Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650
तो भक्ति में था साधन शुद्ध होना चाहिए।
यादमी ने कहा मेरी नवका पवितर नहीं।
महराज इस नवका ने आज तक किसी को डुबाया नहीं,
सबको तारा है।
आज तक एक आदमी को इस नवका ने डुबाया नहीं।
और आपकी चरन धुली गिर जाएं और उसमें से बील श्तरी उत्पन हो जाएं,
तो चलो पुरानी नवका गईं और एक श्तरी उत्पन हो गईं,
गर में एक श्तरी और
तो जैसे मेरी एक श्तरी मजदूरी कर रही हैं,
ऐसे ये भी करेगी तो हमको तकलिप नहीं।
लेकिन सुना हैं आपकी चरन धुली से रिशी पत्नी पैदा होगी,
और रिशी पत्नी पैदा हो जाएगी,
तो वो तो हमको चुयेगी नहीं,
हम उसको चुँ नहीं पाएगे,
हमारा बनाया खायेंगे नहीं,
सिदा सामगरी कच्चा उसको देना पड़ेगा,
वो दूसरी जगा बनाएगी,
और उसमें भी यदी कोई भूल हो गई, तो शाप देदेगी,
मैं खत्रा मोलना नहीं चाहता,
तरनिव मुनी घरनी होई जाएँ,
तो तो ये बड़ी मिश्कील हो जाएगी मार।
अगर से कयान जाते हैं,
कहीं जद से पंचना कह्यें मागी.
आपको आदत हो गई हैं कि आपके पास आकर सब लोग आथ जोरते हैं
लेकिन यहां ये आशामत रखना है
आप तीनों सोच समझकर मैं शाम तक यहां बैठा हूँ
आपस आपस में विचार विमर्ष कर लें
और हमको कहें कि ले लो सामने तक
बडा बवाम एक मेंट,
यहें बत्पोते किरंयादर है या आप पहना पाड़े के लिए,
महराज मेरा उदाग्रश्व हो कहना पयके तवाब
देती है सानक्षेट में चीत vegetable
यदि आप जाना ही चाहते हैं।
यदि आप पार जाना ही चाहते हैं।
तो मुझे आप पद प्रक्षालों की सामने से अनुमति दे।
आपको सामने तट यदि जाना है महराज, तो पेर
धोने देना पड़ेगा।
दोनों बात स्पश्ट कर दी, मैं उतराई नहीं चाहता।
पहली बात,
नाथ उतराई चहो। एक अर्थ इसका ये भी हो सकता है,
कि आप पेर धोने दें,
मेरी नवकामें बैठें। बादमे मैं ये चहता हूँ,
आप मेरी नवकासे उतरे ही ना।
क्युकि आप नवकासे उतरेंगे,
तो कुछ देने का हिसाब समझने का प्रश्ण उठेगा।
मैं आपको उतारू ही नहीं,
आप बस यहीं बैठे रहें,
मेरी नवकामें मैं चलाता हूँ।
मैं नहीं चहता कि आप नवकासे उतरेंगे,
अथला तो मैं उतराई नहीं चहता,
मैं पैसा नहीं लूगा।
और मेरे और आपकी प्रतं मुलाकात हैं भगवन,
चाहिद आपको यकिन ना आए,
तो मुझे आपके पिता की शपत,
आपकी दुहाए आन,
मैं उतराई नहीं चहूँ।
निशकाम भकती हैं वो सावित हो गया,
निरलोभी भकती हैं वो सावित हो गया,
और जब दशरत महराज की शपत इस आदमी ने कह दी,
तब लखन जी से नहीं रहा,
तेरी ये हिम्मत, हमारे पिता तक तु पहुंच गया,
जब दिखने लगे जो तु बढ़ गया,
तो तु इतना आगे बढ़ गया,
और लखन के तरकस में बान उपर उठने लगे,
लखन लाल जी ने एक तीर को आधा तरकस से निकाला,
और केवट बैठे बैठे देख रहा है,
चोटे भाई का स्वभाव जड़ा तेज लगता,
औ
बैठे बैठे कहने लगा महराज ख्षमा करें,
आपके भाई ने तीर निकाला है तरकस से,
लेकिन परभु एक बात पूछो,
बोले क्या,
कि एक और से मांगना और दूसरी और हत्यार दिखाना ये कहां का नियाय है,
जिसको मांगना हो,
उसको हत्यार नहीं रखने चाहें, ब
आपके भाई ये समझ रहे हैं,
कि मैं डर जाओंगा,
यदि आपके भाई ने मुझे तीर मार दिया,
तो मुझे बहुत फायदे हो जाएंगे,
भगवान मन ही मन पूछते हैं,
क्या,
वो बैठे बैठे जवाब देता है,
कि महराज,
एक सबसे बड़ा फायदा ये होगा,
कि मै
पाना कठीन है,
नाम आना कठीन है,
सिताराम जी दोनों खड़े हैं,
और मै मरू,
ये मेरे भागवे दुसरा फायदा,
तिस्रा फायदा,
गंगा के तट पर मेरी मौत हो जाएं.
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