हम भोले सिव की परम सुहावन कता सुनाते हैं
पवन कता सुनाते हैं
आसितोंस्य अबिनासी परभु की महिमा गाते हैं
हम कथा सुनाते हैं
सिवके सुमिरनसे भकत मनो अचित फल पाते हैं
पावन कथा सुनाते हैं
ासितोंस्य अबिनासिः परभु की महिमा गाते हैं
जैसिवसंकर भगवाल
धेवों में देवि महा
धेवों में देवि महा
जैसिवसंकर भगवाल
भगवाद
किस कारण सिवसंकर नील कंथ कहलाते हैं
किस कारण से प्रेम सहीत जलीने चराते हैं
क्यूं जलीने चराते हैं
सुनो ध्यान से भगतों है बड़ी पुरानी बात
सागर मन्थन की गाथा का करता हूं सुर्वात
अब मैं करता हूं सुर्वात
एक बार मुनि दुर्वासा जी जपते सिव का नाम
मुनिवर के हाथों में था सुंदर फुलों का हा
हनी इंसु परेम कोनी eigenlijk था भ॔र विअधित धाने का चारे
अपने आपके प्राविरं काथा सुनाते हैं
हम कथा सुनाते हैं
ज़यः सिवसंकर भगवाद
देवोमि देवोमहाद
ज़यः सिवसंकर भगवाद
उसी राह पे सन्मुख आये देवों के नायक
दुर्वासा ने देखा उनको जाना सब लायक
हाँ जाना सब लायक
फिर से उसपहार मुनिवर ने दिया उन्हें सादर
फेक दिया है देवों राज ने कुछ आगे जाकर
हाँ हाँ कुछ आगे जाकर
पीछे मुर कर देखा मुनिवर दुर्वासा ने ततका
हार पड़ा था धरती पे फिर नेत्र हो गए लाग
लाग नेत्र हो गए लाग
रोधित हो बोले मुमी हो जाए तू सक्ति विहीं
सत्ता से वन्चित हो धरधर भटके बनके दीन
धरधर भटके बनके दीन
सुन के स्राप इंद्र मुनि चर्णों में गिर जाते हैं
पावन कथा सुनाते हैं
जैसिव शङ्कर भगवाद धेवो में धेवो महाद
अपनी
भूलों का सुरेस करते हैं पस चाता आपु
हिन्ट चले जाते हैं मुनिवर देके उनको शापु
मुनिवर देके उनको शापु
देवराज भी स्वर्गलोक में वापस आते हैं
बारी बारी वो शाप याद करके खुलाते हैं
उसी समय संजीवनी विद्या सिवजी से पाकर
देते हैं आदेस दैत गुर्दैतों को जाकर
यही समय है स्वर्गलोक पे अब आक्रमण करो विजे सुनिश्चित
है मन में तुम सब ना तनिक डरो तुम सब ना तनिक डरो अज्यापा
करके स्वर्गलोक पे सब चड़ जाते हैं पावन कथा सुनाते हैं
जएसिव संकर भगवाद देवो में देवो महाद
देवो में देवो महाद जैसिव संकर भगवाद
इन्दु आदि सब देवु अस्त्र सस्त्रों को लेके खास
युध भयंकर करते पर होते सब विफल प्रयास
आहा होते विफल प्रयास
दैतों में जो मरते वो फिर से जी जाते हैं
संजीवन विध्या जब सुक्राचारी चलाते हैं
पर देवों के पास नहीं संजीवन का उपचार
इस कारण अंतत है युध में होये सभीलाचार
अपना देख बिनास देवता भागे प्राण बचाए
पहुँचे है बैकुंथ सभी स्रीहर के सनमुख जाये
आहा हर के सनमुख जाये स्रीहर जी को कश्ट
सभी अपना बतलाते हैं पावन कथा सुनाते हैं
जैसिव संकर भगवां धेवों में धेवों महां
शिरिसिंद के गर्भ में है अद्न पमरतनो की खान
उसमें से ही अमरित भी है एक अतिव महान
करो सिंधु मन्थन फिर सब अमरित को पाओगे
अमरित पीके हर भय से निरभय हो जाओगे
जरा अवस्था रोरि
मृत्ति तो कभी ना आयेगी
सक्ती वापस पाओगे सत्ता मिल जाएगी
फिर सत्ता मिल जाएगी
सुनके प्रभु की बात सभी के मन खिल जाते हैं
पावन कथा सुनाते हैं
हम कथा सुनाते हैniejsze जड़ शिःति जारते और बेड़त जाएगं धरतो।
प्रिकारत करते हैं
इसकारड सब यहां कोटनीती को अपनाओ
अमरित कालालच देदैतों को संघले आओ
प्रभु की अज्या मान गए सब देवदैत के पास
सागर मन्थन की उपती बतलाई सब ने खास
अमरित के लालच में दैत सब ही अतिहर साए
देवों के संघ मिल सब सागर के तट पे आए
पक्षि राज गयरुड मंधर परबत को लाते हैं पावन कथा सुनाते हैं
आसितों से अबिनासी प्रभु की महिमा गाते हैं हम कथा सुनाते हैं
ज्य शिवशंकर भगवा धेवों में धेव महा ज्य शिवशंकर भगवा
रसी बने बास की और मतान की ला बय करें
देवास की ओर मथानी गिरमंदर
मन्थन करने लगे देवदानों फिर तो मिलकर
देवदानों फिर तो मिलकर
सागर की गहराई में जब मिला नहीं आधार
लगा डूबने परवत की देवोंने करुड पुकार
बिनती सुनके प्रभुने
कोर्म का रूप बनाया है
सागर में जाके परवत का वार उठाया है
फिर होके प्रसंद सबने प्रारंभ किया मन्थन
निकला काल कूट उतकट विस प्रलयंकारी बन
विस की जो लामों से सब यत से घबराते हैं
पावन कथा सुनाते हैं
आसतों से अभिनासी प्रभु की महिमा गाते हैं
हम कथा सँनाते हैं
जय सिवसंकर भगबा All praises to Lord Shiva
धेवूमे धेवूमहा Inpossible, impossible
धेवूमे धेवूमहा Insipid, impossible
देवोने स्री हर के सनमुख बिनती की फिर जाये
बोले
नारायण तुम सब मिल कर जाओ कैलास
आरत भावने करो किपा कर सिव जी से अरदास
काल कूट विसकाल रूप है सिव जी है महाकाल
विस के संकत को देवो हर लेंगे वो ततकाल
हर लेंगे वो ततकाल
सिस जुकाओ स्री हरी को सब पहुँचो सिव के पास
प्रभु से अपना त्रास भोले सिव तो कश्ट किसी पे देख न पाते
हैं पावन कथा सुनाते हैं
आसितों से अबिनासी प्रभु की महिमा गाते हैं हम कथा सुनाते हैं
जय सिव संकर भगवा धेवो में धेवो महा जय सिव संकर भगवा
श्रिष्टी पे आए
संकट को हरने भोले
नाथ ओ प्रसन चल दिये सिंधु तट सब देवों के साथ
सागर के तट जाकर विस को हाथ में उठा लिया
एक बार में ही पीकर सब को भय मुक्त किया
सब को भय मुक्त किया
विस के कारण नीला कंठ हुआ सिव संकर का
नील कंठ हो गया नाम तब से प्रलयं कर लिया
नील कंठ के सिवा प्रभुविसधर भी कहलाए
नेति नेत कहि बेद सदा इनके गुड को गाए
पावन कथा सुनाते हैं
आसितों से अबिनासी प्रभुकी महिमा गाते हैं
हम कथा सुनाते हैं
जैसिव संकर भगवाद
बिसकी गर्मी कम करने का सोचा देवों ने
इसकारण जल सभी चढ़ाने लगे हैं सिव जी पे
प्रेम देख देवों का सिव ने दिया दिब वरदान
सत्ता सक्ती पाकर हुए देव फिर से बलवाद
तब से ही सिव को जल यरपड का बन गया विधान
जो सिव को जल नित चड़ाते पाते सुख सम्मान
गीत कारिसानन्द
कथा है सिव की फलदाई
जो इसको सुनते मिलती है संपत्यस थाई
आस इस देवा पर भोले सिव किरपा लुटाते हैं पावन कथा सुनाते हैं
आस तो सिर अभिनासी प्रभु की महिमा गाते हैं हम कथा सुनाते हैं
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