Nhạc sĩ: Traditional
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श्री क्रेश्न गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायन वासु देवा
बोलिये हारे के सहारे कृष्ण प्यारे की जैरे
ग्रिये भक्तों श्रीमत भगवत गीता के सत्रवे अध्याय के पश्चार
आईए आपको सुनाते हैं सत्रवे अध्याय का महात्म
भाईय भक्तो आरम्ब करते हैं
भगवान विश्णू ने लक्ष्मी जी से कहा
हे लक्ष्मी, मंडलीक नामक देश में दुह शासन नाम का एक राजा था
उसने और एक अन्य देश के राजा ने आपस में शर्त बांधी
कि हाथी लड़ाए जाए और जिसका हाथी हारे वे अमुक धन देवे
दूसरे राजा का हाथी जीता, दुशासन का हाथी हारा
कुछ दिन बाद हाथी मर गया, तो राजा दुशासन को बड़ी चिन्ता हुई
एक तो धन गया दूसरे हाथी मरा तीसरे लोगों में हसी हुई इसी चिंता में राजा मर गया यम्दूत उसे पगड़ कर धर्मराज के पास ले गए धर्मराज ने आज्या दी की है हाथी के मोह में मरा है इसे हाथी की योनी दो
हे लक्ष्मी राजा दुहशासन संगल द्वीप में जाकर हाथी हुआ उस राजा के पहुत हाथी थे उनमें आया पिछले जन्म की उसे याद थी कुछ दिनों में राजा के पास एक ब्रह्मन आया उसने राजा को एक श्लोक सुनाया
हे लक्ष्मी राजा बड़ा प्रश्न हुआ और कहा हे ब्रह्मन तुम्हारी जो इच्छा है बांगो ब्राह्मन ने कहा मेरे पास सब कुछ है केवल � skateai नहीं है
राजा ने वही हाथी उस ब्राहमन को दे दिया
ब्राहमन अपने घर उस हाथी को ले आया
ब्राहमन ने रात को हाथी को दाना दिया
परन्तु हाथी ने ने दाना खाया, ने पानी पिया
हाथी रुदन करते हुए मन में चिंता कर रहा था
कि मुझे को इस योनी से छुडावे
ब्रह्मन ने महावत को बला कर पूछा
कि इस हाती को क्या दुख है
जो खाता पीता कुछ नहीं है
महावत ने देख कर कहा
इसको कुछ नहीं है
तब ब्रह्मन ने राजा से कहा
राजा उसको देखने के लिए आया
राजा ने अच्छे अच्छे वैद और महावत बुला कर सब को हाथी दिखलाया
उन्होंने देख कर कहा हे महराज इसको मानसिक दुख है देह का दुख नहीं है
तब राजा ने कहा हे हाथी तु ही बोल तुझे क्या दुख है
परमेश्वर की शक्ती से मनश्यों की भाषा में हाथी ने कहा
हे राजन आप बड़े धर्मक्य हैं और ये ब्राह्मन भी धर्मक्य है
इसके घर का अन वेखावे जो बड़ा धर्मक्य हो
मुझ जैसा अधम क्यों करखा सकता है
तब ब्राह्मन ने कहा
हे राजन आप अपना हाथी बापस ले लो
राजा ने कहा दान की वस्तू मैं फिर लोटा कर नहीं ले सकता
हाथी ने कहा हे ब्रह्मन चिंता मत कर तू मुझे गीता के सत्रवे अध्याय का पात सुना
ब्रह्मन ने ऐसा ही किया
हे लक्ष्मी पाट सुनते ही ततकाल हाथी की देह छूट गई और उसने देव देह पाई
स्वर्ग से विमान आया उस विमान पर बैठकर देव देह धारी हाथी ने राजा और ब्राह्मन की स्थुती की और फिर कहा
हे राजन आप धन्य है आपकी कृपा से मैं इस अधम देह से छूटा हूँ फिर राजा को अपने पिछले जन्म की कथा भी सुनाई
और उस विमान में स्वर्ग चला गया पोलिए श्री कृष्ण भगवान की जय इति श्री पदम पुराने उत्तराखंडे गीता महात्म नाम सत्रवा अध्याय समाप्तम प्रिय भक्तों इस प्रकार यहां पर शीमत भगवत गीता के सत्रवे अध्याय का महात्म यहां पर समा
देवाए नमहा नमहा