वर्णन आता है
कि महाराज
गोबर्दन की पूजा कभ हुई थी
तो कहा कार्ठिक मास शुक्ल पक्ष और परतीपदा को हुई थी
और महाराज इसके वाद वर्णन आता है कि भगवान ने अपने
कनश्चिका उंगली पर गिर्राजी को तर्तिया से ले करके
नवमी तक धारण किया है
और
दसमी को इंद्रीका विमान तूता आया भगवान
के सरणों में गिर गया भगवान की स्तुदे की
एक अधसी को क्या हुआ कि नन्द भावा को लगा कि सुभाए के
चार बज रहे हैं और उस समय रात्री के बारा बज रहे थे
और वे यमना दिन स्नान करने को चले गए
और
जो वर्ण के पाठसद हैं वे हैं
बाबा को ले गए तो मईया ने कहा रे लाला तिरे बाबा यमना में
स्थान करने गए वे अब तक लोटे के ना आयें जाके देखे तो आईयो
बगवान यमना जी किनारे गए देखा बाबा के
वस्त तो हैं अब ध्यान लगाया तो क्या देखा
कि वर्ण लोक में नन्दे बाबा
आज ज़ेसी वर्ण लोक पहुंचे आज जो वर्ण लोक के
राजा है वर्ण उन्होंने अपना आसन छोड़ दिया
बगवान को बैठाया तो यह द्रेश्य नन्दे बाबा ने देख लिया है
कहा यह तो बगवान है हमारा बेटा हमारा लाला बगवान है
अब वो कनईया बाबा को लेकर के आए
तो बाबा ने
सबसे कह दिया
कि जो गलती हो गई हो चमा कर मांग लो अरे कनईया बगवान है
तो गौलवर्ण पूछा बाबा कैसे
तो कहा मुझे वर्ण लोक के पार्चन ले गए थे
और जब यह कनईया यह लाला
वर्ण लोक गया
तो वर्ण ने अपना आसन छोड़ दिया
और इसके तरणों में गिर गया
तो आज सभी गौलवाल
भगवान से कहें लगे
अरे कनईया तू भगवान है
कहा ना है मैं तुम्हार सक्हा हूँ
कहा कौन कह रहो कहा तिर बावा कह रहे हैं अमते तो
कहा नहीं मैं तुम्हारा तो सक्हा हूँ
तो किसे ना पुछा रहे थो यूँ बता
कहा तू तुनवों चोटा साथ तरे तरणों में गिर राज गया से उठा लियो
गिर्राज कैसे उठा लियो?
भगवान ने कहा?
अरे
गिर्राज मने ऐसे उठाया
कच्छु माखन को बलबड़ो
कच्छु गोपन ने करी सहाय
स्री रादे जू की क्रपा से
मैने गिर्राज लियो उठाया
मैने गिर्राज लियो उठाया
भगवान ने कहा सखायाओ?
जो मैंने माखन खायाओ ना
वा माखन की ताकत वा गिर्राजी में लगगाई
तो गौवर ने कहा करे कनिये माखन तो मैंने उठायाओ
फिर हम क्यों न उठा पाए?
भगवान न कही जब मैं गिर्राज उठाएवे लगाओ न तो तुम सबरे मेरी ओर देख रहे
तो तुमारी सबरी ताकत मो में आ गई तो बाईत मैंने गिर्राज उठा लियो
जब ही तो कहूँ
मेरी ताकत खाँ चली गई
पह्ले तुम बाकन इंतर के चुन के चुरा वैये हो
अब ते ने ताकत elleying और चुत Below with
तो बाईंने कहा नाहीं ये जब ही तो कहूं मेरी ताकत
तो रादे जू की किरपा से मैंने गिर्वर लिया उठाये
मैं कोई भगवान नहीं हूँ
एक बात और
कि भगवान बहे
बृंदावन को छोड़कर कहीं जाते नहीं है
और जो बृंदावन है न
भे भगवान का घर है
कैसे तो कहा
पंचयोजन में वास्ती वनम में देहरूप कम
यह जो बृंदावन है पांच योजन का बृंदावन यह मेरा घर है
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