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हे शंतों, बक्ती शद्गुरू की क्रपा से जीव के मन के अंदर उतपन्न होती है।गुरु के प्रति प्रेम हो गए, प्रेम धीरे धीरे भक्ती में बदल जाता है।संसार के प्रति प्रेम हो जाये, प्रेम धीरे धीरे मोह μαमता और वाश्णा में बदल जाता है।प्रेम मौलिक रूप हैपरंततुम प्रेम को जहां लगाते होफिर वो अपना रूप बदल लेता हैशन्तों भक्ति शतों गुरुवानशत्गुरु के द्वाराशत्संगमार्गदर्शन प्राप्त होता हैजिसे मानो मन मेंभक्ति का जनम हो जाता हैऔर भक्ति आपको प्राप्त हो गई होगुरुदिच्छा मिल गई होराम नाम सुन लिया होनामदान ले लिया होपरंतबार बारसत्संग शुनना अनिवार नहीं यदि आप सत्संग नहीं शुनेंगे धेरे धेरे आपकी भक्ती डिम होती चली जाएगी कम होती चली जाएगी धीमी हो जाएगीकितने लोग अपने घर के कारोबार में, विजनिस में, सर्विश में, खेती बाडी में, नाना धंदे में, परिवार के मोह माया में इतना बिजी हो जाते हैंगुरु के दर्शन के लिए भी उनके पास समय नहीं हैमाया जाल में इतना फास जाते हैं की गुरु की शेवा के लिए एक रुपिया धान भी नहीं कर पाते हैप्रवचन सुन भी नहीं पाते हैं, कहते हैं की प्रवचन सुनने का टाइम ही नहीं मिलता हैऐसे लोगों की भक्ति धीरी धीरीडेड भक्ति हो जाती हैमर जाती हैकिबल भक्ति नाम की रह जाती हैभक्ति किशी काम की नहीं रह जाती हैबस अब उसको ढोना है उनकोभक्ति की लाश को ढो रहे हैभक्ती में जान नहींकिवलकहने को रह गया किवो तपो भुम्मी आश्रमसे ये भी गुरुमंत्र ले आये थेऔर ये भी भक्त हैबस इतना लोग कहते हैंवो भी कहते हैंबाकी जीरों को भीइसलिएसमय निकाल करगुरु का दर्शन भी करना चाहिएथोड़ा थोड़ा पैसा बचाकरगुरु जी के सिरी चरणों मेंदान करना चाहिएजैसे हमारे भक्त
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