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और चोथा फाइदा,
तुम्हारे भाई के हाथ मरूंगा,
तो बाद मेरे परिवार के लोग रोते रोते आएंगे,
पर आपका स्वभाव बहुत तरून है, यानि कोमल है,
तो मेरे परिवार के लोग रोएंगे,
तो आपको दया आजाएगी,
तो मेरी समशान यात्रा में आपको हाजरी देनी पड़ेगी,
महराणी।
लखन जी को लगा कि इसको मारने जैसा नहीं,
कहीं उसकी ननामी हमारे कंधे पर आएगी,
इसलिए लखन जी ने तीर पुनह रख दिया,
पुनह अगनी संसकार भी करना पड़ेगा,
और अगनी संसकार करेंगे,
तो उत्तर क्रिया भी करनी पड़ेगी,
और यहां ही हम रुख जाएंगे,
लखन जी ने तीर पुनह रख दिया।
मेरे कहने का तात पर यह केवल इतना,
जो काल के बान को पुनह वापस लोटा दे,
यही है निशकाम भगत।
कौम्टेय प्रतीजानी ही नमे भगतः
प्रनस्यत। भगत का नाश नहीं होता,
वो भगवान के काल के सभी के आगे निकल सकता।
केवट ने लखन जी के तीर को वापस रखवा दिया।
अथ्वातु केवट ने यह कहा कि लखन जी यदी मुझे
तीर मारे तो मुझे सबसे बड़ा फायदा ही होगा।
वो शेष नारायन थें,
आप शेष की पथारी पर सो रहे थें केवट ने कहा,
और मैं जलचर था और आपके चरणों को चुने के लिए आया,
और शेष जी ने फना मार कर मुझे मार दिया,
तो एक बार उसकी ठपात लगी, तो जलचर से मनुश बन गया।
अब दूसरी बार लग जाएगी,
तो कितनी बढ़ती मिल जाएगी,
भाराजू।
मैं कितना आगे निकल जाओंगा यदी दूसरी बार ठपात लगी,
तो मेरे लिए तो फायद ही फायद है।
लखन जी को लगा कि इसको मारना ठीक नहीं।
और इस आदमी ने साफ साफ कह दिये,
बरुतीर मार रहें लखन पए,
जब लगिन पाय पखारी हों,
अब लगिन तुलसी दास नाथ कृपालु पार उतारी हों।
कितना ही आप करें महाराज,
लेकिन जब तक आप पाय पखारने को नहीं देंगे,
तब लग,
मैं आपको नवका में बिठाकर सामने तक नहीं ले जाओंगा।
बिल्कुल स्पश्ट कह दिया,
और सुनते ही परमात्मा को बहुत हसी आई।
शायद बगवान पहली बार इतना हसे।
मन मुष्कुराये, बीतर हसे,
गाल पर हसे, ऐसे तो कहीं प्रसंग आये आज तक,
लेकिन बिल्कुल खुलकर हस पड़े ये पहला प्रसंग।
सुनी केवट के बेन प्रेम लपेटे अटपटे,
बिहनसे करुना एन चिताई जानकी लखन।
केवट के प्रेम में थराबोर हुए बचन,
अटपटे बचन को सुनकर बगवान खूल कर हस पड़े बहुत हसे।
और सरकार को पहली बार इतना हसते देखकर जानकी जी बहुत खूश हो रहे।
जगदम्बा बहुत प्रसंग हो रहे।
कि मेरे पती देव अयोध्या से निकले तब से उदास थें,
क्योंकि लोगों को छोड़ कर आयें,
माता पिता दूखी थें,
तो सरकार के चहरे पर विशाद और उदास इंता रही।
सारे जगद को माया के बंधन से मुक्त करने वाले
परमात्मा के चहरे पर हस्य गिरफ्तारी भोग रहा था।
दन्य है इस भक्तने कि परमात्मा की हसी को उसने मुक्त कर दे।
जानकी जी बहुत खूश।
भगवान हस रहे,
सीता और लखन के सामने देखपर भगवान हस रहे,
पहली बाद।
मानों,
निमंतर लखन जी जड़ा रोष में थे ना,
और सीता जी भी चुपचाप खड़ी है,
कुछ बोलती नहीं,
तो भगवान ने हस कर दोनों के सामने देखपर मंत्रन दिया,
कि मैं हस रहा हूँ,
तुम क्यों मुँख चड़ाये खड़े हो,
हसो। दोनों को मानों ने मंत्रन देती।
या तो लक्षमन जी के सामने देखकर भगवान को हसी आ गई,
इसलिए,
कि भगवान लखन को शायद ये कहना चाहते हैं,
कि तुम्हें बहुत खुश होना चाहिए,
तुम जो ज्यान उपदेश कर रहा था,
यही उन्हेंने सुन लिया,
इसलिए तेरा शिष्ष है,
और शिष्ष की समझदारी पर गुरू को राजी होना चाहिए,
तुम क्यों मुझ बिगाडे खड़े हैं।
अथवा तो लखन के सामने देखकर सरकार हसे इसलिए,
कि लखन को बच्पन में एक आदत रही,
कि जिस पलने में ब्रग्वान सोया करे,
उसी पलने में लखन जी को भी लावन तरता.
ब्रग्वान से विलगतों वो सोते नहीं और ब्रग्वान के पायर जीस तरफ हो,
उस तरफ लखन जी का मुह रखना होता था।
और लखन जी को आदत थी कि सोते समय भगवान के चरण के
अंगुथे को अपने मूँह में चबाते रहे तभी तो निंद आती थी
यदि मा बिलक बिलक सुलाती तो पूरे घर को जगाते रहते हो रो रो खर बगवान
ने कहा ईशारे में कि लखन बच्चपन में एक अंगुथा नहीं मिलता था तो
पूरे परिवार को तू परिशाण करता था अतमा तो सीताजी के सामने देककर
भगवान ने इसने ये हस दिया कि मानु सीता जी को कह रहे हैं
देवी आपके पिता जी ने आप जैसी सुंदरी मुझे कन्यादान में प्रदान की
लेकिन मैंने मेरे पैर के एक अंगुथे को ही तुम्हारे पिता को दोने दिया
आपने सुनी होगी ने बगवान जनकपुर से जब व्याह कर घर आयें तब से जब
सरकार सोते थे तो श्रीष सीता जी ही उसके चरण की सेवा किया करती
Laxman ji ko bulaati nahi,
Laxman ji kamre ke aas paas guma karte the
Aur maa na bulaaye,
to mariada ke khateer bhi jab ekant ho tab wahan jana theek nahi
Aur sita ji bulaati nahi,
Lakhan ji ko charan seva nahi milti
Aurandh charan seva nahi milti,
to Laxman ji bahut dhukhi hone lagay
Din bhitne lagay,
Khana kum khane lagay,
shrir sukhne laga,
uthaas rehne lagay
Ek din bhagvaan ne poochha Laxman jin,
tumi kya ghorah,
kya baat ha
To aankh mer aansu aage,
Prabhu aap to jantey hain
जब से व्याह कर आये हैं मुझे आपकी चरण सेवा मिली हैं।
और आपकी चरण सेवा यदि मुझे ना मिले
तो मेरे जीवन का क्या अर्थ है महराय?
मेरा जीना क्या है?
वगवान ने कहा तुम आते हो तो रात को
बुले मैं कमरे के पास गुमता रहता हूं
मेरी मा देखती हैं फिर भी बुलाती नहीं तो मुझे लगता है कि
शायद मेरा आना उसके उपसंद नहीं और वैसे तो आना भी ठीक नहीं
वगवान ने कहा तो मैं और क्या करूँ वो पत्नी है पत्ने
का अधिकार है चरण सेवा और तो मैं क्या कर सक्गुरू?
लखन जी ने कहा अप कुछ भी करे लेकिन आपकी चरण की सेवा मुझे मिले
तो बगवान ने कहा लखन एक हो सकता है बोले क्या?
कि चार दिन के बाद होली का त्योहार है तुम तो जानते हो
पर रगु कुल में तुम जानते हो प्रती वर्ष
होली का त्योहार माता पिता के उपस्थीती में
देवर और भावी के मीच में खिला जाता है आँ बस
और शाम को जब होली का उत्सव बंध किया जाए तब
किroportion
तब चरन की सेवा मांग लेना
इसलिए मुझे बीच में आना नहों और तेरा काम बन जाये।
लखान जी बहुत खुश हो गई।
कहने लगे महाराज बहुत सुन्दर उपाया आपने डून निकारा।
लेकिन अब एक और कृपा करें।
बोले क्या?
होली जितनी हो जल्दी आ जाये ऐसा करें।
बोले वो तो जैसे आयेगी वैसे ही आये।
लखान जी के मन में ये भाव है कि परमात्मा की चरन की सेवा मिले
तो मुझे होली भी कुरून है।
होली...
वरना होली कौन मांगेगा?
दिवाली की सब काम ना करेंगे?
कवी के शब्द हैं।
लेकर आया मैं भक्ती का पेगाम लेकर
आया मैं भक्ती का पेगाम लेकर
मुझे डाक घर का तपाली न समझो
मुझे डाक घर का तपाली न समझो
मुझे डाक घर का तपाली न समझो
मुझे डाक घर का तपाली न समझो
मैं हुँ कवाली मवाली न समझो
किसी के शब्द हैं।
लखन जिने होली के जप सरू कियें
ता एक जलदी होली आ जाएं
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