बोलिये भगत वश्चल भगवान की जए
आज
वर्णन करने लगे कि मेरे गोबिंदने राक्षिसों का धार किया है
एक दिन क्या हुआ
कि जो वस्वदेव जी है उन्होंने प्रोईज जी को गर्गाचार जी को
गोकल भेजा है
तो
नन्दे बावा को पता सकी जिया गर्गाचार जी आये है तो
गए जाकर के प्रनाम किया है
एक वार प्रेम से बोलिये राधे राधे और जोर से जाकर के प्रनाम किया है
तो आज गर्गाचार जी ने कहा बताओ नन्दे
कहा
ए गुर्देव आपकी किरपा हो जाए
तो हमारी दो बालक हैं आप उनका नामकरण कर दें
तो आज गर्गाचार जी ने कहा नन्दे क्या तम्हें पता नहीं है
कि आश्पाई जहांपर कंश की गुप्ते चर घूम रहे है
और यदि कंश को पता चल गया कि योदो बालक जीवित है
तो वे यह सोचेगा कि यही दो बालक मेरे काल हैं
तो आज
कहा नहीं तो
नन्दे बाबा नहीं कहा करना ही पड़ेगा
बाबा नहीं जब कहा
तो आज गर्गाचार जी कहा नहीं लगे करेंगे
लेकिन तुम
जो वे सुब कारे करते हो तो इसका बहुत बड़ा उससब मनाते हो
कहा
हम उससब नहीं मरेंगे दिए आप कहेंगे तो हम गोशाला में ही नामकरण कर देंगे
कहा ठीक है तो आज
गर्गाचार जी गोशाला में पहुंचे इधर नन्दे बाबा गए
और कहा री अशोदा आज हमारे गोकल में बड़े विद्वान पढारे हैं
और यदी हम उनसे पने बालगो का नामकरण करवा लें तो कैसा रहेंगे कहा
मेर आपकी जाएँ शिक्षा
तो आज मैया ने
रोहिनी से कहा री रोहिनी
अभी मेर कह गए थे कि बड़े विद्वान आये हैं
तो हम पता कैसे लगाएं कि विद्वान हैं की नहीं हैं
तो आज रोहिनी ने कहा री अशोदा एक काम करते हैं
तू अपना बालक मुझे को दे दे और मैं अपना बालक तुशको दे दूँगी
और
हम बालकों को ले करके जाएंगे
और यदी ब्रामण विद्वान होगा तो बता देगा
और यदी नहीं होगा
तो नहीं बताएगा का ठीक है
तो आज दोनों माताईं
ने क्या किया अपना बालकों से दे दे उसका बालक ले लिया
दोनों चली हैं
और
बरननाता है कि आज जैसे ही गोशाला में प्रवेश किया और
गर्गाचार जी के पास पहुंचे तो गर्गाचार जी बोल पड़े
अरे यशोदा
अहम् ही रोहिने पुत्रो
रम्यन सुहिर्दगुडे आख्यास्ते राम्यते
बलादिखात बलम्विदो
आध वरनन कर दिया किया यशोदा तुम्हारी गोध में
आहम् ही रोहिने पुत्रो यह रोहिने का पुत्र कैसे
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