कुछ पाने की चाहत में बहुत कुछ छूट जाता है
ना जाने सबर का धागा कहाँ पर तूट जाता है
तूट जाता है
सरा बताओ कि तुम किसको हम हम रहा कहते हो
यहां तो अपना साया भी साथ छोड़ जाता है
उत्त का कोई भी मन्जर मुझे अब रास नहीं आता
दहते पानी से ये दिन भी मिकल जाएंगे
गुरु रात का तूटेगा तो जरूर
मगर ख़ब हजार हमारे भी बिखर जाएंगे
खुच पाने की चाहत में बहुत कुछ छोट जाता है
ना जाने सबरिल का धागा कहां पर तूट जाता है
तूट जाता है
जरा बताओ कि तुम किसको हम हम रहा कहते
हो यहां तो अपना साया भी साथ छोड़ जाता है
वक्त का कोई भी मन्जर मुझे अब रास नहीं आता
बहते पानी से ये तिन भी निकल जाएंगे
गुरु रात का तूटेगा तो जरूर
मगर ख़ब हजार हमारे भी बिखर जाएंगे
वक्त का कोई भी मन्जर मुझे अब रास नहीं आता
बहते पानी से ये तिन भी निकल जाएंगे
गुरु रात का तूटेगा तो जरूर
मगर ख़ब हजार हमारे भी बिखर जाएंगे
गुरु रात का तूटेगा तो जरूर