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Bài hát ram katha by morari bapu - bhuj vol. 24 pt 4 do ca sĩ thuộc thể loại The Loai Khac. Tìm loi bai hat ram katha by morari bapu - bhuj vol. 24 pt 4 - ngay trên Nhaccuatui. Nghe bài hát Ram Katha By Morari Bapu - Bhuj Vol. 24 Pt 4 chất lượng cao 320 kbps lossless miễn phí.
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Lời bài hát: Ram Katha By Morari Bapu - Bhuj Vol. 24 Pt 4

Lời đăng bởi: 86_15635588878_1671185229650

परमात्मा नी स्तुति करी, कंदमूल फ़ल समर्पित करी, भक्ती न वर्दान प्राप्त करी।
एक रात्री प्रभु रोकाया। रोकावानी नक्ति चली इतले सिथाजी अनुसुयाजी ने वंदन कहेचे और कहेचे,
मां, तमें पतिवृता धर्मना आचारिया छो, मने नारी धर्मनु शिक्षान आपो।
अनुसुयाजी बोला, साक्षाक जरुदंबा तमें, मारे तमने शुशिक्षान आपवानू, पर संतारनु नारी ने बूग मले इतना माते, नारी धर्मनी थोड़ी चर्चाका छे।
सुरंप्रमा जरुद, बिरामन मरामन संध्याना करे और शिव अभिषेक करे, शिव जी अभिषेक स्विकारे
तब तत्माय देरियलतार का अपना निणदा है , तो वे बहत्ती स्विकर करें
और मारी माते मेड़ा भातिवृत्य धर्मनी तम्हारों चयो।
दिल्यवस्त्र आलंकार गोई तात्या से विजादीर से राम लखन गईदेशी त्याथी आगल यात्रा करें।
रस्तानी अंदर एक शरभंग मा विराध नाम राक्षत आयो एने प्रभुय मारेंचे।
पछी शरभंग नाम ना एक संत मजाचे जो ब्रह्मन हुक मा जटा था मृत्यु ने अटकावीलो वर्य एने भगवाने देद भर्त्ती नो वर्दान आचे।
त्या कि अनेक रिशी मनियों ने परमात्मा मरीन पूछेँचे जंगल मा अटला बड़ा अटकाव ना दगला के तैरे रिशी मनियों रढी पड़या आप तो जानोंचे प्रभु, अनेक राक्षतों रिशी मनियों ने अने गार्यों ने खाल किया अना आक्थीज।
भगवाने पतिगना करी हूँ राक्षस वगर ने गरती करी देश
आम रिश्य मुनियों ने आस्वासन आपी भगवान आगल वदेश
थोड़े दूर गया तो अगस्त महराज नो एक शिष्य सुतिख्ष्ण नामना संते ने मलाज
खुबज राम प्रेमी से भगवान आलो थे समाचार सामुरता जंगल मा नुरुट्य करेजे
भगवान एने दर्शन आपी कृप्त कृप्त करेजे
सुतिख्ष्ण महराज ए भगवान ने उनन्ती करी महराज
मारा गूरूणा आश्रम मा घणावकाथ सलू नकि गवे आपपर मारी सासे चालो अने मारा गुरू ने दृषं आपो
सुतिख्षण महराज ए भगवान ए अगस्त रुशीनां आश्रम मा लुजवेवा थे
अगस्तजिय इस्तुति करी राम जी एक रात करी प्यारो काया
अगस्त महराज में विजो जीवसी बगवाने प्रश्न पूछोई से महराज
अवे तमें उवा मंत्र बताओ कि उन राकशतों नो विनाश करो
अगस्त जी करुआ कालना काल थो माराज मारे तमने शु मंत्र बताओ छता पन नहीं कि आगल जशूत दंडिका रहें आओशे
रुशियों ना शापने लिदेव जंगल मा वसंत रूतु नथी आवती गुदावरी नदी वहेचे एने किनारे पंचवती नाम नु स्थान छे त्या तमे निवास करो त्या थी राक्षस विनाश नी गणी सुविधा रहेश
रुशियों ना शापने लिदेव जंगल मा वसंत रूतु ना रहेश
रुशियों ना शापने लिदेव जंगल मा वसंत रूतु नथी
अत्रम वस्तु व्यक्ति ना जीवन में नहीं आवे तो मानव जीवन में पंचवति शुष्क है रहती है। बगवान ना आगमन की पंचवति दिव्य बनी है।
निवाश शरु थयों चे लक्ष्मण जी गणा प्रश्नों पूछे चे बगवान एनो प्रतितर आते चे। तीत दिवस रावन ने बहन शुर्पणखा आवे चे। दुष्ट गड़ाई चे शुर्पणखा नु।
पंचवति मा फर्ती फर्ती आली उन्हें राम सीता ने जोई गई। राम ना रूप ने जोता शुर्पणखा मोहित थे। राक्षसी थी। एना पती ने रावन ने मारू नाचेलो। विद्वा थी। जंगल मा बटक्या करती थी। राम ना रूप ने जोता एकदम आकर्�
सित करवा माते शुर्पणखाई सिंबरी रूप धारण करी पंचवती मा प्रवेश करे। सिता राम जी बैठा से। लक्षमण जी पतानी कुटिया पर बैठा से। आलतावक शुर्पणखाई भगवान ने कहूँ से। तमारा जैया जगत मा कोई पुरुष मती अने मारा �
जीरी कोई स्त्री तो छेल जी नहीं। अत्यार सुदी मने लायक कोई पुरुष न मले इतला माते हूँ कुमारी रहे। तमने जोया पची मारू मन काईक माइनू छे इतले तमे मारी साथे लगन करो। आप लगन न प्रस्थाव न के। अजे सिता भी बाजी मा बैठा से।
इता चिताई कही प्रभुदाता अहाई कुमार नौर लगुबराता। बदवाने सिताजी में सामे ब्रश्टी राखिन कहूँ। वो तो परने नोचू मारी बाजू मा बैठा है मारा पत्मी चे पर सामी कुटियाई जे बैठो चे मारो नानों बाई अत्यारे कुमारो से।
आयुन कहवाला जी तमारा बाई ये मोकली जे तमे मारी सासे परो। लक्ष्मन जी बान गस्ता का तल्यारो जेता। तिर्पनखाने जे लक्ष्मन जी विचार करो कि वनमा अया पसी मुलाकात गणानी थल पर लग्णनो प्रस्ताल पहली वारा यो वन ये पर भगवान में �
तल्या इतल्या आमा कही की होती हो जी महीं सरक जया बात जाती है। तमारा जीवी सुंदर स्त्री मले तो परनवानी कोण न पाड़े। पण सुंदरी एक व्यक्ति की स्पष्टता।
वु सेवक छू. सुन्दरी सुनुमे उनकर दासा हूं एनो दास छू.
पर सेवक ने तो सेवा कर्यू पड़े, पानी भर्वू पड़े, रात मा जागूँ पड़े, ढक्षों ने सेवा कर्यू पड़े, आगदू कर्यू पड़.
तुम्हें मारी साथे परन सोदो, तुम्हारी सोव काई करनी पर, सेवक ने सुख होई नहीं, तुम्हें राम जी ने पास एक रजुआत करो, वो तो कौशलपूर राजा चे, जे कहीं करें, अनने सोदे हूँ तो दास चे, वो जो भी तर्थमा लक्ष्मन जी ऐम करूँ के स�
तुम्हारी साथे परनिंग तमने मुश्किली थसे, राम जी तो बदू करी शके, सर्वशक्ति मान चे, कौशलपूर राजा चे, ये बिजू लगन करी शके, शिर्पणखाने वाप गली गई, सीधी राम पास आगी, राम जी ने कहूँ तमें एक बराबर छो, तमारो भा�
सीवक छे, मुं कही सीवक नी पत्नी थोड़ी बन, राम जी ये कहूँ, आ लगन में प्रस्ताल छे, मारो भाई जरा शर्माल छे, ने बेतरण वार पग़े लागे ने विनंती करूँ, तो हमना आखार छे, आप त्यां जाओ, राम जी ये लक्ष्मन जी पासे मुखले, लक
राक्षसी स्वभाव छे के शूँ छे, दिखाओ तुरूँ सुन्दर के, अपना देशनी संस्कृति प्रमाने त्री सुन्दर केतली, एबव महत्वनु नौतु गणातो, त्रीना अंदरना सद्गुनु केतला है महत्वनु, एनी सहंशीता केतले, देचार वार जिया लक्
तांग छीते नहीं, सूर छीते नहीं, बादल खायो, रीड पड़े रज फूत छीते नहीं, बापार छीते नहीं, मांगनायो,
घंचन मारी को नैम छीते नहीं पीठ छीते नहीं पीठ भी खायो, कौमी ग discuss कहा भूनु श्याहतू घर, कर्म छीते ने भगऊत लगायो, कर्म छीते ने भगऊत लगायो, कर्म छीते ने भगऊत लगायो,
पर दो मानुस राखे पड़ कुतानी मूल रूप प्रगट है अगर रहे नहीं चार पाँच चक्तर ख़वडावी त्यां भयांकर राक्षसी रूप लूदू छे सिता जी ने पकड़वा दोरी अने जा सिता वक्र हुलो करवा गई राम जी ने थाई अवे आने दंदात जाम
तेही लाम गव करी ने नापकान बिनु पूम जे शर्प तेज करियो हतो एना थी शुरुपन खाना नापकान कात्यां ते नापकान ना तुकरा शुरुपन खाना आचमा आपी न कहूं के अवे पची पंचवती मा पग मुक्यों छे तो जीवती नहीं रहा दो रघू रह�
दोशी चूं इतने अबरा ने मृत्ति बंद नहीं आपतो आम कही शुरुपन खाने नापकान पाया प्याच नापकान कात्यां लोगी नी धारावों थवा लागी होतो राक्षसी रूप अपने बोते शरीर एमा नापकान कात्यां बहुत धिशा रूप लागी होते बागी
रूप अपने बोते शरीर एमा नापकान कात्यां बहुत धिशा रूप अपने बागी
रूप अपने बागी
रूप अपने बागी
रूप अपने बागी
रूप अपने बागी
रूप अपने बागी
रूप अपने बागी
रूप अपने बागी
रूप अपने बागी
रूप अपने बागी

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