Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शुवशंकर भगवाने की जैए।
प्रिये भक्तों,
शावन महात्म का
पंद्रमा अध्याय आरम्ब करते हैं
और इसकी कथा है सुपोधन नामक व्रत।
तो आईए भक्तों,
इस कथा के साथ आरम्ब करते हैं,
पंद्रमा अध्याय।
भगवान शंकर ने सनत कुमार को बताया,
शावन मास की शुकल पक्ष की शश्टी तिथी को
महामृत्योविनाशक उत्तम सुपोधान नामक व्रत किया जाता है।
मंदिर में
या घर पर रहकर ही
शिवजी की पूजा करने के बाद
दाल,
आटा,
चावल का नेवेत,
ब्राह्मनों को नेवेत्य पदार्थों का अपाहिना देना चाहिए।
जो व्यक्ति नियम पूर्वक इस व्रत को करता है,
उसे अनन्त पुन्य प्राप्त होते हैं।
इस सम्मंध में मैं तुम एक कथा सुनाता हूँ।
प्राचीन काल में एक राजा था,
उसका नाम रोहित था,
बहुत समय तक उसे संतान का मुख देखने को न मिला।
उसने संतान प्राप्ती हेतु कठिन तप किया।
तपस्चा के प्रभाओं से ब्रह्माजी प्रगट हुए।
ब्रह्माजी ने राजा से कहा,
तुम्हारे भाग्य में संतान का सुख नहीं है,
परंत राजा ने अपनी तपस्चा नहीं छोड़ी।
तक तुम्हें प्रभू को दुबारा प्रगट होने के लिए मजबूर कर दिया।
ब्रह्माजी दुबारा प्रगट हुए,
वो राजा से बोले,
मैं तुम्हें पुत्र तो दे सकता हूँ,
परंत उह अलपायू होगा।
उसपर राजा और राणी ने सोचा,
कि पुत्र प्राप्ती से बन्धापन तो हट जाएगा,
लोक में पुत्र नहीं होने की निंदा तो समाप्त हो जाएगी,
हमारे लिए इतना ही परीआप्त है।
राजा और राणी ने अलपायू पुत्र के लिए ही अपनी सहमती परदान कर दि,
समय आने पर ब्रह्माजी के वरदान से राणी को पुत्र पैठा हुआ।
राजा ने पुत्र के जात कर्म बड़ी धूमधाम से किये,
बालक का नाम शिवदत रखा गया।
अलपायू होने के कारण राजा ने राजकुमार शिवदत का विवा नहीं किया।
सोले वर्ष की अवस्था में उसका निधन हो गया।
ब्रह्मचारी के रूप में शिवदत का निधन हो जाने से,
राजा दिन-राथ चिंतित रहने लगा।
तो जिस वंश में ब्रह्मचारी के मृत्ति हो जाती है,
वे वंश नश्ट हो जाता है।
सनत कुमार ने भगवान शिव से पूचा,
क्या इसका कोई उपाय है?
यदि कोई उपाय हो तो मुझे बताए,
जिसके करने से दोश तूर हो जाये।
जिसके करने से दोश तूर हो जाये।
पिर अगनी की शापना करके
विभाविधी द्वारा आधारांत हवन कर,
अगनी,
ब्रह्सपती,
काम चार व्याहित्यों से हवन कर,
सुश्कृत संग्यक हों कर,
पिले सूद द्वारा
वैश्चित करना चाहिए।
पिर अगनी की शापना करके विभाविधी द्वारा आधारांत हवन कर,
अगनी,
ब्रह्सपती,
काम चार व्याहित्यों से हवन कर,
सुश्कृत संग्यक हों कर,
कर्म को समाप्त करें।
इसके बाद भी पलकी डाल तथा मृत शव का अगनी संसकार करना चाहिए।
मृत्यों की संभावना हो
तो इस विध्व को छे वर्ष तक करना चाहिए।
तीस ब्रह्मचारीयों को नए कोपीन देना चाहिए।
खड़ाओं, छट्र, माला, चंदन,
मनी,
प्रवाल तथा आबुशन देने चाहिए। इस प्रकार करने से कोई विगन नहीं रहता।
राजा ने इस विधी को ब्राह्मन के मुख से सुनकर,
सोचा कि ये अमुख्य अर्ग विभा मुझे अच्छा नहीं लगा।
विभा होना ही मुख्य बात है।
मैं राजा हूँ,
जो कोई इस लड़के के साथ
अपनी पुत्री की शादी करेगा,
मैं उसे धन, दोलत से माला माल कर दूँगा।
उसके राज्य में एक ब्राह्मन रहता था,
जो किसी कारिय से बाहर गया होगा था।
उसकी प्रथम पत्नी से एक पुत्री थी,
उसकी दूसरी पत्नी बड़ी दुष्ट विवहार की थी। उसके
धन के लालच ने लड़गी को देना स्विकार कर लिया।
उसने एक लाख रुपया लेकर अपनी सोथ की दस वर्षी ये कन्या को
राजा के मृत पुत्र के साथ विवहा दी।
उस बाला को लेकर
राजा के सेवक शमशान भूमी में गए और शव के साथ
उस लड़की को सती होने की व्यवस्था करने लगे।
तब वे अबोध बाला बोली,
आप ये क्या कर रहे हैं।
लड़की की बात सुनकर वे सब दुखी मन से कहने लगे,
तुम्हारा पती मर गया है,
तुम्हें इसके साथ सती होना है।
यह सुनकर लड़की रोने लगी और बोली,
आप मेरे स्वामी को क्यों जलाते हैं,
मैं उन्हें जलाने नहीं दूँगी,
आप सब लोग जाएं,
मैं यहाँ अकेली रहूंगी,
यह जब उठेंगे,
तब इनके साथ ही आओंगी।
लड़की का हट देखकर
सब करणा से द्रवित होकर चले गए।
अब छोटी सी लड़की,
जो नह कुछ समझती थी, नजानती थी,
शव के पास अकेली बैठकर,
भगवान शिव पारवती को याद करने लगी।
बार बार पुकारने पर करणा के सागर शिव पारवती,
नंधी पर सवार होकर,
शमशान में लड़की के पास पहुँचे।
बालिका ने जब शिव पारवती को देखा,
तो अपने चर्णों में गिरकर अपने पती के प्राणों की भीख माँगने लगी।
अगले दिन नदी के तट पर इसनान करने के लिए आये हुए लोगों
ने। वापस लोट कर राजा को बताया कि उसका पुत्र उस बालिका के
प्रभाव से जीवित हो गया है। यह सुनकर राजा की प्रसनन्ता का
ठिकाना नहीं रहा। वै प्रसनन होकर गाजे बाजे के सा�
राज कुमार को जीवन दान मिला है।
राजा ने ब्राह्मनों को दान दिया और भगवान शिव परवती की पूजा
अर्चना की। ब्राह्मनों के कहने के अनुसार नगर में प्रवेश करने हेथ
शान्त यग्य किया। मनुश्यों को चाहिए कि इसे पाँच वर्ष तक वरत
वेध्य तथा बाइना देना चाहिए। इस वरत के करने से प्राणी
चिरायू पुत्र प्राप्त कर अंत में शिवलोक हो जाता है।
प्रिये भक्तोँ,
इस प्रकार,
इस कथा की साथ ही स्माध महत्मका पन्दरमान ध्या यहांपर समाप्त होता है।
कि जये!!