Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650
कि घर के बाहर, महल के बाहर एक सोने का रत खड़ा है
तुरंत समझ गए कि ये रत किसका है
ये राजवतु भगवान है
क्या कुछ नहीं पता, सब कुछ जानते हैं
अब जैसे ही श्री कृष्ण उस रत को देखते हैं
देखकर के बड़े उदास हो गए
भगवान सोच रहे हैं कि आप मुझे नन्द बाबा को, यश्वदा मैया को, बलदाओ
फिर भी मेरे साथ जा सकते हैं
लेकिन बाकी सभी ग्वाल बालो को, राधा राणी को छुड़ करके जाना पड़े गए
मैं एक तरफ थोड़े प्रसुनने हैं
कि चलो भाई, जिस कारण से अवतार लिया है, उसमें एक लीला करने का समय आ चुका है
जैसे तैसे अपने मन को थोड़ा समझा रहे हैं, मना रहे हैं
अब हिम्मत करके श्री कृष्ण और बलदाओ ब्योनो पहुँचते हैं अंदर
जैसे ही अंदर पहुँचे हैं, भेट होती है अकरूर जी से
नन्द बाबा कहते हैं, अब तो बताईये कि आने के पीछे का मुख्य कारण क्या है, उद्देश क्या है
अकरूर जी कहते हैं कि मैं यहाँ पर इसलिए आया हूँ कि कंच ने भेजा है
और वो चाहते हैं कि कन्हिया और बलदव दोनों ही उन हुने की यग रखा है उस यग में पधार हो
जैसे ये बात सुनी अंदर से यशुदा महिया दोड़ी दोड़ी चली है
कहती है रुकिये, मेरे दोनों पुत्र कहीं नहीं जाएं
बाबा कहते है क्यों? यशुदा महिया कहती है एक बात बताओ
कण्श इतने बड़े, मेरे पुत्र इतने से इनका क्या काम वहाँ पे?
नंद बाबा कहते है बुलाया है तो जाना चाहिए
अरे ठीक है माना कण्श बड़े पुत्र छुटे
पर वहां जाकर के कुछ सीख कर ही तो आएंगे इसी बहाने थोड़ा बहुत मथुरा घूम लेंगे देखिए हमारे साथ भी होता है यदि हम किसी बड़े शहर जाते हैं काम से सोचते हैं वही काम तो करी लेंगे पर थोड़ा बहुत घूम लेंगे एक बंध दो काज
तो ऐसे ही नंद बाबा करें इसी बहाने थोड़ा बहुत मथुरा घूम फिर लेंगे अब यश्योदा महिया को बात मानना पड़ रही है क्योंकि पति वृता धर्म का पालन करना है तो नाच हाते हुए भी पति की बात मानना है यश्योदा महिया कहती है ठीक है बाप को जैस
दी बिना मेरा मन नहीं लगता अब धाकुर जी के लिए बल्ड़ाव के लिए तैयारियां कर रही हैं महिया तो इस समय बाद ही जैसे तैयारिया पूरी होती है श्री कृष्ण और बल्ड़ाव जाने लगते हैं यश्योदा महिया से आशिर्वाद लेते होंगे अनदर बा�
तेरे बिना मेरा यहां मन नहीं लगता जब गईया चराने जाता है तो सुबह से शाम कैसे होती वह मैं जानूं एक
एक शण ऐसे बीटता है कि अब तू आएगा अब तू आएगा तो इतने दिनों के लिए जा रहा है समझ कर जाना और जल्दी वापस
आएगा थाकुर जी कहते मैं यहां तो चिंता मत कर अभी यह गया और यह वापस आया निया क्यों भी ठीक है कि नहीं
है अब नंद बाबा से आश्रवाद लिया है और दोनों जो है श्री कृष्ण और बलदाव रत पर सवार हो गए निकल पड़े हैं
और मतुरा के लिए तो कुछ समय बाद ही भेट होती है को पीछे राज गोपियां सामने आकर के रत के खड़ी हो गई हैं
कहती है कि आप कहीं नहीं जा सकते हैं यदि आपको मतुरा जाना है तो इस रत को हमारे ऊपर से लेकर जाना पड़ेगा
है भवन सोचते हैं कि वह को क्या हो गया है कितने ठीक है इधर या आप अच्छी हूं मैं नहीं जाता थे
कि लेकिन यदि मैं नहीं गया तो मुझे बहुत दुख होगा बहुत पीड़ा हूं
तो ये सुनकर के गोपियां कहते हैं ऐसी बात है तो फिर मत रुको ठीक है आप जाओ
क्योंकि हम तो यही चाते हैं कि हमारे सारे सुख आप रखलो और आपके सारे दुख हम रखने
तो यदि यहां रुकने में दुख हो रहा है तो फिर मत रुको
पर जितने जल्दी हो सकता है उतने जल्दी वापसाम दिनिया कहते हैं तो चिंता मत
कीजे जितने जल्दी होगा मैं वापस आमूर को गोपियों को समझाया है मराज फिर तोड़ा
आगे चलते हैं तो रास्ते में भेट होती हैं कि प्राण प्रिय रध्या रानी जो कि
बेशुद्ध बेहाल अवस्था में है सिर्फ रो रही है जैसे राधाराणी को देखा रत रुखवाया है नीचे उतरते हैं
कहते हैं राधे क्या बात है आप दुखी हो अरे आपको तो सब पता है कि मैंने क्यों जन में लिया मुझे कब कहा
शोलशा रहा जाना है कौन सुरिया रचना है सब कुछ पता है आप दुखी हो रही है राधाराणी कहती है मैं सिर्फ
दुखी हो रही है मैं आपको रोक नहीं रही हूं कि वहां जाने के बाद आपके पास करने को बहुत कुछ हूं कई सारे
मत कीजिए आपको तो सब पता है मैं कब कहां हूं इसके साथ हूं भगवान कहते हैं उदास मत हो जल्दी वापस आउंगा
कि तब श्री कृष्ण अपने सबसे प्रिय वस्तु जो कि सोते समय भी भगवान अपने पास रखते हैं बासुरी वह देते
हैं राधा राणी कितने राधे आप इस बासुरी को रखो अच्छे से ध्यान रखना जब वापस आउंगा तो इस बासुरी को आपसे लूंगा
तो बासुरी देती है जैसे तैसे समझाया है फिर रत में सवार हुए हैं थोड़ा और आगे बड़े हैं भेट होती है
�apatu है था तुर जी ज्यादा तो घृत सुना हमें भी चलूं की कृष्ण सोचते हैं वासी पिछए इतने सारे
मना कर दिया अ अच्छा नहीं लगे जब भी कोई शक होता मैं भगवान कहते थीं चल दो भाई
साथ में
क्या दिक्कत है ग्वाल बाले भी रथ में स्वार हो गई है और सभी जा रहे हैं मतुरा के लिए भगवान सोचते हैं कि
ग्वाल बालों को मैंने अपने साथ बिठा तो लिया लेकिन कुछ भी हो जाए इन्हें पता नहीं चलना चाहिए कि मैं कौन हूं
कि भगवान बेजवा शुग के लिए वह गई आचरा नहीं होने वाले नहीं नाचाता हैं वह नहीं चाहते कि ने पता चले कि
भगवान है डस यही सोचते हुए जा रहे हैं कि क्या करना है कैसे करना है कुछ चम्मएं बाद ही सभी मतुरा पहुंच गए
है तब वालों को किसी ना किसी काम में व्यस्त करके श्री कृष्ण और बलदाओं वहां पर जाते हैं जहां पर
एक ऐसा धनुष रखा है जो कि सिर्फ और सिर्फ कंज का काल तोड़ सकता है उस धनुष शाला में प्रवेश करते हैं
उस धनुष की रक्षा में कई सारे राक्षसों को लगा कर रखा है मतलब वह धनुष इतना भारी है कि आज तक कोई
उसे उठा भी नहीं पाया लेकिन जैसे श्री कृष्ण जाते हैं सबसे पहले नजर पड़ती है उस धनुष पर जैसे ही उस धनुष
को देखा उठाते हैं जिस तरह से लकड़ी के तिनके को तोड़ते हैं बिल्कुल वैसे ही भगवान बिना किसी ताकत के
उस धनुष को शण भर में तोड़ देते हैं अब जैसे ही धनुष टूटा उसकी रक्षा में जितने सारे राक्षस लगे थे
वह सब दोड़े-दोड़े चले हैं भगवान से युद्ध करने के लिए अब जब युद्ध करने के लिए आए हैं तो जिस
धनुष को तोड़ा है उसी ही के हिस्से से भगवान सारे राक्षसों का बद्द कर देते हैं अ