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बगवान ने वैसे बात भी दिये थे ना,
दाया पेर लखन को,
बाया स्री सीता जी को,
तो दोनों खूश हो गए.
लेकिन बगवान ने एक तीसरी बात भी कह दी थी,
कि यदी आप दोनों नहों,
तो मेरा हनुमान दोनों पेर अकेला दबाएगा.
हनुमान का भी फेस्टला वहां भी.
दक्षिने लक्षमनों यस्यवामेच जनकात्मजापुर्तो
मारुतिर्यस्यव तम्मंदे रहुन अंदरम्
तो ये दो पग बाटे गए,
यानि सेवा के लिए समाधान ढुन्डा,
यही बात को याद कर भगवान शायद हसे.
अथवा तो जो प्रसिद्ध कथा महात्मा लोग कहते हैं,
जिसको अभी हमने सपर्ष किया,
कि केवट गत जन्म में समुद्र का जीव था और भगवान के पैर को चुने गया,
तो लखनलाल जी को लगा कि,
शेष जी को लगा कि भगवान के चरण तक ये जीव जा रहा है,
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पुछ वैसे पढ़ा लिखा नहीं,
लेकिन कितना अदभूत पढ़ा लिखा,
कि जिसको जनम जनम की बात समिरन में आने लिए जीव था,
और यही सही सिख्षा है,
पिंगल सर्व वृता यह डिंगल,
जो न भयो नर आतम ज्यानी,
जिसको अपनी पता नहीं,
मैं कौन हूँ,
क्या था,
वो सब उसको सूझने लगा,
इसलिए हमारे गुज़राती में लिखा है,
राम,
लक्षमन,
जानकी,
तीनो गंगा कहते हैं,
हमारे सवराष्ट की बैशा का प्रसिद्ध भजन है,
जो जोई चतूराय भील जननी, जानकी
मुसुकाय जी,
जो जोई
चतूराय भील जननी,
जानकी मुसुकाय जी,
अभान के तलू याद राखें,
राम, चंद्र, भद्वान,
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