एक दन क्या वहा परक्षित ये देखने के लिए ब्रह्मन करने गए
कि मेरे राज में कोई परिसान तो नहीं है।
तो आज
परक्षित जब गए तो नहीं क्या देखा कि एक बैल और एक गाई है।
बैल जो है उसके तीन प्यार नहीं है वह एक प्यार पर खड़ा है
और एक काला पुरस
उस प्यार को भी काटना चाहरा है, तोड़ना चाहरा है,
बैल उगिराना चाहरा है।
तो कहा ये गाई कौन है, ये गाई परत्वी है,
ये बैल धर्म है और वह काला पुरस कल्यूग है।
तो आज
जब
राजपच्छी ने द्रश्च देखा,
तो कहा तुम कौन हो,
कहा मेरा नाम कल्यूग है,
तुम मेरे राज में रह नहीं सकते हो,
तो आज कल्यूग ने कहा, तो मैं कहाँ जाओं,
आप ही कुछ करपा करें,
तो आज राजपच्छी ने कलिए को चार स्थान दिगे हैं।
अभ्यर्ति इस्तस्तदातस्में इस्थानानी कलये ददवो
दिवुतं पानं स्रियासूना यत्रधर्मस्चतुर्विदः।
कहा दिवुतं जहांपर जूआ खेला जाता हो,
पानं जहांपर मदरे का पान हो,
और इस्त्रिया जहांपर वैस्या गमन हो,
सूना
जहांपर हिन्सा हो,
पांचमे लता summation by Rishabегодi
हिँसा से चौरि तो कमायेवा धन उसके जो सोना आता है उसमें कल्युका बास है
और मेनथ से कमायेवा धन उसके जो
सोना आता है उसमें मेरे गोबिन्दं का बास होता है
यदि आप जो भी वस्तु घर में लाएं,
सबसे पहले सर्वप्रता मेरे गोविण्द के सर्णों में रखें,
तो का उससे क्या होगा?
उससे जितने भी राग द्वेस हैं,
वे सब नस्ट हो जाते हैं।
वर्णन करने लगे,
जब पांड़ब चले गए,
तो भीम था,
उसका और जरासंद का युद्ध हुआ था।
जरासंद कौन था?
पापी था, उसका मुकृत था,
तो आज राजा परिछेतने भे मुकृत धारन कर लिया है।
और आज
उस मुकृत में कल्युख का वास हो गया है।
अब
कभी राजा परिछेत सिकार खिलने जाते नहीं हैं,
पर आज कल्युख का वास हो गया,
तो राजा परिछेत सिकार खिलने के लिए गए हैं।
आज क्या हुआ?
अगर वे खिलने के लिए खिलने जाते थे,
तो वे रास्ता भटक गए।
तो आज उनको बहुत जोड़ से प्यास लगी,
तो कल में आपको बताया था कि वे समीक मुने के आपर गए हैं।
उन्होंने जल की फिच्चा की तो समीक मुने ध्यान में बैठे थे,
मैं कुछ बोले नहीं।
राजा परिछेत ने सोचा, ये मेरे अपमान कर रहे हैं।
हाला कि राजा परिछेत की मन में कभी
येसा द्विश आया ही नहीं संतों के परती।
परन्तु आज कल्योग का वास है,
तो आज राजा परिछेत ने क्या किया,
पास में एक मरावः सर्प था,
उसे अपनी तीर से उठाया और समीक मुने की गले में डाल दिया है।
और
उसके बाद वे वापस आये। इदर क्या हुआ,
कि किशी न जा करके,
जो समीक मुने के पत्र हैं सरंगे रिशी,
उनसे कह दिया,
कि एक राजा परिछेत आया था, उसने आपका,
आपके जो पिता हैं,
उनका अपमान किया है,
उनके गले मरावः सर्प ढाल दिया,
क्रोध आगया,
हात में जल ले लिया,
कहाँ है राजा परिछेत,
मैं साप देता हूँ,
कि जाओ,
जिस सर्प को तुमने मारा है,
इस सर्प का
पूर्वा तक्चक सातिर के अंदा तुम्हें डस लेगा,
तुमारे मृतियो हो जायेगी।
और
आज जाकर की समी कुनिक के यहाँ पर राश्टर में गए और लोने लगे हैं,
रोने की वाज़ सुनकर,
आज
समी कुनिक के निच्चे खुले कहा,
पत्र क्यों रो रहे हो,
तो कह दिया,
अभी एक राजा परिछेत आये थे,
उन्होंने आपका वमान किया,
समी कुनिक ने सर्प को अटाया कहा,
तुमने उनसे कुछ कहा तो नहीं,
कहा,
कहा तो कुछ नहीं,
वह सराप दे दिया है,
कहा, क्या सराप दिया,
मैंने सराप दिया,
इति लंगेति
मर्यादाम् तक्चका सब्तमेहने,
तक्चका सब्तमेहने,
कहा
तक्चका नागी के काटने से उनकी साथ दिनमृति हो जाएगी,
क्या कर दिया,
इतने अच्छे महाराजा को तुमने सराप दे दिया,
ब्रामन को वेजा,
कहा,
जाकर की राजा पर चिस्से कह दो,
साथ देन में उनकी मृति हो जाएगी,
तो कल उनने आपको सरण कराया,
कि सुखदेव जी का आग्मन हुआ,
बोलिये सुखदेव जी महाराजा की,
एक बार प्रेम से बोलिये, राधे राधे,
और जोर से, और जोर से,
तो आज वर्णन करने लगे,
कि ब्रामन को वेज दिया,
पता चल गये किस राभ लगेगा,
सुखदेव जी का आग्मन हुआ,
तो आज सुखदेव जी महाराजा ने,
अने कत्हों का वर्णन करते हुए,
बगवान संकर और माता पारवति का विवाह भी वर्णन किया है,
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