अजर अमर सत्नाम है शोक मिटा देवों उनके चर्णों में रहो कमल पे भवराज्यों
तब धर्मदास ने कहा धर्मदास तब शीश जुकाए गुरुदेव आगे समझाए कैसे छोटे ये संसार उसका स्वामी कहो विचार
बल्ख शहर का भेद बताओ गुरुदेव तुम सब समझाओ राज का सुख सब छोड़ दिया था
माया से मुक्मो लिया था धर्मदास तुमको समझाओ बल्ख शहर का भेद बताओ
बल्ख शहर एक बड़ा ही सुंदर एक यानी था राजा वहाँ पर बादशाह ऐसा सरदार
मन में रखता प्रेम विचार इब्राहिम अधम जो माना
राज काज में भक्ती को ठाना ये विचार राजा को आया अपना कारज करना चाहा
जीवन ये अनमोल बतावें इस तन से ही प्रभू मिल जावें अभी यदि प्रभू नहीं पाया छणबे मिट जाएगी काया
ये विचार राजा को आया सब विद्वानों को बुलवाया विप्रसाधु सन्यासियाए योगी आदियती बुलाए
ज्ञानी ज्ञानी सब के पीर काजी मुला शेक फकीर सभी इखटे हुए वहाँ पर राजा ने पूछा अर्था कर
राजा कहे मुझे समझाओ मुझे खुदा का रूप दिखाओ
खुदा मिले कहो वही उपाये कौन राम और कौन खुदाए
एक खुदावा और कौन है एक से दूसरा कहो कौन है
दोनों धर्मों को समझाओ दो में कौन सत्य बतलाओ
आथ जोड़ कर सब से मिले
मैं कहूं सदा आपकी सेवा में रहूं होकर अधिन शीष नवाकर सबसे पूछा मन को लगाकर प्रभु का सब संदेश सुनाओ
मेरे मन का भ्रम मिटाओ प्रभु रहे कौन से देश सारी बात कहो दुर्वेश दोनों रास्ते किसने चलाए
किसने बैकुंठ विहिस्त बनाए इतनी बात सभी समझाओ सभी असत्य को दूर हटाओ
बिन देके सब दिल में धरते कांच दाते खतना करते मेरे भ्रम को आप मिटाओ मानुंगा में सत्य बताओ
हिंदू सब बैकुंठ को धावें विहिस्त को मुसल्माने
थैरावें इनमें कहां प्रभू का वास बिन देखे कैसा विश्वास किसी को उसका घर नहीं पाया
सबने जूटा दंद मचाया खुदा की खबर जो नहीं बताएं सबको कैठाने पहुचाएं
दोनों धर्म किसने भरमाएं कोई खबर क्या अनकी पाएं
दोनों धर्मों को समझाओ मन में मेरे अंदेशी
किस प्रभू ने धर्म रचे रहे कौन से देशी
इब्राहिम तुम से कहे सारा भेद मुझे बतलाओ
प्रभू भेद जो ना कहो
तो फिर कैद में जाओ
राजा का ऐसा निर्देश दशों दिशा फैला संदेश
हम काशी में ये सुन पाए स्वेम वहाँ पर उठ कर आए
जिन्द रूप तब हमने किया शाह को जाकर दर्शन दिया
तख्त पर बैठे थे
सुल्कान जिन्द ने किया दुैर सलाम
उसने सलाम नहीं स्वीकारी
उसके मन खाख हमन्द भारी
कहे सुल्कान सुनो दुरवेश
जिन्द रूप किया किसने भेज
कहां को जाना कहां से आए
किस कारण से दर्शी कर आए
हम तो पूछते खुदा की बानी
प्रभु ज्यान की कहो निशाने जो भी उसका आदी बतावे वही मुर्शिद पीर कहावे
दिल में हमारे दर्दी च्छाया किसी ने खुदा को नहीं बताया
जिन्दा कहे ये भाई सुन लो शट दर्शन को आप छोड़ दो तब हम तुमको ज्यान करावे
आपका संशे सभी मिटावे शट दर्शन को अभी छोड़ना जो चाहो हमसे ले लेना
आपकी शंका सभी मिटाओं जो भी पूछो वही बतलाओं
फिर सुल्तानी ये वचन सुनावे कैसे भ्यम हमारा जावे
जो करते हो ऐसी बात क्या हो कुदा दूसरे
आप सब हमने एक कला दिखाई भैंसा से निजसा क्यों भराई
वहां उपस्थित भैंसा आया भैंसे ने ये वचन सुनाया
वह बोला सचे दुर्वेश मानो शहाईन का उपदेश
खुदा समानी में तुम जानो इनसा करता और नमानो
सुनके शाहिन
अचंवित हुँ गया भैंसा कैसे साक भर गया
ये तो पीर आलिया आये भैंसा द्वारा साप दिलाये
चाह के दिल आया विश्वास इस दुर्वेश की बात है खास
शट दर्शन के बंदी छुडाये बंदी छोडि कह कह सब आये
बंदी छोड़ कहाए बलक शहर में जाए
धन्य धन्य सब जग कहे बंधन दिये छुडाए
तब सुलकान बिचार ये लावे इनकी गती समझ ना पावे
पैसा द्वारा साथ भरा दी ये तो गती नहीं मानव की
जब सुलकान ने ऐसा देखा फिर उनसे ये प्रश्न था किया
कहे सुलकान सुनो दुर्वेश आप कौन हैं क्यों ये भेश
कहां से आए कहां को जाओ इतनी बात मुझे समझाओ
आप ही मुर्शिद पीरों
हमारा हमने दिल में यही विचारा
कहां से आए जिन्द जी और कहां रहे जाए
हिंदु हो या तुर्क हो हमको दो समझाए
सुन भाई कहते दुर्वेश
सिंदारू
कहते दुर्वेश
वो खुदा का विश्व
हर घृदे में प्रभू को पावे
दोनों धर्म और राह चलावे
हम तो नरक से विहस्त को जावे
एक काम तुमको बतलावे
तुम तो यहां बड़े हो सुलतान
इस सुई को तुम लो पहचान
जब भी शाह विहस्त में आना
इस सुई को साथ में लाना
इसी काम से हुआ है आना
खुब संभाल के इसको लाना
तुम तो शाह वो बड़े महान
इतनी बात का रखना ध्यान
विहस्त में तुम से सुई जो पाए
सच्चा तुमें मानी ही जाए
शाह ने हस्कर सुई को ले लिया
एक हजार का वादा कर दिया
तुम पे ये विश्वास दिलाए
सुई हजार हम ले कर आए
इतनी बात शाह से कह गए
और वहाँ से तुरंत चले गए
एक सुई को हम से लिया
एक हजार का वादा किया
इतना कहकर हम चल दिये
शाह को कहचा
बताए फिर वहां दिशाम में जुड़ी अदालत आए
सब मिलकर फिर वहां पे आए पादिशाह आसन पर पाए
शाह के हाथ में सुई को देखा तब वजीर ने मन में सोचा
हाथ जोड़ी कर बिंती की है कैसे सुई हाथ में ली है
हे महराज हमें बतलाओ सुई का कारण तो समझाओ
तब सुल्तान ने कहा फिर सुल्तान ने बात बताई
कथा सुई की फिर समझाई एक दुर्वेश यहां पर आया
सुई को जिस से हमने
पाया उसने कहा विहिस्त जब आना इस सुई को साथ में लाना
वो बोला मुझे से दुर्वेश हम सुई लेंगे उस देश
एक सुई को हमने ले लिया सहस्त सुई का वादा कर दिया
जब सुल्तान से इतना बताया तब बजीर ने वचन सुनाया
तब दिवानी
दिवान ने कहा कहे दिवान सुनो जी साई कैसे सुई की हिस्ती को जाई
गाउं पर अगना और ठकराई ये सारी तो यही रह जाई
मात पिता सुत सुंदर नार तन धन और ये घरवार
अंत समय ये काम ना आवें तैम को समझ जीव सुख पावें
जहां तक जग में दिश्टी जावें वह सब ख्षण में नस्त हो जावें
सुख को कितने यतन बनावें ये तन जले दफन हो जावें
फिर वजीर निज शीश जुकावें कैसे सुई संग में जावें
अपने दिल में करो विचार किस विद सुई चले सरकार
तब सुलतान कहा तब सुलतान ने वचन सुनाए एक विचार कुमें बतलाए
इतना लशकर संग में जावें चार हाथी सुई लदवा में
तब वजीर ने कहा करो विचार अपने मन में
हाथी संग चले ना संग में
हाथी गोड़ा और खजाना तंग में कुछ भी नहीं है जाना
सुल्तान ने कहा तब सुल्तान वचन ये सुनावे
पैठ पाल की भी हिस्ति को जावे पांसों में फिर सुई भरावे
इस विज सुई संग ले जावे फिर वजीर ने कहा
फिर वजीर ये वचन सुनावे पाल की कबर तलक ही जावे
आगे फिर क्या विदी बनाओ वही विदी मुझे को समझाओ
तब सुल्तान ने कहा आगे गोड़े पर चड़ जावे
उसकी जीन में सुई भरावे इस विदी को हम अपनावे
उस दुर्वेश को सुई पहुचा में तब कबीर ने कहा
इतना सुन दीवान हसा था हाथ जोड़ कर खड़ा हुआ था
दादा बाबा आपके जो भी गोड़े चड़ कर गए न वो भी
ये कुछ संग में न चलें सुनो शाह चेतिला
आए ये तन भी है चार दिन तिर ये संग न जाए