मंगल भवन अमंगल हारी
लवः सुदसरत अजील मिधारी
नाही चरण सिरू कहकर जोरी
नात मोही कचु नाहिन खोरी
अतिसे प्रबल देव तव माया
छूटई राम करहूं जो दाया
विशय बास सुर नर मुनि स्वामी
मैं पावर पसुकपी अतिकामी
नारी नयन सर जाहिन लागा
घोर क्रोध तम निसि जो जागा
लोब पास जेही गरन बधाया
सोनर तुम समान रघुराया यह गुन साधन ते नहीं होई
तुम्हरी क्रिपा पाव कोई कोई तब रघुपती बोले मुसुकाई
तुम प्रियमुः भरत जिनिभाई अब सोई जतन करहूं मन लाई
जेही बिधी सीता कैसु धिपाई
मंगल भवन पमंगल हारी दब हुसुद सेरत अजिड विहारी
एही बिधी होत बत कही आये बानर जूत
नाना बरन सकल दिसी देखी यकीस बरूत
मंगल भवन पमंगल हारी दब हुसुद सेरत अजिड विहारी
बानर कटक उमा मैं देखा सोमुरूख जो करण चहलेखा
आई राम पद नाव ही माथा निरखी बदन सब हो ही सनाथा
असकप एकन सेना माही राम कुसलजी पूची नाही यह
कच नही प्रभु कई अधिकाई विश्वरूप ब्यापक रघुराई
हाड़े जहत आय सुपाई कहसु ग्रिव सब ही समझाई
राम काजु अरू मूर निहूरा बानर जूत जाहुं चहुं ओरा
जनक सुताक हुं खोज हुं जाई मास दिवस महं आय हुं भाई
मंगल भवन अमंगल हारी दब उसु दसरत अजिर भिहारी
बचन सुनत सब बानर जहत चले तुरंत तब सुग्रीम बुलाई अंगद नल हनुमन्त
मंगल भवन अमंगल हारी दब उसु दसरत अजिर भिहारी
सुनन हुनील अंगद हर्माना जामवंत मतःधीर सुजाना
सकल सुभट मिली दच्छिन जाहू
सीता सुधी उच्छिं सब काहू
मनक्रम बचन सो जतन बिचारे हू
राम चंद्र कर काजु सवारे हू
मानु पीठी सेय उर आगी
स्वामी सर्व भाव छलत आगी
तजी माया सेय परलोका मिट ही सकल भव संभव सोका
देह धरे कर यह फल भाई भजीराम सब काम भिहाई
सोई गुनाग सोई बड़ भागी जो रखुबीर चरन अनुरागी
आयसु मागी चरन सिरुनाई चले हरशि सुमिरत रखुराई
पाचे पवन तनय सिरुनावा जानी काजु प्रभु निकट बुलावा
परसासीस सरोरुख पानी कर मुद्र का दिन है जन जानी
बहु प्रकार सीतं ही समझायऊ कही बल भी रह बेगी तुम आयो
अनुमत जन्म सुफल करिमाना चले वो खृदं धरी कृपा निधाना
जद पिप्रभु जानत सब बाता राजनीती राखत सुरतराता
मंदल भवन पमंदल हारी दब उसुद सेरत अजीर बिहारी
चले सकल बन खोजत सरिता सरगिरिखोँ
राम काजलेलीन मन विसरातन करचोँ
कत हु होई निसचर से भेटा प्रान लेही एक एक चपेटा
बहुफ़ प्रकार गिरी कानन हे रही ओ मुनी मिलेई ताही सब घेरेई
लागि तुरिशा अतिसे अकुलाने मिलेईन जल घन गहन भुलाने
मन हनुमान किन अनुमाना मरन चहत सब बिन जल पाना
चड़ी गिरी सिखर चहुंदिस देखा भूमी बिबर एक कौतुक पेखा
चक्र बाक बक हंस उळाही बहुतक खग प्रभी सेइत ही माँहें
गिरी ते उतरी पवण सुत आवा सब कहुले सोई बिबर दिखावा
आगे कहे हनुमन तैंही लिन्हा पैठे बिबर बिलंब न किन्हा
मंगल भवन अमंगल हारी नभवुसु दसेरत अजिर बिहारी
दीख जाई उपबन बर सर बिगसित बहु कंज
मंदर एक रुचर तहन बैठी नारी तप पुञ्ज
मंगल भवन अमंगल हारी नभवुसु दसेरत अजिर बिहारी
दूरित ताही सबनी सिरुनाव पूचे निज बृतांत सुनाव तेही तब कहा करहू जलपाना
खाँ सुरस सुन्दर फल नाना मजन किन मधुर फल खाए
तास निकट पुनी सब चली आए तेही सब आपनी कथा सुनाई मैं अब जाब जहां रघुराई
मूद हु नयन भी बरतज जाओ पैह हु सीत ही जनि पछता हूँ
नयन मूदी पुनी देख ही बीरा थाड़े सकल सिंधु के तीरा
सोपुनी गई जहां रखुना था जाई कमल पद नाय सिमा था
बदरी बन कहु सो गई प्रभु अग्याधरि सीस
उर्धरिराम चरन जुग जे बंदत अज ईस
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