राहिवन्दि भमर उड़े बगो बैठे आई रैन गई दिवसो चली जाईकभीर साहब कहते है कि रात तो बीत गई और दिन भी धीरे धीरे बीता जा रहा हैरात किसे कहते है कि अंडज पिंडज उसमजपसु पच्छी क्रमकीत सिर्फ यह तीन खानियों की जीवन यात्रा बीत जत्तिअंडज पिंडज उसमज खानियों में यात्रा करते-करते जीवात्मामुनुष्यों ने आ चौकोहोऔर estiयोपी अंदकार की रात्री के समान इन तीनों खानियों से यात्रा करते करते ये जीवात्मा और मुनस योनी में ये दिन के समान योनी प्रकास के समान योनी मुनसीक योनी है यहाँ पर ज्ञान का प्रकास पाया जा सकता है ये भी योनी का सरीर धीरे धीरे शमाप्त होता जायह जीवन भी बीता जा रहा हैजिसले मनुष्य का जीवन मिला थावो काम किया ही नहींन भक्ति कियाना गुरु भक्तिन संत की सेवाना गुरु भक्तिन संत की सेवाफिर क्या कियाना शोभ कर्म कियोउमर सब धोखे में भी दिगयोउमर सब धोखे में भी दिगयोउमर सब धोखे में भी दिगयोउमर सब धोखे में भी दिगयोलोखे में पीट गयोसाही बंदगीबालापन सब खेल गवायोबीस में जान भयोतीसे बरसे माया के पेरेदेशे विदेशे गयोउमर सब धोखे में बीटी गयोउमरउमर सब धोखे में बीटी गयोउमर सब धोखे में बीटी गयोकवीर साहेब कहते हैंये मनुश जीवन दिन के समान हैयहाँ ज्ञान का प्रकास प्राप्त हो सकता हैऔर ये भी जीवनबेर्थ के भोगों मेंबेर्थ की बकवास मेंजुमा और तास मेंधारू और सत्यानास मेंये मनुश का जीवन भीपशू पच्चियों जैसे ही बीता जा रहा हैअहर निद्रा भै में थुनानीसामानी चैमानी निर्णां पशूनांग्यानम नराणाम यदिको विशेशोग्यानम नराणाम यदिको विशेशोज्ञाने नहीं ना पशुभी समान एशाम न विद्या न तपो न दानम न चापिशीलम गुडो न धर्माते म्रैत लोके भूई भार भूता मनोश्य रूपेण म्रगा अश्चरन्तीमनोश्य रूपेण म्रगा अश्चरन्तीमुदु मंगल मैं शंत समाजूजो जग जंग मैंतीरत राजूमुदु मंगल मैंशंत समाजूजो जग जंग मैंतीरत राजूनाथ सकल शंपदा तुमारीमैं सेवक समेत सुतनीहमारीअबे कछुना तै न चहीए मोरीदीन दया ले अन्ग्रहतोरीअबे कछुना तै न चहीए मोरीदीन दया ले अन्ग्रहतोरीहमारे उड़े बग वैठे आई रहने गई दिवसों चली जाईहले हले कापे बालाजी ना जाने का करी है पीवहले हले कापे बालाजी ना जाने का करी है पीवहल हल हल हल माने थर थर ये अज्ञानी जीव थर थर काप रहा हैकि मैंने कोई न साधना किया न भक्ति किया न पुन्य किया न दान किया न सत्संग सुनाअब देखो भगवान क्या करेगा मेरे लिए फैसलाथर थर काप रहे