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Bài hát jagjivan bodh, pt. 01 do ca sĩ Bijender Chauhan thuộc thể loại The Loai Khac. Tìm loi bai hat jagjivan bodh, pt. 01 - Bijender Chauhan ngay trên Nhaccuatui. Nghe bài hát Jagjivan Bodh, Pt. 01 chất lượng cao 320 kbps lossless miễn phí.
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Lời bài hát: Jagjivan Bodh, Pt. 01

Nhạc sĩ: Traditional

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

आये ग्रंथ जगजीवन बोध आरंब करें गर्भ छितावनीकहे धर्म सुनिये अब स्वामी मुझे सुनाए गर्भ कहानीकैसे जीव गर्भ में आता कैसे जीव जठर दुख पाताकैसे जीव परवश रहता कैसे इंद्रानीसे देह बनता कैसे जीव अपने पैर पकड़ताकैसे जीव समरत पैर पकड़ता कैसे जीव कस्मे खाएंकैसे साहिब दर्शन पाएं भेद सभी कहिए गुरु ग्यानीघट का भेद बताओ स्वामी कहते कभीर सुनो धर्मदासतुम्हारे अंदर उद्धीवाससत्य नाम गुण पहले गाओ फिर घट भी तर भेद बताओसभी जीव गरभ में जाते कसम खा कर बाहर आतेकसम गरभ की जो ननिभाता बारंबार गरभ में जातानो नाथ सिद्धि चोरासी सारे ये गरभ वास करते ही धारेनौ अवतार जो विश्णू धरते वो भी वास गरभ में करतेतैतिस कोटी जो देव कहाते गरभ में वास वो भी पातेजोगे जंगम और तपधारी गरभ वास करते ब्रह्मचारीगरभ वास जब छूटे भाई समरत गुरु जब होते सहाईगरभ पत्तारीनर नारी जब करे सैयोग काम बान लगे करते वोसप्त धातु का अंग बनाए जिवा दात मुख कान रचाएहाथ पाउं और शीश बनाया सुन्दर रूप बन गई ये कायानाखु ना गुली बहुत बनाए दश द्वार का किये उपाएनाडी नो द्वारदश द्वार बनाए ऐसे सब तरबंध लगाएनार बिंदुआं से काया बनती प्रकति आकर उसमें बस्तीतीन सो चो सट बंध लगाए सोला खाई वहां बनाएसोला खाई चोदह द्वारे आठ हाथ गड वहां समभारेकाया महल बहुती ही साजेआगानके जीव वहां बिराजे आजा महल बहुत खूब बनायाछटे महल हंस द्रिष्टी पाया छटे मास में सुरती आईदुख सुकी समझ उसने पाई ओंदे मुहंस है लटकताजहां महल कीच बहुत सरहता जठर अगनी वहां बहुत सताएमृत्यु आश्वाह जीव लगाए बोल मुख से निकल न पावेकरुणा कर मन बहुत पच्चितावे बहुत बिलाप उब मन में मनाताकिस करम का फल ऐसा पाता दुख अपना वो किसे बताएसाथी नजर न कोई आए या जनम वो पिछला करताबहुत सोच दिल में है रखता इस्त्री मित्री कुटुम परिवारसुतनाती और सेन प्यार संगी साथी बंधू भाईगर्व में हुआ न कोई सहाई महा दुख जो गर्व में पाताबहुत वैरा गिहदे है आता याद वो पिछली बाते करताकाश जनम मुझे पिछला मिलता करें जीव गर्व में ग्यान विचारअब मैं सिम्रू सिर जनहार मुह्माया अब कुछ ना चाहूशराण गुरू की अब मैं पाऊदिल में जीव बहुत करे विचार समरत से फिर करें गुहारसुन धर्मदासिक कथा सुनाऊं पातिक राजा की तुझे बताऊं जग जीवन था उसका नामजब वो पहुँचा गर्भिशान होके अधीर भुविन्ती करता सत्गुर शरण राजा पढ़तासंकट मिटाओ प्रभु हमारा साहिब मैं हूँ दाश तुमारा दिल में करता करुना भारीमुझको उबारो हे हितकारी करके विन्ती ध्यान लगाए विन्तु मारे कौन छुडाएअब दुख दूर निवारो स्वामी करू प्राथना हे अंतर्यामीबाहर निकालो हमें हितकारी बहु दुख पावे देह हमारीमैं जन प्रभु का दास कहाओं और देव को ना इश बनाओंसदा रहूं मैं सत गुरुदास हर दम राखूं शब्द को पासमितूठ कर चर्णा मृत पाओं तन मन धन सभी लुटाओंअपने तन से जो मैं कमाओं गुरु चर्णों आधाओं से चड़ाओंसीख बुरी ना किसी की मानू हराम माल को विश समझानूकुल की त्यागू मान बढाई निर्मल ज्यानिक संत सहाईरादिन में गुरु ध्यान लगाओं, गुरु चर्णों से प्रीत निभाओं, दुख सुक हस कर में सहूंगा, गुरु की भक्ती में दृध करूंगाताकूं नहीं मैं दूजी नारी, हर इस्त्री माता बेहन हमारी, कड़वे वचन कभी ना बोलूं, शीतल बेहन सदा मुख खोलूंहर सांस में गुरु नाम जपूंगा, दूजी आस में नहीं रखूंगा, करूं वही जो गुरु बताएं, गुरु आज्याना कभी भुलाएंसकल जगत को बैरी जानू, सत्गुर को मित्र अपना मानू, ज्यान बताएं वो गुरु हमारे, तनमन धनवारु आपे सारेगर्भवास में सौगन दिखाऊं, बाहर निकल के सभी निभाऊं, एक ही नाम को सच्चा मानू, और सबको मैं मित्या जानूइस तुति कैसे करूं मैं दाता, गर्भवास बहुत दुख पाता, यहां कोई मित्र नहीं है भाई, मां पिता नहीं लोग लुगाईतेरी देव कवश ना चलता, गुर्बिन रक्षा कोई ना करता, पिछली बातें याद हमें आती, कोई किसी का नहीं रे साथीअपने साथ ना कुछ चलेगा, सुक्त सदा ही साथ रहेगा, मद माया में जी भर माया, कुछ भी काम यहां नहीं आयाबहुत विचार में गर्भ में करता, अनकाल सहाई कोई ना बनता, ऐसे मन में करें विचार, दया करो ही दुख भन जनहारसब साहिबियों कहे पुकार, हम तुम्हें समझाएं पारंबार, अनेक बार गर्भ वास में आया, रति कर्म भरम ना तुने पायाकई बार कस्में तुमने खाई, गर्भ वास में तुम सभी भुलाई, गर्भ में ज्यान होता है तुमको, संकट काल सुमिर्ता हमकोबाहर निकल के भूले ज्यान, अभिमानी बन करें गुमान, बहुत बार तुम भुलाए भाई, सत्गुरु दीक्षा न तुमने पाईगर्भ वास छुटे तभी तुमारा, जब सत्गुरु बन तेरा सहारा

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