Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650
श्री सीता राघव
ही जृज़े
श्री सीता राघव
ही जृज़े
श्री सीता रागव
ही जृज़े
श्री हनुमन तलला
श्री हनुमन्तलला की जैजे
श्री
सीतारा घवे की जैजे
श्री राधा माधव की जैजे
श्री राधा माधव की जैजे
तो ये प्रेम कथा है आशूओ की कथा है
पर बगवान सुरसरी के तट पर आ पहुँचे।
यहां से केवट रखन का आरमभ होता है।
केवट नव का लेकर बैठा हैं।
भगवान खुद चल कर आ गए।
और जहां सनकादीक स्वयं भुमनू,
साक्षात योगीयों के ईश्वर शीव,
इंद्र, ब्रह्मा,
ये सब नारध,
भगवान वशिष्ट,
ऐसे बड़े-बड़े लोग जिसके पास मांगते हैं,
वो परमात्मा आज केवट से मांग रहे है। प्रसंग का
उद्घाटन ही मांगा शब्द से। मांगने से शुरू होता है।
तो पहली चर्चा संत्रोगों ने ये की,
कि जहां दुनिया मांगती हैं,
वहाँ आज परमात्मा ने क्यूं मांगा?
क्या भगवान गंगा पार ऐसे नहीं कर सकते?
तीन पदम में पूरे ब्रह्मान्ड को जो नाप लेता है,
उसको गंगा पार करना है क्या केवट सकते?
मांगना चाहिए, क्या जरूरत थी?
लेकिन भगवान मांग रहे हैं,
सब से कई अर्थ वताये हैं माहात्माओंने,
लेकिन ये अच्छा लगता है,
कि ये घटना यदी यमुना के तट होती,
तो भगवान नहीं मांगते.
ये घटना गुदावरी के तट पर,
ये घर्ना या कृष्णा या कोई और नदी के तट पर होती,
तो नहीं मांगते.
भगवान ने मांगा है,
क्योंकि ये घटना गंगा के तट गंगा.
रामभगती जहँ सुरन सरेधा,
सरसै ब्रह्म विचार भूँ,
सरसै ब्रह्म विचार भूँ,
रामभगती
जहँ सुरन सरेधा,
रामभगती जहँ सुरन सरेधा,
क्या समाधान मिलता है मानस में?
बगती के तत नारे,
नत्ी ये ते नारे,
वो संहाडा नी hotel night,
hai aviva gadget,
hai night hotel direct,
संतों ने बहुत सुन्दर बाते बताई
एक निषकाम भकती, एक सकाम भकती
हमने देखा है नदी एक तट से चूकर भहती होगी
और दूसरा तट खाली है
तो उस रेती में नदी का पानी लेकर
छोटे बड़े खेत बनाकर लोग सबजी वगारे उगाते हैं
वहं कुछ पाना नहीं वहं देना देना देते
तो केवट शकाम तथ पर नहीं बैठा था वो तो निषकाम तथ पर बैठा
तो केवट के बात छोड़ दें.
हम अपनी बात करें,
सब अपनी अपनी निच बात सोचें,
कि ज्यादातर लोग भक्ती दो बात पर करते हैं,
एक तो भय से या लोग से,
कि कुछ मिलें,
चलो सांसारी पदार्थ नहीं,
तो मुक्ति मिले,
कुछ यह मिले यह मिले धर्म मिले,
यह तो कोई होते हैं भरत जैसे परमम्स,
जो कहते हैं धर्मभी नहीं चाहें,
तो भई से हुआ करती हैं या तो भई लगता है कि
करना चाहिए भगवान का सुमिरन वरना कुछ ही यह हो जाए,
यह हो जाए
तो या भई, यह आदमी एक ऐसा मिला है प्रभु को
जिसकी निषकाम भक्ती में न कोई लोब है न कोई भय
लखनलाल जी उग्रह हो गए फिर भी वो बैठा रहा,
काल के सामने भी निरभई रहा यादमी
और भगवान को कहता है ननात उतराई चहो,
लोब नहीं,
जिसकी भक्ती में कोई लोब नहीं, कोई भय नहीं
वो क्या मागेगा भगवान,
उसके पास तो भगवान मागता है,
ये तो खड़ा भी नहीं हुआ,
वंदन भी नहीं करता,
बैठा है अपनी मस्ती बहुत
इतनी दलिल भगवान کے सामने प्रसंग,
आप जानते हैं,
बड़ा मधूरप्रसंग हैं।
सरकार चले गए, सरकार ने मांगा,
तो बैठे-बैठे खड़ा भी नहीं हुआ,
बैठा रहे अपनी नवका,
और बैठे-बैठे कह दिया,
मैं मर मैं जानता हूँ, ठहरियो,
कितना निर्भाई और बिल्कुल सहधा आदमी है ये,
प्रसंटों में, बाद में लूँगा, लेकिन कथा आती है,
संग कहते हैं,
जब केवट भगवान को गंगा पार कर देता है,
बाद में भगवान पूछते है,
कि वही एक प्रश्न मेरे दिल में आता है,
बोले,
हम आयें,
तेरे पास हमने मांगा,
तुम खड़ा भी क्यों नहीं हुआ,
तमसे कभी इतना तो विवेक होना चाही है इन्सान में,
कि खड़े होकर,
तुम खड़ा भी नहीं हुआ,
तब केवटी आख में आसमाल,
वोले महराज,
खड़े होने की क्षमता मुझे कहा,
हम तो शर्णागती के अंतीम छोर पर बैठे,
जहां से गिरना ही हो सकता है,
आप में डूब जाए गंगाब,
तुम ही हमको कुछ कहे, तुम ही बल दो, तो ही हम,
हम कहां वंदन करने की क्षमता हूं है,
हम कहां स्तुती करें,
हम कैसे बंदन करें,
एवती शर्णागती गवरी शंकर शिखर है,
इतना अद्भूत शर्णागत व्यक्ती है,
हम.
बगवान के सामे अपनी दलीले पेश कर रहा है।
Đang Cập Nhật
Đang Cập Nhật
Đang Cập Nhật
Đang Cập Nhật
Đang Cập Nhật