मंगल भवन मंगल हारी
लबहुसु दसरत अजीर विदारी
इहां बिचार ही कपी मनमा ही
बीती आवधी काज कच्छुना ही
सब मिल कहा ही परस पर बाता
बिनु
सुधिलें करबु का भ्राता
कह अंगद लोचन भरी बारी दूँ प्रकार भई मृतु हमारी
इहां सुधि सीता कैपाई ओहां गए मारी ही कपिराई
पिता बधे पर मारत मोही राखाराम निहोरन ओही
पुनी पुनी अंगद कह सब पाही मरन भयाऊ कच्छु संसे नाही
अंगद बचन सुनत कपिबीरा बोलिन सकही नयन बहनीरा
छन एक सोच मगन होई रहे पुनी अस बचन कहत सब भये
हम सीता कैसुधी लिन्हे बीना नही जैसे जुबराज प्रभीना
अस कही लावन सिंधु तट जाए बैठे कपी सब दर्भडसाए
जामवंत अंगद दुख देखी कही कथा उपदेस विशेशी
तातराम कहू नरजनिमान हू निरगुन ब्रह्म अजित अज जान हू
हम सब सेवक अतिबड भागी संतत सगुन ब्रह्म अनुरागी
निज एच्छा प्रभु अवतरैं सुर्म ही गोद जलागी
सगुन उपासक संग तहं रहा ही मोच सब त्यागी
एही बिदी कथा कहा ही बहु भाती
गिरी कंदरां सुनी संपाती
बाहर हूई देखी बहु कीसा
मोही आहार दिन है जगदीसा
आज सब ही कहा भाचन कराऊं दिन बहु चले आहार बिन मराऊं
कब हुन मिल भरी उदर आहारा आज दिन बिदी एक ही बारा
डर पे गीद बचन सुनी काना
अब भामरन सत हम जाना
कपी सब उठे गीद कह देखी जाम वन्त मन सोच विसेशी कह अंगद
बिचारी मन माही धन जटायू समको नाही राम काज कारन तन प्यागी
हरीपुर गय उपरम बड़ भागी सुनी खगरश सोक जुत बानी आवानी कट
कपिन भैमानी तिन ही अभय करी पूछे सजाई कथा सकल तिन ताही सुनाई
सुनी संपाती पंधु के करणी रगुपति महीमा बहु बिधी बरनी
मंगल बवन अमंगल हारी दर्बहुसु बसरत अजीर बिहारी
मोहिले जाहू सिंधु तट देवु तिलान जलिताई
बचन सहाई करभी मैं पेहाँ हुँ खोज हुँ जाहु
मंगल बवन अमंगल हारी दर्बहुसु बसरत अजीर बिहारी
अनुजि क्रिया करी सागर तीरा कही निज कथा सुनहु कप बीरा
हम दो बंधु प्रथम तरुनाई गगन गए रभी निकट उडाई
तेजन सही सकसो फिर आवा मैं अभिमानी रभी नियरावा
जरे पंक अती तेज अपारा परंभूमी करी भोर चिकारा
मुनी एक नाम चंद्रमा ओही लागी दया देखी करी मोही
बहु प्रकार तेही ज्यान सुनावा देह जनित अभिमान चड़ावा
त्रेता ब्रह्म मनुज तनुधर ही तास नारी निसिचर पतिहर ही
तास खोज पठाईं ही प्रभुदूता तिनहाई मिले ते ओब पुनीता
जनिहाई पंक करसी जन चिन्ता तिनहाई देखाई देह सुतेह सीता
मुनी कै गिरा सत भाई आजू सुनि माम बचन करऊँ प्रभुकाजू
गिर त्रिकूट उपर बस लंका तहरं हरावन सहज असंका तहं असोक उपबन जहर है
सीता बैठी सोच रत आई
मंगल भवन अमंगल हारी रभवु सुदसरत अजिर बिहारी
मैं देखाऊं तुम्हनाही गीधं ही द्रिष्टी
अपार बुढः भयाऊनत करतेऊं कच्छुक सहाय तुमार
मंगल भवन अमंगल हारी रभवु सुदसरत अजिर बिहारी
जो नागई सत जोजन सागर करैसो राम काज मत आगर मुहि बिलोकी भरं हूं मन धीरा
राम कृपा कस भयाऊन सरीरा पापी उजाकर
नाम सुने रही अति अपार भोव सागर तरही
तास दूत तुम तजी कद राई राम घरदें धर करहूं उपाई
अस कही गारूड गीद जब गयाऊन तिन के मन अती विसमे भयाऊन
निज निज बल सब काहूं भाशा पार जाई कर संसे राखा
जरट भयाऊन वब कहाई रिछे सा नही तन रहा प्रतं बल ले सा
जब अहित्र विक्रम भये खरारी तब ते करून रहेऊ बल भारी
मंगल भवन पमंगल हारी लभवु सुद सिहत अजिर बिहारी
बलिबाधत प्रभु बाड़ हैऊ सोतन बरनिन जाई
उभये घरी महदिन ही सात प्रदच्छिन धाई
मंगल भवन पमंगल हारी लभवु सुद सिहत अजिर बिहारी
अंगद कहाई जाऊ मैं पारा जीया संसे कच्छु फिरती बारा
जामवंत कह तुम सब लायक पठय यकिन सब ही करनायक
कहाई रीचिपति सुन हनुमाना काचुप साध रहे हूं बलवाना
पवन तनय बल पवन समाना बुधि विवेक विज्ञान निधाना
कवन सो काज कटिन जगमाः ही जो नहीं होई तात तुम पाघीं
राम काज लगी तव अवतारा सुनत ही भयाव परबता कारा
कनक बरन तन तेज बिराजा मानव अपर गिरिन कर राजा
सिंह नाद करी बारे ही बारा लीले ही नागव जलनी धिखारा
सहित सहाय रावन ही मारे आनव इहां त्रिकूत उपारी
जामवन्त मैं पूछव तोही उचित सिखावन दीजव मोही इतना करहू तात तुम जाई सीत
ही देकी कहँ हू सुधी आई तब निजबुजबल राजिव नैना कोटुक लागी संग कपिसेना
मंगल भवन अमंगल हारी दब उसुद सिरत अजिर भिहारी
कपिसें संग संघारन सीचर रामु सीत ही पानी हैं
त्रेलोक्य पावन सुझसु सुर्मुनी नारे दादी वखानी हैं
जो सुनत गावत कहत समुझत परम पद नर पावईं
रघुबीर पद पाथोज मधुकर दास तुलसी गावईं
भावेश जरगुनात जसु सुन ही जे नर अरुनारी
तिन्ह कर सकल मनोरत सिध करे ही त्रिसिरारी
नीलोत पल तनस्याम काम कोटी सोभाय धिक
सुनिय तासु गुन ग्राम जासु नाम अग खग बधिक
इती श्री मद्राम चरित मानसे सकल कली
कलूष बिध्धंसने चतुर्थः सोपान समाप्तः
कैलर्यूग के समस्त पापों के नाश करने वाले श्रीराम चरित मानस का यह
चौथा सोपान समाप्तः हुआ किशकिन्धा कांड्ड समाप्तः
जय श्री सिताराम
Đang Cập Nhật
Đang Cập Nhật
Đang Cập Nhật
Đang Cập Nhật