Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवाने की जैए।
प्रीय भक्तो,
शावन महत्म का चौधमा अध्याय आरम्ब करते हैं।
और इसकी कथा है नागः पंछमी व्रत।
तायिये भक्तो,
आरम्ब करते हैं चौधमा अध्याय।
भगवान शंकर ने सनत कुमार से कहा,
अब मैं तुम्हें शावन शुकल पंचमी को
किये जाने वाले वरत नाग पंचमी वरत के बारे में बताता हूं।
द्यान पूर्वक सुनो।
साधक को चाहिए
कि वे एक दिन पहले
केवल एक समय भोजन करें।
पंचमी वाले दिन स्वण या रजत निर्मित नाग को लेकर
नक्त वरत करना चाहिए। नक्त वरत रखकर बढ़हिया कुमार
से पांच फनो वाला नाग बनवाकर उसकी पूजा करनी चाहिए।
अपने घर के मुख्य द्वार के दोनों तरब
गोबर से पांच फनो वाला
नाग बनाकर
कटोरे में दूद रखकर उसकी धूब, दीब, गंध,
अक्षत,
करवीर, मालती,
चमेली तथा चमपा के फूलों से पूजा करनी चाहिए।
ब्राह्मनों को शुद्य घी के लड़ू तथा खीर का भूजन करवाना चाहिए।
कालिये नाग,
तक्षक नाग,
शंखपाल,
वासुकी,
शेष नाग,
पद्म नाग आदी नागों को
हल्दी वे चन्नन से दिवार पर बनाकर तथा नागमाता कद्रू को भी अंकित कर
पुश्पों से पूजा करनी चाहिए।
पूजन के पशाथ खी और खान मिलाकर उनको दूद पिलाना चाहिए।
उस दिन लोहे की कढ़ाई में पकवान बनाने वरजित हैं।
गेहु और दूद की खीर बनाकर भूने चने,
धान का लावा और भूने जो नागों को देने चाहिए।
सापों की बांबी के पास गान वाद्य द्वारा उत्सम मनाया जाना चाहिए।
एसा करने वाले मनुष्यों को जीवन भर कभी सर्प से डरने का भै नहीं रहता।
सर्प प्रिये।
दर्शन करते ही मनुष्य अध्वगती को प्राप्त हो जाता है।
सर्वतमूघनी होता है।
विधी पूर्वग ब्राह्मन सहित
नाग का निर्मान कर
पूजा करनी चाहिए।
इस तरह बारे महिनों की
शुकलपक्ष की पंचमी का वरत करना चाहिए।
वर्ष की समाप्ती पर
शुकलपक्ष पंचमी को फिर से नागों का पूजन करना चाहिए।
श्री नारायन जो सब इस्थानों पर इस्थित हैं,
सब वस्तुमों को प्रदान करने की शम्ता रखते हैं,
जो अपराजीत हैं,
उनको इसमर्ण कर निम्न वचन कहने चाहिए।
एप्रभू मेरे वन्श में हमारे पूर्वजों में से जो भी सर्पों के दन्श से
अधोगती को प्राप्त हुआ हुँ,
वे इस व्रत से
तथा दान से मुक्ति को प्राप्त हो जायें।
इस प्रकार उच्छारन कर सफेर चंदन युक्त चावल से
पानी को भक्ति पूर्वक वासुदेव श्री कर्षन
के निमित्ध जल में छोड़ देना चाहिए।
इस प्रकार व्रत,
पूजा और दान से सादक के वंच में
सर्प के दन्श के कारण मरे होंगे या भुष्ण में मरने वाले होंगे।
साथकुमार,
वे सब
सर्प योनी से मुक्त होकर स्वर्ग लोक में पहुच जाएंगे।
इस प्रकार व्रत करने वाला अपने वंश का उध्धार
कर शिवजी के सानिध्ध में पहुच जाता है।
हे सनतकुमार,
जो मनुश्य नाग की हत्या करते हैं,
उनके परिभार में
अगले जन्म में पुत्र नहीं होता। और यदि होता है,
तो अधिक समय तक जीवित नहीं रहता।
प्राणी को सर्प योनी प्राप्त होती है।
जो दूसरों की आमानत हजम कर जाते हैं,
खा जाते हैं,
वे भी सर्प योनी में जाते हैं।
जो प्राणी विभिन कारणों से सर्प योनी में चले जाते हैं,
उनके उध्धार का एक मात्र रास्ता
नागपंचमी का व्रत ही है।
जो प्राणी नागपंचमी का व्रत तथा नाग पूजा करते हैं,
उनकी बढलाई के लिए नागों के स्वामी शेष नाग और वासुकी नाग,
वे प्राणी नाग लोक में अनेक तरहें के भूगों को भोग कर
वैकुंथ लोक में जाते हैं.
जै!
बोली विश्णू भगवान की
जै!
प्रेवक्तों,
इस परकार इस कथा के साथ
शावन महात्म का
चोध्मा अध्याय समाप्त होता है।
तो बोलीए
शिवशंकर भगवान की
जै!
जै!
जै!