आये ग्रंथ जगजीवन बोध आरंब करें गर्भ छितावनी
कहे धर्म सुनिये अब स्वामी मुझे सुनाए गर्भ कहानी
कैसे जीव गर्भ में आता कैसे जीव जठर दुख पाता
कैसे जीव परवश रहता कैसे इंद्रानी
से देह बनता कैसे जीव अपने पैर पकड़ता
कैसे जीव समरत पैर पकड़ता कैसे जीव कस्मे खाएं
कैसे साहिब दर्शन पाएं भेद सभी कहिए गुरु ग्यानी
घट का भेद बताओ स्वामी कहते कभीर सुनो धर्मदास
तुम्हारे अंदर उद्धीवास
सत्य नाम गुण पहले गाओ फिर घट भी तर भेद बताओ
सभी जीव गरभ में जाते कसम खा कर बाहर आते
कसम गरभ की जो ननिभाता बारंबार गरभ में जाता
नो नाथ सिद्धि चोरासी सारे ये गरभ वास करते ही धारे
नौ अवतार जो विश्णू धरते वो भी वास गरभ में करते
तैतिस कोटी जो देव कहाते गरभ में वास वो भी पाते
जोगे जंगम और तपधारी गरभ वास करते ब्रह्मचारी
गरभ वास जब छूटे भाई समरत गुरु जब होते सहाई
गरभ पत्तारी
नर नारी जब करे सैयोग काम बान लगे करते वो
सप्त धातु का अंग बनाए जिवा दात मुख कान रचाए
हाथ पाउं और शीश बनाया सुन्दर रूप बन गई ये काया
नाखु ना गुली बहुत बनाए दश द्वार का किये उपाए
नाडी नो द्वार
दश द्वार बनाए ऐसे सब तरबंध लगाए
नार बिंदुआं से काया बनती प्रकति आकर उसमें बस्ती
तीन सो चो सट बंध लगाए सोला खाई वहां बनाए
सोला खाई चोदह द्वारे आठ हाथ गड वहां समभारे
काया महल बहुती ही साजे
आगान
के जीव वहां बिराजे आजा महल बहुत खूब बनाया
छटे महल हंस द्रिष्टी पाया छटे मास में सुरती आई
दुख सुकी समझ उसने पाई ओंदे मुहंस है लटकता
जहां महल कीच बहुत सरहता जठर अगनी वहां बहुत सताए
मृत्यु आश्वाह जीव लगाए बोल मुख से निकल न पावे
करुणा कर मन बहुत पच्चितावे बहुत बिलाप उब मन में मनाता
किस करम का फल ऐसा पाता दुख अपना वो किसे बताए
साथी नजर न कोई आए या जनम वो पिछला करता
बहुत सोच दिल में है रखता इस्त्री मित्री कुटुम परिवार
सुतनाती और सेन प्यार संगी साथी बंधू भाई
गर्व में हुआ न कोई सहाई महा दुख जो गर्व में पाता
बहुत वैरा गिहदे है आता याद वो पिछली बाते करता
काश जनम मुझे पिछला मिलता करें जीव गर्व में ग्यान विचार
अब मैं सिम्रू सिर जनहार मुह्माया अब कुछ ना चाहू
शराण गुरू की अब मैं पाऊ
दिल में जीव बहुत करे विचार समरत से फिर करें गुहार
सुन धर्मदासिक कथा सुनाऊं पातिक राजा की तुझे बताऊं जग जीवन था उसका नाम
जब वो पहुँचा गर्भिशान होके अधीर भुविन्ती करता सत्गुर शरण राजा पढ़ता
संकट मिटाओ प्रभु हमारा साहिब मैं हूँ दाश तुमारा दिल में करता करुना भारी
मुझको उबारो हे हितकारी करके विन्ती ध्यान लगाए विन्तु मारे कौन छुडाए
अब दुख दूर निवारो स्वामी करू प्राथना हे अंतर्यामी
बाहर निकालो हमें हितकारी बहु दुख पावे देह हमारी
मैं जन प्रभु का दास कहाओं और देव को ना इश बनाओं
सदा रहूं मैं सत गुरुदास हर दम राखूं शब्द को पास
मितूठ कर चर्णा मृत पाओं तन मन धन सभी लुटाओं
अपने तन से जो मैं कमाओं गुरु चर्णों आधाओं से चड़ाओं
सीख बुरी ना किसी की मानू हराम माल को विश समझानू
कुल की त्यागू मान बढाई निर्मल ज्यानिक संत सहाई
रादिन में गुरु ध्यान लगाओं, गुरु चर्णों से प्रीत निभाओं, दुख सुक हस कर में सहूंगा, गुरु की भक्ती में दृध करूंगा
ताकूं नहीं मैं दूजी नारी, हर इस्त्री माता बेहन हमारी, कड़वे वचन कभी ना बोलूं, शीतल बेहन सदा मुख खोलूं
हर सांस में गुरु नाम जपूंगा, दूजी आस में नहीं रखूंगा, करूं वही जो गुरु बताएं, गुरु आज्याना कभी भुलाएं
सकल जगत को बैरी जानू, सत्गुर को मित्र अपना मानू, ज्यान बताएं वो गुरु हमारे, तनमन धनवारु आपे सारे
गर्भवास में सौगन दिखाऊं, बाहर निकल के सभी निभाऊं, एक ही नाम को सच्चा मानू, और सबको मैं मित्या जानू
इस तुति कैसे करूं मैं दाता, गर्भवास बहुत दुख पाता, यहां कोई मित्र नहीं है भाई, मां पिता नहीं लोग लुगाई
तेरी देव कवश ना चलता, गुर्बिन रक्षा कोई ना करता, पिछली बातें याद हमें आती, कोई किसी का नहीं रे साथी
अपने साथ ना कुछ चलेगा, सुक्त सदा ही साथ रहेगा, मद माया में जी भर माया, कुछ भी काम यहां नहीं आया
बहुत विचार में गर्भ में करता, अनकाल सहाई कोई ना बनता, ऐसे मन में करें विचार, दया करो ही दुख भन जनहार
सब साहिबियों कहे पुकार, हम तुम्हें समझाएं पारंबार, अनेक बार गर्भ वास में आया, रति कर्म भरम ना तुने पाया
कई बार कस्में तुमने खाई, गर्भ वास में तुम सभी भुलाई, गर्भ में ज्यान होता है तुमको, संकट काल सुमिर्ता हमको
बाहर निकल के भूले ज्यान, अभिमानी बन करें गुमान, बहुत बार तुम भुलाए भाई, सत्गुरु दीक्षा न तुमने पाई
गर्भ वास छुटे तभी तुमारा, जब सत्गुरु बन तेरा सहारा