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परतन होमु लुवाद मदु, दिधि हरि हरु पादु पाई।
दुम्मा विष्टुन नहेशनु तदे लातुन भरत नहीं मले।
शिन्न धद्वान।
बोईदर्च।
लखा।
मसक फूक।
मच्छर फूक मारेने, मेरु परलक कोईने उस उडेने।
पर कदास मच्छर नहीं फूकती मेरु जै उडे दुम्बरो, यूगने शुद्धी उडी दर।
मच्छर फूक बहरु मेरु उडाई।
मुकी वोहिनु रुप मादु भरत हिवा।
मच्छर नहीं फूकती मेरु उडी जै तोपन।
भरत ने राज मदना।
तु भरत माँते बोलो ये बराबर नहीं।
भरत संत। प्रभुनी आँख माँते आई गया। अने वदवा नहीं।
दड़ करवा माँते तैनु राज।
लखन तुमारे सैफर्थ पितुआना।
ये राज ने कर साना एक राज।
भरत नृ भरत शमाना।
लखन तुमारे सैफर्थ पितुआना।
लखन तुमारे सैफर्थ पितुआना।
लखन तुमारे सैफर्थ पितुआना।
लखन तुमारे सैफर्थ पितुआना।
लक्षमान तारा सोगन्द अने भूतानी आन्द आविष्यों मा भरत जिहे भायु नकी
बूत अने पानी विदा करिये लक्षमान अने अमा आउस ताच बोले तो बूत अने पानी विदा करिये
पर गुवाउषना तड़ाउमा गुन रूपी गुद अने अगुन रूपी पानी विदा करिये लक्षमान ताच बूत अने पानी विदा करिये
भरत ये तो आमस्त्रे, हैमने क्षीर निर्णे जुदा पहजाच्छ।
आविष्वमा भरत ये भाईन, लक्षमन जीना मननो समाधान कहुँच्छ।
आनो एक अर्थ संते ये करुँच्छे कि जारे मानस्त्रमात्माने मड़वामा बिनकुल नजीक होई,
जारे कुतुम्द में अंगत विरोध करे।
मिराने रानाई विरोध करे।
प्रहलादने कृताई विरोध करे।
द्रूरने माताई विरोध करे।
नर्थिनेताने वोताभाई विरोध करे।
तुकारामने पत्मी विरोध करे।
विविशनने भाई विरोध करे।
तर कुटुमना बिल्कुल निकट में तत्व बड़ो करें। ते वक्ते जो आपनी साइजानी सकी रहें। तर चित्र कूट मिलन अमर दने।
तर कुटुमना बिल्कुल निकट में तत्व बिल्कुल निकट मिलन अमर दने।
तर कुटुमना बिल्कुल निकट मिलन अमर दने।
तर कुटुमना बिल्कुल निकट मिलन अमर दने।
धीरे धीरे मदाड़ पाण जाम वग छितुर्माँ।
धीरे धीरे मदाड़ पाण जाम वग छितुर्माँ।
धीरे धीरे मदाड़ पाण जाम वग छितुर्माँ।
चरण दोली ने मस्त कुपर लगारतां समाधी भाव सरजायोछ।
मन्दा किनीनु पवित्र वहैं अवे तो कुटियाओं बिल्कुल नजीक देखाईज।
रामजी ने लक्ष्मर जी कैं पूछेशे प्रभु आस्मा मान फेरोता फेरोता कैं जवाब आपेजे।
श्री सिताजी वार्तालाप साम्बलेचे आद्रश्य जोयूँछ।
मर्वान नी कुटिया और आस्रम जोतां वरत जी ने खुब लागिया नुच।
आस्रम ना द्वार सुधी तो मान मान पौच्याँछे अने बहु साची वाद।
पौची पौची न कितले पौचाई पछी तो राम लेवा आवे तोझ मुलाकात थाई।
बाकि जीवनी ताकात मती छेक सुधी पौच।
सिदामो परबंदर्थी रवाना थो ए सोनानी द्वारिकाना दर्वाजा सुधी पौचे।
पछी तो कृष्ण दोरे तोझ मुलाकात थाई।
बाकि प्राप्ति अनुग्रह वगर्ष।
परमात्मानी प्राप्ति यं क्या वो जुईए।
पुरुष्यात साध्य करता अनुग्रह साध्य वजार।
पड़ी गया द्वार मास।
पाही नाथ कही पाही गोसाईं।
लाकडी परेम भरत जी पड़ी गया छे।
गुहराग पर रड़ी पड़े उच्छे।
भगवान ना ताने भरत जी नो अवाज परिचीत अवाज आयो।
पर भगवान उबार नथी थता।
कारण के भगवान ना मन मा एम छे।
के विरोध करनारो लक्ष्मन अवे मने एम कहे।
के तमे भरत ने स्विकारो प्यारे जी मारे जवु छे।
त्यां सुदि उठु।
अने जो साजना परिपक्ल रही।
तो कुतुम ना अंगुत मानसो जी विरोध करता छे।
एज प्रभु ने प्राप्तना करसे कि अमारी भूल थाई।
भरत ना स्विकार का अन्यम छे।
मारु हाथ पकडी ने नै।
मारु हाथ निदन्गाला परिपक्कुद्ध वल्पर।
मुझ दूष्मनों जी पदन्स जी।
मारु हाथ पकडी ने नै।
मारु हाथ निदन्गाला परिपक्कुद्ध वल्पर।
ये जश्य जरूर मिलन्स भी।
ये जश्य जरूर मिलन्स भी।
ਗੁਪੀ ਦੀਲ ਸੋਂਖਾ ਦੋਜਾਏ ਕੀ ਦੋਜਾਏ ਹਾਰਾ ਤੀਯੋ ਭੈਸ਼ੇ ਪਹਾਡੁ ਮੇ ਨੈ ਜੁਮ੍ਨਾ ਕੁਪੀ
अग मिलना मुश्किल हुआ है मुरपा परूजन्दू
न धरासुदू न गगन्सुदू न हुन्नकी न पकन्सुदू
न धरासुदू न गगन्सुदू न हुन्नकी न गगन्सुदू
न धरासुदू न गगन्सुदू न हुन्नकी न गगन्सुदू
बस लापनू तो जरू हतू
बस लापनू तो जरू हतू
पकपनू कमी का नमः
बस लापनू कमी का नमः
दुबसों दुबाई माझाईचे
दुबसों दुबाई माझाईचे
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