शिरी क्रिष्ण की बाल लिला के पाओ कता सुनाते हैं।
खैसे खैसे खेल रचाई उनकी जलक दिखाते हैं।
छटी महोद सब था कानहा का
वहाँ बूत ना आई थी
जहर लगाया था दूद पे
ये उसकी चतुराई थी
ये उसकी चतुराई थी
दूद से कानहा मर जाएगा
ये
तरकीब लगाई थी
प्राजी तो प्रान ही पी गए थोड़ी वो चट पटाई थी
छाती से जो चिपके कानहा उसको मार गिराते हैं
अ Tammy dog
चक्रे नीचे पलने में जब माने एक दिन सुला दिया
पेर मार के श्री कृष्ण ने चक्रा ही था उल्टा दिया
चक्रा ही पायता दिया
पूद दही
माखन के बरतन सब को नीचे गिरा दिया
उट फाट गए सारे बरतन माता को था डरा दिया
माता को था डरा दिया
पिरेणा विरित जो असुर था आया उसके प्रान छुडाते हैं
कैसे कैसे खेल रचाए उनकी जळक दिखाते हैं
श्री कृष्ण की वाल लिला की तुमको पता सुनाते हैं
कैसे कैसे खेल रचाए उनकी जळक दिखाते हैं
विश्व रूप के दर्स कराए ऐसी लेई जमाई
थी माता यशोदा ने मुह देखा दिश देख चक्राई थी
गुटनों के बल चले थे
अंगना लिला बड़ी दिखलाई थी
बड़ी बड़ी सुख दाई थी
बलताओं के संग में दिव्य त्रीती बड़ी बढ़ाते हैं
कैसे कैसे खेल रचाई इसकी जलक दिखाते हैं
उनकी जलक दिखाते हैं
शिरे क्रिशन के बाल लिला की आओ कता सुनाते हैं
कैसे कैसे खेल रचाई इसकी जलक दिखाते हैं
नन्द बाब जब भोजन करते किर्षना रूठे बार ही बार
रूठन लीला परत योशोदा देख देख जाए बलिहार
देख देख जाए बलिहार
इक दिन बोली माटी काई मुँ खोलो रे किर्षन मुरार
सुखा अर्शन रोक।
इसके जलक दिखाते हैं
उनकी जलक दिखाते हैं
शरी क्रिष्ण की वाल लिला की पावन कता सुनाते हैं
कैसे कैसे खेल रचाए इसके जलक दिखाते हैं
गोकुल वाली सभी गोक्तियां काना पे जान लुटाती थी
मोहन उनके घर भी आए माखन से ललचाती थी
माखन से ललचाती थी
माखन लिला करते काना वारी वारी जाती थी
माखन विश्री देके शाम से थुमके भी लगवाती थी
थुमके भी लगवाती थी
वाल सखायों संग में मोहन माखन कूब चुराते हैं
कैसे कैसे खेल रचाए इनकी जलकदिकाते हैं
उनकी जलक दिखाते हैं
शरी क्रिष्ण की वाल लिला की
आओ कता सुनाते हैं
कैसे कैसे खेल रचाए
इसकी जलक दिखाते हैं
त्रोध में आके पाथर मारा पल में मटकी पूट गई
बानर से ना आई पल में आरा माखन लूट गई
सारा माखन लूट गई
मईया ने जब दिश था देखा नंदलाला से रूट गई
पकड़ के बांधा था उखल से रसी बंध के टूटगई
रसे बद के तोट गई
फल बेचने वाली पर भी दीविय रतन लुटाते हैं
कैसे..
Joo..
कैसे..
熱..
चा..
गोपुल से जब श्रीकाना जी बसे थे जाके विंदावन
बच्चडे चराने जाते जंगल करते रहते नटखटपन
करते रहते नटख़टपन
पिछले पहर पकड़ कर मारा प्रान पखे रूखी तकशन
प्रान पखे रूखी तकशन प्रान पखे रूखी तकशन
पखे
रूखी तकशन पखे रूखी तकशन
पखे रूखी तकशन पखे रूखी तकशन
कभी सखा की गोद में अपने रखके सर जो लेटे शाम
पंखा जले कोई फल दे सभी सखा के थे सुक्धाम
सभी सखा के थे सुक्धाम
अज गर्वन के आया अगासुर पल में की नाकाम तमाम
बाद्धार परवत लगे पिघल में बंची एसी बजाते हैं
पतर परवत लगे पिघल में बंची एसी बजाते हैं
कैसे कैसे खेल रचाए इसकी जलक दिखाते हैं
उनकी जलक दिखाते हैं
शिरी क्रिशन की बाल लिला की पावन कता सुनाते हैं
कैसे कैसे खेल रचाए इसकी जलक दिखाते हैं
इक दिन ब्रह्माजी ने परिक्षा थे तू बछड चुराये थे
महिमा देखी जब नटवर की फिर पीछे पछटाये थे
फिर पीछे पछटाये थे
बंची धर तो खुद विश्णू है देख देख शर्माये थे
फिर चर्णों में श्री कृष्ण के अपना शीष नवाए थे
अपना शीष नवाए थे
होता वही जो तीन लोक में नदलाला जो चाहते हैं
काय से कैसे खेल रचाए इसकी जलक दिखाते हैं
उनकी जलक दिकाते हैं
रिशी मुनिन को दर्शन दुरलब ऐसे मुरली धर भगवान
गोप बालकों के संग खेले ऐसी लीला करे महान
ऐसी लीला करे महान
नाचे काए बंसी
बजाए मीठी मीठी छेडे तान
मालागूट के सारे सखामोहन कोहार पेनाते हे
मालों गुट्र के सारे सब मोहन को आल पेनाते हैं
कैसे कैसे खेल रचाई इसकी जलक दिखाते हैं
उनकी जलक दिखाते हैं
शिरी क्रिष्ण की बाल लिला की पावन कता सुनाते हैं
कैसे कैसे खेल रचाई इसकी जलक दिखाते हैं
अगनी पीके श्री गोविन्द ने लिला खास रचाई थी
अपने बाल सखाओं की तो शण में जान बचाई थी
शण में जान बचाई थी
नाग कालिया पर जो पूद सारी अकर मिठाई थी
अनके चिथडे चिथडे करके यमना नदी बचाई थी
यमना नदी बचाई थी
यमना की भी धारा थंती वश्ची अधर ठिकाते हैं
अपनी की
मतुरा में यग कर रहें राम कई तरह के बने पकवान
सारे सखा ये वन में भूके किष्ण जी को आया ध्यान
किष्ण जी को आया ध्यान
बोले भोजन मांग के लाँ जाओ
जैसे हों जज्माल
बेजने वाले खुद श्री किष्ण वीप्र नारीयों ने
लिया जान
वीप्र नारीयों ने लिया जान
वो धाड़ी आये काना जी मुस्काते हैं
ले बक्वान वो धाड़ी आये काना जी मुस्काते हैं
कैसे कैसे खेल रचाए इसकी जलक दिकाते हैं
उनकी जलक दिकाते हैं
शिरी किष्ण की बाल लिला की पावन कता सुनाते हैं
कैसे कैसे खेल रचाए इसकी जलक दिकाते हैं
गोबर्धन की पूजा कर लो मोहन ने समझाया था
उस्सा होकर इंद्र ने तो कई दिन जल बरसाया था
ब्रिज के रकषक भी काना ने
ऐसा खेल रचाया था
गोबर्धन को अपनी चोटी उंगली पर ही उठाया था
गलती
माफ करो काना जी इंद्र माफी चाहते हैं
कैसे कैसे खेल रचाए इसकी जलक दिकाते हैं
उनकी जलक दिकाते हैं शिरी क्रिष्ण की बाल लिला की पावन कथा सुनाते हैं
कैसे कैसे खेल रचाए इसकी जलक दिकाते हैं
वरुण लोक से नंद बबा को काना जी जालाये थे
हाथ जोड़ने लगे वरुण तो मोहन बड़े मुस्काये थे
मोहन बड़े मुस्काये थे
जितनी गोपी
उतने शाम हैं ऐसे
रेत्य दिखाये थे
गा� य कल जोड़ गले को
दीव दरस्न IDS Barry
गाम गले को दिखायें जूड़ने बड़ी को काना जी जालाये थे
काेसे खेल रचाई इसकी जलग दिखाते ह็ं
उनकी जलग दिखाते हे
श्री कृष्य की बाल लिला की पावन कताः सुणाते аहे
कैसे कैसे खेल रचाई इसकी जलग दिखाते हे
गोपनारीया बड़ी तडबती जब मतुरा को हुए तईयाओ
बड़े प्रेम से धीर बनदाई तुम सब से है देव प्याओ
तुम सब से है देव प्याओ
धुरा में तो लग जेकारे आगे आगे
तारन हाओ
पापी कंस को मार दिया था मिटा धरा से पाप का भाड़
मिटा धरा से पाप का भाड़
गुरु करण सिंग कमल सिंग को ज्यान का पाथ पढ़ाते हैं
गुरु करण सिंग कमल सिंग को ज्यान का पाथ पढ़ाते हैं
कैसे कैसे खेल रचाए इसकी जलक दिखाते हैं
उनकी जलक दिखाते हैं
शिरी क्रिशन की बाल लिला की पावन कता सुनाते हैं
कैसे कैसे खेल रचाए इसकी जलक दिखाते हैं