Nhạc sĩ: Traditional
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बोलिये शिवशंकर भगवाने की
जै!
प्रिये भगतों
शिष्यु महा पुरान के
कोटी रुद्र सहिता की
अगली कथा है
भगवान शिव को सन्तुष्ट करने वाले
व्रतों का वर्णन
शिवरात्री व्रत की विधी
एवं महिमा का कथन
तो आईये भगतों आरंब करते हैं इस कथा के साथ
37 और 38 मा अध्याय
तदंतर रिशीयों के पूछने पर
सूत जी ने शिव जी की आराधना के द्वारा उत्तम एवं मनो वान्चित
फल प्राप्त करने वाले बहुत से महान इस्त्री पुर्शों के नाम बताए
इसके बाद रिशीयों ने फिर पूछा
हे व्यास शिष्य किस व्रत से संतुष्ट होकर
भगवान शिव उत्तम सुख पुरदान करते हैं
जिस व्रत के अनुष्ठान से भगत जनों को भोग और मोक्ष की
प्राप्ती हो सके उसका आप विशेश रूप से वर्णन कीजिये
सुच जी ने कहा
हे
महरशियों तुमने जो कुछ पूछा है
वही बात किसी समय ब्रह्मा विश्णू तथा पारवती जी ने भगवान शिव से पूछी थी
इसके उत्तर में शिव जी ने जो कुछ कहा
वेह में तुम लोगों को बता रहा हूं
बगवान शिव बोले मेरे बहुत से वरत हैं जो भोग और
मोक्ष परदान करने वाले हैं उनमें मुख्य दस वरत
हैं
जिन्हें जाबाल शुती के विद्वान दश शैव वरत कहते हैं
द्वीजों को सदायतन पूरवक इन वरतों का पालन करना चाहिए
हे हरे पृतिएक अष्टमी को केवल रात मेही भोजन करें
विशेश्ट ह
ख्रिशण पक्ष की अश्टमी को भोजन का सरवत्ह त्याग कर दें
ಕ়ತೂ ಕ໐ಷ್ಣಪೀಷ್ಕಿ ಅಕಾದ್ರಶಿಕಂ ಈರಾತ ಈ ಮಿರಾ ಈ ಪೂಜನ � bakalım first,
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शुक्ल पक्ष की त्रियोदशी को तो रात में भोजन करना चाहिए,
परण्तू क्रिश्न पक्ष की चतुरदशी को शिव वरत
धारी पुर्षों के लिए भोजन का सरवधा निषेध है.
दोनों पक्षों में प्रतेक सौम्वार को
प्रैतन पूर्वक केवल रात में ही भोजन करना चाहिए।
शिव के व्रत में तत्पर रहने वाले लोगों के लिए यह अनिवारिय नीयम है।
जूर्द्रिज् इनका त्याक करते हैं, वे छोर होते हैं।
मुक्ती मारग में परवीन पुरशों को मुक्ष की
प्राप्ति करानेवाले चार व्रतों का नीयम् पूर्वक।
पूर्वक पालन करना चाहिए। ये चार व्रत इस परकार हैं।
बगवान शिव की पूजा,
रुद्र मंत्रों का जप,
शिव मंदिर में उपवास, तथा काशी में मरन,
ये मोक्ष के सनातन मार्ग हैं।
सोहंवार की अश्टमी और किश्ण पक्ष की चत्रदशी,
इन दो तित्हियों को उपवास पूर्वक व्रत करखा जाय,
तो वे बगवान शिव को संतुष्ट करने वाला होता है।
इसमें अन्यता विचार करने की कोई आवशक्ता नहीं है।
एहरे,
इन चारों में भी शिवरात्री का व्रत ही सबसे अधिक पलवान है।
इसलिए भोग और मोक्ष रूपी भल की इच्छा रखने
वाले लोगों को मुख्यते उसी का पालन करना चाहिए।
इस व्रत को छोड़कर दूसरा कोई मनुष्य के लिए हितकारक व्रत नहीं है।
यह व्रत सबके लिए धर्म का उत्तम साधन है।
अथ्वा सकाम भाव रखने वाले सभी मनुष्यों,
वर्णों,
अश्रमों,
इस्त्रियों,
बालकों,
दासों,
दासियों तथा देवता अधि सभी देह धारियों के
लिए यह श्रेष्ट व्रत हितकारक बताया गया है।
अधिस्तित्रियों पर विद्धमान हो उसी
दिन उसे व्रत के लिए ग्रहन करना चाहिए।
शिवरात्री करोडो हत्याओं के पाप का नाश करने वाली है।
उस दिन सवेरे से लेकर जो कारिय करना आवश्यक है उसे
प्रसनता पूर्वक तुम्हें बता रहा हूं। तुम ध्यान देकर सुनो।
भक्तों,
आईये सुन्ते हैं कि क्या संकल्प करना हैं।
ध्यान से सुन्ये।
अर्थात्
देव, देव, महादेव,
नील कंट,
आपको नमसकार हैं।
हे देव,
मैं आपके शिवरात्री वरत का अनुष्ठान करना चाहता हूं।
हे देविश्वर,
आपके प्रभाव सेह वरत बिना किसी विगन बाधा के
पूर्ण हो और काम आदी शत्रु मुझे पीडा न दें।
ऐसा संकल्प करके पूजन सामक्री का संग्रें करें और उत्तम
इस्थान में जो शास्त्र प्रसिद्ध शिवलिंग हो उसके पास
रात में जाकर स्वेम उत्तम विधी विधान का संपादन करें।
फिर शिव के दक्षिन या पस्चिम भाग में सुन्दर इस्थान
पर उनके निकठी पूजह के लिए संचित सामक्री को रखें।
तलंतर शेष्ट पुरुष वहां फिर स्नान करें।
जिस मंत्र के लिए जो दिव्य नियत हो उस मंत्र को
पढ़कर उसी द्रव्य के द्वारा पूजह करनी चाहिए।
बिना मंत्र के महादेव जी की पूज़ा नहीं करनी चाहिये।
वाध,
नित्य आदी के साथ भक्ती भाव से संपन्य हो।
रात्री के प्रतं पहर में पूज़न करके विद्वान पुरुष मंत्र का जब करें।
यती मंत्रग्य पुरुष उस समय श्रेष्ट पार्थिव लिंग का निर्मान करें तो,
नित्य करम करने के पश्चात पार्थिव लिंग का ही पूजन करें। पहले पार्थिव
बना कर पीछे उसकी विदिवत इस्थापना करें। फिर पूजन के पश्चात नाना
परकार के इस त्रोतों द्वारा भगवान विशवधज को संतुष्ट करें। बुद्धी माह
पूर्वक सुने रात्री के चारों पहरों में चार पार्थिव
लिंगों का निर्मान करके आवाहन से लेकर विशरजन तक करमश है
उनकी पूजा करें और बड़े उच्छव के साथ प्रसन्यता पूर्वक
जागरन करें। प्रातेख काल इस्नान करके पुनेह वहां पार्�
बारंबार नमस्कार पूर्वक भगवान शंभु से इस प्रकार प्रार्थना करें।
आईए भक्तों,
बताते हैं कि आपको किस प्रकार प्रार्थना करनी हैं,
प्रार्थना एवं विशरजन कैसे करना हैं।
नियमोयो महादेव कृतश्चेवत्वदाज्ञाविशिज्ञयते
मयास्वामिन व्रतं जातं उतंममा
बोलिये शिवशंकर भगवान की जए!
अरथात,
हे महादेव,
आपकी आज्या से मैंने जो व्रत ग्रहन किया था,
स्वामिन,
मैं परम्मुद्धम व्रत पूर्ण हो गया,
अतेव अब उसका विशरजन करता हूं।
देविश्वर शर्व यथा शक्ति किये गए इस व्रत
से आप आज मुझ पर कृपा करके संतुष्ट हूं।
तत पश्चात शिव को पुषपांजली अरपित करके विधी पूर्वक दान दे,
फिर शिव को नमसकार करके व्रत सम्मंधी नीयम का विशरजन कर दे।
अपनी शक्ति के अनुसार शिव भक्त ब्राह्मणों विशेस्त सन्यासीयों
को भोजन कराकर पूर्ण तया संतुष्ट करके स्वेम भी भोजन करें।
हे हरे,
शिवरात्री को प्रतेक प्रहर में,
शेष्ट शिव भक्तों को जिस प्रकार विशेष पूजा करनी चाहिए,
उसे मैं बताता हूं।
सुनो,
प्रतं प्रहर में पार्थियूलिंग की स्थापना करके अनेग
सुन्दर उपचारों द्वारा उत्तम भक्ती भाव से पूजा करें।
पहले गंद,
पुष्प,
आदी पांच द्रव्यों द्वारा सदा महादेव जी की पूजा करनी चाहिए।
इस प्रकार द्रव्य समर्पन के पस्चात
भगवान शिव को जलधारा अरपित करें।
विद्वान परुष चड़े हुए द्रव्य को जलधारा से ही उतारें।
गुरु से प्राप्तु हुए मंत्र द्वारा भगवान शिव की पूजा करें।
अन्यथा नाम मंत्र द्वारा सदा शिव का पूजन करना चाहिए।
विचत्र चंदन,
अखंड चावल और काले तिरों से परमात्मा शिव की पूजा करनी चाहिए।
गमल और कनेर के फूल चढ़ाने चाहिए।
आठ नाम मंत्रों द्वारा शंकर जी को पुष्प समर्पित करें।
वे आठ नाम इस परकार हैं।
भव, शारु, रुद्र,
पशुपती, उग्र,
महान,
भीम और ईशान।
अन्के आरम्भ में श्री और अन्त में
चतुर्थी विभक्ती जोड कर श्री भवाय नमः।
इत्यादी नाम मंत्रों द्वारा शिव का पूजन करें।
पुष्प समर्पन के पश्चात धूप,
धीप और नयवेद्ध निवेदन करें।
पहले प्रहर में विद्वान पुरुष नयवेद्ध के लिए पक्वान बनवालें।
फिर श्री फल युक्त विशेशारक दे कर तामबूल समर्पित करें।
तदंतर नमस्कार और ध्यान करके गुरु के दिये हुए मंत्र का जब करें।
गुरु दत्त मंत्र नहो तो पंचाक्षर
नमाः शिवाय।
मंत्र के जब से भगवान शंकर को संतुष्ट करें।
धेनु मुद्रा
का लक्षन इस परकार है।
वामांग गुली नाम अधेशु।
दक्षिनांग गुली कास्तता।
दक्ष्यमध्यम् योर्वाबाम् तर्जनीम् चे नियोजयेत्।
वाम्यानामया दक्ष्यकनिश्थाम् चे नियोजयेत्।
दक्ष्यानामया वामाम् कनिश्थाम् चे नियोजयेत्।
बाएं हात की उंगलियों के बीच में दाहिने
हात की उंगलियों को सइयुक्त करके,
दाहिनी तर्जनी को मद्यमा में लगाएं,
दाहिने हात की मद्यमा में बाएं हात की तर्जनी को लगाएं,
फिर बाएं हात की अनामिका से दाहिने हात की कनिश्थ का,
और दाहिने हात की अनामिका के साथ बाएं
हात की कनिश्थ का को सेयुक्त करें,
फिर इन सब का मुख नीचे की ओर करें,
यही धेनु मुद्रा कही गई है।
धेनु मुद्रा दिखा कर उत्तम जल से तरपण करें,
अश्चात अपनी शक्ती के अनुसार पांश
ब्राह्मनों को भोजन कराने का संकल्प करें,
फिर जब तक पहला प्रहर पूरा न हो जाये,
तब तक बहान उत्सव करता रहे,
दूसरा प्रहर आरम्ब होने पर पुनहें पूजन के लिए संकल्प करें,
विशेष्टे विल्व पत्रों से परमेश्वर शीव का पूजन करना चाहिए,
दूसरे प्रहर में बिजोरा नीमु के साथ
अर्ग देकर खीर का नयवेद्ध निवेदन करें।
जनारदन इसमें पहले की अपिक्षा मंत्रों की दुगनी आवर्ती करनी चाहिए।
फिर ब्राह्मनों को भोजन कराने का संकल्प करें।
फिर शेस सब बाते पहले की भाती तब तक करता
रहें जब तक दूसरा प्रहर पूरा न हो जाये।
तीसरे प्रहर के आने पर पूजन तो पहले के समान ही करें,
किन्तु जो के इस्थान में ग्यहुं का उपयोग करें और आग के फूल चड़ाए।
अब अग के बाद नाना प्रकार के धूप एवं दीप देकर पूए का नयवेद्ध भोग लगाए।
उसके साथ भाती भाती के शाक भी अरपित करें। इस प्रकार पूजन करके कपूर
से आरती उतारें। अनार के फल के साथ अर्ग दे और दूसरे प्रहर की अपिक्षा �
तीसरे प्रहर की पूजा का विसरजन कर दे।
पुनहे आवाहन आदी करके विधीवत पूजा करें।
उडध, कंगनी, मूंग, सप्तधान्य,
शंक्ही पुष्प तथा विल्ब पत्रों से परमिश्वर शंकर का पूजन करें।
उस प्रहर में भाती-भाती की मिठाईयों का नयविध्य लगाए अथ्वा
उडध के बड़े आदी बनाकर उनके दुआरा सदाशिव को संतुष्ठ करें।
केले के फल के साथ अथ्वा अन्य विविद फलों के साथ शिव को अर्गे दे।
तीसरे प्रहर की अपेक्षा दूना मंत्र जब करें
और यथा शक्ती ब्रहमन भोजन का संकल्प करें।
गीत बाध तथा नित्त से शिव की आराधना पूर्वक समय बिताए।
भक्त जणों को तब तक महान उत्सव करते रहना चाहिए जब तक अरुनोदे न हो जाए।
अरुनोदे होने पर पुने स्नान करके भाती भाती के पूजन
उपचारों और उपहारों द्वारा शिव की अर्चना करें।
तत पशात अपना अभिशेक कराए।
नाना परकार के दान दे और परहर की संख्या के अनुसार ब्राह्मनों
तथा सन्यासीयों को अनेक प्रकार के भोज्य पदार्थों का भूजन कराए।
फिर शंकर को नमसकार करके पुश्पांजली दे और बुद्धीमान पुरुष
उत्तम स्तुती करके निम्नांकित मंत्रों से प्रार्थना करे।
आईए भगतों,
बताते हैं कि किस मंत्र के द्वारा प्रार्थना करनी है।
अग्यानाधधीवा ज्ञानाज्जः पपुजाधिकम्मया
क्रपानिधीत्वाज्जः घ्यात्तेव भूतनाथप्रसीदमे
अनेनेव्योपवासेन यज्जातमापलमेवच तेनेवप्रियतामदेवः शंकरः सुक्धायकः
बोले शिवशंकर भगवान की जए
अर्थात सदाशुकधायकरपानिधानशिव
मैं आपका हूँ,
मेरे प्रान्ट आपमे ही लगे हैं और मेरा चित सदा आपका ही चिंतन करता है
यह जानकर आप जैसा उचित समझें वैसा करें
हे भूतनात,
मैंने जानकर या अन्जान में जो जप और पूजन आदी किया है
उसे समझकर दयासागर होने के नाते ही आप मुझपर प्रसन हो,
उस उपवास वरत से जो फल हुआ हो उसी से सुखदायक भगवान शंकर मुझपर प्रसन हो
हे महादेव मेरे कुल में सदा आपका भजन होता रहे जहां के
आप ईश्ट देवता ना हो उस कुल में मेरा कभी जन्म ना हो
इस प्रकार प्रात्रणा करने के पस्चाद भगवान शिव को पुष्पांजली समर्पित
करके ब्राह्मनों से तिलक और आशिर्वाद ग्रहन करें तद अंतर शंभु का
विसरजन करें जिसने इस प्रकार वरत किया हो उससे मैं दूर नहीं रहता
इस वरत के भल का वर्णन
मैं देना डालूं
जिसके द्वारा अनायास ही इस वरत का पालन हो गया
उसके लिए भी अवश्य ही मुक्ति का बीजबो दिया गया
मनुश्यों को प्रतीमाः भक्ती पूर्वक शिव रात्री वरत करना चाहिए
तब पशाथ इसका उध्यापन करके मनुश्य सांगो पांग फल लाब करता है
इस वरत का पालन करने में मैं शिव निश्य ही
उपासक के समस्त दुखों का अनाश कर देता हूँ
और उसे भोग,
मोक्ष आदी संपून मनुवाश्यत फल प्रदान करता हूँ
सूज्जी कहते हैं
बोलिये शिवशंकर भगवाने की जए
प्रिय भक्तों,
इस प्रकार यहां पर शि शिव महा पुरान के कोटी रुद्र
सहिता की ये कथा और 37 तथा 38 मा अध्याय समाप्त होते हैं
तो स्नेख से बोलिये, बोलिये शिवशंकर भगवाने की जे
स्नेख से बोलिये
ओम नमः शिवाय
ओम नमः शिवाय
ओम नमः शिवाय