जगजीवन जगनाथ हरी
कीरत सिन्धु समानतिन
कलम गहा वही हात
यसुरचना दुडगान करी
रचना दुडगान करी
बोलिये सत्नाम सरकार की
जई
साहब भये तीस दिन केरे सोय रहाई पलंग परनेरे
बुलाई काम करी माता लीला करी हैं बाग विदाता
कोठरी बहरु गए महतारी लीला धर प्रभु कीरति पसारी
माता केरु परिक्षा लेना आपन सास रोक तब दिना
बायु प्राण चड़ा
वस यसही मृतु सरीरे पड़ा हो यसही
पूत्र सोक समसोक न कोई हाहा कार गाव मा होई
अधिक भिकल देखा ही महतारी प्राण बायु ब्रह्मान्दू तारी
बालक मुस्काही मैया तरप देख सकु चाही माता दोरी उठा वही
वैस जनम जनम निधि पावही जैसे अतिसे गगन नायन जले चावही
संदसिरो मारी हिदाय लगावही
बहुत गथीन परीछा लीन हा तात मातू सबका दुख दीन हा
यात
बिनती करहूं तुम्हारी मातू पिता नहीं करहूं दुखारी
साहब असलीला करही बीतही दिनयारुमारु रूप धरही सब देवता रहाई संत के पारु