मंगल भवन मंगल हारी
लबहुसु दसरत अजीर विखारी
बर्शा बिगत सरद रितु आई
लचिमन देखहु परम सुहाई
फूले कास सकल महि च्छाई
जनु बर्शा कृत प्रगट बुढ़ाई
उदित अगस्ति पंथ जल सोशा जीनी लोभाई सोशाई संतोशा
सरिता सर निर्मल जल सुहा संत घिदै जस गत मदमूहा
रसरस सूख सरित सरपाणी ममता त्याग करैई जीनी ज्याणी
सरद रित खंजन आई पाई समय जीनी सुक्रत सुहाई पंक नरेनु सोह असिधारनी नीति
निपुन निप कै जस करनी जल संकोच बिकल भैनीना अबुध कुटुंबी जीनी धन हीना
बिनो घनने मले सोह अकासा हरी जन इव परीहरी सब आसा
कहुं कहुं बृश्टि सार दी थोरी को एक पाव भगती जीमि मोरी
चले हरशीत जीनगर निप तापस बनिक भिखारी
जीमि हरी भगती पायु श्रम तजेही आश्रमी चारी
सुखी मीन जेनीर अगाधा जीनि हरी सरनन एक वबाधा
भूले कमल सोह सरकैसा निरगुन ब्रह्म सगुन भैजैसा
गुञ्जत मधुकर मुखर अनूपा सुन्दर खगरव नाना रूपा
चक्रबाक मन दुख निसपेखी जीनि दुरजन पर संपति देखी
चातक रटत तुशा अति ओही जीनि सुखलाईन संकर द्रोही
सरदा तपनिसी ससी अपहरई संत दरस जीनि पातक तरई
देखी इंदु चकोर संदाई चितवई जीनि घरी जन हरी पाई
मसक दंस बीते हिमत्रासा जीनि दुझ द्रोह किये कुलनासा
मंगल मवन पमंगल हारी जब हुस्द सेरत अजीर मिहारी
भूम जीव संकुल रहे गये सरद रितु पाई
सद गुर मिले जाहि जिन संसे भ्रम संदाई
मंगल मवन पमंगल हारी जब हुस्द सेरत अजीर मिहारी
बर्शा गत निरेमल रितु आई सुधिन तात सीता कै पाई
एक बार कैसे हुँ सुधि
जानों कालों हुँ जीत निनिश महु आनों
कत हुँ रहों जो जीवत होई तात जतन करी आनों सोई
सोग्रेवं हुँ सुधि मोरी बिसारी पाबाराज ओस पुर्नारी
जेही सायक मारा मैं बाली तेही सरहतो मूढः कह काली
जासु कृपाँ छूटेही मदमूहा ता कहु ओ मा की सपने हुँ कोहा
जानेही यह चरेत्र मुन ज्यानी जिन रखुबीर चरन रतिमानी
लच्छी मन क्रोध वंत रभु जाना धनुश चड़ाई गहे करबाना
मंगल भवन अमंगल हारी जब हु सुद सरत अजीर भिहारी
तब अनुजेही समुझावा रघुपति करुनासीव भय दिखाईले आवहु तात सखा सुग्रेव
मंगल भवन अमंगल हारी जब हु सुद सरत अजीर भिहारी
इहां पवन सुत रिदं बिचारा राम काजु सुग्रेव बिसारा
निकट जाई चर्णने सिरुनावा चारी हु बिधीते ही कही समुझावा
सुन सुग्रेव परम भैमाना बिशे मोर हरी लिंध ज्ञाना
अब मारुत सुत दूत समुझा पठवाँ जहतह बानर जूहा
कहा हु पाक्ख महु आवन जोई मोरे करता कर बध होई
तब हनुमन्त बुलाए दूता सब करकरी सनमान बहूता
भै अरु प्रीत नीत दिखराई चले सकल चरनन ही सिरनाई
यही आवसर लच्चिमन्पुर आए क्रोध देखी जहतह कपिधाई
मंगल भवन अमंगल आरी रभः सुदसरत अजिर भी आरी
धनुश चड़ाई कहा तब जारी करऊं पुरच्छार
ब्याकुल नगर देखी तब आयों बाली कुमार
मंगल भवन अमंगल आरी रभः सुदसरत अजिर भी आरी
चरनन ही सिरु बिनती किंघी लच्चिमन अभय बाह तेह दिंघी
क्रोधवंत लच्चिमन सुनिकाना कहक पीस अति भै अकुलाना
सुनु हनुमन्त संग ले तारा करी बिनती समझाऊ कुमारा
तारा सहीत जाई हनुमाना चरन बंदी प्रभु सुजस बखाना
करी बिनती मंदिर ले आये चरन पखारी पलंग बेठाये
तब कपीस चरनने सिरु नामा गई भुजल चीमन कंठ लगावा
नात विशय समद कच्छुनाई मुनि मन मोह करई चनमाई
सुनत बिनीत बचन सुख पावा लच्छी मन तेही बहु विधी समझावा
पावन तनय सब कथा सुनाई जेही विधी गए दूत समधाई
मंगल भवन अमंगल हारी रभः सुदसेरक अजिर भिहारी
हरश चले सुगरीव तब अंग दादिक पिसात रामानुज आगे करी आए जह रघुनात
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