शिरे कृशन के आत्मा है बरसाने के शिरे राधा।
मधुर रोप में मोहन के संग कर ती लीला शिरी राधा।
गौचारण का करन निरिक्षन नंध बाबा जी जा रहते
मैं भी साथ चलूँगा बाबा, मोहन जोर लगा रहते
मोहन जोर लगा रहते
नंध बाबा जीवन में पहँचे पीछे पीछे नंध के लाग
विश्णु रूप में है नंध लाला इसका किसी किसी को खयार
इसका किसी किसी को खयार
नंध ना जाने इस मोहन के जीवन का आधार राधा
मधुर रूप में मोहन के संग लीला रचाए श्री राधा
श्री कृष्ण की आत्मा है वर्षाने की श्री राधा
मधुर रूप में मोहन के संग करती लीला श्री राधा
इतने में ही कालिक ख़ुशते नंध लाला
इतने में ही काली घटाएं चाने लगी थी चारों और
बहुत बड़ा तूफान आया तीवरता का ना था कोई ठाओ
तीवरता का ना था कोई ठाओ
नंध न याद किये नारायन सूचा ना जब कोई उपाए
इतने में ही कोटी सूर जैसे निकल के गए हो आज
कौन जानता पल में क्या पुछ कर दे रचनाकार राधा
मदुर रूप में मोहन के संगं माला जाये शरी राधा
स्घेरी खिरिश्न की आत्मा है वर्षाने की शीरी राधा
मदुर रूप में मोहण के संगं करती लीला शीरी राधा
जारों दिशाएं जगमग हो गई जाने कहां गया तूफान
नंदराय जी की आँखें खुली तो द्रिश देख के भय है राम
द्रिश देख के भय है राम
तुलारी रादा कड़ी फिर सामन भगतो आई थी
नंद बाबा जी बोले बेटी तू यहां कैसे आई थी
तू यहां कैसे आई थी
मधूर रूप में मोहन के संग लीलर जाए श्री राधा
परिशकी आत्मा है बर्साने की श्रीरादा
मदुर रूप में मोहन के संग करती लीला श्रीरादा
कोटी चंद्र मासी आभा मुख मंडल परती छाए रही
दिव्य रतन आभूशन चमके दिव्य छवी मन भाई रही
नंदराय ने अंजली बांध के श्रीरादा को किया परनाम
श्रीहरी की प्राणश्वरी हो जान गया मैं भेद तमाम
मेरी गोधी है प्राण तेरे दे रही दिदार है श्रीरादा
मधुर रूप में मोहन के संग लीला करती श्रीरादा
लीला रचाए श्रीरादा
जिनकी आत्मा है बरसाने के श्रीरादा
मधुर रूप में मोहन के संग करती लीला श्रीरादा
लो देवी ले जाओ अपने प्राणश्वरी
प्राणश्वर को ले जाओ
श्रीरी कृष्ण पर गई दिश्टी रुक से गए थे उनके भाव
रुक से गए थे उनके भाव राधा गोद में लेके कृष्ण को चली गई थी वन की ओर
नन्द बोले लोटा भी देना पुत्र प्रेम में भाव विबोर
अस्त कमल पर लेकर चल दी मोहन कृष्ण मुरार राधा
मदुर रूप में मोहन के संग लीला रचाए श्री राधा
शिरी कृष्ण की आत्मा है बडसाने की श्री राधा
मदुर रूپ में मोहन के संग करती लीला श्री राधा
वृन्दावन गोलोक का दिव्य रास मंदल होता जहाँ
रंद पूत्र मोहन को रादा लेकर पहुँच गई थी वहाँ
लेकर पहुँच गई थी वहाँ
प्री रादा की गोद से मोहन चान कहाँ पर चले गए
रादा किशोरी करे अचम्ब इतने में आ मिले गए
इतने में आ मिले गए
प्रियतम को देख के रिदै में भरलाई थी प्यार रादा
प्रियतम को देख के रिदै में भरलाई थी प्यार रादा
मधुर रूप में मोहन के संग रास रजाए श्री रादा
लील रजाए श्री रादा
शिरी कृषिन की आत्मा है बरसाने की श्री रादा
मधुर रूप में मोहन के संग करती लील श्री रादा
बोलोक की बूल गई है या है सारी याद वो बात
पेरे प्राणों की राणी है और जनम जनम का अपना साथ
जनम जनम का अपना साथ
हम दोनों में भेद नहीं है अटल सक है टले नहीं
ऐसा जनम तो कोई नहीं है जिसमें रादा मिले नहीं
सिश्टी के इस पार रादा है सिश्टी के है उस पार रादा
मधुरूप में مोहन के संग लீला गरती शरी रधा
लीलझाए शृरी रधा
शिरी कृषिन कि आतमा है बर सालें की शृरी रधा
मधुरूप में मोहन के संग गरती लीला शृरी रधा
जैसे दूब्द में रहती धवलता अगनी में दाह की शक्ती है
जैसे पित्वी में गंध रहती वैसे तू मेरी भक्ती है
वैसे तू मेरी भक्ती है
शक्ती रचना करने में भी तुम ही तो संग रहती हो
तुम बिन आदा मैं कहता हूँ तुम भी ऐसा कहती हो
तुम भी ऐसा कहती हो
जैसे माठी बिना तो घटको रचेन कुंभ कार राधा
मधुर रूप में मोहन के संग लील रचाए श्री राधा
तुम्हेरे कृशन की आत्मा है बरसाने की श्री राधा
मधुर रूप में मोहन के संग करती लील श्री राधा
तुमको पाकर राधा मैं रस सिंधू में खो जाता हूँ
मुक से केबल राश सुनलूं तो उसका ही हो जाता हूँ
ताका उचारण करते ही मैं पीछे पीछे चलता हूँ
राधा राधा जो कोई जपता मैं तो उसको मिलता हूँ
मदुर रूप में मोहन के संग लीला रचाए श्री राधा
यह प्रिक्रिशन की आत्मा है बरुशाने के श्री राधा
मदुर रूप में मोहन के संग करती लीला श्री राधा
रसी केशवर राधानात ने इतना याद दिलाया था
पाननद वरदन करने लगे वो अमरित रस बरसाया था
अमरित रस बरसाया था
राधा बाव सिन्दु में भी तरंगे उठने लगती हैं
रस के तल में डुबोने को धारा फिर बहने लगती है
धारा फिर बहने लगती है
लगा टक टकी शाम सुन्दर को देख रही निहार राधा
मदुर रूप में मोहन के संग लीला रचाए श्री राधा
श्री कृशन की आत्मा है बरसाने की श्री राधा
मदुर रूप में मोहन के संग करती लीला श्री राधा
उसी समय माला का मंदल धारी ब्रह्मा आते हैं
राधा राधा नात के चर्ण अपना शेष नवाते हैं
बोले पुशकर में तुमें पूजा पूरे साथ हजारों साल
तब जाकर कहीं परवर पाया मैने तुमसे हे नन्दलाद
मैने तुमसे हे नन्दलाद
कृष्ण के संग रास की वो लीला कर देना एक बार राधा
मधुर रूप में मोहन के संग करती लीला शिरीराधा
आपके लिला देखन को हम सारे देब तरसते हैं
रास के लिला करते हो तुम खुशी में नैन बरसते हैं
खुशी में नैन बरसते हैं
प्रभवान की मुरली राधा के संग भजती हैं
सत्य सनातन पूजति आरी नित नित प्रिय लगती हैं
नित नित प्रिय लगती हैं
करन सिंग कमल सिंग की भगती का सार है श्री राधा
मधुर रूप में मोहन के संग लिला रचाएं श्री राधा
श्री कृशन की आत्मा है बरसाने की श्री राधा
मधुर रूप में मोहन के संग करती लिला श्री राधा