Nhạc sĩ: Traditional
Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650
श्री क्रेष्ण गोविंद हरे मुरारे
हे नाथ नारायन वासुदेवा
बोलिये नंद की लाल
यशुदा नंदन की जैवे
प्रिया भक्तों
श्रीमत भगवत कीता का
घ्यारमा अध्याय आरम्ब करने जा रहे हैं
और इसकी कथा है विराट रूप का दर्शन
भक्तों
इस कथा में बहुत आनन्द आने वाला है
भगवान श्री क्रिष्ण विराट रूप दिखाने वाले हैं
जो भक्त जणी से स्ने और शद्धा के साथ सुनेंगे
उन भक्तों की सभी मनो कामनाएं अति शिग्र पूर्ण होंगी
और उनका कल्यान होगा
बोरि श्री क्रिष्ण भगवान एकी जेये
तो आईये भक्तों आरम्ब करते हैं विराट रूप का दर्शन
भगवान श्री क्रिष्ण के श्री मुक से करम योग,
ज्यान वे वैराज्य के विवेचन तथा ईश्वर के रूप
में उनकी विभूत्यों का वर्णन सुनने के पश्यार
अर्जुन ने कहा
हे वासुदेव,
आपने मेरे उपर अनुग्रह करके
जो महा गूढ अध्यात्म ज्यान का उपदेश दिया है,
इससे मेरा संपून मोह दूर हो गया है
हे क्रिश्न,
मैंने प्राणियों की उत्पत्ती
और प्रलेकाय व्रतान्त आपके श्री मुक से विस्तार पूर्वक सुना
और आपकी अविनाशी महिमा भी सुनी
खे पुर्श्वत्तम,
मैं ज्यान, शक्ती,
बल, एश्वर्य,
वीर्य और तेज इन छै गुणों से युक्त आपके रूप का दर्शन करना चाहता हूं
यदि आप समझते हैं कि मैं आपका भैरूप देखने योग्य हूं,
देख सकता हूं
तो हे योगेश्वर,
तो आप मुझे अपने अस अविनाशी रूप के दर्शन कराईए
अर्जुन की बात सुनकर
श्री भगवान जी बोले
हे अर्जुन,
तु मेरे सैक्डो हजारो रूपों को देख
ये मेरे अनेक प्रकार के दिव्य रूप हैं
ये सब अनेक वर्ण और अनेक
प्रकृतियों के हैं
विराट रूप धारी भगवान शी कृष्ण बोले
हे अर्जुन,
मेरी देह में सूर्य,
वसू, रुद्र,
अश्वनी कुमारों और बरुदगणों को देख और उन आश्चरिय युक्त बातों को भी देख
जो तुने पहले कभी नहीं देखी हैं और आगे भी कभी नहीं देखेगा
मेरे शरीर में संपून ब्रह्मान्ड को
एक ही इस्थान पर इखटा देख ले
तु और भी जिन जिन बातों को देखना चाहता है वे सभी देख
हे गुडाकेश,
तु अपने इन नित्रों से
मेरे उस विराट रूप को न देख सकेगा
इसलिए मैं तुझे दिव्य द्रिश्टी देता हूँ
उस दिव्य द्रिश्टी से तु मेरे छहों
गुणों से संपन्य विराट रूप को देख सकेगा
द्रिश्ट से संजय ने कहा
ही राजन,
ऐसा कहकर भगवान स्री क्रिश्ण ने अर्जुन को
अपना परम एश्वरिय युक्त विराट रूप दिखाया
उसमें अनेक मुख और अनेक नेत्र हैं,
अद्भुद्धर्शन है अनेक प्रकार के दिव्य आबूशण हैं
और अनेक प्रकार के दिव्य आ युद्ध हैं
हेր धृतराश्ट वै दिव्यमला को और दिव्य वस्टर्धारी हैं
अनेक परकार के चंदन आधी सुगंधित पदार्थों से लिप्त हैं।
यह विराट रूप अनेक परकार के आश्चरियों को
उत्पन्य करने वाला प्रकाश युखत और अंतर रहित है।
उसमें चारो और मुख हैं। आकाश में सहस्त्रो सूर्यों का प्रकाश एक साथ
हो जाए तो भी उस विश्व सुरूप भगवान की कांती के समान नहीं हो सकता।
अर्जुन ने उस देव शरीर में एक ही स्थान पर
अनेक परकार से इस्थित संपून जगत को देखा।
इसका दर्शन करके अर्जुन को बड़ा आश्रे हुआ।
उसके शरीर के रौम रौम खड़े हो गए।
अर्जुन सिर जुका कर और हात जोड कर श्रीकर्षन जी से कहने लगा।
हे प्रभू!
मैं आपकी देह में संपून देवताओं तथा सभी प्राणियों के समूहों को,
कमल पर आरोड ब्रह्मा जी को,
सब रिशीयों को तथा सब दिव्य सर्पों को देखता हूं।
हे विश्विश्वर!
आपकी देह में सब जगे मुझे अनेक भुजा,
अनेक उधर,
अनेक मुख,
अनेक नेत्र और अनंत रूप दिखाई देते हैं।
आपका आदी, मद्ध, अन्त कहीं भी दिखाई नहीं देता।
मुझे ऐसा दिखाई देता है कि आप किरीथ,
गदा और चक्र धारन कर रहे हैं।
आप तेज पुझ हैं,
चारो और दिप्तमान हैं।
और आपका अगनी और सूर्य के समान तेज है।
द्रिश्टी ठीक से ठिक नहीं पा रही,
चकाचोंध हो जाती है।
मस्तक जुकाए हुए अर्चुन ने आगे कहा,
हे सम्पोर्ण विश्व के स्वामी,
घ्यानियों द्वारा जाने गए आप ही अक्षर परब्रम हैं।
इस संसार के आधार आप ही हो।
सनातन धर्म के अक्षर तथा विनाश रहित भी आप हो। और आप ही सनातन पुरुष हो।
आपका आधी,
मध्य,
अन्त कुछ नहीं है। आपका पराक्रम अनंत है। आपकी भुजायं असंख हैं।
उर्जूर्य और चंडरमा आपके नेत्र हैं। तथा परज्वलित अगनी के समान
आपका मुख है। आपके इस भयानक रूप को देखकर तीनों लोग डरते हैं।
ये भगवान,
आकाश और पृत्वी के मद्ध में जो ये बड़ा भारी अंत्रिक्ष है,
इस सब में आप अकेले ही व्याब्त हो रहे हैं।
एकरिश्न,
देवताओं के समूब भैके मारे आपकी शरण आये हुए हैं।
कितने ही तो भैभीत होकर दूर से हाथ जोड कर आपकी प्रार्टना कर रहे हैं।
वहरशियों एवं सिद्धों के अनेक समू,
स्वस्ती वाचन करके अनेक प्रकार से आपकी इस्तुती कर रहे हैं।
हे क्रिश्न,
एकादश, रुद्र,
द्वादश, आधित्य,
अश्टवसू,
विश्वदेव, अश्वनी कुमार,
उनन्चास, मरुत,
उश्मपा नामक पितर, और गंधरवो,
यक्षों,
देवताओं तथा सिद्धों के समू आधी सभी विश्मित होकर आपको देख रहे हैं
चरन और असंख उदर हैं असंख दाढों से आपका रूप विक्राल दिखाई पड़ता है
इसको देखकर सब लोग डर गए हैं और मैं भी डर के मारे व्याकूल हो रहा हूं
आपका यह शरीर इतना बड़ा है कि आकाश को इसपर्श कर रहा है
बड़ा ही तिवर प्रकाशमान है और अनेक वर्णों से युक्त है
इसमें बड़ा वितीर्ण मुख है तथा बड़े-बड़े सहस्त्रो नेत्र
हैं इसको देखकर मैं अच्यंद व्याकूल हो रहा हूं
किसी प्रकार से भी धीरज ग्रहन नहीं होता दातों और दाडों से युक्त भेंकर
प्रलेकाल की अगनी के समान आपका मुख देखकर ऐसा भैभीत हो गया हूं कि मुझे
दिशाओं का ज्यान भी नहीं रहा है और नहीं मुझे शान्ती प्राप्त हो रही है
एइ मदु सुधन
दृतराश्ट के सभी पुत्र और संपूर्ण राजाओं तथा युध्धाओं
के समुह आपके मुख में प्रवेश करते दिखाई देते हैं
भीश्म,
द्रोनाचार्य,
शिखंडी,
धिष्टधुम्न आदी भी आपके मुख में प्रवेश करते दिखाई देते हैं
ये सब आपके विक्राल दाढो वाले विशाल
मुख में जल्दी जल्दी प्रवेश कर रहे हैं
इन में कितनों के ही सिर चून हो गये हैं
ये आपके दातों में उलज रहे हैं
जैसे नदियों के अनेक शाकाएं समुंदर की और दोड़ती हैं
वैसे ही ये सबी तुम्हारे विक्राल जाजवल्लेमान
मुख में प्रवेश करते दिखाई देते हैं
हे क्रिष्ण आप अपने इस प्रजलित मुखों में सम्पूर
लोकों को चारोओर से चाटते हुए गृस्लेते हूँ
आपकी उग्र कान्ती
सब जगत को अपने तेज से परिपूरित करके त्रप्त कर रही है
हे केशव तुम ऐसे उग्र रूप वाले कौन हो
सो कहो
मैं आपको बारंबार नमस्कार करता हूँ
मैं आपकी प्रवत्ती नहीं जानता हूँ
इससे आदि पुरुष आपको जानना चाहता हूँ
हे देव शेष्ट कृपा करके
मुझे अपने इस दिव्योर विराट सरूप के बारे में विस्तार पूर्वक बतलाईए
शी किष्ण बोले
हे अर्जुन
इस समय इन लोगों का काल मैं हूँ
मैं इन लोगों का संघार करने के लिए प्रवत्त हुआ हूँ
ये बड़े बड़े योध्धा
जो सेना में खड�
बान्ध कर खड़ा हो जा और शत्रों को जीत कर कीर्ती को प्राप्त कर
तथा सब प्रकार से सम्रद्ध राज को भोग
ये सब तो मैंने पहले ही मार रखे हैं तू तो केवल निमित मातर है
द्रोन भीश्न जैद्रत करन आदी सभी बड़े बड़े योध्धा मेरे द्वारा म
संजयने द्रतराश्ट से कहा
हे राजन
केशव की बाते सुन कर अर्जुन कापने लगा
और हाथ जोड कर बारंबार नमसकार करने लगा डर
से व्याकुल हुआ अर्जुन नमसकार करके गदगद वानी
में शी कर्षन से कहने लगा
हे हरशी केश आपका प्रभाव अती अद्�
और आप में अनुराग रखता है
राक्षस आप से भैभीत होकर
दसों दिशाओं में भागे फिरते है
तो सिद्धों के समूव आपको नमसकार करते है
हे अनन्द, हे देवेश
तुमको सब लोग नमसकार क्यों ना करे
क्योंकि आप तो ब्रह्मा से भी बड़े और सब के आदी करता हैं
आप संपून ब्रह्मान के मूल कारण हैं और अविनाशी
हैं इससे सब का नमसकार करना उचित ही है
हे कृश्न आप आदि देव और पुरातन पुरुष हो
आप संपून सच्ची के धारण करता और संपून विश्व के पालक हो
जो कुछ जानने योग है वे आप ही हो
मुण्यों के परमधाम आप ही हो
ये संपून विश्व आपके अनन्त रूप में व्याप्त हैं
हे कृश्न वायू,
यम,
अगनी,
वरुन,
चंद्रमा,
ब्रह्मा और ब्रह्मा के पितामें भी आप ही हैं
티रण यैंska
आदी ठिटाई से कहा करता था
सो मैं आपकी महिमा को नहीं जानता था
यह मेरा बड़ा परमाध था
सिने के वशी भूत होकर मैं ऐसा करता था
हे अच्छत
खेलने,
सोने,
बैठने वै भोजन करने के समय एकान्त में
यह बहुत लोगों के स्तम्मुख
जो मैंने आपकी हसी की है और इस प्रकार की हसी से
आपका अनादर किया है उसके लिए मैं ख्शमाह मांगता हूँ
हे विराठ पुरुष एक मात्र आप ही इस चराचर जगत के पालन करता माता,
पिता,
गुरू,
पुज्य और महान हूँ
तीनों लोकों में आपके बराबर कोई नहीं है,
कोई नहीं है फिर अधिक कोई कैसे हो सकता है
हे गृश्न,
आप ईश्वर हो,
इस तुति के योग्य हो,
मैं आपको साश्टांग दन्डवत पढाम करता हूँ,
मुझ पर प्रसंद हो ये
हे देव,
आप मेरे अपरादों को ऐसे क्षमा कर सकते हैं,
जैसे पिता पुत्र के,
मित्र मित्र के,
और पती पत्नी की अपरादों को क्षमा करता है
हे हे क्रिशन,
आपका ये अदबुद रूप पहले कभी नहीं दिखा था,
इस अदबुद रूप को देखकर मेरा मन बड़ा हर्षित हुआ है,
और साथ ही भै के मारे व्याकुल भी हो रहा है,
आप मुझ को वही अपना रूप दिखाईए,
हे देवेश,
हे जगन निवास,
�
है जगन निवास,
ये पहले के समान अपना मोहक रूप धारन कर लीजीए प्रभु,
ये सुनकर
श्री भगवान बोले,
हे अर्जुन,
मेरा यह तेजो मैं रूप अनन्त और आध रूप है,
इसको तेरे सिवा अब तक किसी ने भी नहीं देखा है,
है जगन निवास न होकर मैंने आत्मयोग से
अपना ये विराट रूप जे दिखाया है,
एक रूप शेष्ट मेरा यह विश्व रूप कोई चार वेद पढ़कर
अत्वा यग्य, तप, दान,
अगनी हुत्र अधी कर्म तथा उग्र तपस्चा
करके देखना चाहें तो भी नहीं देख सकता।
हे अर्जुन,
मेरे घोर रूप को देख कर
तु क्यों व्यतित होता है,
व्याकूल मत हो,
अपनी मूढता को त्याग
और निडर होकर प्रसन्य चित से मेरे इस पहले रूप को फिर देख।
संजय ने कहा,
हे धृतराश्ठ,
श्री किष्ण ने यह कहकर अपना विराट रूप लुप्त कर लिया
और सौम्य और चत्रभुज रूप दिखाया,
इसके बाद सामान्य रूप धारन किया और डरे होए अर्जुन को धाडस दिया।
तब अर्जुन ने कहा,
एइ जनार्धन,
आपका इस शान्त मनुष्य रूप देखकर
अब मैं सावधान हो गया हूँ
और अब मेरा चित शान्त होकर सब भैसे निव्रित हो गया है।
इसको देखने के लिए देवताभी तरस्ते रहते हैं।
मेरा जो यहं आसा महान रूप है,
इसको मनुष्य
अनन्य भकती से जान सकते हैं,
देख सकते हैं
और तत्व ज्यान से इसमें लिआन हो सकते हैं,
जो कोई मनुष्य मेरी ही प्रीत के लिए लोकिक और वेदिक कर्म करते हैं,
मुझे को अपना पुर्शार्थ मानते हैं,
मुझे में भक्ती रखते हैं,
सब सांसारिक विश्यों से मुख मोडचुके हैं,
पून प्राणी मात्र से बैर चोड़कर प्रीत
रखते हैं और निशकाम भाव से कर्म करते हैं,
वे ही मुझको प्राप्त हो सकते हैं।
बोले शी किष्ण भगवान की जैए!
इति श्रीमत भगवत गीता विश्वरूप दर्शन योगो नाम एकादशो अध्याय समाप्तम।
प्रीय भगतों,
इसी के साथ श्रीमत भगवत गीता
का घ्यार्मा अध्याय यहां पर समाप्त होता है।
स्नहें से बोलिये।
ओम् नमों भगवते वासुदेवाय नमहां। नमहां।