Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवाने की जैए!
प्रीये भक्तों,
शावन महत्म का
बार्मा अध्याय आरम्ब करते हैं
और इसकी कथा है तृत्या व्रत शुक्ल पक्ष।
तो आईए भक्तों,
आरम्ब करते हैं इस कथा को।
भगवान शंकर सनत कुमार से बोले,
अब तुम शावन शुक्ल तृत्या तित्ही को
किया जाने वाला श्वर्ण गोवरी व्रत सुनो। उस दिन प्राते
काल इसनान करके सोले उपचार से भगवान शिव एवं माता गोवरी की
इस प्रकार पूजा करनी चाहिए।
एदेवाधिदेव। मेरे द्वारा की गई पूजा को आप स्विकार करें।
गोवरी माता के व्रत की पूर्ती के लिए सोले बायने
डमपत्यों को देकर कहना चाहिए।
पुर्टे से निर्मित सोले पकवान बास की सोले टोकरियों में रखकर,
उन पर वस्त रखकर
पत्नी सहित सोले ब्राह्मनों को बलाकर निविदन करें।
मैं व्रत की संपूर्णता
और फल प्राप्ती के लिए बायना देता हूँ।
पर आदी से संपन्य पति व्रत धर्म युक्त
शोभन स्वाहसनी इसे आप स्विकार करें।
इस प्रकार सोले आठ,
चार या एक वर्ष व्रत करके उध्यापन करना चाहिए।
पूजा की समाप्ती पर कथा शरवन कर व्याजजी का पूजन करना चाहिए।
सनत कुमार भगवान शंकर से बोले,
हे प्रभु इस व्रत को सबसे पहले किसने किया,
इसका क्या महात्म है,
उध्यापन की विधी क्या है,
इसको जानने की मेरी इच्छा है।
भगवान भोलेनात ने कहा,
हे ब्रह्मा पुत्र सनत कुमार,
मैं तुम्हारी जिग्यासा अवश्य पूरी करूँगा।
प्राचीन काल में सर्स्वती नदी के तट पर सुविला महानगरी थी,
उसके राजा का नाम चंद्रप्रभा था।
उस राजा की महादेवी और विशाला नाम की
दो रूप और लावन्य युक्त पत्निया थी।
राजा चंद्रप्रभा
महादेवी राणी को अधिक प्यार करता था।
राजा उस पर अपनी जान चढ़कता था।
एक दिन राजा शिकार खेलने के लिए वन में गया।
वहाँ उसने शार्दुल, सिंग,
वाराह,
अर्ना भैसे,
हाथी आधी का शिकार किया।
अब राजा को प्यास व्याकुल करने लगी।
राजा वन में पानी के लिए इधर उधर घूमने लगा।
वह एक तालाव पर पहुँचा। उसने तालाब के जल से अपनी प्यास बुजाई।
पानी पीने के बाद राजा ने इधर उधर देखा तो उसे दिखा
कि तालाब के किनारे कुछ अफसराएं गोरी की पूजा कर रही हैं।
राजा ने उनसे पूचा,
आप किसकी पूजा कर रही हैं?
अफसराओं ने उत्तर दिया,
हम स्वार्ण गोरी का पूजन कर रही हैं।
देवियों,
इस व्रत को करने की विधी एवं व्रत का क्या फल मिलता है?
करपया मुझे बताने की करपा करें।
अफसराओं ने उत्तर दिया,
शावन शुक्ल तृत्या के दिन यह व्रत किया जाता है।
इस व्रत में भगवान शङकर और माः पारवति का पूजन किया जाता है।
इस व्रत में सोले धागों का डोरा
पुरुष अपने दाए हात में तत्हां इस्त्रियां अपने बाए हात में बांधती हैं।
यही इस व्रत को करने की विधी है। इस व्रत को करने से
भगवान शंकर की करपा से सब मनुकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।
यही इस व्रत का फल है।
यह सुनकर राजा चंद्रबभा ने भी
शावन मास की शुकल प्रक्ष की तृतिया को
अपनी दाई भुजा में सोले धागों वाला डोरा बांध कर व्रत किया।
राजा ने कहा,
यह माता गोरी,
मैं इस डोरे को व्रत के लिए बानता हूँ,
मेरे उपर आप करपा करना।
इसप्रकार व्रत धरन का राजा अपने महलों में आ गया।
राणी महदेवी जी ने
राजा के दाईं हात में बंधे डोरे को देखा तो पूछा,
राजाने राणी से कहा,
यह तुमने माता गोरी का अपमान किया है।
इदर राजा की दूसरी पत्णीने देखा कि सुखा
पेड़ डोरे के प्रभाव से हरा भरा हो गया है,
चोटी राणी ने अस डोरे को प्नी बाईं भुजा में बान लिया।
ऐसा करने से चोटी राणी डोरे के प्रभाव से राजा की सरवाधिक प्रिय हो गया।
इदर बड़ी राणी व्रत का अपमान करने से राजा द्वारा
त्याग देने के कारण दुखी होकर वन में चली गयी।
वन में वै महा देवी का ध्यान कर पवित्र मुनियों के आश्रम में ठहरी।
मुनियों ने उसे देख कर कहा,
अरे पिशाचनी यहां से चली जा। राजा और मुनियों द्वारा त्रिसकरत
राणी महा देवी घोर जंगल में घूमती हुई धककर एक जगे बैठ गयी। वै �
ए देवी आपकी जय हो ।। आपको बारं बार नमस्कार है।
हे भक्त वर प्रद्ध आपकी जय हो। हे मंगले
मंगल रूपे आपकी जय हो।
इसप्रकार भक्ती के द्वारा
देवी से वर प्राप्त करके बड़ी राणी ने गोरी अर्चन करके व्रत किया।
व्रत के प्रभाओ से राजा बड़ी राणी महा देवी को
वनों से महलों में ले गया।
देवी के प्रसाथ से राजा तथ उसकी दोनों राणियों की सब इच्छाएं
पूर्ण हुई। दोनों राणियों सहित राजा सम्पून राज्य का उपभोक कर
समध्धी शील हुगया। अन्त में राजा वे दोनों
राणियां देह त्याग कर शिव लोक चली गई।
शिव जी बोले,
हे तात,
जो लोग पारवती का व्रत करते हैं,
वे मेरा तथा पारवती का अत्यंत प्रिय प्राणी हो जाता
है। इस लोक में सुक्स सुविधा भोग कर और अपने शत्रों पर
विजय प्राप्त करके अन्त में मेरे लोक को चला आता है।
अब मैं तुम्हें इस व्रत की उध्यापन विधी पताता हूँ।
शूब तिती शुक्रवार,
चंद्रबल,
ताराबल हो जाने पर मंडप में अश्टदल,
कमल के ऊपर धान्य,
उसके ऊपर घट स्थापित करना चाहिए।
उस घट पर सोले पल का बनातांबे का पून पात्र रखना चाहिए।
उस पून पात्र में तिल भरकर
उसके ऊपर पार्वती तथा भगवान शंकर की प्रतिमा रखनी चाहिए।
उसके ऊपर दो श्वेत कपड़े और श्वेत रंग का यग्योपवित रखना चाहिए।
विधी पूर्वक वेद मंत्रों से पूजन कराकर रात में जागरन करना चाहिए।
अगले दिन प्राते काल पूजन करके हवन करें। पहले ग्रह होम फिर
आधान होम करना चाहिए। जोमिश्रित तिल को घी में मिलाकर एक
हजार या एक सो प्रधान अहुतियां देनी चाहिए। इसके बाद वस्त्र,
अलंकार,
धेनु आदी से आचार्य की पूजा करनी चाह
ना भी देनी चाहिए। उसके बाद अपने मिट्रों,
सम्मंधियों को भोजन कराना चाहिए। तथा स्वेम भी भोजन करना चाहिए।
बोलिये शिवशंकर भगवाने की जैए।
प्रिये भक्तों,
इस प्रकार, इस कथा के साथ ही शावन महात्म का
बार्मा अध्याय हाँ पर समाप्त होता है।
स्नही से बोलिये,
बोलिये शिवशंकर भगवाने की जैए।