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Shravan Mahatmya Adhyay-16 Sheetala Saptami Vrat

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Kailash Pandit

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Bài hát shravan mahatmya adhyay-16 sheetala saptami vrat do ca sĩ Kailash Pandit thuộc thể loại The Loai Khac. Tìm loi bai hat shravan mahatmya adhyay-16 sheetala saptami vrat - Kailash Pandit ngay trên Nhaccuatui. Nghe bài hát Shravan Mahatmya Adhyay-16 Sheetala Saptami Vrat chất lượng cao 320 kbps lossless miễn phí.
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Lời bài hát: Shravan Mahatmya Adhyay-16 Sheetala Saptami Vrat

Nhạc sĩ: Traditional

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

बोलिये शिवशंकर भगवान की जैए!
प्रीये भक्तों,
शावन महत्म का
सोल्व अध्याय आरम्ब करते हैं
और इसकी कथा है
शीतला सप्तमी वर्त
बहुत ही सुन्दर कथा है
बहुत आनंद आएगा
तो आएगा भक्तों आरम्ब करते हैं इस कथा को
भगवान शंकर
स्री सनत कुमार जी से बोले
अब मैं तुम्हें शावन शुक्ल सप्तमी वर्त के विशय में बतलाता हूं
ध्यान पूर्वक सुनो
पहले दिबार पर बावली का चित्र बनाए
उसके अश्रीरी संग्यक दिव्य सुरूप धारी सात जल देवता बनाए
दो लड़कों के साथ पुरुष्य संगीत नारी
एक घोड़ा,
बैल,
नरवाहन सहित पालकी के चित्र बनाए
सोले उपचार द्वारा जल देवी की पूजा कर ककडी,
दही,
चावल का नेविध्य समर्पन करें
नेविध्य पदार्थों का अबायना निकाल कर
ब्राह्मन को अर्पन करना चाहिए
इसप्रकार
साथ वर्ष तक
वरत करने के साथ सोभाग्यवती स्ट्रियों को भोजन कराकर
उद्यापन करना चाहिए
एक सोने के पात्र में साथ जल देवताओं की प्रतिमाएं रखकर
पहले दिन अपने पुत्र के साथ उन प्रतिमाओं का पूजन करना चाहिए
दूसरे दिन
ग्रह होम सहित चरू होम करना चाहिए
अव तुम इस वर्ष के फल के बारे में सुनो
वहें इन विचारों से ग्रस्थ रात को वहीं बावडी के पास सो गया
रात को उसे स्वबन आया की यदी तुम अपने पोत्र की बली दो
तो तुमारी बनवाई बावडी जल से भर जायेगी
वह होने पर वह धनिक अपने घराया और अपने पुत्र
द्रविड से रात के स्वबन के बारे में बताया
उसने पिता की बात सुनकर कहा
पिताश्री आप मेरे जन्मदाता हैं इसप्रकार
आप अपने पोत्रों के भी जन्मदाता हुए
यह तो एक धार्मिक कार्य है आपके सीतान्शु और चंडान्शु
दो पोत्र हैं
आप बिना हिचक अपने बड़े पोत्रों सीतान्शु की बली दे दें
परन्तु यह बात आप इस्त्रियों से गुप्त रखें
इसका कारण यह है कि मेरी पत्नी गर्ववती है
प्रसव का सम
चंडान्शु भी जाएगा
उसके माई के जाने के बाद यह काम निर्विगन समाप्त हो जाएगा
धनिक अपने पोत्र की ऐसे विचार सुनकर बोला
तुम धन्य हो
इसी बीच उसकी पत्नी सुशीला को
उसके माई के से बुलाव आ गया
वर्वारोंकार अपने पता पिता पुतर ने
शितान्शु के शरीर में तेल मल कर नहलाया
पुरु नक्षत पूर्वा शाड़ा के आ जाने पर
दोनों ने उसे बावडी के किनारे पर ले जाकर खड़ा कर दिया
और प्रार्थना करने लगे
इस लड़के की बली से जल देवता प्रसन न हो
लड़की की बली देते ही बावडी अम्रित तुल्ल जल से भर गई
दोनों बाव बेटे बावडी को जल से भरा देखकर प्रसन न
हुए परन्तु पोत्र के बलिदान से दुखित मन से घर लोटाये
ओदर सुशीला के मायके में तीसरा पुत्र पैदा हुआ
तीन मास का पुत्र होने पर वह अपनी ससुराल लोटायी रास्ते में जब वह बाव
यतोचित रहा
उस दिन शावन शुक्ल शप्त में तिती थी
सुशीला ने शीत लागाओ शूवरत करा
और वहीं पर दही और चावल मंगवाकर
स्वाधिष्ट भोजन बनवाया
चल देवता की पूजा करके दही,
चावल और ककडी का नवेद बायना
ब्राह्मनों को दे दिया
वहां से सुशीला की ससुराल चार कोस थी
अब सुशीला दोनों लड़कों के साथ बावडी से घर की ओर चल दी
इदर चल देव आपस में कहने लगे इसका बड़ा पुत्र हमें वापस लोटा देना चाहिए
क्योंकि इसने बड़े प्रेम से हमारा वर्त किया है
उन्होंने सुशीला का बड़ा पुत्र
जल से बाहर निकाल दिया
मा को देखकर शितान्शु मा के पीछे भागता हुआ
मा मा करता हुआ आया
सुशीला अपने बड़े लड़के शितान्शु को देखकर चकित रह गई
उसने उसे अपनी गोद में बैठा कर उसका सिर सुंघा
वै अपने मन में सोचने लगी कि यदी इसे
यहां से पकड़कर चोर ले जाते तो क्या होता
क्योंकि इतने बहुमल्ले अबूशन बहन रखे हैं
यदी इसको घर से भूद विशाज पकड़कर लाये होते
तो वै इसे अब क्यों छोड़ते हैं
घर के सम्मन भी चिंता के सागर में गोते लगा रहे होंगे
परन्त उसने शीतान्शु से पूचा नहीं कि तुम यहां अकेले क्या कर रहे थे
इदर सुशीला के आने का समाचार पाकर
पिता पुत्र सोचने लगे की
सुशीला जब अपने बेटे के बारे में पूचेगी
तो हम क्या कहेंगे
इसी बीच तीनों बालकों के सहीद सुशीला अपने घर पहुँच गई
ससुर और पती बड़े पुत्र शीतान्शु को देखकर बड़े अचम्बे में पढ़ गए
तता उसके साथ प्रसन होकर सुशीला से पूचा हे सुवध्रे
तुमने किस पुन्य या व्रत को किया था
निश्चही तुम कोई पवित्र आत्मा हो इस शीतान्शु को मरे हुए दो
महीने पीच चुके हैं फिर तुमने इसे कहां से प्राप्त किया है
जाते समय तुम अप
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तुम से मैंने शीतला सप्तमी का वरद एवं उसकी कहानी सुनाई हैं।
इस वरद में दही,
चावल,
थंडा जल,
ककडी,
फल,
बावडी जल और शीतला माता को देवता कहे गए हैं।
इसे करने वाले तीन प्रकार के तापों से मुक्त हो जाएंगे।
इसलिए शावन शुक्ल सप्तमी का यथार्थ नाम
शीतला सप्तमी हुआ।
बोली शिवशंकर भगवान की जैये।
प्रिये भक्तों,
इस कथा के साथ शावन महत्म का सोल्वा अध्याय समाप्त होता है।
स्णहे से बोलीये।
बोली शिवशंकर भगवान की जैये।

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