Nhạc sĩ: Traditional
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श्री क्रिष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायन वासु देवाबन्सी बजईया रास रचईया यशुदा अनन्दन क्रिष्ण की जैप्रिय भक्तों, श्रीमत भगवत कीता के अठारवे अध्याय के पश्चात आईए हम आपको सुनाते हैंअठारवे अध्याय का महात्म, तो आईए भक्तों आरंभ करते हैंभगवान विश्णू बोले, हे लक्ष्मी, जैसे सब नदियों में गंगा जी, देवताओं में श्री हरी, सब तीर्थों में पुष्कर राज, सब परवतों में कैलाश परवत, सब रिशियों में नारज्जी और सब गवों में कपिला काम धेनू सबसे श्रेष्ठ हैउसी प्रकार गीता के सब अध्यायों में गीता का ठार्वा अध्याय परम श्रेष्ठ हैहे लक्ष्मी, अब तुम इस परम पवित्र ठार्वे अध्याय का महत्मे सुनोदेवलोक में इंद्र अपनी सभा लगाय बैठा थाउर्वशी निर्त्य कर रही थी, इंद्र बड़ी प्रसन्नता में बैठे थेइतने में एक चत्रभुज रूप धारी को भगवान के पार्शद लाएभगवान के पार्शदों ने देवताओं के सामने इंद्र से कहाआप उठो और इसको बैठने दोयह सुन इंद्र ने प्रणाम किया और तेजस्वी को अपने सिंगासन पर बैठा दियाइंद्र ने देव गुरु ब्रस्पती से पूछागुरु जी, आप तो तिरकाल नर्शी होदेखो इसने कौन सा पुन्य किया हैजिससे ही है इंद्रासन का अधिकारी हुआ हैमेरे जानने में तो इसने कोई पुन्य व्रत्या दान नहीं कियाविशेश ठाकुर मंदिर नहीं बनवायातालाब अथवा कूप नहीं बनवायाऔर किसी को अभैधान भी नहीं दियाब्रहस्पति ब्रह्मादिक सब देवताओं ने कहाचलो नारायन जी से पूछेतब राजा इंद्र ब्रहस्पति ब्रह्मादिक सब देवता नारायन जी के पास गएजाकर दंडवत करप प्रार्थना पूर्वक कहाहे भगवन आपके चार पार्शदों ने मुझको इंडरासन से उठाएक चत्रबुज तेजस्वी स्वरूप को उस पर बैठा दिया हैमैं नहीं जानता उसने कौन सा पुन्य कियामैंने कई अश्वमेध यग्य किये हैमैंने तब इंडरासन का अधिकारी आपने बनाया हैइसने एक भी यग्य नहीं किया यह मुझे बड़ा अश्विरिय हैशे नारायन जी ने कहाहे देवेंद्र तू मद्दर्थ अपना राजगरइसने बड़ा गुहिय एवं उत्तम पुन्य किया हैइसका नियम था कि नित्य प्रती स्नान करकेश्री गीता जी के अठारवे अध्याय का पाठ किया करता थाजब इसने देह छोड़ी तब इसके मन में भोगों की तृष्णा रही थीइसलिए मैंने आग्या दी थी कि पार्शदोतुम इसको पहले ले जाकर इंदर लोग का भोग कराओजब इसका मनुरत पूर्ण हो जाए तब मेरी सायुज्य मुक्ती को पहुचाओतुम जाकर भोगों की सामगरी इकट्टी करदोऔर उससे कहो कि इंदर लोग के सुख को भोगोकुछ काल इंदर पूरी के सुख भोगने से उसका मन भर गयाफिर वे गीता पाठ के प्रभाव से सायुज्य मुक्ती पाकर वैकुंठ का अधिकारी हुआबोलिये शी किष्ण भगवान की जैइती श्री परम पुराने उत्राखंडे गीता महत्मे नाम अठारवा अध्याय समाप्तमतो प्रिय भक्तो इस प्रकार यहाँ पर शीमत भगवत कीता के अठारवे अध्याय का महात्म समाप्त होता हैहिर्दय से शद्धा के साथ बोलियेओम नमो भगवते वासु देवाए नमहा