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Bài hát ram katha by morari bapu - bhuj vol. 24 pt 1 do ca sĩ thuộc thể loại The Loai Khac. Tìm loi bai hat ram katha by morari bapu - bhuj vol. 24 pt 1 - ngay trên Nhaccuatui. Nghe bài hát Ram Katha By Morari Bapu - Bhuj Vol. 24 Pt 1 chất lượng cao 320 kbps lossless miễn phí.
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Lời bài hát: Ram Katha By Morari Bapu - Bhuj Vol. 24 Pt 1

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

अर्सुन वाजी सिताजी ने सुनैनानी साथे मुकलेच।
जितरकूत नी तरविती मा जनक लो जान लोरो तंबू छे,
जहाँ सिताजी ने पुतानी माता लेना आया चे।
दिकरी ने वाया पची बाप ने दिकरी ने आप प्रखम मुलाकाचे।
अर्धिरात्री थाथी, रशिष्टाथी, संपोनी साथे चर्चा क़ले जनक महाराज,
यार एक उतार्यादा वैदेजी ने जोई, वैदेजी ये पिता ने जोई मानसकार कहे,
जानकी दौड़ आज, पिता ने प्राराम करता वैदेजी बोला आज,
बाबा तमारी दीकरी प्रणाम करेश, बस जनक धिरज गुमावी दिदेश, जोरी नशक्या जानकी नू रूप, आखमा आसू पड़ी देश, बापच, बेटा, वैदेशी बेटी, हाँ पिताजी, बिजो तो शोकं बाप, पर एक जवाइक के कहेश, पुत्री पवित्र किये
एक कुल ब्रोंग, ते हमारा बन्ने कुल ने फारी दियाश, मुझा चार करते तो तु गंगा दंगोत्री माथी निकरवी, और दोर की जाती तु पुतानी पवित्र गती माँ, एनी साथो साथो तारा चरित्र नी गंगा रतीती, मनें थरूता बेनी हरीफाय मा कौन आगल �
निकलशे, पण जीती सुर सुरी, किरपी सुरसरी, शरीतोरी गवन कीन हद दिया, गंगानी परित्रताने आज थारी गती, एना करता आगल निकली गई, तु गंगाने जीती गई, मनें बहुत साची वाद छे, दीकरी बन्ने कुल ने तारे, दीकर एक अज कुल ने तारे, �
अम कथा सुनाते
अनु नाम बना राम कथा हो प्रवाक्तों मातों आज जानती नु कथा
अम कथा सुनाते
मुख्ला की राज बुनारी की हम कथा सुनाते हैं अम
धारत की यत तन्नारी की हम कथा सुनाते हैं
अम कथा सुनाते हैं अम कथा सुनाते हैं
बदाओ जोच चरित्र है जग जनने जानती घर्रे अलवतित चरित्र है
गावा की पवित्र ख़वाय आभलवा की पवित्र ख़वाय गरंख में सपर्ष करवा की पवित्र ख़वाय
आउँ अधपूत तरूत श्री सिता हो
सेव को मुक्ला गया थे तन रूप लई सासीरों ने सेवा करीज रघुनाथ की सिवाल आ मर्मनी कोई ने जान चाहिए नहीं तो नहीं ना नहीं जनक जिये भरत माते जाओं वार्थालात करेंगे
सवार पढ़ेचे नित्य कर्म करीब राणी सवा मालेचे कोई कोई ना उपर दबान करते नहीं है युद्यानी राज्य सत्ता माते शुकरों भशिष्ट जी ऐम कहें कि भरत नी भक्ती आगल मारी बुद्धी आदिन थाई गई हूँ कहीं कहीं शकूल नती जनक जियो सवा मा�
निति आगदा शास्त्रों मा मारी बुद्धी काम करेंगे पर भरत ने राम ना प्रेम मा मारी बुद्धी रूपी मीठा नी पूतोई समुद्र मा पिगली चूकी जाती है
आगदा शास्त्रों मा मारी बुद्धी काम करेंगे पर भरत ने राम ना पेटिली चूकी जाती है
शासन स्विकारी। जानूँ चुके तने सक्ता नहीं गमे पर भाई चंद वर्ष काले पुरा थश। परमात्मानी इच्छा मा इच्छा बोरोग भी ये संक्त धर्म छे तेथी बरत जी ने दवू नहीं पर एकदम चरण पकड़ी न कहूँ बगवन। आप पहता हो तो हूँ
दुषियों न आश्रम मा फर्मू छे गिरिराज चित्रकूट ने परिखम्मा करी। जुरी मली छे। राज तिलक ने सामगरिया ने जव हसाए दगा। एक दिगाए सदरावी एक कुआ नू नाम भरत कुप अत्री महराजे राख्य। भरत जी पाँच दिवस चित्रकूट
ये सेवक नो धर्म नती। ना तो जवाई प्रभू थी जुदाफरू नगमे छताई सामची कहूँ। दगवन कालो अमे जहिये क्यारे प्रभू भक्त रभेई ने जानी ने रढी पड़ेच। निर्णय लिवायो आउती काले विदाये जवानुच। जनकपूर ने अव�
वारे विदाय ने वक्त तैयारीच। बहरत जी जनक माहराज ने राम जी जनक माहराज ने वसिष्ठ
जी ने वन्य समाज ना लोकोर ने मलाच। बहरत ने शत्रब्न ने बेटी राजणीति ना उदापी माताओं
करवानी सुचना आपी है। सुमित्रा कई-कई ने वंदन करी कवसंगा माने पगे लागिया। तैरे मान खुब रड़ी है। क्रागव में 14 वरस कैम विताविश। वही भी पगे लागी माने रदये लगाड़ी है। बेटा हाँ चवजे सबर हो रहे।
श्री बरत जी दूरुबाव भार रहेचे प्रभु ने थयूँछे। बरत ने संतोष्ठ तो नहीं। नजीक बुलावी पूछूँछे परत आँ प्रभु। अयुध्या तो जाऊँ पण कमारा हाथे कैंकेवी वस्तु आपो केने जोईने 14 वरस जीवी शकूँ।
बगवा ने करुणा करीचे। श्री बरत जी ने चरणपादु का बेट करीचे। रामायन नो प्रसिद्ध प्रसम।
गर्नकीचों करुणान जाने के। गर्नुजुग जाने को प्रजाताने के।
गर्नकीचों करुणान जाने के। रामायन नो प्रसिद्ध प्रसम।
बगवा ने करुणा करुणा करीचे। श्री बरत जी ने करुणा करीचे। रामायन नो प्रसिद्ध प्रसम।
पादुकाव सार घारन करी मारी साथु पगारिया। अतिशय आनन्त। पादुकाव मुकुत बनारी दुनिया ने राम राज्जी बतायू चे। आरितो बगवान सी विदारिली दीचे। सब जा रहे हैं। नूर दूर बगवान वराय आया चे। लगा देखा पर गन खया �
जा रहे प्रभु पाथा खर्या। चित्रकोट मा भरत ने याद मा भगवान विलखाय। रस्ता मा मुकाम करता करता श्री भरत ने जनक मा समाज चौथे दिल से अयोग्या पहुंचे। महराज जनक जी अदुदीर विवस्था राज्जी ने करावी जनकपुरी तरफ प्र
पूछी गणक ने बुलावी। सिहासन उपर भगवान ने साधुका ने पदरावी। शासन साधुका ने समर्पीत करी। साधुका ने पूजा करी उन्हें पूछी पूछी नराज्जी कार्य करवा ला गया। पर अजी जीवने संतोष नती। एक बार वशिष्ट जी ने क
कहूँ चे बाबजी मने आजना करो तो हूँ समयम रहूँ। नंदिगराम में कुटिया बनावी न रहूँ। मारो ईश्वर जुपडा में रहे तो मारा की महल में न रहे। नियम सर रहे।
लगतान ही मन्जूरी मामी कखता। कशिष्ट जी ये मन्जूरी आती हूँ आ Алथासल्या चैबिला आताल तो मारा का लेकर मन्जूरी है। कशिष्ट जी, मन्जूरी आती है। अपी मा कशिष्ट जी ही आताल तो मारा करंठी मन्जूरी और पास मनी समय मन्जूरी. गृण mitt
अपनोंने प्यागनी हरीफाई थे रामायन मां, मांने लागियों संतनी हिस्सा मां हिस्सा दोड़वी दो, बले भाई, नंदी ग्राम में रहा कि तने आमिन छतोल को जाओ, नंदी ग्राम, लोगोंने कदर मरी, आच्छे एद्या बोजी थे, बरत जी आप मत जाओ, बरत जी �
वर्ग मां, बरत बैया नंदी ग्राम जाओ, अयों शुकरीश। कई पैल्या सुनित्रा बदा समझायों थे, श्री वरत जी नंदी ग्राम मां पदारे, जुपड़ी बांधी थे, भूमी मां खादों खोदे थे, दर्बनी प्रथारी प्रधेसी अखंड सीताराम जी ने स्म
समझाये, गुरुनी सेवा करे, मानी सेवा करे, अने नंदी ग्राम मां रहे, अखंड में तप करेज। चंपाना बगीचामा भमरोल जेन मिरलेट बनें, बरत जी अयोध्यानी समृद्धि मां मिरलेट बन्याज।
मानक कोई सारी वस्तु, जो न्या निकुतो, उलटी थाये- करी या अन्यी वस्तु अपरिय लागे रिएंड संसार थेण बौग बरत में उलटी थे गया।
दिवसे दिर से शरीर सुकाना लागी तेज वद्रा लागी भरतनो प्रेम भरतनो तापने भरतनो त्याग जोई अयब्यानावासिय सराहना करा रामाय माले

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