
सधो जातम् प्रपधामि। यहां से आरंब करके सदाशिवोम् तक।
जो पांच पंत्र हैं। इन पांचो मंत्रों का उल्लेक पहले हुच चुका है।
शुती ने प्रणव को इन सब का वाचक कहा है। इनें
ब्रह्मरूपी पांच सूख्ष्म देवता समझना चाहिए।
इनें का शिव की मूर्ती के रूप में भी विस्तार पूर्वक वर्णन है।
शिव का वाचक,
मंत्र शिव मूर्ती का भी वाचक है।
क्योंकि मूर्ती और मूर्तिमान में अधिक भेद नहीं है।
ईशान मुक्टो पेतः। इस शलोक से आरंब करके
पहले इन मंत्रों द्वारा शिव के विग्रह का प्रतिपादन किया जा चुका है।
अब उनके पाँच मुखों का वर्णन सुनो।
यही पाँच भगवान शिव के पाँच मुख पताये गये है।
यह विग्रह का प्रतिपादन किया जा चुका है।
एक तो तिरोभाव आधी पाँच क्रित्यों के अंतरगत है।
सुष्टी,
इस्थती,
संघार,
तिरोभाव तता अनुग्रह
यह परमिश्वर के पाँच क्रित्य हैं।
दूसरा जीवों को कारियकारण आधी के बंधनों से मुक्ति देने में समर्थ है।
अनुग्रहें में चक्र, सान्त्यतीत, कलायें पांच हैं।
वे पांचो परब्रह्म सरूप तथा सदाः ही कल्यान दायक हैं।
एह दोनों परकर का अनुग्रह सदाः शिव का ही द्विध कृत्य कहा गया है।
पाँच हैं निवत्ति कला,
प्रतिष्ठा कला, विध्या कला तथा शान्त्यतीता कला,
कलारूप हैं।
सदाशिव से
अधिष्चित होने के कारण उसे परमपद कहते हैं।
शुद्ध अन्तहकरन वाले सन्यासियों को मिलने योग्य पद यही है।
जो सदाशिव के उपासक हैं और जिनका चित प्रणोपास्ना में सनलगन हैं,
उन्हें भी इसी पद की प्राप्ती होती है।
शिव का एश्वरे भी यह समस्टी रूप ही है। अथरवेद की शुती
भी कहती है कि वे सम्पून एश्वरे से संपन्य हैं। सम्पून
एश्वरे प्रदान करने की शक्ति सदाशिव में ही बताई गई है।
चमकाध्याय के पद से यह सूचित होता है कि शिव से बढ़कर
पांच कलाय होई हैं। यह सबकी सबस्व शुक्ष्म भूत
सरूपनी होने
से कारण रूप में विख्यात है। उत्तम्रत
का पालन करने वाले वामदेव इस थूल रूप में
प्रगट हो यह जगत प्रपंच है। इसका जिसने
पांच रूपों द्वारा व्याप्त कर रखा है।
वह ब्रह्म अपने उन पांचों रूपों के साथ
ब्रह्म पंचक नाम धारन करता है।
हे मुनिशेष्ट, पुरुष,
श्रूत्र,
वाणी,
शब्द और आकाश,
इन पांचों को ब्रह्मा ने इशान रूप से व्याप्त कर रखा है।
हे मुनिश्वर,
प्रिकृती,
त्वचा, पाणी,
स्पर्श और वायू,
इन पांचों को ब्रह्मा ने ही पुरुष रूप से व्याप्त कर रखा है।
एहंकार, नेत्र, पेर,
रूप और अगनी,
ये पांच अगोर रूपी ब्रह्म से व्याप्त हैं।
बुद्धी, रस्ना, पाइउ, रस और जल,
ये वामधेव रूपी ब्रह्मा से नित्य व्याप्त रहते हैं।
मन, नासिका, उपस्त,
गंध और पृत्वी,
ये पांच सधो जात रूपी ब्रह्म से व्याप्त हैं।
इसप्रकार यह जगत पंच ब्रह्म स्वरूप है। यंतर रूप
से बताया गया जो शिव वाचक प्रणव है। वह नात पर्यंत्र
पाँचो वर्णों का समश्ठी रूप है। तथा बिंदो युत
जो चार वर्ण हैं, वे प्रणव के व्रश्ठी रूप हैं।
बोलिये शिवशंकर भगवाहने की जए।
प्रिये भगतों,
इसप्रकार यहाँ पर
शिवशिव महापुरान के केलास सहीता की यह कता
और चोहदव अध्याय हाँ पर समाप्त होते हैं।
तो सिनही से बोलिये।
बोलिये शिवशंकर भगवाहने की जए। आनन्से बोलिये।
ओम नमः शिवाय। ओम नमः शिवाय। ओम नमः शिवाय।

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