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Bài hát sultan bodh, pt. 01 do ca sĩ Bijender Chauhan thuộc thể loại The Loai Khac. Tìm loi bai hat sultan bodh, pt. 01 - Bijender Chauhan ngay trên Nhaccuatui. Nghe bài hát Sultan Bodh, Pt. 01 chất lượng cao 320 kbps lossless miễn phí.
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Lời bài hát: Sultan Bodh, Pt. 01

Nhạc sĩ: Traditional

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

अजर अमर सत्नाम है शोक मिटा देवों उनके चर्णों में रहो कमल पे भवराज्यों
तब धर्मदास ने कहा धर्मदास तब शीश जुकाए गुरुदेव आगे समझाए कैसे छोटे ये संसार उसका स्वामी कहो विचार
बल्ख शहर का भेद बताओ गुरुदेव तुम सब समझाओ राज का सुख सब छोड़ दिया था
माया से मुक्मो लिया था धर्मदास तुमको समझाओ बल्ख शहर का भेद बताओ
बल्ख शहर एक बड़ा ही सुंदर एक यानी था राजा वहाँ पर बादशाह ऐसा सरदार
मन में रखता प्रेम विचार इब्राहिम अधम जो माना
राज काज में भक्ती को ठाना ये विचार राजा को आया अपना कारज करना चाहा
जीवन ये अनमोल बतावें इस तन से ही प्रभू मिल जावें अभी यदि प्रभू नहीं पाया छणबे मिट जाएगी काया
ये विचार राजा को आया सब विद्वानों को बुलवाया विप्रसाधु सन्यासियाए योगी आदियती बुलाए
ज्ञानी ज्ञानी सब के पीर काजी मुला शेक फकीर सभी इखटे हुए वहाँ पर राजा ने पूछा अर्था कर
राजा कहे मुझे समझाओ मुझे खुदा का रूप दिखाओ
खुदा मिले कहो वही उपाये कौन राम और कौन खुदाए
एक खुदावा और कौन है एक से दूसरा कहो कौन है
दोनों धर्मों को समझाओ दो में कौन सत्य बतलाओ
आथ जोड़ कर सब से मिले
मैं कहूं सदा आपकी सेवा में रहूं होकर अधिन शीष नवाकर सबसे पूछा मन को लगाकर प्रभु का सब संदेश सुनाओ
मेरे मन का भ्रम मिटाओ प्रभु रहे कौन से देश सारी बात कहो दुर्वेश दोनों रास्ते किसने चलाए
किसने बैकुंठ विहिस्त बनाए इतनी बात सभी समझाओ सभी असत्य को दूर हटाओ
बिन देके सब दिल में धरते कांच दाते खतना करते मेरे भ्रम को आप मिटाओ मानुंगा में सत्य बताओ
हिंदू सब बैकुंठ को धावें विहिस्त को मुसल्माने
थैरावें इनमें कहां प्रभू का वास बिन देखे कैसा विश्वास किसी को उसका घर नहीं पाया
सबने जूटा दंद मचाया खुदा की खबर जो नहीं बताएं सबको कैठाने पहुचाएं
दोनों धर्म किसने भरमाएं कोई खबर क्या अनकी पाएं
दोनों धर्मों को समझाओ मन में मेरे अंदेशी
किस प्रभू ने धर्म रचे रहे कौन से देशी
इब्राहिम तुम से कहे सारा भेद मुझे बतलाओ
प्रभू भेद जो ना कहो
तो फिर कैद में जाओ
राजा का ऐसा निर्देश दशों दिशा फैला संदेश
हम काशी में ये सुन पाए स्वेम वहाँ पर उठ कर आए
जिन्द रूप तब हमने किया शाह को जाकर दर्शन दिया
तख्त पर बैठे थे
सुल्कान जिन्द ने किया दुैर सलाम
उसने सलाम नहीं स्वीकारी
उसके मन खाख हमन्द भारी
कहे सुल्कान सुनो दुरवेश
जिन्द रूप किया किसने भेज
कहां को जाना कहां से आए
किस कारण से दर्शी कर आए
हम तो पूछते खुदा की बानी
प्रभु ज्यान की कहो निशाने जो भी उसका आदी बतावे वही मुर्शिद पीर कहावे
दिल में हमारे दर्दी च्छाया किसी ने खुदा को नहीं बताया
जिन्दा कहे ये भाई सुन लो शट दर्शन को आप छोड़ दो तब हम तुमको ज्यान करावे
आपका संशे सभी मिटावे शट दर्शन को अभी छोड़ना जो चाहो हमसे ले लेना
आपकी शंका सभी मिटाओं जो भी पूछो वही बतलाओं
फिर सुल्तानी ये वचन सुनावे कैसे भ्यम हमारा जावे
जो करते हो ऐसी बात क्या हो कुदा दूसरे
आप सब हमने एक कला दिखाई भैंसा से निजसा क्यों भराई
वहां उपस्थित भैंसा आया भैंसे ने ये वचन सुनाया
वह बोला सचे दुर्वेश मानो शहाईन का उपदेश
खुदा समानी में तुम जानो इनसा करता और नमानो
सुनके शाहिन
अचंवित हुँ गया भैंसा कैसे साक भर गया
ये तो पीर आलिया आये भैंसा द्वारा साप दिलाये
चाह के दिल आया विश्वास इस दुर्वेश की बात है खास
शट दर्शन के बंदी छुडाये बंदी छोडि कह कह सब आये
बंदी छोड़ कहाए बलक शहर में जाए
धन्य धन्य सब जग कहे बंधन दिये छुडाए
तब सुलकान बिचार ये लावे इनकी गती समझ ना पावे
पैसा द्वारा साथ भरा दी ये तो गती नहीं मानव की
जब सुलकान ने ऐसा देखा फिर उनसे ये प्रश्न था किया
कहे सुलकान सुनो दुर्वेश आप कौन हैं क्यों ये भेश
कहां से आए कहां को जाओ इतनी बात मुझे समझाओ
आप ही मुर्शिद पीरों
हमारा हमने दिल में यही विचारा
कहां से आए जिन्द जी और कहां रहे जाए
हिंदु हो या तुर्क हो हमको दो समझाए
सुन भाई कहते दुर्वेश
सिंदारू
कहते दुर्वेश

वो खुदा का विश्व
हर घृदे में प्रभू को पावे
दोनों धर्म और राह चलावे
हम तो नरक से विहस्त को जावे
एक काम तुमको बतलावे
तुम तो यहां बड़े हो सुलतान
इस सुई को तुम लो पहचान
जब भी शाह विहस्त में आना
इस सुई को साथ में लाना
इसी काम से हुआ है आना
खुब संभाल के इसको लाना
तुम तो शाह वो बड़े महान
इतनी बात का रखना ध्यान
विहस्त में तुम से सुई जो पाए
सच्चा तुमें मानी ही जाए
शाह ने हस्कर सुई को ले लिया
एक हजार का वादा कर दिया
तुम पे ये विश्वास दिलाए
सुई हजार हम ले कर आए
इतनी बात शाह से कह गए
और वहाँ से तुरंत चले गए
एक सुई को हम से लिया
एक हजार का वादा किया
इतना कहकर हम चल दिये
शाह को कहचा
बताए फिर वहां दिशाम में जुड़ी अदालत आए
सब मिलकर फिर वहां पे आए पादिशाह आसन पर पाए
शाह के हाथ में सुई को देखा तब वजीर ने मन में सोचा
हाथ जोड़ी कर बिंती की है कैसे सुई हाथ में ली है
हे महराज हमें बतलाओ सुई का कारण तो समझाओ
तब सुल्तान ने कहा फिर सुल्तान ने बात बताई
कथा सुई की फिर समझाई एक दुर्वेश यहां पर आया
सुई को जिस से हमने
पाया उसने कहा विहिस्त जब आना इस सुई को साथ में लाना
वो बोला मुझे से दुर्वेश हम सुई लेंगे उस देश
एक सुई को हमने ले लिया सहस्त सुई का वादा कर दिया
जब सुल्तान से इतना बताया तब बजीर ने वचन सुनाया
तब दिवानी
दिवान ने कहा कहे दिवान सुनो जी साई कैसे सुई की हिस्ती को जाई
गाउं पर अगना और ठकराई ये सारी तो यही रह जाई
मात पिता सुत सुंदर नार तन धन और ये घरवार
अंत समय ये काम ना आवें तैम को समझ जीव सुख पावें
जहां तक जग में दिश्टी जावें वह सब ख्षण में नस्त हो जावें
सुख को कितने यतन बनावें ये तन जले दफन हो जावें
फिर वजीर निज शीश जुकावें कैसे सुई संग में जावें
अपने दिल में करो विचार किस विद सुई चले सरकार
तब सुलतान कहा तब सुलतान ने वचन सुनाए एक विचार कुमें बतलाए
इतना लशकर संग में जावें चार हाथी सुई लदवा में
तब वजीर ने कहा करो विचार अपने मन में
हाथी संग चले ना संग में
हाथी गोड़ा और खजाना तंग में कुछ भी नहीं है जाना
सुल्तान ने कहा तब सुल्तान वचन ये सुनावे
पैठ पाल की भी हिस्ति को जावे पांसों में फिर सुई भरावे
इस विज सुई संग ले जावे फिर वजीर ने कहा
फिर वजीर ये वचन सुनावे पाल की कबर तलक ही जावे
आगे फिर क्या विदी बनाओ वही विदी मुझे को समझाओ
तब सुल्तान ने कहा आगे गोड़े पर चड़ जावे
उसकी जीन में सुई भरावे इस विदी को हम अपनावे
उस दुर्वेश को सुई पहुचा में तब कबीर ने कहा
इतना सुन दीवान हसा था हाथ जोड़ कर खड़ा हुआ था
दादा बाबा आपके जो भी गोड़े चड़ कर गए न वो भी
ये कुछ संग में न चलें सुनो शाह चेतिला
आए ये तन भी है चार दिन तिर ये संग न जाए

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