शुगदेव जी कहते हैं राजन
भगवान इस धराधाम पर अवतार ले करके आये
इतनी अपार खुशी है ब्रज में
मानों साक्षात बैकुंथ में निवास करने वाली श्री
भगवान के पीछे पीछे चल करके आगई ब्रज की गलियों में डोलने लगी
पुर्योंने के बैकुंथ पर अग़ेरों के विताकरथी में
पर लिए परील में आप मायर क्रेगंट परस्तेत हैंतन घइं। यूचियों
आज क्रोच कguitar, discouraged guitar and
जिसको जितनी चाहिए गाये दे जा रहे हैं।
महान मन वाले होकर नंदवावा ने मानो कुबेर का
खजाना खोल दिया आज भगवान का प्रागटे उत्सव है।
शुकाचार कहते हैं राजन
नंदवावा को उत्सव मनाते मनाते यह बात ध्यान आई की मैं
उत्सव में इतना व्यस्त हो गया कि हर वार जो हम प्रतिवर्ष
कर राजा कंस को दिया करते हैं इस वार हम देना बूल गये।
बहुत समय आगे बढ़ गया है
अपनी राणी यशोदा को बुलाया कहा राणी
तुम यहाँ पर आने जानने वालों के पूरा स्वागत आधी की
व्यवस्था को देखना कोई भी हमारे हां से खाली हाथ नहीं जाना
चाही सबका सम्मान होना चाही मैं महराज कंस को कर देने क
कंस को योगमाया ने मस्तक पर लाथ मार के जो बात कही
कि तुझे मारने वाला प्रजमंडल में जनम
ले चौका है तो कंस बड़ा भैवीत हो गया
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